Ep01 # साधु या गृहस्थ..
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- เผยแพร่เมื่อ 6 ก.พ. 2025
- The introductory session of a series of conversations on the topic. Do let me know your views/thoughts/questions on the same.
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Very valuable video......in family life
Bahut acche vichar hain bhai aapke
Thankful grateful blessed
Bahut achchhe🎉
Yai topic aaj aapne bhut acha uthaya hain sadu or shadi shuda. Yaha har ek aadmi sadhu banna chahata hain lekin utni himmat kisi main nhi hain qki ghar ko sabne ek comphertable zone banaya hua hain वहां garam khana hain ...juta chappal hain biwi hain bed hai kuch Galiya hai kuch or kuch dikhawa to sab chola od k baithe hain sanskari banne ka ...or hakikat kuch or hi hai ❤ great job ..love u both of u ..mai aapki har baat se inspired hoti hun
हमारे देवी-देवता साधू नहीं थे, गृहस्थी थे। पवित्र थे। पवित्रता के कारण उनके पास सभी प्रकार के वैभव थे। कुबेर का खजाना था। गुणवान थे।उसको स्वर्ग वा रामराज्य कहते हैं।ऐसा उनको किसने बनाया? जरुर परमात्मा शिव ने ज्ञान देकर बनाया है।हर पांच हजार साल बाद परमात्मा शिव ब्रह्मा तन में आकर देवता बनने का ज्ञान देते हैं। देवता सर्वश्रेष्ठ सर्वगुण संपन्न सोलह कलाओं से संपन्न संपूर्ण निरविकारी मनुष्य ही थे। भगवान शिव मनुष्य को देवता बनाने के लिए जो ज्ञान स्वयं आकर देते हैं उसका नाम शास्त्रकारों ने गीता रखा है। स्वर्ग काल सतयुग और त्रेतायुग को कहते हैं। फिर आता है द्वापरयुग और कलियुग इसमें देवताओं का पतन हो जाता है और वो मनुष्य बन जाते हैं। उनमें विकारों की प्रवेशता हो जाती है। इसलिए इसको रावण राज्य कहा जाता है। यहां दोनों होते हैं साधू भी होते हैं और मनुष्य भी होते हैं। रावण राज्य में मनुष्य देवी-देवताओं की भक्ति करते हैं। पांच विकारों के कारण उनका जीवन दुःखी हो जाता है।रावण के दस शीश वाला दिखाते हैं। क्योंकि यह विकार स्त्री और पुरूष दोनों में भी होते हैं। दोनों में पांच पांच विकार होते हैं। इसलिए दस विकारों को ही रावण कहा जाता है।इस युग में रावण का ही राज्य है। सिर्फ सीता को रावण ने आकर्षित नहीं किया उसके पती राम को भी किया।हर घर में रावण का कब्जा है। देवताओं में शादी होती है परंतु विकार नहीं होते।उनको संकल्प शक्ति से सबकुछ प्राप्त होता है। भगवान शिव उनको इस समय ऐसा संपूर्ण निरविकारी बना देते हैं।इसका उदाहरण ब्रह्माकुमारीयों का जीवन है।यह भी पवित्र गृहस्थी जीवन है। ब्रह्माकुमारी घर-परिवार में ही रहते हैं।उनका टीचर स्वयं भगवान शिव परमात्मा है। यही लोग सतयुगी दुनिया में देवी-देवता प्रारब्ध भोगते हैं। आत्मा और शरीर दोनों पवित्र मिलता है।साधूओं का निवृत्ति मार्ग है।वह गृहस्थी नहीं है। संपूर्ण पवित्रता नहीं अपना सकते।पाप नहीं कटते। परमात्मा शिव को याद करने से ही पाप कट जाते हैं।साधू शास्त्र सुनाकर अपना जीवन बिताते हैं। मुख्य बात है परमात्मा को जानने की।ब्रमाकुमारीयों ने भगवान को पहचान लिया इसलिए उनको भगवान का वर्सा मिलता है। उनके ही मतपर (ज्ञान)को फालो करते हैं। शास्त्र कोई भगवान की मत नहीं है।वह भी मनुष्यों ने लिखे हैं। भक्त लोग शास्त्र आदि पडते है। शास्त्रों में भी पवित्र देवताओं के जीवन की महिमा की हुई है। महिमा करने से देवता नहीं बन सकते।यह काम भगवान शिव आकर करते हैं। मनुष्य मनुष्य को पवित्र देवता नहीं बना सकता।यह है परमात्म ज्ञान। भक्ति में सिर्फ कथाएं हैं।कथा को ज्ञान नहीं कहा जाता। आत्मा का ज्ञान नहीं तो परमात्मा का भी ज्ञान नहीं मिलता। सृष्टि चक्र का भी ज्ञान नहीं है। स्वर्ग क्या है, नर्क क्या है कुछ भी समझते नहीं है। परमात्म ज्ञान के बिना ठोकरें खाते रहते हैं।एम ऑब्जेक्ट कुछ भी नहीं है। मनुष्य जीवन देवी-देवताओं जैसा संपन्न होना चाहिए। परंतु पतित पावन परमात्मा शिव ही हैं। दुःख हर्ता सुख कर्ता है।विशव कल्याणकारी है।धन्यवाद।
Shadhuon ki beezati krna hi sikh hain tum logo ne ......mahakumbh mein deko jake kya hain asli aghori sadhu sant rishi muni aur kon hain swadu.........bhog bhi chaiye aur bhgwan bhi 😂
Thank you for your valuable feedback.