अखंड ज्योति अगस्त 2010

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  • เผยแพร่เมื่อ 1 ต.ค. 2024
  • भगवान राम, लक्ष्मण एवं सीता जी ने पिता की आज्ञा से १४ वर्ष अरण्यवास किया। निरंतर तप या अनीति से संघर्ष में ही जीवन बीता। साधनहीन थे, राजकुमार होकर भी वल्कल वस्त्र में अति प्रसन्न मनःस्थिति में रहते थे। सम्राट से भी ज्यादा वे सुखी-संतुष्ट थे। एक विलक्षण बात है कि जब वे वन में तप कर रहे थे, राक्षसों का संहार कर रहे थे, तब उन १४ वर्षों में पूरी अयोध्या के परिजन भी धार्मिक अनुष्ठानों, जप-तप-व्रत में लीन थे। इन चौदह वर्षों में किसी भी घर में एक भी संतान नहीं जन्मी। ऐसा कठोर तप अयोध्यावासियों ने अपने प्रभु के लिए किया। भगवान के लौटकर आने के एक वर्ष बाद घर-घर में किलकारियाँ गूँजीं । वाल्मीकि रामायण में यह प्रसंग आता है कि भरत के साथ पूरी अयोध्या ने तप किया। सामूहिक साधना का यह अपने आप में अनूठा उदाहरण है।

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