भारतीय संस्कृति में ऋषि /गुरूजनों/संत महात्माओं नें वैज्ञानिक/शिक्षक/लेखक के रूप में कार्य किया जैसे आर्यभट्ट,चाणक्य,वेदव्यास, वाल्मीकि अनेकों ने कार्य किया है ,समाज को दिशा दिखाई है इसी ऋषि परपंरा को गुरूदेव आगे बढा रहे है।गुरुदेव आपको प्रणाम।
जय हो गुरु देव जी निवण प्रणाम करता हुं जी आपको ❤❤❤अछी जानकारी दी है आपने 😂😂😂खेती के लिए उपकरण काम लेते हैं विदेशी लोग हम भारतीय लोग सब कुछ मेहनत खुद हाथो से करते हैं ❤❤😂😂
गुरू भगवान जाम्भोजी शब्द वाणी अनुसार बिश्नोई पंथ का प्रचार करने भ्रमण करते थे, परन्तु सचिनदाआनन्द आनन्द करने हेतु जाते हैं। यह इनके विडियो से स्पष्ट है। ये घुमने के शौकीन ज्यादा है। धर्म और पंथ आज मनोरंजन ज्यादा है। लोग मुकाम भी जाते हैं तो घुमने का ही ज्यादा चर्चा करते हैं, क्योंकि पैसा अध्यात्म नहीं सिखाता, वह भौतिकता के साधन से अध्यात्म की पूर्ति करना चाहता है। इसी कारण संत भी चित्र से संत दिखना चाहते हैं, जीवन से नहीं, क्योंकि आज त्याग करना बहुत कठिन है, त्याग मजबूरी का नाम है।
निंदक नियरे राखिए (कबीर जी ) अच्छा है की आप जैसे निंदक नजदीक है, बड़ी खुशी है आपके नेगेटिव कमेंट करने से.. आपसे निवेदन है कि आप ऐसे ही निंदा करते रहें और जलन की आग में ऐसे ही जलते रहे ... आप महान है.. 🙏
बहुत से लोग सबदवाणी को निन्दा मानते हैं क्योंकि गुरू जम्भेश्वर तो स्वयं विष्न भगवान थे, बहुत से लोग उनकी सबदवाणी में दी गयी उपमाओं की पूजा करते हैं। यह हर व्यक्ति की सोच और खुद की शिक्षा पर निर्भर करता है। हमारा राजस्थान गुरू जम्भेश्वर से पहले अनेकों दादाओं और दादियों व भोमिया की स्तुति करता है। जबकि सबदवाणी में गुरू महाराज ने गुरू के लक्षण बताये है और गुरू भगवान ने इस सृष्टि के रचयिता आदिविष्न् का जप बताया है, क्योंकि पूजा साक्षात की होती है, और गुरू जम्भेश्वर ने भी साक्षात भगवान अपने माता-पिता के अमरलोक में जाने के उपरांत संन्यास लिया था। अर्थात वे गृहस्थी से आये थे, पर अपना गृहस्थ कर्तव्य पूर्ण करके आये थे। आज सन्याशी बनते हैं, पर अपने भगवान को छोड़कर आते हैं। इसलिए मैं किसी की आलोचना नहीं करता। मैं कुछ नहीं हूं, मैं गुरू जम्भेश्वर का बनाया माध्यम हूं। सच्चिदानंद आनन्द में रहे, पर वहां गुरू भगवान की शिक्षाओं का प्रचार करें यदि सम्भव नाम हो तो उनके नाम पर कोई एक वृक्ष रोपण जरूर करके आये। आपने कबीर की वाणी का जिक्र किया, यह ज़िक्र सबदवाणी अनुसार करते तो बहुत अच्छा लगता।
बहुत ही सुंदर मनमोहक प्रस्तुति आदरणीय स्वामी जी प्रयास
भारतीय संस्कृति में ऋषि /गुरूजनों/संत महात्माओं नें वैज्ञानिक/शिक्षक/लेखक के रूप में कार्य किया जैसे आर्यभट्ट,चाणक्य,वेदव्यास, वाल्मीकि अनेकों ने कार्य किया है ,समाज को दिशा दिखाई है इसी ऋषि परपंरा को गुरूदेव आगे बढा रहे है।गुरुदेव आपको प्रणाम।
स्वामी सच्चिदानंद जी को कोटि कोटि प्रणाम गुरु जी हमेशा ऐसा बताया करो जय जम्भेश्वर भगवान कि जय गुरुदेव जी को 🎉🎉🎉🎉🎉
Moj bangi sachinji ge
