भारत का इतिहास -1 || अध्याय 13 || जनपद एवं महाजनपद || B.A. (History) 1st Semester
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- เผยแพร่เมื่อ 10 ก.พ. 2025
- इस वीडियो में हम इतिहास स्नातक (1st semester) के विषय "भारत का इतिहास - 1" के अध्याय 13 - "जनपद एवं महाजनपद" पे चर्चा करेंगे।
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• इतिहास (स्नातक)
छठी शताब्दी ईसा पूर्व से तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व तक का काल भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इस समय पहली बार कई बड़े राजनीतिक क्षेत्र यानी महाजनपद उभरे। यह दौर सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तनों से भरा हुआ था। नगरों का पुनर्जन्म हुआ, व्यापार फला-फूला और समाज में नई संरचनाएँ बनीं।
इस समय के बारे में जानकारी हमें दो प्रमुख स्रोतों से मिलती है - साहित्यिक और पुरातात्त्विक। बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक (सुत्त पिटक, विनय पिटक, अभिधम्म पिटक) और जातक कथाएँ इस काल के समाज और राजनीति का उल्लेख करती हैं। ब्राह्मण ग्रंथों, उपनिषदों और महाभारत में भी कई महाजनपदों का वर्णन मिलता है। पुरातात्त्विक साक्ष्यों में उत्तरी काले चमकदार पात्र यानी N.B.P.W., पंच-चिह्नित सिक्के और नगरों की खुदाई से प्राप्त अवशेष शामिल हैं।
इस काल में छोटे-छोटे जनपदों से विकसित होकर 16 महाजनपद अस्तित्व में आए। ये थे - अंग, मगध, वज्जि, मल्ल, काशी, कोसल, वत्स, कुरु, पांचाल, मत्स्य, सूरसेन, गांधार, काम्बोज, अवंती, चेदी और अस्सक। इनमें से कुछ राजशाही थे, जबकि कुछ गणराज्य। मगध सबसे शक्तिशाली बना, जिसकी राजधानी पहले राजगृह और बाद में पाटलिपुत्र बनी। वज्जि और मल्ल गणराज्य थे, जहाँ कई कुल मिलकर शासन करते थे।
इस समय स्थायी कृषि व्यवस्था विकसित हुई, जिससे अतिरिक्त अनाज का उत्पादन हुआ। गंगा के मैदानी क्षेत्रों में धान की खेती विशेष रूप से फली-फूली। पाणिनि के ग्रंथों में विभिन्न प्रकार की कृषि भूमि का उल्लेख मिलता है। अधिक अनाज उत्पादन से कर वसूली बढ़ी, जनसंख्या में वृद्धि हुई और नगरों का विस्तार हुआ।
इस काल में ‘द्वितीय नगरीकरण’ हुआ, जहाँ नगरों की बसावट बढ़ी। हस्तिनापुर, राजगृह, कौशांबी और श्रावस्ती प्रशासनिक नगर थे, जबकि वाराणसी और उज्जैन व्यापारिक केंद्र। कई नगरों की खुदाई में किलेबंदी और व्यवस्थित सड़कों के प्रमाण मिले हैं।
व्यापार में वृद्धि के कारण सिक्कों का चलन बढ़ा। पंच-मार्क्ड सिक्के प्रचलित हुए। उत्तरापथ और दक्षिणापथ प्रमुख व्यापार मार्ग बने, जो उत्तर भारत को पश्चिमी एशिया और दक्षिण भारत से जोड़ते थे।
समाज अब अधिक जटिल हो गया था। वर्ण और जाति व्यवस्था कठोर हुई। समाज ‘उक्खट्ट जाति’ (ब्राह्मण, क्षत्रिय, गहपति) और ‘हीन जाति’ (शूद्र, चांडाल) में बँट गया। दासों की संख्या बढ़ी और उन्हें स्वामियों के अधीन रखा गया।
गहपति और सेठी नए संपन्न वर्ग बने। गहपति बड़े भू-संपत्ति के स्वामी थे और कर चुकाते थे। सेठी व्यापार, निवेश और ऋण व्यवस्था में सक्रिय थे।
अंततः, इस संघर्ष में मगध सबसे शक्तिशाली बनकर उभरा और उसने पूरे उत्तरी भारत पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया।