दूसरी कक्षा में पहला सांग बनवारी ठेल का मांडी खुर्द में दूसरा सांग कुछ साल बाद ढाठरथ सहरडा गांव में इन्हीं महाशय जी यानी मेरे बचपन के दौर में सबसे फेमस सांगी रहे बालक श्याम का ही देखा था। शुक्रिया सुधीर जी आज पुरानी यादें ताजा करवाने के लिए।
नमस्ते सुधीर बेटे। मेरा गांव तो जांटी के पास है मगर सांग देखने का अवसर नहीं के बराबर रहा। बचपन में गांव में प्यारे के सांग देखे एक बार प्रगति मैदान मेले में तुलेराम जी को सुना। दिल्ली और रोहतक आकाशवाणी पर कार्यक्रम सुनते सुनते ही बड़े हुए। कैसट पर बहुत सी किस्सों की और कम्पीटीशन रागनी सुनी। संस्कृति में रुचि के कारण नई सड़क, कौड़िया पुल से देहाती बुक डिपो और दूसरी छपी किस्सों की पुस्तिकाएं भी पढ़ी। हरियाणा साहित्य अकादमी से भी साहित्य पढ़ा। कला सेठों, संस्थाओं, राजाओं और सरकारों के आश्रय फलती फूलती है। सांग के स्वर्ण काल में आम लोग तो गरीब ही थे मगर सेठों, समाज के धनी व्यक्तियों, फौजियों, राजाओं ने कलाकारों को सहारा दिया और वे बिना पेट की चिन्ता किए उच्च कोटी के सांग रागनी बना सके और समाज को दिशा दे सके। उस काल के सांगी (मांगेराम जी जैसे एक आध को छोड़कर) पेट के लिए ही इस लाइन में आए। समाज ने उनके पेट की चिन्ता मिटाई और ये खजाना हाथ लगा। समाज, संस्थाओं और सरकार को इस कला को आश्रय देना होगा। श्यामलाल जी से आज की विस्तृत चर्चा में उनके व्यक्तिगत जीवन के साथ साथ सांग विधा, राय धनपतजी, बनवारीलाल ठेल पर काफी जानकारी मिली। धनपत जी की धुने झूलना सुनकर ऐसा लगता है झूला इधर-उधर ऊपर-नीचे जा रहा है, निहालदे से विरह वेदना को को कितनी मार्मिक ढंग से जीवन्त हो उठती है। गोपीचंद के मार्मिक और भावुक प्रसंग को श्यामलाल जी ने जिस रोषीली आवाज में गाया, जब आज आंख भर जाती हैं तो धनपतजी, बनवारीलाल सांग में जनता को रूला देते होंगे कोई अतिशयोक्ति नहीं है। "चोरी जुआ जामनी " की धुन और बोल गजब के हैं। आज के कलाकार पैसे, तकनीक और प्रचार के बल पर जन सहयोग प्राप्त कर लेते हैं। अच्छा बुरा हर समय, हर जगह और हर क्षेत्र में सदा से रहा है और रहेगा मगर समाज को देखना है कि चकाचौंध के चक्कर में असली माल खत्म न हो जाए। गुरु पर कितनी अच्छी बात रही। "जिब मिलै नूर मैं नूर" सिर्फ इसी बात के लिए की गुरु होना ही चाहिए, गुरु नहीं बनाना चाहिए बल्कि जिससे कला का ज्ञान मिल सके और जिसमें उस ज्ञान को चेले में उतारने का फन हो, उसे ही गुरु बनाना चाहिए केवल नाम के लिए नहीं। गीत-संगीत से जुड़े (कलाकार) हैं तो गीत-संगीत की कुछ समझ तो लेनी ही चाहिए। पुराने कलाकार हालांकि गरीब घरों और कमजोर तबकों से थे। कला और समाज के सहयोग से उनके पास खूब धन-सम्पदा हो गई थी फिर भी उनमें अहंकार नहीं आया। धनपत और बाजे भगत के कई किस्से समाज के सामने हैं। जिसमें नम्रता नहीं वो सच्चा कलाकार नहीं क्योंकि कला भगवान के नजदीक लेकर जाती है, जहां अहंकार नहीं नरमाई होती है। आम लोग गरीब होने पर भी अपने