Nevin pranam guru jii
जय हो गुरु देव जी निवण प्रणाम करता हुं जी आपको ❤❤❤अछी जानकारी दी है आपने 😂😂😂खेती के लिए उपकरण काम लेते हैं विदेशी लोग हम भारतीय लोग सब कुछ मेहनत खुद हाथो से करते हैं ❤❤😂😂
🎉
👋👋👋👋
👍👍
Nice guruji 👌🏻👌🏻
खेतो की विजिट आपके साथ हमने भी कर ली हैं
❤ नमन है गुरुजी
Inderjeet patodia 3 JKM RSNR SGNR
Guruji mujhe Australia mai krishi ka Kam dila dijiyen na
गुरुजी ऑस्ट्रेलिया जाने की क्या प्रोसेस रहती है और थोड़ी सी मुझे बताइए
Guru ji pranam, Mitti kaise hai vo janch karo Giru ji.🌹🌹🙏🙏
गुरुजी उनके वहा रोजडे और भडुरे कोनी के अता खुला खेत है तो 😂😅
गुरुजी ये मैथ्यू क्या चीज ह ये लोचा समझ नहीं आया 😂😂
क्या आस्ट्रेलिया में जमीन ख़रीद बी सकते हैं हम
5 महीने तो हमारे यहां नहीं लगता 3 महीने से ज्यादा नहीं लगता कोई सी भी गोभी में
गुरुजी इंडिया में तो ब्रोकली बहुत कड़वी होती है
गुरु जी ध्यान करके खाना अपने इंडिया में तो लट बहुत होती है अंदर
गुरू भगवान जाम्भोजी शब्द वाणी अनुसार बिश्नोई पंथ का प्रचार करने भ्रमण करते थे, परन्तु सचिनदाआनन्द आनन्द करने हेतु जाते हैं। यह इनके विडियो से स्पष्ट है। ये घुमने के शौकीन ज्यादा है। धर्म और पंथ आज मनोरंजन ज्यादा है। लोग मुकाम भी जाते हैं तो घुमने का ही ज्यादा चर्चा करते हैं, क्योंकि पैसा अध्यात्म नहीं सिखाता, वह भौतिकता के साधन से अध्यात्म की पूर्ति करना चाहता है। इसी कारण संत भी चित्र से संत दिखना चाहते हैं, जीवन से नहीं, क्योंकि आज त्याग करना बहुत कठिन है, त्याग मजबूरी का नाम है।
निंदक नियरे राखिए (कबीर जी )
अच्छा है की आप जैसे निंदक नजदीक है,
बड़ी खुशी है आपके नेगेटिव कमेंट करने से..
आपसे निवेदन है कि आप ऐसे ही निंदा करते रहें और जलन की आग में ऐसे ही जलते रहे ... आप महान है.. 🙏
बहुत से लोग सबदवाणी को निन्दा मानते हैं क्योंकि गुरू जम्भेश्वर तो स्वयं विष्न भगवान थे, बहुत से लोग उनकी सबदवाणी में दी गयी उपमाओं की पूजा करते हैं। यह हर व्यक्ति की सोच और खुद की शिक्षा पर निर्भर करता है। हमारा राजस्थान गुरू जम्भेश्वर से पहले अनेकों दादाओं और दादियों व भोमिया की स्तुति करता है। जबकि सबदवाणी में गुरू महाराज ने गुरू के लक्षण बताये है और गुरू भगवान ने इस सृष्टि के रचयिता आदिविष्न् का जप बताया है, क्योंकि पूजा साक्षात की होती है, और गुरू जम्भेश्वर ने भी साक्षात भगवान अपने माता-पिता के अमरलोक में जाने के उपरांत संन्यास लिया था। अर्थात वे गृहस्थी से आये थे, पर अपना गृहस्थ कर्तव्य पूर्ण करके आये थे। आज सन्याशी बनते हैं, पर अपने भगवान को छोड़कर आते हैं। इसलिए मैं किसी की आलोचना नहीं करता। मैं कुछ नहीं हूं, मैं गुरू जम्भेश्वर का बनाया माध्यम हूं। सच्चिदानंद आनन्द में रहे, पर वहां गुरू भगवान की शिक्षाओं का प्रचार करें यदि सम्भव नाम हो तो उनके नाम पर कोई एक वृक्ष रोपण जरूर करके आये।
आपने कबीर की वाणी का जिक्र किया, यह ज़िक्र सबदवाणी अनुसार करते तो बहुत अच्छा लगता।
❤❤❤❤