गायक महोदय गा बड़ा सुन्दर रहा है पर ये रचना दादा श्री लखमी चंद जी की नहीं है किसी और कवि की है। ये चलन काफी समय से है, रचना किसी भी कवि की हो पर छाप दादा श्री की।
या तो आप ये बताते कि ये किसकी है? अन्यथा ये बताकर आप कोई बहुत बड़ा काम नहीं कर रहे हो। आप सिर्फ उन लोगों का रास्ता साफ कर रहे हो जिनका इन रागनियों से कोई लेना देना नहीं है परन्तु आप जैसो का सहारा लेकर अपनी पुस्तकों की मोटाई बढ़ा रहे हैं। अब आपको इसके तथाकथित मालिक मिल जायेंगे ।
@@DrSunil-kx3cv आदरणीय डा. साहब नमस्कार, मैने इस मामले में कभी झूठ नहीं बोला व हठधर्मिता से कभी बहस भी नहीं की। एक बार जब मैने दादा श्री लखमी चंद जी की धुन यूट्यूब पर डाली तब भी हमारे बीच इसी तरह की चर्चा चली थी। मैं दादा श्री लखमी चंद जी की रचनाओं का संग्रह कर्ता रहा हूँ तथा बड़ी मेहनत से 1974 से 1976 तक दादा श्री की लगभग सभी रचनाओं का संग्रह किया तथा उस समय तक जीवित दादा श्री के सांग साथी कलाकारों से असली नकली रचनाओं का अनुमोदन भी करवाया। अब यदि किसी भी कवि की रचना पर नकली छाप कोई लगाता है तो टिप्पणी डाल देता हूँ। इस तरह की कोई टिप्पणी आपके सामने आए तो उस पर कृपया क्रोधित न होकर बड़ा भाई मानकर अनुमोदन कीजिए, आपसे यहीं आशा रखता हूँ।
@@mr.sh.sureshtanwar1367 सादर प्रणाम। श्रीमान् जी, मैं ये नहीं कहता कि किसी अन्य की रागनियों को दादा लख्मीचन्द जी की छाप से गाए। पर आप तो समझदार हो अतः ये भी सुझाव दो कि इन रागनियों को किसकी छाप से गाए? अन्यथा बाहर पड़ी माया को कोई नहीं छोड़ता? और ऐसा भी नहीं है ये रागनियाँ किसी और की है - इनमें से अधिकतर दादा लख्मी के शिष्यों की है जिन पर वो गुरु की छाप लगाते थे और वहीं प्रचलित हो गई। अब स्थिति ये है कि रत्नकोष में जो भी रागनियाँ (दादा जी की नहीं हैं ) लिखी गई है उन को कोई भी अपनी बता देता है - पता नहीं झूठमाठ के कौन से शोध कर रहे हैं लोग।
@@DrSunil-kx3cv आपका कहना सही है डा. साहब। जो रागनी रत्नकोष में अलग से सूची बनाकर बताई गई हैं कि ये दादा श्री लखमी चंद जी की नहीं है, उनके मैने भी कई दावेदार देखे हैं। कई तो ऐसे ऐसे भी मिले जिनका कविता से दूर दूर का भी नाता नहीं है। कोई इन्हें अपने दादा, परदादा या कोई भी रिस्ता जोड़कर दावा ठोकने से नहीं हिचकता। पर क्या किया जाए जी, जो कभी रक्षक थे वो भी मात्र थोड़े से स्वार्थ के लिए भक्षक वाली भूमिका में आने से संकोच नहीं करते। यूट्यूब पर प्रतिदिन इनके बारे में बड़े हास्यास्पद और आश्चर्यजनक जनक मुठभेड़ भी देखता रहता हूँ।
Very nice ragni ❤❤❤🎉🎉
गायक महोदय गा बड़ा सुन्दर रहा है पर ये रचना दादा श्री लखमी चंद जी की नहीं है किसी और कवि की है। ये चलन काफी समय से है, रचना किसी भी कवि की हो पर छाप दादा श्री की।
या तो आप ये बताते कि ये किसकी है? अन्यथा ये बताकर आप कोई बहुत बड़ा काम नहीं कर रहे हो। आप सिर्फ उन लोगों का रास्ता साफ कर रहे हो जिनका इन रागनियों से कोई लेना देना नहीं है परन्तु आप जैसो का सहारा लेकर अपनी पुस्तकों की मोटाई बढ़ा रहे हैं। अब आपको इसके तथाकथित मालिक मिल जायेंगे ।
@@DrSunil-kx3cv आदरणीय डा. साहब नमस्कार, मैने इस मामले में कभी झूठ नहीं बोला व हठधर्मिता से कभी बहस भी नहीं की। एक बार जब मैने दादा श्री लखमी चंद जी की धुन यूट्यूब पर डाली तब भी हमारे बीच इसी तरह की चर्चा चली थी।
मैं दादा श्री लखमी चंद जी की रचनाओं का संग्रह कर्ता रहा हूँ तथा बड़ी मेहनत से 1974 से 1976 तक दादा श्री की लगभग सभी रचनाओं का संग्रह किया तथा उस समय तक जीवित दादा श्री के सांग साथी कलाकारों से असली नकली रचनाओं का अनुमोदन भी करवाया। अब यदि किसी भी कवि की रचना पर नकली छाप कोई लगाता है तो टिप्पणी डाल देता हूँ। इस तरह की कोई टिप्पणी आपके सामने आए तो उस पर कृपया क्रोधित न होकर बड़ा भाई मानकर अनुमोदन कीजिए, आपसे यहीं आशा रखता हूँ।
@@mr.sh.sureshtanwar1367 सादर प्रणाम।
श्रीमान् जी, मैं ये नहीं कहता कि किसी अन्य की रागनियों को दादा लख्मीचन्द जी की छाप से गाए। पर आप तो समझदार हो अतः ये भी सुझाव दो कि इन रागनियों को किसकी छाप से गाए? अन्यथा बाहर पड़ी माया को कोई नहीं छोड़ता? और ऐसा भी नहीं है ये रागनियाँ किसी और की है - इनमें से अधिकतर दादा लख्मी के शिष्यों की है जिन पर वो गुरु की छाप लगाते थे और वहीं प्रचलित हो गई। अब स्थिति ये है कि रत्नकोष में जो भी रागनियाँ (दादा जी की नहीं हैं ) लिखी गई है उन को कोई भी अपनी बता देता है - पता नहीं झूठमाठ के कौन से शोध कर रहे हैं लोग।
@@DrSunil-kx3cv आपका कहना सही है डा. साहब। जो रागनी रत्नकोष में अलग से सूची बनाकर बताई गई हैं कि ये दादा श्री लखमी चंद जी की नहीं है, उनके मैने भी कई दावेदार देखे हैं। कई तो ऐसे ऐसे भी मिले जिनका कविता से दूर दूर का भी नाता नहीं है। कोई इन्हें अपने दादा, परदादा या कोई भी रिस्ता जोड़कर दावा ठोकने से नहीं हिचकता।
पर क्या किया जाए जी, जो कभी रक्षक थे वो भी मात्र थोड़े से स्वार्थ के लिए भक्षक वाली भूमिका में आने से संकोच नहीं करते। यूट्यूब पर प्रतिदिन इनके बारे में बड़े हास्यास्पद और आश्चर्यजनक जनक मुठभेड़ भी देखता रहता हूँ।