मैं uttar pradesh se हूं, हमारे यहां कोई भी फंक्शन में पहले ये पत्तल ही आते थे लेकिन धीरे-धीरे बंद हो गया, लेकिन उसकी खुशबू अभी भी याद है....सुन ke ख़ुशी हुई कि फिर पत्तल लौट रहा..
कुलभूषण उपमन्यु जी। आप को अनेकोनेक प्रणाम। पूरे भारत में फिर से इसे तरह के प्राकृतिक विकल्पों का फिर से उपयोग करना शुरू करना चाहियें। सरकार की तरफ से ऐसे नियम बनाने चाहिए जिससे ये प्राकृतिक विकल्प मुख्यधारा में तेजी से वापस आएं।
मैं हिमाचल प्रदेश के मड़ी जिले का निवासी हूँ, हमारे समाज में इन पतों को पवित्र माना गया हैं, ये पते हर घर में मिलेगें, इन पतों को पुजा में भी इस्तेमाल किया जाता हैं, इन पतों में fungus बहुत कम लगता हैं और वह पानी से हटा दिया जाता हैं, इस fungus से मानव शरीर में कोई नुकसान नहीं होता, हिमाचली धाम इन पतों में खाई जाती हैं जो धाम में स्वाद बढ़ा देती हैं और लोग खाना भी ज्यादा खाते हैं क्योंकि इन पतों से भुख खुल जाती हैं | इन पतों के इस्तेमाल से स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिला हैं और लोग इन्हें शादी व अन्य कार्यक्रमों के लिए भी खरीदते हैं | हमें गर्व हैं हम हिमाचली अपने पुर्वजो कि रिवाजों को अच्छे से चला रहे हैं | 🙏
अपना वो स्वादिष्ट बचपन याद आ गया 😢 काश शहरों में भी पत्तल मिलने लगे तो इसकी इच्छा रखने वाले मेरे जैसे तमाम लोग इसको उपयोग कर स्वादिष्ट और स्वस्थ भोजन का आनंद ले पाएंगे.
मैं कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश से हूं और हमारी कांगड़ी धाम देश-विदेश में बहुत मशहूर है और इसको खाने का असली मज़ा टोर के पतल में ही आता है प्लास्टिक की थालियां में नही ।
कई बार मुझे ऐसा लगता है कि हिमाचल और उत्तराखंड एक ही राज्य है,जब मैं यहां की संस्कृति एवं परंपराओं को एक जैसा पाता हूं, उत्तराखंड में भी शुभ कार्यों में इसी तरह के पत्तों का इस्तेमाल किया जाता है और भोजन खाने के लिए भी इन पत्तो का इस्तेमाल किया जाता है, हमारे यहां इस बेल को "माळु" कहते हैं आज भले ही इसका प्रचलन कम हो गया हो लेकिन कभी इसके बिना कोई समारोह संपन्न नहीं हो सकता था, शायद पहाड़ी लोग पहले से ही अपनी प्रकृति और अपने वातावरण के अनुकूल रहने एवं उसके संरक्षण पर जोर देते थे।
उत्तराखंड में भी शादी-ब्याह और दूसरे उत्सवों में पहले पत्तलों में खाना खाते थे, उसमे अलग ही स्वाद आता था। ❤ इस विडीओ के देख के जरूर कोई ना कोई फिर से पत्तलों का काम शुरू कर देगा ❤
भारतीय नागरिक स्वयं तय करें कि आधुनिक जीवनशैली के नाम पर हम ज़हर और कचरा अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए दे कर जाएंगे, या हिमाचल प्रदेश के नागरिकों की तरह परिवर्तन का हिस्सा बनकर अपने पूर्वजों को फालो करेंगे। जय हिन्द जय भारत
It's very important that we should prefer nature over plastic, and it's also about our himachali culture.... Where from centuries food served in these patals... It's so welcoming to see that now people are prefering again our culture... ❤
हम बहुत आगे निकल गए थे, अब वापिस लौट रहें हैं... विज्ञान ने लोहा स्टील दिया तो कंपनियों ने उसकी पलेटें बना के, लोगों को बेच दी। जिसकी वजह से जीवन और संसार का बैलेंस ढोल गया । अब वापिस पत्तल पर खाना। इसके दो ही मतलब है। 1. हम अब प्राकृतिक जीवन जीने जा रहे हैं। 2. दुनियां के शासक अब लोगों को छोटा जीवन जीने के लिए मजबूर और मजबूत कर रहें है। इंसान चांदी, सोने की पलेट में भी खाना खाते आएं है और इसे आयुर्वेद में सबसे अच्छा माना गया है। पर अब पत्तल। ये मर्जी लोगों पर ही छोड़ देनी चाहिए की किसे कौनसी पलेट में खाना है
When I was small/young, in marriages & functions, similar types of other leafs were used in maharashtra. It's a☺n amazing experience to have food in such plates. Thanks for video.