जमाने में सांगियों ने कितने स्कूल, पाठशाला, गौशाला, कुंए, तालाब बनाने के लिए कितना दान एकत्र किया यह है सच्ची कला का कमाल। मगर जैसे श्यामलाल जी ने कहा-"ओछी पूंजी खसम नै खा।" ओछे कलाकार और औछी बातें ज्यादा टिकाऊ नहीं होते। लखमीचंद, बाजे, धनपत, दयाचन्द आदि ने भी श्रंगार गाया मगर वो बातें आज नहीं याद की जाती उनकी सामाजिक उत्थान की बातें ही समाज में चल रही हैं। यह हम सबका, समाज का फर्ज है कि अच्छाई जिन्दा रखनी है तो अच्छी बातों को, अच्छे कलाकारों को भरपूर मदद करें और उनका प्रचार करें। बहुत अच्छा साक्षात्कार रहा, समाज और कला को आइने के सामने खड़ा कर दिया। अब हमें तय करना है कि हम अपनी कैसी शक्ल देखना चाहते हैं। श्यामलाल जी (और इनके गुरु बनवारीलाल जी) अनपढ होते हुए सरलता स्वभाव के, बिना लाग-लपेट जो दिल में थी वही बात की, कोई बनावटीपन नहीं। बहुत अच्छा लगा। इतना लम्बा होने पर भी पूरा सुणे बिना नहीं रह सका। बहुत बहुत धन्यवाद और शुभकामनाएं
, वाह अति सुन्दर वार्ता बहुत सुन्दर विचार और सोच भाई श्याम लाल जी की वार्ता सुन कर मन धन धन हो गया और सुधीर गोड जी इस सुन्दर प्रयास के लिए आप का भी धन्यवाद
मैंने बनवारी ठेल के बहुत सांग देखे हैं समान पुठी में इनका सांग बहुत आता था। Us वक्त बनवारी ठेल का सांग बहुत पोपुलर था उस टाइम बालक श्याम बनवारी के साथ बड़े रकाने खेलता था इसके इलावा बलवान धोरी और रांझा भी जानना खेलते थे रांझा को सूरजभान नमूना कहते थे वो माली वाले पंडित लहरी राम का चेला था और बालक श्याम आसन वाले धर्मबीर का चेला है सांग में भवानी को यह बालक श्याम ऐसे मनाता था " आ री भवानी वास कर दियो मेहर की झाल , श्री धर्मवीर सिंह सतगुरु मिले मेरे दादा गुरु बनवारी लाल" अब महाशय बालक श्याम जी अपने गुरु के नाम को छुपा क्यों रहे हैं । धन्यवाद
राम राम जी, हमारी जानकारी में तो श्री श्याम जी ने यही बताया था और स्वर्गीय श्री बनवारी लाल जी के परिवार का भी यही कहना है कि श्री श्याम जी श्री बनवारी लाल जी के ही शिष्य हैं। बाकी परमात्मा जानें जी। राम राम
राम राम जी 🙏🙏 हमारे यहां बंदे मीर का महिमा मंडन होता है और उस ओर कोई नाम तक नहीं जानता। कहीं कोई कार्यक्रम का आयोजन हुआ हो आज तक उनके नाम से या वहां की सरकार द्वारा ही कुछ किया गया हो इनके लिए, मेरी जानकारी में नहीं है। हमारे यहां तो सांग परंपरा आज समाप्ति की ओर जा रही है किंतु वहां तो कम से कम एक दशक हो गया है इसको समाप्त हुए। राम राम जी 🙏🙏
@@RaagRaginiSangam भाई ये बात नहीं है बंदा मीर जो राय जी के पहले और काबिल शिष्य थे और पूरे पाकिस्तान में उसने हमारी बोली, सनातन संस्कृति का ताऊ मर परचम लहराया और यह साबित किया कि कला और संस्कृति की कोई सीमा नहीं होती है। ऐक ये नहीं और भी ऐसे बढिया कलाकारों ने धूम मचा रखी है जैसे साजिश हसीना कलायत वाली, उनकी पुत्ती जो वहा सांग करते रहे। हमें ये खुशी है कि हमारे यहाँ से अधिक हमारी सांग संस्कृति पाक में ईं ही के कारण फैली है।
