दानव की क्यों होती है यहां पूजा ||आखिर क्या है इसका रहस्य|जानिए इस वीडियो में2025 @RKC Musafir Vlog
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- เผยแพร่เมื่อ 9 ก.พ. 2025
- दानव की क्यों होती है यहां पूजा ||आखिर क्या है इसका रहस्य|जानिए इस वीडियो में2025 @RKC Musafir Vlog
दोस्तों यहां क्यों होता है एक दानव का पूजा और यहां के लोग दानव देवता के रूप में क्यों पूजा करते है यहां किसी भगवान,देवी,देवता की पूजा नई होती n यह कोई पंडित पूजा करता है यहां बैगा के द्वारा पूजा किया जाता है ।
बता दें कि सूरजपुर जिले के भैयाथान ब्लॉक अंतर्गत खोपा गांव है. यहां खोपा धाम में देवी-देवताओं की जगह दानव की पूजा होती है. खोपा नाम के गांव में धाम होने के कारण यह खोपा धाम के नाम से प्रसिद्ध है. यहां छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों के लोग भी पूजा करने आते हैं। नारियल और सुपाड़ी चढ़ाकर पहले लोग पूजा कर मन्नत मांगते हैं. ऐसी मान्यता है कि यहां चढ़ाया हुआ प्रसाद भी घर नहीं लाया जाता. मन्नत पूरी होने के बाद मुर्गे-बकरों की बलि देने के साथ ही शराब भी चढ़ाया जाता है. पहले यहां महिलाओं के पूजा करने पर पाबंदी थी, लेकिन अब महिलाएं भी पूजा करने आती हैं.
बैगा द्वारा होती है राक्षस की पूजा
खोपा धाम में पूजा कराने वाले बैगा ने बताया कि दानव की पूजा करने के पीछे की मान्यता है कि खोपा गांव के पास से गुजरे रेण नदी में बकासुर नाम का राक्षस रहता था. बकासुर गांव के ही एक बैगा से प्रसन्न हुआ और वहां रहने लगा, तब से यहां दानव की पूजा होने लगी. यही कारण है कि यहां पंडित या पुजारी नहीं बल्कि बैगा ही पूजा कराते हैं. खोपा धाम में पिछले कई दशक से दूर-दराज से श्रद्धालु पूजा करने आते हैं, इसके बावजूद यहां मंदिर नहीं बनाया गया. इस संबंध में यहां के लोगों का कहना है कि बकासुर ने उसे किसी मंदिर या चारदीवारी में बंद करने के लिए नहीं कहा था. उसने खुद को स्वतंत्र खुले आसमान के नीचे ही स्थापित करने की बात कही थी. यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और मन्नत के लिए लाल कपड़ा बांधते हैं. कोपा धाम के बैगा भूत-प्रेत और बुरे साए से बचाने का दावा भी करते हैं. यहां भूत-प्रेत बाधा से छुटकारा पाने के लिए लंबी लाइन लगी रहती है.
महिलाओं के लिए अलग से कुंड की व्यवस्था
यहां की पूजा की विधि बहुत ही अलग है. पहले यहां नारियल तेल और सुपारी के साथ पूजा कर अपनी मान्यता मांगते हैं और मान्यता पूरी होने पर शराब का प्रसाद चढ़ाया जाता है. कहा जाता है इस स्थान पर महिलाओं के आने पर पाबंदी थी, लेकिन बदलते वक्त के अनुसार यहां महिलाएं भी पूजा करने पहुंचती हैं, हालांकि आज भी यहां के मुख्य कुंड में उन्हें पूजा करने की पाबंदी है और उनके लिए अलग कुंड बनाया गया है. वहीं महिलाएं यहां का प्रसाद नहीं खाती हैं.
लोग चढ़ाते हैं बकासुर को बलि
लोग यहां बकासुर को प्रसन्न करने के लिए बकरे की बलि भी देते हैं. इस प्रसाद को घर ले जाकर बनाकर खाना मना है, बल्कि इसे खुले मैदान में ही पकाकर खाया जाता है. लोगों की आस्था है कि यहां जो भी मन्नत मांगी जाती है, वो अधिकतम एक साल में पूरी हो जाती है.
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