सनातन संस्कृति प्रकृति पूजक विचार है , जिसमे नदी, पेड़ , पहाड़, पशु, नक्षत्र सभी के प्रति सम्मानीय और पूज्यनीय भाव है , हमे पुनः सनातन की ओर लौटना होगा तभी प्रकृति और पर्यावरण को बचा पाएंगे।
Could anybody please tell me what this plant is called in english ? Just wanted to verify whether it's scientific name is Bauhinea purpurea or not ? if yes, we call them Tanki in Nepal, is this the same plant ? but got confused as the documentary states some other characteristics as well like the plant is parasitic like orchid, is a type of vine etc.
हमारे यहा पौड़ी गढ़वाल में इसे माऊ के पात बोलते हे।इस माऊ की बेल से मज़बूत रस्सी भी बनती है जो न बारिश में गलती है और नहीं धूप में सूखती है।बचपन में पिताजी चाचा जी इसका उपयोग बारिश के मौसम में काम आने वाले टाटा फ्डीका बनाने के लिए करते थे।
ना वो दिल रहे ना दिल वाले ओर ना दिल से परोसने वाले फिर कैसे पत्तल का सुनहरा दौर लौटेगा अब तो पैसा फेंक तमाशा देख वाली बात चल रही है शादियों में कथित स्टंडर्ड ही हावी है
When I was a kid in Nepal, our marriage feasts used to be on the field terraces and 'tapari' - the leaf plate used to get filled by the savouring meal for the day. The special meal consisted rice, dal, cauliflower-potato curry, and salad that we call fresh achar.
दीया नहीं बचा तो बाती का क्या करोगे धर्म नहीं बचा तो जाति का क्या करोगे, इसलिए सनातनी बने जय श्री राम कोई चीज नहीं जो हिंदू दुकान पर नहीं मिलती बस दो कदम चलना पड़ेगा यह कदम बढ़ेंगे हिंदू राष्ट्र की ओर.....
Hamare Nepal me bhi Saal ka paat ka use karte he ham pahadi log ..mostly Saadi ,puja ,puran or festival k time par ham paat ka tapari hi banake use karte he❤❤🇳🇵🇳🇵
हमारे गांव में अभी भी इन पत्तों को प्रयोग किया जाता है। हमारे यज्ञ कुमाऊं में इसे माऊ कहते हैं। यहां दो अलग अलग वनस्पतियां दिखाई है, एक तो बेल वाली है , दूसरी पेड़ है जिसे कचनार कहते हैं, कचनार के पत्ते छोटे होते हैं, और माउ के बड़े। धन्यवाद DW
भारतीय संस्कृति तो पहले से ही प्रकृति पूजक रही है हमारी जो पुरानी चीजें हैं वह हमेशा से प्रकृति के अनुकूल इसलिए सबको धीरे-धीरे उधर ही लौटना है😊
जोहार दादा🙏🙏🙏
Germany 🇩🇪 aur Europeans ko kaya pata iskey barey Mai. 😊
भारतीय संस्कृति कोई संस्कृति नहीं हैं👈👈
Sahi bat hai.
Jay shree ram❤
पूरे देश मे वापस पत्तल का ही उपयोग होना चाहिए। बहुत अच्छा लगता है इसमें खाना।
Absolutely right bro
Right, esa law hona chahie
आप पृथ्वी को बचाने में में अपना भरपूर योगदान दे रहे है आप को प्रणाम करता हूं
Tum bhi do
दावत का असली मजा तो पत्तल में ही आता है।
Bilkul Sahi Baat🎉
Right
Agree 💯💯👍👍
Hamare yaha bhi sadi me pattal me hi khate hai
गांव की सब्जी का स्वाद बढ़ जाता है। अब वो स्वाद ही खो गया है।😢😢😢😢😢😢😢
मैं भी जिला हमीरपुर हिमाचल प्रदेश से हूँ। हम अभी भी इसी का इस्तेमाल करते हैं।खुशी हुई ये देख कर आपने इसे cover किया। आपका इसके लिए धन्यवाद🙏🙏
मैं uttar pradesh se हूं, हमारे यहां कोई भी फंक्शन में पहले ये पत्तल ही आते थे लेकिन धीरे-धीरे बंद हो गया, लेकिन उसकी खुशबू अभी भी याद है....सुन ke ख़ुशी हुई कि फिर पत्तल लौट रहा..
कुलभूषण उपमन्यु जी। आप को अनेकोनेक प्रणाम।
पूरे भारत में फिर से इसे तरह के प्राकृतिक विकल्पों का फिर से उपयोग करना शुरू करना चाहियें।
सरकार की तरफ से ऐसे नियम बनाने चाहिए जिससे ये प्राकृतिक विकल्प मुख्यधारा में तेजी से वापस आएं।
मैं हिमाचल प्रदेश के मड़ी जिले का निवासी हूँ, हमारे समाज में इन पतों को पवित्र माना गया हैं, ये पते हर घर में मिलेगें, इन पतों को पुजा में भी इस्तेमाल किया जाता हैं, इन पतों में fungus बहुत कम लगता हैं और वह पानी से हटा दिया जाता हैं, इस fungus से मानव शरीर में कोई नुकसान नहीं होता, हिमाचली धाम इन पतों में खाई जाती हैं जो धाम में स्वाद बढ़ा देती हैं और लोग खाना भी ज्यादा खाते हैं क्योंकि इन पतों से भुख खुल जाती हैं |
इन पतों के इस्तेमाल से स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिला हैं और लोग इन्हें शादी व अन्य कार्यक्रमों के लिए भी खरीदते हैं |
हमें गर्व हैं हम हिमाचली अपने पुर्वजो कि रिवाजों को अच्छे से चला रहे हैं | 🙏
thik bola de bhau tusa... asa re paase (baijnath) bhi pattal ch hi khande dhaam... asli maza ta dhama khane ra pattala manj hi h....
Hamare Nepal me bhi same system he❤par ham log Saal ka paat ka use karte he yaha ...❤️✌️🇳🇵
👍👍 यह एक अच्छा संकेत है, किन्तु इसका उत्पादन बढ़ा कर इसे फिर से चलन में लाने के लिए जनता में भी जागरूकता लाना जरूरी है।
अपना वो स्वादिष्ट बचपन याद आ गया 😢 काश शहरों में भी पत्तल मिलने लगे तो इसकी इच्छा रखने वाले मेरे जैसे तमाम लोग इसको उपयोग कर स्वादिष्ट और स्वस्थ भोजन का आनंद ले पाएंगे.
भाई शहर की बात नही है सभी जगह पलास्टिक ही है 😘
घर में ही पलाश का पेड़ लगाने का विचार है।
East or West plastic is best
I came to study in Ranchi and here street food is being served in leaf and it's very good to see they don't use plastic at all.
😊 i am from ranchi and you are right.
Maine bhi dekha hai . Vahan mere mama ka ghr h .
Bohat hi achi baat hai ki ab phirse hum log apne traditional culture or sanskriti ko aage le ja rahe hai.. I'm proud to be a himachali 🕉️🕉️🕉️🕉️🙏🙏🙏🙏🙏
As himachalis ....we miss these pattals....nyc to see them coming back
As himachali, I often get pattals in dham.
पत्तल का उपयोग करना सच में सकारात्मक कदम है पर्यावरण संरक्षण के प्रति, सरकार को इसे बढ़ावा देना चाहिए।
Sarkar ne konsa ban kar diya hein pattal ko
आत्मा ख़ुश हो जाती है .....👏👏👏👏👏
प्रकृति की ओर लौटने की दिलचस्प कथानक, जो हमें प्रकृति से जोड़ रहे हैं,,
मैं कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश से हूं और हमारी कांगड़ी धाम देश-विदेश में बहुत मशहूर है और इसको खाने का असली मज़ा टोर के पतल में ही आता है प्लास्टिक की थालियां में नही ।
Good initiative by local people.
Use of eco friendly technology .