17:00 छोटा मुँह बड़ी बात, धनपत जी की प्रणाली के कई सांगी निहाल दे गाने से पहले अक्सर सवैया गाते हैं ये वही है। इसमें निहाल दे शैली कहीं भी अशं मात्र नहीं है। सरेश रोहिल्ला ने एक वीडियो डाली थी, मनफूल जोगी की ,असली निहाल दे उसमे गा रखी है
@@RaagRaginiSangam🙏🙏 लेकिन तर्ज तो एक ही होनी चाहिए। 19-20 का अंतर तो हो जाता है। निरंजन जी ने भी सही तर्ज गा रखी है। उस वीडियो में आप भी बैठे हुए दिखाई दे रहे हैं।
रामनाथ जादूगर गांव बलरंगरण जिला करनाल से अपने सगे ताऊ श्याम लाल जी के चरणों में बार-बार प्रणाम करता हूं ❤❤❤
धन्यवाद आपका 🙏🙏
Bhai ji sabse phale parnam
हर की भूमि हरियाणे तै गीता का उपदेश गया। नंगे नाच और गंद तै भटक मेरा प्रदेश गया। जय हो कवियो की
साधुवाद एवं प्रणाम 🙏🙏
Vah Masi ji dhanpat ke badhiya badhiya chale the Jo khas khas vah apna bataiye
सच में आंसू आ गए जब श्याम जी ने वो बोल कहा उस मुद्रा में
🙏🙏
अच्छा ट्रेलर बणाया आपने, सुंदर लग रहा है
🙏🙏
HMARE GAO KI SHAN SH. BALAK SHYAM JI. PARNAM HAI 🙏
प्रतीक्षा समाप्त हुई, जय हो सुधीर भाई
🙏🙏
दूसरी कक्षा में पहला सांग बनवारी ठेल का मांडी खुर्द में दूसरा सांग कुछ साल बाद ढाठरथ सहरडा गांव में इन्हीं महाशय जी यानी मेरे बचपन के दौर में सबसे फेमस सांगी रहे बालक श्याम का ही देखा था।
शुक्रिया सुधीर जी आज पुरानी यादें ताजा करवाने के लिए।
आदरणीय विक्रम जी, धन्यवाद आपका 🙏🙏
सच कहूं तो यह सबसे सुंदर प्रस्तुति है
🙏🙏
Real voice or bhav clear r voice Aanand aa gya
आपका धन्यवाद भ्राता श्री 🙏🙏
कृपया सुझाव एवं शिकायत सांझा करते रहा कीजिए।
प्रणाम 🙏🙏
@@RaagRaginiSangam aapka shabdo ka kya khna mujhe bahut acha lga kya aap mujhe itna shudh bolna or likhna sikhana chahoge me hridyese aapka anusaran Krna chahta hu
बहुत बढ़िया बातचीत
आदरणीय श्री महिपाल जी को सादर प्रणाम 🙏🙏
नमस्ते सुधीर बेटे। मेरा गांव तो जांटी के पास है मगर सांग देखने का अवसर नहीं के बराबर रहा। बचपन में गांव में प्यारे के सांग देखे एक बार प्रगति मैदान मेले में तुलेराम जी को सुना। दिल्ली और रोहतक आकाशवाणी पर कार्यक्रम सुनते सुनते ही बड़े हुए। कैसट पर बहुत सी किस्सों की और कम्पीटीशन रागनी सुनी। संस्कृति में रुचि के कारण नई सड़क, कौड़िया पुल से देहाती बुक डिपो और दूसरी छपी किस्सों की पुस्तिकाएं भी पढ़ी। हरियाणा साहित्य अकादमी से भी साहित्य पढ़ा।
कला सेठों, संस्थाओं, राजाओं और सरकारों के आश्रय फलती फूलती है। सांग के स्वर्ण काल में आम लोग तो गरीब ही थे मगर सेठों, समाज के धनी व्यक्तियों, फौजियों, राजाओं ने कलाकारों को सहारा दिया और वे बिना पेट की चिन्ता किए उच्च कोटी के सांग रागनी बना सके और समाज को दिशा दे सके। उस काल के सांगी (मांगेराम जी जैसे एक आध को छोड़कर) पेट के लिए ही इस लाइन में आए। समाज ने उनके पेट की चिन्ता मिटाई और ये खजाना हाथ लगा। समाज, संस्थाओं और सरकार को इस कला को आश्रय देना होगा।
