Jay mata di jay shri ram jay Hanumaan radhe radhe Krishna Krishna jay bholenath om trayambakam yajamahe sugandhim pusti vardhnam urbarukmivya bandhnaath mrtyormukhshiya mamrataat jay bholenath
हा राधा! हा कृष्ण ! हा वृन्दावन ! हा यमुना जी ! हा ब्रज ! हा मेरो प्राणधन सदगुरुदेव भगवान ! हे वृन्दावन धाम ! त्रिलोक व त्रिकाल में सबसे अधम पतित इस जीव को अपनी शरण में रख लिजै। श्री राधावल्लभ के कमल चरणों की दासी बना दिजै। श्री कृष्ण प्रेम वंशी अवतार हित सजनी आचार्य हित हरिवंश जू के व उनके रसिक जन भगवद्दप्रेमी का संग मिले। भवसागर से पार करो हे वृंदावन यही करबद्ध विनती है। जय जय श्री राधावल्लभ हित हरिवंश जू! 🙌🙌🙌🙌🙌
Bahat bahat Sundar Alokik Divya charitavali. Bhakta shri Kumbhan Das Ji Maharaj ki Jay. SriNath Ji Bhagavan ki Jay. Bhakta aur Bhagavan me hui samasta divya parlokik Lila ki Jay. Maharaj ji ke Shri charno me Anant Anant var sadar prannam. Jay Jagannath. Radhe Radhe.
श्री राधाकृष्णाभ्याम नमः परम् पूज्य श्री कुम्भनदास जी महाराज के श्रीचरणों में अनन्त साष्टांग दंडवत प्रणाम निवेदित हों। पूज्यपाद श्री कुम्भनदास जी महाराज वास्तव में एक महापुरुष थे या कह सकते हैं कि ये श्रीकृष्ण प्रभु के नित्य सखाओं में से ही एक थे।
((((((( ऐसी हो गुरु में निष्ठा )))))))) . प्राचीनकाल में गोदावरी नदी के किनारे वेदधर्म मुनि के आश्रम में उनके शिष्य वेद-शास्त्रादि का अध्ययन करते थे। . एक दिन गुरु ने अपने शिष्यों की गुरुभक्ति की परीक्षा लेने का विचार किया। . सत्शिष्यों में गुरु के प्रति इतनी अटूट श्रद्धा होती है कि उस श्रद्धा को नापने के लिए गुरुओं को कभी-कभी योगबल का भी उपयोग करना पड़ता है। . वेदधर्म मुनि ने शिष्यों से कहाः "हे शिष्यो ! अब प्रारब्धवश मुझे कोढ़ निकलेगा, . मैं अंधा हो जाऊँगा इसलिए काशी में जाकर रहूँगा। . है कोई हरि का लाल, जो मेरे साथ रहकर सेवा करने के लिए तैयार हो ?" . शिष्य पहले तो कहा करते थेः ʹगुरुदेव ! आपके चरणों में हमारा जीवन न्योछावर हो जाय मेरे प्रभु !ʹअब सब चुप हो गये। . उनमें संदीपक नाम का शिष्य खूब गुरु सेवापरायण, गुरुभक्त था। . उसने कहाः "गुरुदेव ! यह दास आपकी सेवा में रहेगा।" . गुरुदेवः "इक्कीस वर्ष तक सेवा के लिए रहना होगा।" . संदीपकः "इक्कीस वर्ष तो क्या मेरा पूरा जीवन ही अर्पित है। गुरुसेवा में ही इस जीवन की सार्थकता है।" . वेदधर्म मुनि एवं संदीपक काशी में मणिकर्णिका घाट से कुछ दूर रहने लगे। . कुछ दिन बाद गुरु के पूरे शरीर में कोढ़ निकला और अंधत्व भी आ गया। शरीर कुरूप और स्वभाव चिड़चिड़ा हो गया। . संदीपक के मन में लेशमात्र भी क्षोभ नहीं हुआ। वह दिन रात गुरु जी की सेवा में