11/100 | Why is our capacity to tolerate decreasing?

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  • เผยแพร่เมื่อ 16 ก.ย. 2024
  • आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंज़र क्यूँ है
    ज़ख़्म हर सर पे हर इक हाथ में पत्थर क्यूँ है
    जब हक़ीक़त है के हर ज़र्रे में तू रहता है
    फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मंदिर क्यूँ है
    अपना अंजाम तो मालूम है सब को फिर भी
    अपनी नज़रों में हर इन्सान सिकंदर क्यूँ है
    ज़िन्दगी जीने के क़ाबिल ही नहीं अब "फ़ाकिर"
    वर्ना हर आँख में अश्कों का समंदर क्यूँ है
    - Dr. Iqbal & Sudarshan Faakir

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