भगवान् से प्रार्थना - प्रेम कैसे हो? स्वामी रामसुखदासजी, Praarthna-Prem Kaise Ho Swami Ramsukhdasji

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  • เผยแพร่เมื่อ 10 ก.ย. 2024
  • Param Shraddhey Swami Shri Ramsukhdasji Maharaj
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    Swami Ramsukhdasji's sole aim was to find out how mankind can be benefited (liberated) in the least possible time and through the easiest possible method, and throughout his life he kept searching for this one answer. In this context he discovered many revolutionary, novel, and remarkable methods and spread them across the masses through his discourses and articles.
    The very idol of Shrimad Bhagavad Gita, Revered Swamiji Maharaj also authored an unprecedented commentary on Gita titled 'Sadhak-Sanjivani', which is an outstanding gift from him to the world. Other than this, he also authored several unparalleled texts such as 'Gita-Darpan', 'Gita Prabodhani', 'Sadhan-Sudha-Sindhu' ‘Gita Madhurya’ etc.
    Pravachan Date : 19890812_0830
    भगवान् से प्रार्थना हे नाथ ! प्रेम कैसे हो ?
    राम ! राम ! राम !
    सब बातोंके मूलमें, एक बात है !
    ''अपना एक उद्देश्य हो !''
    कि ''मेरा उद्धार हो,''
    ''मेरा कल्याण हो।''
    ये जो राग-द्वेष, क्रोध-लोभ, काम आदि
    जो दोष हैं, ''ये दोष कैसे दूर हों ?''
    ''निर्विकारता कैसे प्राप्त हो ?''
    दूजी बात है कि
    ''भगवान् के चरणोंमें प्रेम कैसे हो ?''
    यह दो बातोंकी,
    अगर दो में से,
    एक की भी लगन पूरी हो गयी,
    तो उपाय काम करेंगे।
    नहीं तो, उपाय सुननेमात्रसे काम नहीं करते।
    मैं तो ठीक सोचता हूँ,
    तो यही बात समझमें आती है,
    कि
    ''अपने उद्धारकी जोरदार इच्छा नहीं है।''
    यहाँ ही गलती है।
    भाई-बहनोंने मान रक्खा है,
    कि कोई साधन ऐसा बता दे,
    कोई ऐसी क्रिया बता दे,
    ऐसी कोई करनेकी बात बता दे,
    अथवा कोई छू-मंतर कर दे,
    कोई कृपा कर दे महात्मा,
    संत कृपा कर दे कोई,
    भगवान् कृपा कर दे,
    तो हो जाय।
    ऐसी बातें लोगोंके जँची हुई हैं।
    ''ये सब-की-सब बातें लागू तब होती हैं,''
    ''जब अपना, खुद का, कल्याणका विचार हो।
    ''खुद के विचार बिना ये चीजें लागू नहीं होतीं।
    कृपासे कल्याण होता तो कभी-का ही हो जाता।
    भगवान् की कृपामें कमी नहीं है।
    संत-महात्मा जितने हुए हैं,
    उनमें कृपाकी कमी नहीं है।
    बड़े-बड़े अच्छे सिद्ध-महात्मा हो गये हैं,
    फिर भी हमारा कल्याण नहीं हुआ है।
    तो सज्जनों ! एक बात बताता हूँ।
    आपके ध्यानमें आवे, न आवे
    तो हाथकी बात नहीं है।
    खुद की इच्छाके बिना काम होता नहीं।
    मैनें यह बात पढ़ी तो मेरेको अच्छी लगी।
    वही बात आपको कहता हूँ।
    कि
    सन्त-महात्मा भी कृपा करेंगे,
    तो संतोंको पहले हम मानेंगे।
    गुरु-महाराज की कृपा होगी,
    तो गुरुको हम मानेंगे। भगवान् की कृपा होगी,''
    तो भगवान् को ही हम पहले मानेंगे।
    यह हमारे ऊपर दार-मदार है सब।
    हमारे खुद पर।
    जितनी हमें भीतरसे लालसा होगी,
    और
    जितनी भगवान् पर, संतों पर,
    गुरु पर, महात्माओं पर,
    श्रद्धा होगी, विश्वास होगा,
    और
    उनसे भी पहले खुद की,
    हमारी लालसा होगी।
    हमारी खुद की लालसाके बिना,
    सज्जनों !
