Sri Ram । प्राण प्रतिष्ठा । श्री राम । @sahityik_hastakshar ।

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  • เผยแพร่เมื่อ 6 ก.ย. 2024
  • जिसके कारण प्राण मेरे हो, उनकी प्राण प्रतिष्ठा क्या ?
    जिनका नाम जुबां पर हरदम उनके नाम की चर्चा क्या ?
    कब से सुन रहा राम आ रहे, तो पहले मुझे बताओ ये ,
    जिनका हर दिल वास है रहता उनके लिए अयोध्या क्या ?
    क्या तुम सच में जानते हो,
    इस राम से पहले कोई राम भी था,
    परशुराम में राम जुड़ा है
    मतलब, भृगुराम से पहले भी कोई राम तो था।
    तो तुम किस राम की बात कर रहे!
    वो जो थे कौशल्या नंदन !
    या जो घट घट में बसते हैं ,
    नित होता जिनका अभिनंदन!
    या वो जिनका हाथ पकड़ तुम,
    निराकार आकर्तित करते ,
    या वो दिव्य अलौकिक ऊर्जा,
    जिसको ख़ुद में तुम संभावित करते।
    कौन है वो ये राम बताओ, जो अब तक बनवास में थे ?
    कौन से राम निमंत्रित अब हैं जो मेरी उछवास में थे।
    आवाहन है प्रभु से मिलिए वो प्रभु जो कण कण में हैं ,
    जिनकी महिमा सारा जग है जिनकी महता क्षण क्षण में हैं ।
    रा का अर्थ प्रकाश जहां हो, म का अर्थ स्वयं राम हो ,
    उल्टा भज कर भी तर जाए, ऐसा राम बस एक राम हो ।
    जिनका नाम स्वयं से बढ़कर,
    जो मिलते बस अहम को तजकर ।
    मर्यादित जो हर पग पग में,
    सहते सबकुछ बस हँस हँसकर ।
    राजनीति को धर्म बनाकर,
    उस त्रिभुवन पर राजनीति हो ,
    जो इतना निश्छल औ सरल है,
    उस पर कितनी कूटनीति हो ।
    कितने अज्ञानी हैं हम सब ,
    क्यों हम इतना रुद्र हो रहे,
    प्रेम समर्पण की बेला में,
    क्यों हम इतना क्षुद्र हो रहे।
    बोलो तुम ले इतनी बेचैनी कैसे उसको भज पाओगे ,
    इतनी नफ़रत हृदय में रख कर कैसे उसे बुला पाओगे
    राम राज जो छोड़ स्वयं ही राम राज्य की इच्छा रखे,
    राम राज्य में जो रहता हो प्रभु सुमिरन की इच्छा रखे ।
    राम राम जो बोल रहें हैं,
    श्री राम कह डोल रहें हैं ।
    क्या तुम राम सा हो पाओगे,
    क्या तुम राम सा बन पाओगे!
    चलो अगर तुम दशरथ नंदन की बात ही करते हो,
    सच बोलो क्या तुम श्री हरि सा
    अपने पिता की आज्ञा सिर माथे पर धर पाओगे।
    धर्म मेरा भगवा है भगवा, हुंकारित हो कहते हो,
    लेकिन ज़रा बताओ क्या तुम,
    सबरी के बेर भी चख पाओगे ।
    चलो छोड़ दो बात एक अरि की,
    रख दिल पर कर बात बताओ,
    क्या तुम अपने भाई की खातिर,
    इतने नीर बहा पाओगे।
    अरे नहीं तुमसे कुछ होगा,
    बस तुमको एक राम चाहिए,
    जो सबको आकर्षित कर ले,
    ऐसा एक श्री राम चाहिए।
    चकाचौध हो दसों दिशायें,
    जगमग जगमग उजियारे हों।
    अंतः मन में स्याह रात हो ,
    पथ में फैले अंधियारे हों।
    इतना गर आसान ही होता
    सब राम कथा सुन तर जाते फिर,
    सिर्फ़ निभा एक राम पात्र ही,
    सब, राम के जैसे हो जाते फिर ।
    चित में राम धरो तुम पहले,
    हृदय अयोध्या हो अब पहले।
    आवाज़ों में कम्पन न हो ,
    मन बोले बस राम ही पहले।
    अगर तुम्हें राम है बनना,
    तो पहले मर्यादित हो लो,
    अगर राम राज्य का स्वप्न देखते,
    रजक के प्रश्नों को भी सुन लो ।
    राजनीति को धर्म समझ अब , धर्म की राजनीति को त्यागो l
    तब ही तो सब मंगल होगा , अमंगल को साध जब पाओ।
    कहने से ही राम राज्य अब क्या बोलो स्थापित होगा,
    गर ये ही है राम राज्य तो राम राज्य का किस्सा क्या ?
    जिसके कारण प्राण मेरे हो, उनकी प्राण प्रतिष्ठा क्या ?
    जिनका नाम जुबां पर हरदम उनके नाम की चर्चा क्या ?
    @alok singh "Gumshuda"
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