राग बिलावल अपने अपने टोल कहत व्रजवासियां ।। शरद कुहू निश जान दीपमालिका जो आई ॥ गोपन मन आनंद फिरत उनमद अधिकाई ॥ ऐं पन थापे दीजीयें घरघर मंगलचार ।। सातवरसको सांवरो खेलत नंददुवार ॥१ ॥ बैठ नंद उपनंद बोल वृषभान पठाये ॥ सुरपति पूजा जान तहां चल गोविंद आये ।। वारवार हाहा करें कहो बावा यह बात ।। घरघर गोरस संचियें कोंन देवकी जात ॥ २ ॥ कान्ह तुमारी कुशल जान एक मंत्र उपेहें ।॥ खटरस व्यंजन साज भोग सुरपतिकों देहें ॥ नंद कह्यो चुचकारकें जा दामोदर सोय ॥ वरस द्योसको द्योसहे महामहोत्सव होय ॥३ ॥ तब हँस बोले लाल मंत्र बहोर्यो एक कीनों ।॥ आदि पुरुष निज जान रेंन सपनों मोहि दीनों ॥ सब देवनको देवता गिरि गोवर्द्धन राज ॥ ताहि भोग किन दीजियें सुरपतिको कहा काज ॥४ ॥ बाढे गोधन वृंद दूध दधिको कहा लेखो ॥ यह परचो विद्यमान नयन अपने किन देखो ।। तुम देखत बल खायगो मोंहों मांग्यो फल देय ॥ गोप कुशलजो चाहियें तो गिरि गोवर्द्धन सेय ॥५ ॥ गोपन कीयो विचार सबन मिल शकट जो साजे । बहु विध कर पकवान चले जहां बाजन बाजे ।। एक वनही वनकों चले एक नंदीसुर भीर ॥ एकन पेंडो पावही फूले फिरत अहीर ॥६ ॥ एक ऊबटव्है चले एक वनही वनछाये । एक गावें गुण गोविंद प्रेम उमगे न समाये ॥ गोपन को सागर भयो गिरि भयो मंदराचार ।। रत्न भईं सब गोपिका कान्ह विलोवन हार ॥ ७ ॥ व्रज चोरासी कोस परे गोपनके डेरा ॥ लंबे चौवन कोस जहाँ व्रजवास वसेरा ।। सबहिन के मन सांवरो देखियत सबन मंझार ॥ कौतुक भूले देवता आये लोक विसार ॥८ ॥ लीने विप्र बुलाय यज्ञ आरंभन कीनों ॥ सुरपति पूजा मेंट राज गोवर्द्धन दीनों ॥ देव दीवारी श्याम ही सब मिल पूजन जाय ॥ नंद प्रतीत जो चाहिये तो तुम देखत बलिखाय ।।९ ।। प्रथम ही दूध न्हवाय बोहोरि गंगाजल ढार्यो ।। बडो देवता जान कान्ह को मतो बिचार्यो । जेसेहें गिरिराज जू तैसो अन्न को कोट ।। मग्नभये पूजा करें नरनारी बड छोट ॥१० ॥ सहस्त्र भुजाउरधरें करें भोजन अधिकाई ॥ नख शिखलों अनुहार मानों दूसरो कन्हाई ॥ ललिता राधासों कहे तेरे हृदें समाय ॥ गहे अंगुरिया नंद की सो ढोटा पूजा खाय ॥११ ॥ पीत दुमालो बन्यो कंठ मोतिनकी माला ॥ सुंदर सुभग शरीर झलमले नयन विशाला ।। श्यामकी शोभा गिरि भयो गिरिकी शोभा श्याम ॥ जेसो परवत भातको ढिंग भैया बलराम ॥ १२ ॥ व्यंजन बहुत बनाय कहांलों नाम बखानों ॥ भयो भातको कोट ओट गिरिराज छिपानों ।। बरा बिराजे भातपे चंदा पटतर सोय ।। यज्ञपुरुष भोजन करे सब देवन सुख होय ॥१३ ॥ जेसी कंचनपुरी दिव्य रत्ननसों छाई ॥ बलि दीनीहे प्रात छांह चलि पूरव आई ।। बदरोला वृषभानकी रही विलोवन हार ।। ताकी बलि उन देवता लीनी भुजापसार ॥१४ ॥ सब सामग्री अरपि गोप गोपिन करजोरे ॥ अगणित कीने स्वाद दास बरणे कहा थोरे ॥ यह विध पूजा कीजिये कह्यो सबन समुझाय ॥ श्याम कह्यो सूरदाससों मेरी लीला सरस बनाय ॥१५ ॥
राग बिलावल
अपने अपने टोल कहत व्रजवासियां ।।
शरद कुहू निश जान दीपमालिका जो आई ॥ गोपन मन आनंद फिरत उनमद अधिकाई ॥
ऐं पन थापे दीजीयें घरघर मंगलचार ।। सातवरसको सांवरो खेलत नंददुवार ॥१ ॥
बैठ नंद उपनंद बोल वृषभान पठाये ॥ सुरपति पूजा जान तहां चल गोविंद आये ।।
वारवार हाहा करें कहो बावा यह बात ।। घरघर गोरस संचियें कोंन देवकी जात ॥ २ ॥
कान्ह तुमारी कुशल जान एक मंत्र उपेहें ।॥ खटरस व्यंजन साज भोग सुरपतिकों देहें ॥
नंद कह्यो चुचकारकें जा दामोदर सोय ॥ वरस द्योसको द्योसहे महामहोत्सव होय ॥३ ॥
तब हँस बोले लाल मंत्र बहोर्यो एक कीनों ।॥ आदि पुरुष निज जान रेंन सपनों मोहि दीनों ॥
सब देवनको देवता गिरि गोवर्द्धन राज ॥ ताहि भोग किन दीजियें सुरपतिको कहा काज ॥४ ॥
बाढे गोधन वृंद दूध दधिको कहा लेखो ॥ यह परचो विद्यमान नयन अपने किन देखो ।।
तुम देखत बल खायगो मोंहों मांग्यो फल देय ॥ गोप कुशलजो चाहियें तो गिरि गोवर्द्धन सेय ॥५ ॥
गोपन कीयो विचार सबन मिल शकट जो साजे । बहु विध कर पकवान चले जहां बाजन बाजे ।।
एक वनही वनकों चले एक नंदीसुर भीर ॥ एकन पेंडो पावही फूले फिरत अहीर ॥६ ॥
एक ऊबटव्है चले एक वनही वनछाये । एक गावें गुण गोविंद प्रेम उमगे न समाये ॥
गोपन को सागर भयो गिरि भयो मंदराचार ।। रत्न भईं सब गोपिका कान्ह विलोवन हार ॥ ७ ॥
व्रज चोरासी कोस परे गोपनके डेरा ॥ लंबे चौवन कोस जहाँ व्रजवास वसेरा ।।
सबहिन के मन सांवरो देखियत सबन मंझार ॥ कौतुक भूले देवता आये लोक विसार ॥८ ॥
लीने विप्र बुलाय यज्ञ आरंभन कीनों ॥ सुरपति पूजा मेंट राज गोवर्द्धन दीनों ॥
देव दीवारी श्याम ही सब मिल पूजन जाय ॥ नंद प्रतीत जो चाहिये तो तुम देखत बलिखाय ।।९ ।।
प्रथम ही दूध न्हवाय बोहोरि गंगाजल ढार्यो ।। बडो देवता जान कान्ह को मतो बिचार्यो ।
जेसेहें गिरिराज जू तैसो अन्न को कोट ।। मग्नभये पूजा करें नरनारी बड छोट ॥१० ॥
सहस्त्र भुजाउरधरें करें भोजन अधिकाई ॥ नख शिखलों अनुहार मानों दूसरो कन्हाई ॥
ललिता राधासों कहे तेरे हृदें समाय ॥ गहे अंगुरिया नंद की सो ढोटा पूजा खाय ॥११ ॥
पीत दुमालो बन्यो कंठ मोतिनकी माला ॥ सुंदर सुभग शरीर झलमले नयन विशाला ।।
श्यामकी शोभा गिरि भयो गिरिकी शोभा श्याम ॥ जेसो परवत भातको ढिंग भैया बलराम ॥ १२ ॥
व्यंजन बहुत बनाय कहांलों नाम बखानों ॥ भयो भातको कोट ओट गिरिराज छिपानों ।।
बरा बिराजे भातपे चंदा पटतर सोय ।। यज्ञपुरुष भोजन करे सब देवन सुख होय ॥१३ ॥
जेसी कंचनपुरी दिव्य रत्ननसों छाई ॥ बलि दीनीहे प्रात छांह चलि पूरव आई ।।
बदरोला वृषभानकी रही विलोवन हार ।। ताकी बलि उन देवता लीनी भुजापसार ॥१४ ॥
सब सामग्री अरपि गोप गोपिन करजोरे ॥ अगणित कीने स्वाद दास बरणे कहा थोरे ॥
यह विध पूजा कीजिये कह्यो सबन समुझाय ॥ श्याम कह्यो सूरदाससों मेरी लीला सरस बनाय ॥१५ ॥
Sri Govardhan Nathji ki jai🙏🙏🙏
Jay ho. Ati anand bhayo.
Shyam kahyo surdasso meri lila saras banay, kahat brajbasiya. 🙏🙏🙏
જય હો મારા પ્રભુ, જય શ્રી કૃષ્ણ, પ્રકાશ ભાઈ hingoo
Radha Radha
Sri Govardhan Nathji ki jai 🙏🙏🙏
Jay shree valabhadhish ki Jai Jai Satat ho🎉🎉🎉
Jai hoo ati sunder
Jay Shree Krushna 🙏🙏
Khub sundar
अब ऐसे गायक कम ही है और सुनने वाले और भी कम है
कितना मधुर है
❤❤❤❤❤❤ radhey shayam
Khub Sundar 🙏
Bahut sundar kanth
Pranaam jayshrikrushna
Adbhut keertan 🙏
Bhai pase vale logo ki choice or swrno ki pasand 😊😘😘
Etlu Divya kirtan gaan ke lila tadarshya thay...manashpatt pr..
Jai Sri krishn…Can we please get the lyrics
Sure