Ashtavakra Geeta | satya kya? | what is truth

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  • เผยแพร่เมื่อ 25 ส.ค. 2024
  • सच क्या ?
    यह काफी पुरानी कहानी है। प्राचीन युग में भारत में जनक नाम के एक मशहूर राजा हुए थे, यह उन्हीं की कहानी है। उनका सीधा परिचय दिया जाए तो वे भारत के लोकप्रिय ग्रंथ रामायण की नायिका सीता के पिता थे। वे शुरू से धर्म के बहुत बड़े खोजी थे, सो दिन-दिनभर दरबार में धर्म चर्चा आयोजित किया करते थे। एक रात उन्होंने बड़ा ही विचित्र सपना देखा। उन्होंने देखा कि एक शक्तिशाली राजा ने उनके राज्य पे हमला कर दिया और पूरा राज्य तहस-नहस कर दिया। यहां तक कि उन्हें जान बचाने हेतु दूर जंगलों में भाग जाना पड़ा। अब अकेली जान, घना जंगल, युद्ध और भागदौड़ की थकान, हार की मायूसी और उस पर भूख।... अब इस घने जंगल में मिले क्या? कई दिन इस तरह बिताने के बाद एक दिन उनके हाल पे तरस खाकर एक राहगीर ने उन्हें एक रोटी दी। अभी वे एक पेड़ के नीचे बैठकर रोटी खाने को ही थे कि एक विशाल कौआ झपट्टा मार रोटी ले उड़ा। यह देख जनक चीख पड़े, और चीखते ही उनकी नींद उड़ गई। नींद उड़ते ही उन्होंने अपने को अपने ही राजमहल के बिस्तर पर पसीने से लथपथ पाया। यह देख जनक विचारशून्य हो गए। चूंकि वे धार्मिक चिंतन के व्यक्ति थे, सो उनके सोच की सूई यहां अटक गई कि सपना देख रहा था तब में पड़ा तो अपने बिस्तर पर ही था, लेकिन मन पूरी तरह जंगलों में भटक गया था। दौड़ा-भागी हुई ही थी, कौआ रोटी ले ही उड़ा था, मैं चीखा भी था और पसीने से लथपथ भी हुआ ही था।... सवाल यह कि उस समय पुरता सत्य क्या था? मैं बिस्तर पर लेटा था वह सत्य था, या मैं युद्ध हार के जंगलों में भटक रहा था; वह सत्य था?
    अब सवाल तो जायज था, परंतु इसका उत्तर क्या? बस जनक उस क्षण से ही इसका उत्तर ढूंढ़ने में डूब गए। इसके अलावा उन्हें और किसी बात का होश ही नहीं रह गया था। वे दिन-रात दरबार में धार्मिक धुरंधरों को बुलाकर सवाल पूछा करते थे कि "यह सच या वह सच"। उनकी यह हालत देख परिवारवाले, मंत्री व अन्य सभी हितैषी बड़े चिंतित हो उठे थे। उनका काफी इलाज भी करवाया पर कोई फर्क नहीं आया। उधर धार्मिक धुरंधर भी उनकी जिज्ञासा का कोई समाधान नहीं कर पा रहे थे। यह खबर उड़ती- उड़ती उस समय के परमज्ञानी अष्टावक्र के कानों तक पहुंची। वे तुरंत जनक के दरबार में पहुंच गए। स्वाभाविक तौरपर जनक ने अष्टावक्र से भी वही सवाल दोहराया। अष्टावक्र ने तुरंत हँसते हुए कहा- महाराज! न यह सच-न वह सच।
    जनक तो चौंक गए।... क्योंकि अब तक जितने भी लोगों ने बताया था, उन्होंने जनक की एक या दूसरी अवस्था को सच बताया था। खैर, इस हालत में जनक चौंके, यह
    भी उनकी वर्तमान दशा के लिए बड़ी उपलब्धि थी। उधर अष्टावक्र ने अपनी बात विस्तार से समझाते हुए जनक से कहा- देखो, जब सपना देख रहे थे तब भी तुम पड़े तो अपने राजमहल में ही थे, अर्थात् उस समय तुम्हारा जंगलों में भटकना गलत हो ही गया। ठीक वैसे ही तुम सोचो कि वास्तव में तुम राजमहल में थे तो भी उस समय तुम्हारा चित्त तो जंगलों में ही भटक रहा था; अतः उस समय तुम्हारा राजमहल में होना भी गलत ही हो गया।
    जनक को बात तो समझ में आ गई, लेकिन फिर उनकी जिज्ञासा ने एक नई उड़ान पकड़ी। उन्होंने अष्टावक्र से हाथोंहाथ पूछा- तो फिर सच क्या है?
    अष्टावक्र बोले- सत्य तुम्हारा द्रष्टा है जो यह दोनों घटना देख रहा था। उसे इन दोनों में से किसी से कोई मतलब नहीं था।
    जनक की तो यह सुनते ही आंख खुल गई। उन्हें तो जैसे जीवन की दिशा ही मिल गई। अब तो उन्होंने जीवन का एक ही मकसद बना लिया कि चाहे जो हो जाए, मृत्यु पूर्व द्रष्टा का एहसास करना ही है। खैर, बाद में अष्टावक्र ने एक गुरु की तरह जनक को उनके द्रष्टा में स्थित भी किया। यह बातचीत 'अष्टावक्र गीता' के नाम से बहुत मशहूर भी है।
    सार:- बस हमें भी मानसिक ऊंचाइयां छूने हेतु जनक की तरह जिज्ञासु होना ही पड़ेगा। पूरा न सही, परंतु धीरे-धीरेकर अपने द्रष्टा होने का एहसास जगाना ही पड़ेगा। यह समझना ही पड़ेगा कि दुख-सुख, ऊंच-नीच, साजोसामान, रिश्तेदार, दोस्त और दुश्मन ही नहीं, हमारे अपने भावों के उतार-चढ़ाव भी हमारे लिए 'अन्य' ही हैं। हम तो उन सबको सिर्फ देखनेवाले हैं। हम उनमें से कुछ नहीं। इसलिए वास्तविकता तो यह है कि अंदर बाहर की ऐसी कोई घटना नहीं, जो हमें प्रभावित कर सके।
    #ashtavakra #geeta #satyakya

ความคิดเห็น • 3

  • @rishi1613
    @rishi1613 3 หลายเดือนก่อน +1

  • @bimalchettri3689
    @bimalchettri3689 24 วันที่ผ่านมา

    भारत मे नही मिथीला के राजा थे जनक

  • @user-lm6li9qx2x
    @user-lm6li9qx2x 24 วันที่ผ่านมา

    😂😂😂😂😂