तत्पर रहने लगा। . वह कोढ़ के घावों को धोता, साफ, करता, दवाई लगाता, गुरु को नहलाता, कपड़े धोता, आँगन बुहारता, भिक्षा माँगकर लाता और गुरुजी को भोजन कराता। . गुरुजी गाली देते, डाँटते, तमाचा मार देते, डंडे से मारपीट करते और विविध प्रकार से परीक्षा लेते. . किंतु संदीपक की गुरुसेवा में तत्परता व गुरु के प्रति भक्तिभाव अधिकाधिक गहरा और प्रगाढ़ होता गया। . काशी के अधिष्ठाता देव भगवान विश्वनाथ संदीपक के समक्ष प्रकट हो गये और बोलेः . "तेरी गुरुभक्ति एवं गुरुसेवा देखकर हम प्रसन्न हैं। . जो गुरु की सेवा करता है वह मानो मेरी ही सेवा करता है। जो गुरु को संतुष्ट करता है वह मुझे ही संतुष्ट करता है। . बेटा ! कुछ वरदान माँग ले।" संदीपक गुरु से आज्ञा लेने गया और बोलाः . "शिवजी वरदान देना चाहते हैं आप आज्ञा दें तो वरदान माँग लूँ कि आपका रोग एवं अंधेपन का प्रारब्ध समाप्त हो जाय।" . गुरु ने डाँटाः "वरदान इसलिए माँगता है कि मैं अच्छा हो जाऊँ और सेवा से तेरी जान छूटे ! . अरे मूर्ख ! मेरा कर्म कभी-न-कभी तो मुझे भोगना ही पड़ेगा।" . संदीपक ने शिवजी को वरदान के लिए मना कर दिया। . शिवजी आश्चर्यचकित हो गये कि कैसा निष्ठावान शिष्य है ! . शिवजी गये विष्णुलोक में और भगवान विष्णु से सारा वृत्तान्त कहा। . विष्णु भी संतुष्ट हो संदीपक के पास वरदान देने प्रकटे। . संदीपक ने कहाः "प्रभु ! मुझे कुछ नहीं चाहिए। . "भगवान ने आग्रह किया तो बोलाः "आप मुझे यही वरदान दें कि गुरु में मेरी अटल श्रद्धा बनी रहे। . गुरुदेव की सेवा में निरंतर प्रीति रहे, गुरुचरणों में दिन प्रतिदिन भक्ति दृढ़ होती रहे। . "भगवान विष्णु ने संदीपक को गले लगा लिया। . संदीपक ने जाकर देखा तो वेदधर्म मुनि स्वस्थ बैठे थे। न कोढ़, न कोई अँधापन ! . शिवस्वरूप सदगुरु ने संदीपक को अपनी तात्त्विक दृष्टि एवं उपदेश से पूर्णत्व में प्रतिष्ठित कर दिया। . वे बोलेः "वत्स ! धन्य है तेरी निष्ठा और सेवा ! . जो इस प्रसंग को पढ़ेंगे, सुनेंगे, सुनायेंगे, वे महाभाग मोक्ष-पथ में अडिग हो जायेंगे। . पुत्र ! तुम धन्य हो ! तुम सच्चिदानंद स्वरूप हो।" . गुरु के संतोष से संदीपक गुरु-तत्त्व में जग गया, गुरुस्वरूप हो गया। . अपनी श्रद्धा को कभी भी, कैसी भी परिस्थिति में सदगुरु पर से तनिक भी कम नहीं करना चाहिए। . वे परीक्षा लेने के लिए कैसी भी लीला कर सकते हैं। गुरु आत्मा में अचल होते हैं, स्वरूप में अचल होते हैं। . जो हमको संसार-सागर से तारकर परमात्मा में मिला दें, जिनका एक हाथ परमात्मा में हो और दूसरा हाथ जीव की परिस्थितियों में हो, . उऩ महापुरुषों का नाम सदगुरु है। ❤️❤️❤️❤️❤️❤️
Shree Radhe Radhe... Jay Shree Radhe Radhe 🙏🙏🙏🙏🙏
जय श्री कृष्ण राधे राधे राधे 🙏🙏🎉🙏🙏
Radhe radhe radhe radhe.