    काम बनता नहीं।
    लोगोंने मान रखा है क्रिया पर,
    कि ऐसे कोई उपाय बता दे
    हम करें जिससे ऐसा हो जाय।
    ऐसी कोई कृपा कर दे कोई,
    जिससे हमारा हो जाय।
    ये सब कुछ होगा,
    परन्तु होगा हमारी खुद की इच्छा होनेसे।
    बढ़िया-से-बढ़िया भोजन भी,
    बल देगा जब भूख हमारी होगी।
    और भूख नहीं होगी,
    तो अच्छे-से-अच्छा भोजन भी
    हमारेको शक्ति दे नहीं सकता।
    रुचि नहीं होगी, तो पाचन नहीं होगा।
    और पचे बिना, रस नहीं होगा।
    और रस बिना, शक्ति नहीं आवेगी।
    वो पाचन, भूखके अधीन है।
    खुद की रुचिके बिना,
    सज्जनों !
    ''काम बनता नहीं है।''
    यह बात है।
    एक बात बताऊँ !
    अगर उचित समझें आप !
    उसको काम लाकरके देखो।
    इस अवस्थामें एक उपाय बताता हूँ।
    अगर उसको आप काममें लें,
    तो मेरेपर तो आपकी बहुत कृपा मानूँगा मैं।
    बहुत मेहरबानी मानूँगा।
    ''आप पाँच-दस-पंद्रह
    मिनटके बाद विचार करो,''
    ''कि समय बहुत-सा चला गया है,''
    और
    ''रहा हुआ समय भी,''
    ''तेजीसे जा रहा है।''
    ''न जाने मौत कब आ जाय !''
    ''अचानक !''
    सब संसारसे, पड़ाक् से सम्बन्ध टूट जायगा।
    ''कोई साथ देनेवाला है नहीं।''
    ''हे नाथ ! मैं क्या करूँ ?''
    ऐसे प्रार्थना करो !
    हे प्रभु ! मेरा आपमें मन कैसे लगे ?
    आपका भजन कैसे बने ?
    ऐसी प्रार्थना भगवान् से करो।
    पाँच-सात मिनट हो जाय,
    इसके बाद फिर करो।
    प्यारसे कहो,
    हे नाथ ! क्या करूँ मैं ?
    न मेरी श्रद्धा है,' न मेरी भक्ति है, 'न मेरी लगन है।
    मेरे है नहीं ऐसे, मैं क्या करूँ ?
    हे नाथ ! आप कृपा करो !
    सज्जनों ! ऐसे पाँच-पाँच, दस-दस
    मिनटके बाद आप करते रहो।
    सावधानी रखो ! केवल सावधानी !
    और ऐसे करते रहो। ''ऐसे करते-करते,'' ''एक विलक्षणता आवेगी,''
    ''जिससे आपका काम बन जायगा।''
    अपनी जो वर्तमान अवस्था है,
    उस अवस्थामें करनेके लायक यह काम है।
    मैंने सोचा है, मैंने पढ़ा है,
    विचार किया है कि
    ''जल्दी-से-जल्दी आदमीका कल्याण कैसे हो ?''
    इस विषयमें मेरी जिज्ञासा रही है
    और अब भी है।
    ''सुगमतासे हमारा उद्धार हो जाय।''
    ''जल्दी-से-जल्दी हो जाय।''
    ऐसे विचार रहनेपर भी,
    सज्जनों ! बढ़िया उपाय मिला नहीं है।
    ''विचार करनेसे आया,
    कि यह उपाय काममें आया।
    यह काम में लो आप !
    नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण !

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