श्यामलाल जी से आज की विस्तृत चर्चा में उनके व्यक्तिगत जीवन के साथ साथ सांग विधा, राय धनपतजी, बनवारीलाल ठेल पर काफी जानकारी मिली। धनपत जी की धुने झूलना सुनकर ऐसा लगता है झूला इधर-उधर ऊपर-नीचे जा रहा है, निहालदे से विरह वेदना को को कितनी मार्मिक ढंग से जीवन्त हो उठती है। गोपीचंद के मार्मिक और भावुक प्रसंग को श्यामलाल जी ने जिस रोषीली आवाज में गाया, जब आज आंख भर जाती हैं तो धनपतजी, बनवारीलाल सांग में जनता को रूला देते होंगे कोई अतिशयोक्ति नहीं है।
"चोरी जुआ जामनी " की धुन और बोल गजब के हैं।
आज के कलाकार पैसे, तकनीक और प्रचार के बल पर जन सहयोग प्राप्त कर लेते हैं। अच्छा बुरा हर समय, हर जगह और हर क्षेत्र में सदा से रहा है और रहेगा मगर समाज को देखना है कि चकाचौंध के चक्कर में असली माल खत्म न हो जाए।
गुरु पर कितनी अच्छी बात रही। "जिब मिलै नूर मैं नूर" सिर्फ इसी बात के लिए की गुरु होना ही चाहिए, गुरु नहीं बनाना चाहिए बल्कि जिससे कला का ज्ञान मिल सके और जिसमें उस ज्ञान को चेले में उतारने का फन हो, उसे ही गुरु बनाना चाहिए केवल नाम के लिए नहीं।
गीत-संगीत से जुड़े (कलाकार) हैं तो गीत-संगीत की कुछ समझ तो लेनी ही चाहिए।
पुराने कलाकार हालांकि गरीब घरों और कमजोर तबकों से थे। कला और समाज के सहयोग से उनके पास खूब धन-सम्पदा हो गई थी फिर भी उनमें अहंकार नहीं आया। धनपत और बाजे भगत के कई किस्से समाज के सामने हैं। जिसमें नम्रता नहीं वो सच्चा कलाकार नहीं क्योंकि कला भगवान के नजदीक लेकर जाती है, जहां अहंकार नहीं नरमाई होती है। आम लोग गरीब होने पर भी अपने जमाने में सांगियों ने कितने स्कूल, पाठशाला, गौशाला, कुंए, तालाब बनाने के लिए कितना दान एकत्र किया यह है सच्ची कला का कमाल। मगर जैसे श्यामलाल जी ने कहा-"ओछी पूंजी खसम नै खा।" ओछे कलाकार और औछी बातें ज्यादा टिकाऊ नहीं होते। लखमीचंद, बाजे, धनपत, दयाचन्द आदि ने भी श्रंगार गाया मगर वो बातें आज नहीं याद की जाती उनकी सामाजिक उत्थान की बातें ही समाज में चल रही हैं।
यह हम सबका, समाज का फर्ज है कि अच्छाई जिन्दा रखनी है तो अच्छी बातों को, अच्छे कलाकारों को भरपूर मदद करें और उनका प्रचार करें।
बहुत अच्छा साक्षात्कार रहा, समाज और कला को आइने के सामने खड़ा कर दिया। अब हमें तय करना है कि हम अपनी कैसी शक्ल देखना चाहते हैं। श्यामलाल जी (और इनके गुरु बनवारीलाल जी) अनपढ होते हुए सरलता स्वभाव के, बिना लाग-लपेट जो दिल में थी वही बात की, कोई बनावटीपन नहीं। बहुत अच्छा लगा। इतना लम्बा होने पर भी पूरा सुणे बिना नहीं रह सका।
बहुत बहुत धन्यवाद और शुभकामनाएं
🙏🙏
Bahut sundar charcha bhai. Sahab
🙏🙏
, वाह अति सुन्दर वार्ता बहुत सुन्दर विचार और सोच भाई श्याम लाल जी की वार्ता सुन कर मन धन धन हो गया और सुधीर गोड जी इस सुन्दर प्रयास के लिए आप का भी धन्यवाद
🙏🙏
Balak Shyam ko humne gaon Rithal mei dekha tha. Gajab tha.
