उत्थापन से शयन पौढवे तक कीर्तन:उष्णकाल Utthapan shayan podhave tak seva kirtan ushnakal bhagwan das

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  • เผยแพร่เมื่อ 29 ก.ย. 2024
  • पुष्टिमार्गीय नित्य सेवा के उष्णकाल के पद
    (चैत्र कृष्ण 2 से आषाढ शुक्ल 1 तक)
    उत्थापन 1 पद,भोग दर्शन 1 पद,संध्यारती दर्शन 1 पद,
    शयन भोग आये 2 पद (ब्यारू),
    शयन भोग सरे 2 पद (दूध,बीरी),
    शयन दर्शन 1 पद,मान 1 पद,पौढवे 1 पद,आश्रय 1 पद
    डॉ भगवान दास कीर्तनकार, कामवन
    (अष्टछाप के श्रीगोविंदस्वामीजी के वंशज)
    ડૉ ભગવાન દાસ કીર્તનકાર, કામવન
    (અષ્ટછાપ કે શ્રીગોવિંદસ્વામીજી કે વંશજ)
    सम्पर्क 9828737151
    1:उत्थापन: सुबल श्रीदामा कह्यौ सखन सों अर्जुन शंख बजैये
    घर जैवे की भई है बिरियां श्रीगिरिधर लाल जगैयै
    ठौर ठौर ते मधुरी धुनि बाजै मधुर मधुर स्वर गैयै
    कुंज सदन जागे नंदनंदन मुदित बीरा फल लैयै
    हरिदासवर्य के पूरे मनोरथ गोकुल ताप नसैयै
    लटकत आवत कमल फिरावत परमानंद बढ़ैयै
    2: भोग दर्शन:पाछें ललिता आगें श्यामा प्यारी,ता आगें पिय मारग में फूल बिछाबत जात।
    कठिन कली बीन करत न्यारी न्यारी,प्यारी के चरण कोमल जान
    सकुंचत गढवे हू डरात।
    अरुझी लता अपने कर निरवारत,ऊंचे लै डारत द्रुम पल्लव पात।
    सूरदास मदनमोहन पिय की आधीनताई,देखत मेरे नयन सिरात।
    3:संध्यारती दर्शन: यशोदा काहे न मंगल गावै
    पूरण ब्रह्म सकल अविनाशी ताकों गोद खिलावै
    कोट कीट ब्रह्माण्ड कौ कर्ता मुनिजन जकों ध्यावैं
    ना जानू ये कौन पुण्य ते सो तेरी धेनु चरावै
    ब्रह्मादिक सनकादिक नारद जप तप ध्यान न आवै
    शेष सहस्र मुख जपत निरन्तर हरि कौ पार न पावै
    सुन्दर वदन कमलदल लोचन गोधन के संग आवै
    करत आरती मात यशोदा 'सूरदास' बल जावै।।
    4:शयन भोग आये: लाडिले बोलत है तोहै मैया
    संझा समय गोधन संग आवत,चुंबन लेकर गोद बैठैया
    मधुमेवा पकवान मिठाई,दूध भात अरु दार बनाई
    परमानंद प्रभु करत बियारू,यशुमती देख बहुत सुख पाई
    5:शयन भोग आये इन अखियन आगे में लालन एकौ पलछिन होय न न्यारे
    बलबल जाऊं बदन देखने कौं तरसत हैं नयनन के तारे
    बौहर्यौ सखा बुलाय संग के यही आंगन खेलौ मेरे प्यारे
    निरखत रहूं पन्नग की मणि ज्यौं सुंदर बाल विनोद तिहारे
    मधुमेवा पकवान मिठाई व्यंजन मीठे खाटे खारे
    सूरश्याम कों जोई जोई भावै सोई सोई मांग लेहौ मेरे प्यारे
    6शयन भोग सरे(दूध) हॅस हॅस दूध पीवत नाथ
    मधुर कोमल बचन कहि कहि प्राण प्यारी साथ
    कनक कटोरा भरयौ अमृत दियौ ललिता हाथ
    लाडिली अचबाय पहले पाछें आप अघात
    चिंतामणि चित बस्यौरी सजनी नाहिन और सुहात
    श्यामा श्याम की नवल छवि पर रसिक बल बल जात
    7-शयन भोग सरे (बीरी) लै राधे गिरधर दै पठई अपने मुख की सुंदर बीरी।
    सुनो हो संदेशौ प्राण प्यारे कौ कित संकुचत आवौ किन नीरी।
    घूंघट खोल नैन भर देखूं वहां चलौ प्रीतम की चेरी।
    कुंभनदास प्रभु गोवर्धन धर मिल आकों छतिया कर सियरी।
    8-शयन दर्शन अरी हो या मग निकसी आय अचानक कान्ह कुँवर ठाड़े आपनी पौर।
    दृष्टि सों दृष्टि मिली रोम रोम सीतल भई तन में उठी है कीधों कामरोर।
    लाल पाग झुक रही भ्रोंहन पर स्याम गात किये चन्दन की खोर।
    सुरदासप्रभु सर्वस्व हरके चले मन में आवत कैधों मिलौ री दौरि।।
    9-मान कौ पद दौरी दौरी आवत मोहि मनावत दाम खरच कहा मोल लई री।
    अचरा पसार के मोहि रिझावत/खिजावत हों तेरे बाबा की चेरी भई री।
    जा री जा सखी भवन आपने लख बातन की एक कही री।
    नन्ददास प्रभु वे क्यों नहीं आवत उनके पायन कछु मेहंदी दई री।।
    10- पौढ़वे कौ पड़ :पोढिये घनश्याम बलैया लेहूं
    अति श्रम भयौ वन गौ चरावत द्यौस परी है घाम
    सियरी ब्यार झरोकन के मग आवत अति शीतल सुखधाम आसकरण प्रभु मोहन नागर अंग अंग अंग अंग अंग अंग नागर अंग अंग अंग अंग अंग अंग अभिराम
    11-आश्रय कौ पद: दृढ़ इन चरण चरण केरौ भरोसौ
    श्रीवल्लभ नख चंद्र छटा विन सब जग माहि अंधेरौ
    साधन और नाहि या कलि में जासों होत निबेरौ
    सूर कहा कहै द्विविध आंधरौ बिना मोल कौ चेरौ
    डॉ भगवान दास कीर्तनकार, कामवन
    (अष्टछाप के श्रीगोविंदस्वामीजी के वंशज)
    ડૉ ભગવાન દાસ કીર્તનકાર, કામવન
    (અષ્ટછાપ કે શ્રીગોવિંદસ્વામીજી કે વંશજ)
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