श्री गुरु जी को चरण वंदना
radhe shyam
🙏भायँ कुभायँ अनख आलस हूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ 🙏 सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा🙏
🙏श्री राम जय राम जय जय राम🙏
Jai sri radhe radhe
Radhey shyam Sita ram
Radhe Radhe Radhe
Jay mata di jay shri ram jay Hanumaan radhe radhe Krishna Krishna jay bholenath om trayambakam yajamahe sugandhim pusti vardhnam urbarukmivya bandhnaath mrtyormukhshiya mamrataat jay bholenath
हा राधा! हा कृष्ण ! हा वृन्दावन ! हा यमुना जी ! हा ब्रज ! हा मेरो प्राणधन सदगुरुदेव भगवान ! हे वृन्दावन धाम ! त्रिलोक व त्रिकाल में सबसे अधम पतित इस जीव को अपनी शरण में रख लिजै। श्री राधावल्लभ के कमल चरणों की दासी बना दिजै। श्री कृष्ण प्रेम वंशी अवतार हित सजनी आचार्य हित हरिवंश जू के व उनके रसिक जन भगवद्दप्रेमी का संग मिले। भवसागर से पार करो हे वृंदावन यही करबद्ध विनती है। जय जय श्री राधावल्लभ हित हरिवंश जू! 🙌🙌🙌🙌🙌
हर हर महादेव।
Param Pujya Kumbhan Das ji Maharaj ji ki jai Param Pujya Guru Maharaj ji ki jai👌🌹🙏👌🌹🙏👌🌹🙏👌🌹🙏👌🌹🙏👌🌹🙏👌🌹🙏👌🌹🙏
श्री राधे राधे गुरुदेव ।
💐💐🌹🌹जय गुरुदेव साष्टांग दंडवत प्रणाम🌹🌹💐💐
गुरूवर के चरणों मे कोटि कोटि दण्डवत प्रणाम
Jai Shree Radhe Krishna 🙏🙏🙏
सीताराम
ॐ श्री सद्गुरुवे नमः
🕉️जय श्री राधे राधे🕉️
Mahan sant Shri Kundan Das Ji ke charanon mein कोटि-कोटि pranam Radhe Radhe Jay Shri Krishna
Shri Radhe Radhe 🙏🌹❤️
सीता राम , राधे श्याम ।।
शेष गणेस महेस दिनेश सूरेस निरन्तर गावहि
ताहि अनादि अनन्त अखन्ड अनन्त अछेद अभेद सु- वेद वतावहि
ताहि अहीर की छोहरिया छछिया पे नाच नचावहि
J@y kumbhmandash maharaj G ki 🙏🙏🙏🙏
Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Ram Hare Ram Ram Ram Hare Hare
हरि बोल रे मनवा,बड़ी देर भई
Jai Jai Shree RADHEEEEEEE
राधे श्याम
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे |
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ||
Radhe radhe
Paranam
Jai kumbhandas maharaj ki
ललिता विसाखा राधा क्रष्णा अन्तरयामी
जगत के तू है पालन करता जग के तू है स्वामी
🙏🙏
जय श्री सीता राम
Har❤har❤mahadev 🙏🙏🙏🙏
Sita Ram Sita Ram Radhe Radhe Sita Ram Sita Ram aadi shakti Maa tulsi Maa ki jai Jai Ho And koti Koti Pranam
Radheshyam
Bahat bahat Sundar Alokik Divya charitavali. Bhakta shri Kumbhan Das Ji Maharaj ki Jay. SriNath Ji Bhagavan ki Jay. Bhakta aur Bhagavan me hui samasta divya parlokik Lila ki Jay. Maharaj ji ke Shri charno me Anant Anant var sadar prannam. Jay Jagannath. Radhe Radhe.
राधे राधे
श्रीराधे राधे, जय श्रीराधे
💐💐🙏🙏🌷🌷🙏🙏💐💐🙏🙏🌷🌷
Radhey radhey. Bahut sunder bhakt katha. Radhey radhey
ÒM SRI SAI RAM
Radhe radhe ji
राधे राधे....... जय श्रीकृष्ण
A1
Narayan Narayan hari hari
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
🌹🌹🙏🙏🌹🌹
महाराज जी को प्रणाम। कुंभन दास जी की समाधि अन्योर गांव में है देखकर बड़ा दुख होता है, बहुत दयनीय स्थिति में है। कुछ करिए महाराज🎉🎉🎉🎉🎉
श्री राधाकृष्णाभ्याम नमः
परम् पूज्य श्री कुम्भनदास जी महाराज के श्रीचरणों में अनन्त साष्टांग दंडवत प्रणाम निवेदित हों।
पूज्यपाद श्री कुम्भनदास जी महाराज वास्तव में एक महापुरुष थे या कह सकते हैं कि ये श्रीकृष्ण प्रभु के नित्य सखाओं में से ही एक थे।
श्रीराधे राधे, जय श्रीराधे
Llo
Lolo
((((((( ऐसी हो गुरु में निष्ठा ))))))))
.
प्राचीनकाल में गोदावरी नदी के किनारे वेदधर्म मुनि के आश्रम में उनके शिष्य वेद-शास्त्रादि का अध्ययन करते थे।
.
एक दिन गुरु ने अपने शिष्यों की गुरुभक्ति की परीक्षा लेने का विचार किया।
.
सत्शिष्यों में गुरु के प्रति इतनी अटूट श्रद्धा होती है कि उस श्रद्धा को नापने के लिए गुरुओं को कभी-कभी योगबल का भी उपयोग करना पड़ता है।
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वेदधर्म मुनि ने शिष्यों से कहाः "हे शिष्यो ! अब प्रारब्धवश मुझे कोढ़ निकलेगा,
.
मैं अंधा हो जाऊँगा इसलिए काशी में जाकर रहूँगा।
.
है कोई हरि का लाल, जो मेरे साथ रहकर सेवा करने के लिए तैयार हो ?"
.
शिष्य पहले तो कहा करते थेः ʹगुरुदेव ! आपके चरणों में हमारा जीवन न्योछावर हो जाय मेरे प्रभु !ʹअब सब चुप हो गये।
.
उनमें संदीपक नाम का शिष्य खूब गुरु सेवापरायण, गुरुभक्त था।
.
उसने कहाः "गुरुदेव ! यह दास आपकी सेवा में रहेगा।"
.
गुरुदेवः "इक्कीस वर्ष तक सेवा के लिए रहना होगा।"
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संदीपकः "इक्कीस वर्ष तो क्या मेरा पूरा जीवन ही अर्पित है। गुरुसेवा में ही इस जीवन की सार्थकता है।"
.
वेदधर्म मुनि एवं संदीपक काशी में मणिकर्णिका घाट से कुछ दूर रहने लगे।
.
कुछ दिन बाद गुरु के पूरे शरीर में कोढ़ निकला और अंधत्व भी आ गया। शरीर कुरूप और स्वभाव चिड़चिड़ा हो गया।
.
संदीपक के मन में लेशमात्र भी क्षोभ नहीं हुआ। वह दिन रात गुरु जी की सेवा में तत्पर रहने लगा।
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वह कोढ़ के घावों को धोता, साफ, करता, दवाई लगाता, गुरु को नहलाता, कपड़े धोता, आँगन बुहारता, भिक्षा माँगकर लाता और गुरुजी को भोजन कराता।
.
गुरुजी गाली देते, डाँटते, तमाचा मार देते, डंडे से मारपीट करते और विविध प्रकार से परीक्षा लेते.
