संगीतमय श्रीरामचरितमानस श्रृंखला बालकाण्ड दोहा : 286 से 290। पं. राहुल पाण्डेय

แชร์
ฝัง
  • เผยแพร่เมื่อ 14 ต.ค. 2024
  • जय श्री राम 🙏
    श्रीरामचरितमानस को सोशल मीडिया के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने का मेरा यह प्रयास पसंद आ रहा हो तो कृपया लाइक करें और शेयर करें। सुबह नित्य पांच दोहा श्रीरामचरितमानस श्रवण करने के लिए चैनल को सब्सक्राइब करें और फेसबुक पेज को फॉलो करें
    Facebook : www.facebook.c... #ramayan #shriram #doha #indianhistory #choupai #bhakti #hanuman #achhevicharinhindi #ayodhya #ram
    जय श्री राम 🙏
    श्रीरामचरितमानस को सोशल मीडिया के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने का मेरा यह प्रयास पसंद आ रहा हो तो कृपया लाइक करें और शेयर करें। सुबह नित्य पांच दोहा श्रीरामचरितमानस श्रवण करने के लिए चैनल को सब्सक्राइब करें और फेसबुक पेज को फॉलो करें
    Facebook : www.facebook.c...
    TH-cam link: / @rahulpandey-101
    संगीतमय श्रीरामचरितमानस श्रृंखला बालकाण्ड दोहा : 286 से 290। पं. राहुल पाण्डेय
    अति गहगहे बाजने बाजे। सबहिं मनोहर मंगल साजे॥
    जूथ जूथ मिलि सुमुख सुनयनीं। करहिं गान कल कोकिलबयनी॥
    सुखु बिदेह कर बरनि न जाई। जन्मदरिद्र मनहुँ निधि पाई॥
    गत त्रास भइ सीय सुखारी। जनु बिधु उदयँ चकोरकुमारी॥
    जनक कीन्ह कौसिकहि प्रनामा। प्रभु प्रसाद धनु भंजेउ रामा॥
    मोहि कृतकृत्य कीन्ह दुहुँ भाईं। अब जो उचित सो कहिअ गोसाई॥
    कह मुनि सुनु नरनाथ प्रबीना। रहा बिबाहु चाप आधीना॥
    टूटतहीं धनु भयउ बिबाहू। सुर नर नाग बिदित सब काहु॥
    दोहा- तदपि जाइ तुम्ह करहु अब जथा बंस ब्यवहारु।
    बूझि बिप्र कुलबृद्ध गुर बेद बिदित आचारु॥२८६॥
    दूत अवधपुर पठवहु जाई। आनहिं नृप दसरथहि बोलाई॥
    मुदित राउ कहि भलेहिं कृपाला। पठए दूत बोलि तेहि काला॥
    बहुरि महाजन सकल बोलाए। आइ सबन्हि सादर सिर नाए॥
    हाट बाट मंदिर सुरबासा। नगरु सँवारहु चारिहुँ पासा॥
    हरषि चले निज निज गृह आए। पुनि परिचारक बोलि पठाए॥
    रचहु बिचित्र बितान बनाई। सिर धरि बचन चले सचु पाई॥
    पठए बोलि गुनी तिन्ह नाना। जे बितान बिधि कुसल सुजाना॥
    बिधिहि बंदि तिन्ह कीन्ह अरंभा। बिरचे कनक कदलि के खंभा॥
    दोहा- हरित मनिन्ह के पत्र फल पदुमराग के फूल।
    रचना देखि बिचित्र अति मनु बिरंचि कर भूल॥२८७॥
    बेनि हरित मनिमय सब कीन्हे। सरल सपरब परहिं नहिं चीन्हे॥
    कनक कलित अहिबेल बनाई। लखि नहि परइ सपरन सुहाई॥
    तेहि के रचि पचि बंध बनाए। बिच बिच मुकता दाम सुहाए॥
    मानिक मरकत कुलिस पिरोजा। चीरि कोरि पचि रचे सरोजा॥
    किए भृंग बहुरंग बिहंगा। गुंजहिं कूजहिं पवन प्रसंगा॥
    सुर प्रतिमा खंभन गढ़ी काढ़ी। मंगल द्रब्य लिएँ सब ठाढ़ी॥
    चौंकें भाँति अनेक पुराईं। सिंधुर मनिमय सहज सुहाई॥
    दोहा- सौरभ पल्लव सुभग सुठि किए नीलमनि कोरि॥
    हेम बौर मरकत घवरि लसत पाटमय डोरि॥२८८॥
    रचे रुचिर बर बंदनिबारे। मनहुँ मनोभवँ फंद सँवारे॥
    मंगल कलस अनेक बनाए। ध्वज पताक पट चमर सुहाए॥
    दीप मनोहर मनिमय नाना। जाइ न बरनि बिचित्र बिताना॥
    जेहिं मंडप दुलहिनि बैदेही। सो बरनै असि मति कबि केही॥
    दूलहु रामु रूप गुन सागर। सो बितानु तिहुँ लोक उजागर॥
    जनक भवन कै सौभा जैसी। गृह गृह प्रति पुर देखिअ तैसी॥
    जेहिं तेरहुति तेहि समय निहारी। तेहि लघु लगहिं भुवन दस चारी॥
    जो संपदा नीच गृह सोहा। सो बिलोकि सुरनायक मोहा॥
    दोहा- बसइ नगर जेहि लच्छ करि कपट नारि बर बेषु॥
    तेहि पुर कै सोभा कहत सकुचहिं सारद सेषु॥२८९॥
    पहुँचे दूत राम पुर पावन। हरषे नगर बिलोकि सुहावन॥
    भूप द्वार तिन्ह खबरि जनाई। दसरथ नृप सुनि लिए बोलाई॥
    करि प्रनामु तिन्ह पाती दीन्ही। मुदित महीप आपु उठि लीन्ही॥
    बारि बिलोचन बाचत पाँती। पुलक गात आई भरि छाती॥
    रामु लखनु उर कर बर चीठी। रहि गए कहत न खाटी मीठी॥
    पुनि धरि धीर पत्रिका बाँची। हरषी सभा बात सुनि साँची॥
    खेलत रहे तहाँ सुधि पाई। आए भरतु सहित हित भाई॥
    पूछत अति सनेहँ सकुचाई। तात कहाँ तें पाती आई॥
    दोहा- कुसल प्रानप्रिय बंधु दोउ अहहिं कहहु केहिं देस।
    सुनि सनेह साने बचन बाची बहुरि नरेस॥२९०॥

ความคิดเห็น •