Well done people 👍🏿🙏🏿☺️
कई बार मुझे ऐसा लगता है कि हिमाचल और उत्तराखंड एक ही राज्य है,जब मैं यहां की संस्कृति एवं परंपराओं को एक जैसा पाता हूं, उत्तराखंड में भी शुभ कार्यों में इसी तरह के पत्तों का इस्तेमाल किया जाता है और भोजन खाने के लिए भी इन पत्तो का इस्तेमाल किया जाता है, हमारे यहां इस बेल को "माळु" कहते हैं आज भले ही इसका प्रचलन कम हो गया हो लेकिन कभी इसके बिना कोई समारोह संपन्न नहीं हो सकता था, शायद पहाड़ी लोग पहले से ही अपनी प्रकृति और अपने वातावरण के अनुकूल रहने एवं उसके संरक्षण पर जोर देते थे।
उत्तराखंड में भी शादी-ब्याह और दूसरे उत्सवों में पहले पत्तलों में खाना खाते थे, उसमे अलग ही स्वाद आता था। ❤
इस विडीओ के देख के जरूर कोई ना कोई फिर से पत्तलों का काम शुरू कर देगा ❤
Uttrakhand me kha se ho
बहुत ही अच्छा लग रहा है कि कुछ पुरानी चीजों को अब फिर से अपना रहे हैं
बड़ा अच्छा रिवाज हुवा करता था , स्टँडर्ड मेंटन करने के बहाने यह रिती बंदसी हो गयी है। आप ने अच्छा काम सुरू किया है।👍👌👌💐💐💐💐
भारतीय नागरिक स्वयं तय करें कि आधुनिक जीवनशैली के नाम पर हम ज़हर और कचरा अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए दे कर जाएंगे,
या हिमाचल प्रदेश के नागरिकों की तरह परिवर्तन का हिस्सा बनकर अपने पूर्वजों को फालो करेंगे। जय हिन्द जय भारत
Bahot Khushi milti h jab log environment ke baare me sochte
इस पत्ते में भोजन करने मे जो मजा है, वो किसी में नहीं हमारे यहां भी इस पत्ते का प्रयोग शुभ अवसरों पर किया जाता है।❤❤❤❤
बचपन में मैंने मेरे दादा और दादी जी के साथ मिलकर ऐसी पतले बनाई थी
मे राजस्थान से हु यहां तेन्दु के पत्ते की पत्तल बनती हैं
लौटना ही पड़ेगा इंडिया से भारत की ओर ।
Good 👍 पूरे देश में लाना चाहिए, लोगो को रोजगार भी मिलेगा, प्लास्टिक बैन 👍
Plastic ban karke rozgar bhi chal jayega
हमारे झारखड़ में भी ट्राइबल घरों में इसका use आम बात है लेकिन व्यवसाय के हिसाब से अभी तक देखा नही गया है
Shuru karo phir Himachal walo k traha.
Thank you for sharing this knowledge. Being a Himanchali, I am thankful for this important coverage.
Acha aisi baat hai kya
Hindi m baat krle ye DW hindi h...re harammii Manju mdhrcchd khata yhan ki h aur bhasa angrezo ki bolta h Macaulay ki aulad h tu
इस प्रयास, पहल और व्यवहारिकता के लिए सभी सम्मिलित लोगों को कोटि कोटि प्रणाम जय श्री सनातन विजय श्री सनातन 🙏🙏🙏
It's very important that we should prefer nature over plastic, and it's also about our himachali culture.... Where from centuries food served in these patals... It's so welcoming to see that now people are prefering again our culture... ❤
Right agree with you
🙏👍bhut hi badiya himachal....kangra daam ka asli maza patal m khne ki baat hi kush or h....apni parmpra 😊ko bnaye rkana sabse kubsurt baat h👍
बहुत हि अच्छा है भारत पुनः ग्रामीण रीती रिवाज पर लोट आए
प्लास्टिक का विकल्प देकर ही प्लास्टिक को प्रतिबंध करेंगे तभी प्लास्टिक पर निर्भरता खतम होगी।
बचपन में खाया था इसमें इसका स्वाद तो बहुत ही अच्छा होता है
हम बहुत आगे निकल गए थे, अब वापिस लौट रहें हैं...
विज्ञान ने लोहा स्टील दिया तो कंपनियों ने उसकी पलेटें बना के, लोगों को बेच दी। जिसकी वजह से जीवन और संसार का बैलेंस ढोल गया ।
अब वापिस पत्तल पर खाना। इसके दो ही मतलब है।
1. हम अब प्राकृतिक जीवन जीने जा रहे हैं।
2. दुनियां के शासक अब लोगों को छोटा जीवन जीने के लिए मजबूर और मजबूत कर रहें है। इंसान चांदी, सोने की पलेट में भी खाना खाते आएं है और इसे आयुर्वेद में सबसे अच्छा माना गया है। पर अब पत्तल। ये मर्जी लोगों पर ही छोड़ देनी चाहिए की किसे कौनसी पलेट में खाना है
हमारे झारखंड मे सखुवा या साल के पती से पतल बनाया जाता है जो झारखंडी रीति रिवाजों मे बहुत अहम भूमिका निभाता है
❤❤❤
When I was small/young, in marriages & functions, similar types of other leafs were used in maharashtra. It's a☺n amazing experience to have food in such plates. Thanks for video.
Kuthun ahes bhava?
सनातन संस्कृति प्रकृति पूजक विचार है , जिसमे नदी, पेड़ , पहाड़, पशु, नक्षत्र सभी के प्रति सम्मानीय और पूज्यनीय भाव है , हमे पुनः सनातन की ओर लौटना होगा तभी प्रकृति और पर्यावरण को बचा पाएंगे।
Thanks for sharing such wonderful information.
ईश्वर करें ऐसे ही बेहतर चीजें घटित हों ❤☘️
Thank you dw travel for representing Mandi .. and it's role to the environment..
Do you have any contact number of these pattal makers?
@@abhinandansharma8339 you can research in Google about the location and contact number...
@@abhinandansharma8339 not yet
Badi khushi hui yeh dekhkar .Himachali log hen hi bahut achche vahan k neta bhi sachche aur imandar hote hen hamesha janta ki bhalai ka sochte hen
बहुत खूब सराहनीय प्रयास है
बहुत अच्छी पहल हमारे पर्यावरण को बचाने की एक अच्छी पहल की है आपने हृदय से धन्यवाद और हम सभी को मालू के पतल ही खरीदने चाहिए 🙏🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
As a himachali i feel good to watch a lot of dw content about himalayan states❤
Thank god for this! I remember eating on these pattas during my childhood days.
बिल्कुल सही काम कर रहे हैं ये लोग पत्तल हमारे प्रकृति से जुड़े होने का संदेश है
बहोत अच्छा, हम महाराष्ट्र से है हम भी बहोत मिस करते है पत्तल को
Sahi baat proud Himachali ❤
ये स्वरोजगार का सबसे अच्छा साधन था
good to see that our traditional plates are exploring all over the world thamk you DW.......love fron himachal😍😍
Very good news and information... thanks 🙏
Hmare Himachal m hmesa he yhi use kiye jaate hain patal ...maine khud bachpan m bnaye hai apni dadi ji k sath😊😊
Could anybody please tell me what this plant is called in english ? Just wanted to verify whether it's scientific name is Bauhinea purpurea or not ? if yes, we call them Tanki in Nepal, is this the same plant ? but got confused as the documentary states some other characteristics as well like the plant is parasitic like orchid, is a type of vine etc.
Pattal mei khane ka mza hi gazabb hai ❤❤
Pehle u.p. mein bhi patal mei khate the per ab plastic ne iski jagah le li .I miss patal wala khana.🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Dev bhoomi Himachal pardesh ki aur bhi video beno
Hm log isi me khate hain abhi bhi dham me...
Proud Himachali..
Bahut sunder. Positive chijen dekhkar Anand a jata hai.
मस्त
पहाड़ी धाम का असली मजा तो पत्तल में ही है।
प्लास्टिक को प्रतिबंधित करके । समझदार लोगो को पत्तल का ही उपयोग करना चाहिए
Bilkul sahi kar rahe h ye iss environment bhi sahi rahega
हमारे यहा पौड़ी गढ़वाल में इसे माऊ के पात बोलते हे।इस माऊ की बेल से मज़बूत रस्सी भी बनती है जो न बारिश में गलती है और नहीं धूप में सूखती है।बचपन में पिताजी चाचा जी इसका उपयोग बारिश के मौसम में काम आने वाले टाटा फ्डीका बनाने के लिए करते थे।
🙏🌼🌼
पत्तल का इस्तेमाल करने से प्रदुषण व बीमारियां कम होंगी । बहुत शानदार लगता था पत्तल में खाना।
ये लोग परिस्तिथियो से जूझ कर, पर्यावरण बचा रहे हैं। अगर सरकार भी कुछ मदद करे तो सोने पे सुहागा हो जाएगा 🙂
झारखंड में भी अाइए हमारे यहां पत्तल ही use किया जाता है ।
Bahot Aachha laga ki log Environment ke baare me sochne lagehe
बचपन में मेरे गाँव क्या पूरे बिहार राज्य में ये फेमस था।
धरती पर एक पेड़ तो upload करके देखिये,
बादलों के सैंकड़ों झुंड आएंगे
Like करने के लिए!
