Shri Acharang Sutra | By Jainacharya Ratnasundersuri M.S. | LIVE | Dhule | 24 Aug 2024

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  • เผยแพร่เมื่อ 29 ต.ค. 2024
  • Shri Acharang Sutra
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    The enthusiasm and good character with which you have embarked on the path of Sadhana (spiritual path) may weaken midway, but faith is such a thing that it is very important to keep it intact at all times. With faith, the path of Sadhana becomes very easy.
    To assess whether my faith in the path of Sadhana is true or false, ask yourself this answer: Do you find the worldly people happy or the Sadhu Bhagwants (renunciates)?
    I have a lack of worldly things and do I feel jealous of those who have all these things or do I clearly see that those people are not happy, it is just an illusion?
    And on the other hand, happiness is clearly visible in the ascetic sages who have nothing, or do they seem unhappy from your point of view?
    Today we will discuss the five epi-centers of faith - person, vision, power, purity and accomplishment.
    Five epi-centers of faith:
    1. Person: Have faith in such a person by name alone, if he has the status of high nobility.
    2. Vision: Then drink in their excellent vision and put it into practice. There should be joy inside you if there is true faith in the vision. We try to do as many activities as possible to align our goals with this vision. Ex: We will not make a fuss with the vegetable vendor for ten or twenty rupees and disturb our joy.
    3. Power: Complete faith helps us feel the power of the grace of Dev & Guru, after getting the right vision. Gurudev could not speak two sentences in the Mumukshu (person ready on thrbpath of renunciation) state and by the grace of Guru, he was able to address a gathering of 10 lakhs later on!
    4. Purity: The impure tendencies we might still get while walking along the noble path tainted by sins are easily discarded by us without a second thought, when we cross the first three phases above. And gain purity of thoughts and actions
    5. Siddhi: When the above four stages are completed with faith and joy, then by the grace of Dev Guru, all the right efforts fructify and the success is automatically achieved. The power of accomplishment is naturally gifted to us.
    The Guru is there to provide vision, power, purity and then the power of accomplishment to everyone, but only the dedicated seekers receives all of these from the Guru only through strong and unwavering faith.
    जिस उल्लास और चारित्र के साथ साधना मार्ग पर निकले हैं, वह बीच रास्ते में कमजोर पड़ सकते हैं, लेकिन श्रद्धा एक ऐसी चीज है जिसको हरगिज टिकाए रखना बेहत जरूरी है। श्रद्धा से साधना मार्ग बहुत आसान हो जाता है।
    मेरी साधना मार्ग मे श्रद्धा सही है या झूठी इसको आंकने के लिए इसका जवाब खुद मांगिए : आपको संसारी सुखी लगते हैं या मुनि भगवंत?
    विश्वास और प्रेम जो हमने विस्तार से देखा वह आसान है, अचल श्रद्धा बहुत ही मुश्किल है। श्रद्धा के पांच केंद्र आज जानतें हैं: व्यक्ति, दृष्टि, शक्ति, शुद्धि और शुद्धि।
    मेरे पास में सांसारिक वस्तुओं की जो कमी हैं और जिनके पास ये सब है उनको देखकर मुझे जलन होती है या यह साफ दिखाई पड़ता है कि वे लोग भी सुखी नही है, भ्रम मात्र है?
    और दूसरी ओर जिन वैरागी मुनियों के पास कुछ न होते हुए भी उनमें प्रसन्नता साफ दिखती है या वे आपकी दृष्टि से दुखी लगते हैं?
    श्रद्धा के पांच केंद्र:
    1. व्यक्ति: उत्तमता का दर्जा हो, ऐसे व्यक्ति पर नाम से ही श्रद्धा
    2. दृष्टि: फिर उनकी उत्तम दृष्टि को पीना और चरितार्थ होना। भीतर में आनंद मिलना चाहिए अगर दृष्टि पर सही श्रद्धा हो तब। दृष्टि परिवर्तन के जितने भी शक्य प्रवृत्ति कर सकें, वह करने का प्रयास करते हैं। Ex: सब्जी वाले से दस बीस रुपयों के लिए बबाल नही करेंगे और आनंद के साथ छोड़ सकते हैं
    3. शक्ति: देव गुरु के कृपा की शक्ति पर पूरी श्रध्दा महसूस होती है, दृष्टि परिवर्तन मिलने के बाद, जब शक्ति का विस्फोट होता है। गुरुदेव मुमुक्षु अवस्था में दो वाक्य बोल नही पाए और गुरु कृपा से 10 लाख की सभा को संबोधित कर पाए
    4. शुद्धि: मलिनता और पाप बंध जिस रास्ते पर हो, वे अशुद्ध वृत्तियां सहजता से छूट जाती है।
    5. सिद्धि: ऊपर के चार पड़ाव जब श्रद्धा से आनंदपूर्वक तय कर लेते हैं, फिर देव गुरु कृपा से सभी सम्यक पुरुषार्थ और शुभ भावनाओं की सिद्धि अपने आप मिल जाती है।
    गुरु तो सबको दृष्टि, शक्ति, शुद्धि और फिर सिद्धि प्रदान करने के लिए बैठे हैं, परंतु समर्पित साधक श्रद्धा के माध्यम से ही यह सब गुरु से प्राप्त करते हैं।
    जब बारिश कम के बरसती हो, तब बर्तन लेकर, उसे उल्टा नहीं मगर सीधा रखना, बर्तन में नीचे छिद्र न हो उसका खयाल, फिर अगर बर्तन साफ न हो तब भी चलेगा, बारिश के पानी पर श्रद्धा रख दो। यह तर्क लगता है भगवान और गुरु की कृपा दृष्टि की

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