धन्यवाद आदरणीय आपका 🙏🙏
अति उत्तम भाई।धन्यवाद
🙏🙏
अच्छी जानकारी प्राप्त हुई है।
🙏🙏
1no . Tau Rishi no.one haryana
🙏🙏
Ja ho samlal god
क्या बात, राय धनपत सिंह जी की
🙏🙏
राम राम🙏 जी
राम राम जी 🙏🙏
Namaskar ji 🙏 sh.syamlal ji ke charno me koti koti pranam 🙏
बहुत सुन्दर नरेंद्र शर्मा पानीपत
Nice
जय हो नरेंद्र शर्मा पानीपत
मैंने बनवारी ठेल के बहुत सांग देखे हैं समान पुठी में इनका सांग बहुत आता था। Us वक्त बनवारी ठेल का सांग बहुत पोपुलर था उस टाइम बालक श्याम बनवारी के साथ बड़े रकाने खेलता था इसके इलावा बलवान धोरी और रांझा भी जानना खेलते थे रांझा को सूरजभान नमूना कहते थे वो माली वाले पंडित लहरी राम का चेला था और बालक श्याम आसन वाले धर्मबीर का चेला है सांग में भवानी को यह बालक श्याम ऐसे मनाता था " आ री भवानी वास कर दियो मेहर की झाल , श्री धर्मवीर सिंह सतगुरु मिले मेरे दादा गुरु बनवारी लाल" अब महाशय बालक श्याम जी अपने गुरु के नाम को छुपा क्यों रहे हैं । धन्यवाद
राम राम जी,
हमारी जानकारी में तो श्री श्याम जी ने यही बताया था और स्वर्गीय श्री बनवारी लाल जी के परिवार का भी यही कहना है कि श्री श्याम जी श्री बनवारी लाल जी के ही शिष्य हैं।
बाकी परमात्मा जानें जी।
राम राम
Jai ho
🙏🙏
Aachi varta.
🙏🙏
Good
🙏🙏
❤❤❤❤
8:13
ये पूरी बातचीत ही हृदय में एक उमंग की किलोल करती है जी।
धन्यवाद आपका जुड़ने हेतु।
श्याम जी बंदे मीर महम वाले रायजीके मुख्य शिष्य जो पाकिस्तान का सिरमोर रहा को क्यों भूल गये।
राम राम जी 🙏🙏
हमारे यहां बंदे मीर का महिमा मंडन होता है और उस ओर कोई नाम तक नहीं जानता।
कहीं कोई कार्यक्रम का आयोजन हुआ हो आज तक उनके नाम से या वहां की सरकार द्वारा ही कुछ किया गया हो इनके लिए, मेरी जानकारी में नहीं है।
हमारे यहां तो सांग परंपरा आज समाप्ति की ओर जा रही है किंतु वहां तो कम से कम एक दशक हो गया है इसको समाप्त हुए।
राम राम जी 🙏🙏
@@RaagRaginiSangam भाई ये बात नहीं है बंदा मीर जो राय जी के पहले और काबिल शिष्य थे और पूरे पाकिस्तान में उसने हमारी बोली, सनातन संस्कृति का ताऊ मर परचम लहराया और यह साबित किया कि कला और संस्कृति की कोई सीमा नहीं होती है। ऐक ये नहीं और भी ऐसे बढिया कलाकारों ने धूम मचा रखी है जैसे साजिश हसीना कलायत वाली, उनकी पुत्ती जो वहा सांग करते रहे। हमें ये खुशी है कि हमारे यहाँ से अधिक हमारी सांग संस्कृति पाक में ईं ही के कारण फैली है।
Main madina gaaon se hun or mere pitaji banwari or balak shyam ji k fan hain or saang karana cahta hun kese contact kru wo btao
17:00 छोटा मुँह बड़ी बात, धनपत जी की प्रणाली के कई सांगी निहाल दे गाने से पहले अक्सर सवैया गाते हैं ये वही है। इसमें निहाल दे शैली कहीं भी अशं मात्र नहीं है। सरेश रोहिल्ला ने एक वीडियो डाली थी, मनफूल जोगी की ,असली निहाल दे उसमे गा रखी है
सभी का अपना अपना तरीका होता है जी
@@RaagRaginiSangam🙏🙏 लेकिन तर्ज तो एक ही होनी चाहिए। 19-20 का अंतर तो हो जाता है। निरंजन जी ने भी सही तर्ज गा रखी है। उस वीडियो में आप भी बैठे हुए दिखाई दे रहे हैं।
आप बेहतर जानते हैं जी 😊😊
Pt.mangeram.sunari.vale.vidvan.admi.the.sabhi.kamo.me.nipun.the..mithai.banana.jute.tak.bana.dete.the.parantu.pt.lakhmichand.ne.sunary.gamm.me..mangeram.or.jamua.meer.dono.ko.haraya.tha.mere.pita.pt.mangeram.shastri.kI'oI.. partax.gavah.the
🙏🙏
Inka contact number provide karwayein sir jee
धन्यवाद आपका मित्र 🙏🙏