#nature 🌳🌳🌷🌹🥀
Proud to be himachali and also an Indian
Aapki kosis achi hai aap neture ke bare me Jo bate ho bahut ach
ना वो दिल रहे ना दिल वाले ओर ना दिल से परोसने वाले फिर कैसे पत्तल का सुनहरा दौर लौटेगा अब तो पैसा फेंक तमाशा देख वाली बात चल रही है शादियों में कथित स्टंडर्ड ही हावी है
When I was a kid in Nepal, our marriage feasts used to be on the field terraces and 'tapari' - the leaf plate used to get filled by the savouring meal for the day. The special meal consisted rice, dal, cauliflower-potato curry, and salad that we call fresh achar.
यह प्रकृति के लिए अनुकूल हैं! ❤❤❤
दीया नहीं बचा तो बाती का क्या करोगे धर्म नहीं बचा तो जाति का क्या करोगे, इसलिए सनातनी बने जय श्री राम
कोई चीज नहीं जो हिंदू दुकान पर नहीं मिलती बस दो कदम चलना पड़ेगा यह कदम बढ़ेंगे हिंदू राष्ट्र की ओर.....
Me to gher me b inhi ptto me khana khana pasand krungi 😊
awesome, simply awesome. Please keep trying this movement towards nature.
kis kisko bachpan yad aa gya..jb kisi sadi me ya Kisi Sanskritik karyakrm me patte Ke bne huye thali me khaya hai😋😋😀😀
Pattal me garam garam chawal daal aur sbji, bahut hi badhiya khusbu aur taste aata hai
Bhout acchi hai y m in m bhojn krta tha yaad aati h inki😢😢🥰
Bhut hi bahia bhut bhut badahe aapko name Shrewton k leye aa no.1 banege HP K
Hamare Nepal me bhi Saal ka paat ka use karte he ham pahadi log ..mostly Saadi ,puja ,puran or festival k time par ham paat ka tapari hi banake use karte he❤❤🇳🇵🇳🇵
Good job 👍
हमारे गांव में अभी भी इन पत्तों को प्रयोग किया जाता है। हमारे यज्ञ कुमाऊं में इसे माऊ कहते हैं।
यहां दो अलग अलग वनस्पतियां दिखाई है, एक तो बेल वाली है , दूसरी पेड़ है जिसे कचनार कहते हैं, कचनार के पत्ते छोटे होते हैं, और माउ के बड़े।
धन्यवाद DW
प्रकृति की ओर लौट चलो💕
Ye parampara pure Desh me apni Jaye to... environment ke liye bhut acha h ...or hmari shanshkrti....behtr se or behtr hogi....😊
Dawat yaad aa gayi kisi ki Tehraami, Jassuttan, Sagai, Bhandaara 👍
I hope for more sustainable growth of this industry❤
वापस लौटने में ही भलाई है।। 😊
Bahut bahut acha..sb jagah ye shuru ho Jaye to bahut bdia hoga .
पत्तल पे खाने का मजा ही कुछ और है ❤
हमारे बुंदेलखंड मे कमल के पत्ते पर खाना परोसा जाता था,जिस को देख कर लोग खुश होते थे, जब लोग बिमरियो से परेसान हो जायेंगे तो फ़िर प्रकति की orr lotege
Bahut hi sarahniye ❤
Go green 💚 leave green 💚
Nice vlog ❤❤
Inhe dekh educated log bhi sikhe yhi real education hai apni prakarti ki care Krna ♥️
💗💗💗👍👌👌💗💗🙏🙏 bachpan ki Yad a gai aur shaadi Barat aur Bhandare mein
भारत में ऐसे धन्धे बहुत हि मुश्किल हैं चलनेक्यूंकि लोग अशिक्षित है, और जो शिल्शित हैं वो प्रचार मे मदद नहीं करते, इस्तेमाल भी मुश्किल है।