श्रीरामचरितमानस श्रृंखला बालकाण्ड दोहा : 221 से 225।सीताराम जी का परस्पर दर्शन। पं. राहुल पाण्डेय

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  • เผยแพร่เมื่อ 4 ก.ค. 2024
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    जय श्री राम 🙏
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    श्रीरामचरितमानस श्रृंखला बालकाण्ड दोहा : 221 से 225। पुष्प वाटिका निरीक्षण, श्री सीताराम जी का परस्पर दर्शन। पं. राहुल पाण्डेय
    कहहु सखी अस को तनुधारी। जो न मोह यह रूप निहारी॥
    कोउ सप्रेम बोली मृदु बानी। जो मैं सुना सो सुनहु सयानी॥
    ए दोऊ दसरथ के ढोटा। बाल मरालन्हि के कल जोटा॥
    मुनि कौसिक मख के रखवारे। जिन्ह रन अजिर निसाचर मारे॥
    स्याम गात कल कंज बिलोचन। जो मारीच सुभुज मदु मोचन॥
    कौसल्या सुत सो सुख खानी। नामु रामु धनु सायक पानी॥
    गौर किसोर बेषु बर काछें। कर सर चाप राम के पाछें॥
    लछिमनु नामु राम लघु भ्राता। सुनु सखि तासु सुमित्रा माता॥
    दोहा- बिप्रकाजु करि बंधु दोउ मग मुनिबधू उधारि।
    आए देखन चापमख सुनि हरषीं सब नारि॥२२१॥
    देखि राम छबि कोउ एक कहई। जोगु जानकिहि यह बरु अहई॥
    जौ सखि इन्हहि देख नरनाहू। पन परिहरि हठि करइ बिबाहू॥
    कोउ कह ए भूपति पहिचाने। मुनि समेत सादर सनमाने॥
    सखि परंतु पनु राउ न तजई। बिधि बस हठि अबिबेकहि भजई॥
    कोउ कह जौं भल अहइ बिधाता। सब कहँ सुनिअ उचित फलदाता॥
    तौ जानकिहि मिलिहि बरु एहू। नाहिन आलि इहाँ संदेहू॥
    जौ बिधि बस अस बनै सँजोगू। तौ कृतकृत्य होइ सब लोगू॥
    सखि हमरें आरति अति तातें। कबहुँक ए आवहिं एहि नातें॥
    दोहा- नाहिं त हम कहुँ सुनहु सखि इन्ह कर दरसनु दूरि।
    यह संघटु तब होइ जब पुन्य पुराकृत भूरि॥२२२॥
    बोली अपर कहेहु सखि नीका। एहिं बिआह अति हित सबहीं का॥
    कोउ कह संकर चाप कठोरा। ए स्यामल मृदुगात किसोरा॥
    सबु असमंजस अहइ सयानी। यह सुनि अपर कहइ मृदु बानी॥
    सखि इन्ह कहँ कोउ कोउ अस कहहीं। बड़ प्रभाउ देखत लघु अहहीं॥
    परसि जासु पद पंकज धूरी। तरी अहल्या कृत अघ भूरी॥
    सो कि रहिहि बिनु सिवधनु तोरें। यह प्रतीति परिहरिअ न भोरें॥
    जेहिं बिरंचि रचि सीय सँवारी। तेहिं स्यामल बरु रचेउ बिचारी॥
    तासु बचन सुनि सब हरषानीं। ऐसेइ होउ कहहिं मुदु बानी॥
    दोहा- हियँ हरषहिं बरषहिं सुमन सुमुखि सुलोचनि बृंद।
    जाहिं जहाँ जहँ बंधु दोउ तहँ तहँ परमानंद॥२२३॥
    पुर पूरब दिसि गे दोउ भाई। जहँ धनुमख हित भूमि बनाई॥
    अति बिस्तार चारु गच ढारी। बिमल बेदिका रुचिर सँवारी॥
    चहुँ दिसि कंचन मंच बिसाला। रचे जहाँ बेठहिं महिपाला॥
    तेहि पाछें समीप चहुँ पासा। अपर मंच मंडली बिलासा॥
    कछुक ऊँचि सब भाँति सुहाई। बैठहिं नगर लोग जहँ जाई॥
    तिन्ह के निकट बिसाल सुहाए। धवल धाम बहुबरन बनाए॥
    जहँ बैंठैं देखहिं सब नारी। जथा जोगु निज कुल अनुहारी॥
    पुर बालक कहि कहि मृदु बचना। सादर प्रभुहि देखावहिं रचना॥
    दोहा- सब सिसु एहि मिस प्रेमबस परसि मनोहर गात।
    तन पुलकहिं अति हरषु हियँ देखि देखि दोउ भ्रात॥२२४॥
    सिसु सब राम प्रेमबस जाने। प्रीति समेत निकेत बखाने॥
    निज निज रुचि सब लेंहिं बोलाई। सहित सनेह जाहिं दोउ भाई॥
    राम देखावहिं अनुजहि रचना। कहि मृदु मधुर मनोहर बचना॥
    लव निमेष महँ भुवन निकाया। रचइ जासु अनुसासन माया॥
    भगति हेतु सोइ दीनदयाला। चितवत चकित धनुष मखसाला॥
    कौतुक देखि चले गुरु पाहीं। जानि बिलंबु त्रास मन माहीं॥
    जासु त्रास डर कहुँ डर होई। भजन प्रभाउ देखावत सोई॥
    कहि बातें मृदु मधुर सुहाईं। किए बिदा बालक बरिआई॥
    दोहा- सभय सप्रेम बिनीत अति सकुच सहित दोउ भाइ।
    गुर पद पंकज नाइ सिर बैठे आयसु पाइ॥२२५॥
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