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किंतु संदीपक की गुरुसेवा में तत्परता व गुरु के प्रति भक्तिभाव अधिकाधिक गहरा और प्रगाढ़ होता गया।
.
काशी के अधिष्ठाता देव भगवान विश्वनाथ संदीपक के समक्ष प्रकट हो गये और बोलेः
.
"तेरी गुरुभक्ति एवं गुरुसेवा देखकर हम प्रसन्न हैं।
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जो गुरु की सेवा करता है वह मानो मेरी ही सेवा करता है। जो गुरु को संतुष्ट करता है वह मुझे ही संतुष्ट करता है।
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बेटा ! कुछ वरदान माँग ले।" संदीपक गुरु से आज्ञा लेने गया और बोलाः
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"शिवजी वरदान देना चाहते हैं आप आज्ञा दें तो वरदान माँग लूँ कि आपका रोग एवं अंधेपन का प्रारब्ध समाप्त हो जाय।"
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गुरु ने डाँटाः "वरदान इसलिए माँगता है कि मैं अच्छा हो जाऊँ और सेवा से तेरी जान छूटे !
.
अरे मूर्ख ! मेरा कर्म कभी-न-कभी तो मुझे भोगना ही पड़ेगा।"
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संदीपक ने शिवजी को वरदान के लिए मना कर दिया।
.
शिवजी आश्चर्यचकित हो गये कि कैसा निष्ठावान शिष्य है !
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शिवजी गये विष्णुलोक में और भगवान विष्णु से सारा वृत्तान्त कहा।
.
विष्णु भी संतुष्ट हो संदीपक के पास वरदान देने प्रकटे।
.
संदीपक ने कहाः "प्रभु ! मुझे कुछ नहीं चाहिए।
.
"भगवान ने आग्रह किया तो बोलाः "आप मुझे यही वरदान दें कि गुरु में मेरी अटल श्रद्धा बनी रहे।
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गुरुदेव की सेवा में निरंतर प्रीति रहे, गुरुचरणों में दिन प्रतिदिन भक्ति दृढ़ होती रहे।
.
"भगवान विष्णु ने संदीपक को गले लगा लिया।
.
संदीपक ने जाकर देखा तो वेदधर्म मुनि स्वस्थ बैठे थे। न कोढ़, न कोई अँधापन !
.
शिवस्वरूप सदगुरु ने संदीपक को अपनी तात्त्विक दृष्टि एवं उपदेश से पूर्णत्व में प्रतिष्ठित कर दिया।
.
वे बोलेः "वत्स ! धन्य है तेरी निष्ठा और सेवा !
.
जो इस प्रसंग को पढ़ेंगे, सुनेंगे, सुनायेंगे, वे महाभाग मोक्ष-पथ में अडिग हो जायेंगे।
.
पुत्र ! तुम धन्य हो ! तुम सच्चिदानंद स्वरूप हो।"
.
गुरु के संतोष से संदीपक गुरु-तत्त्व में जग गया, गुरुस्वरूप हो गया।
.
अपनी श्रद्धा को कभी भी, कैसी भी परिस्थिति में सदगुरु पर से तनिक भी कम नहीं करना चाहिए।
.
वे परीक्षा लेने के लिए कैसी भी लीला कर सकते हैं। गुरु आत्मा में अचल होते हैं, स्वरूप में अचल होते हैं।
.
जो हमको संसार-सागर से तारकर परमात्मा में मिला दें, जिनका एक हाथ परमात्मा में हो और दूसरा हाथ जीव की परिस्थितियों में हो,
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उऩ महापुरुषों का नाम सदगुरु है।
❤️❤️❤️❤️❤️❤️
संवत 1525 कार्तिक कृष्ण एकादशी को kumbhandas जी का जन्म हुआ
Sabsebdiya
Kumbhandas ji ka जन्म संवत 1525 ई. सा पूर्व हुआ
जय श्री सीता राम