5:18 par aapne kaha ek baar mile to sahi 😊Milne ke baad aapka saara dhundlapan hat jayega .. Or agar milna hai to question ,answer prograame hote hai baba g ke .. Jayiye poochiye swaal...kya pta apke jaise kayion ke bharam door ho jaaye
Andar ka rasta bhut जटिल है,5 jo shabad ke hukam mei shrishti chla rhe hai, unse वाखफियत bnane ke liye japa jaate hai..par vo sache naam nhi... Ye bhi bataya jaata hai...RADHA SWAMI G🙏
राधास्वामी मेरे सिंध गंभिर । कोई थाह न पावत बीर ।। बैठक स्वामी अद्भुति , राधा निरख निहार । और न कोई लख सके , शोभा अगम अपार ।। गुप्त रूप जहँ धारिया , राधास्वामी नाम । बिना मेहर नही पावई , जहाँ कोई विश्राम ।। राधास्वामी गाय कर , जन्म सुफल कर ले । यही नाम निज नाम है , मन अपने धर ले ।। राधास्वामी नाम , जो गावे सोई तरे । कल क्लेश सब नाश , सुख पावे सब दुख हरे ।। ऐसा नाम अपार , कोई भेद न जानई । जो जाने सो पार , बहुरि न जग में जन्मई ।। राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी
Jeh bi pada kar laluram😂 बड़े-बड़े संत महात्मा पांच शब्द की महिमा ना करते . शब्द की अनेक ध्वनियों में से संत-महात्माओं ने पाँच प्रमुख रूहानी मंडलों में सुनाई देनेवाली पाँच ध्वनियों का अधिक वर्णन किया है और इन्हें पाँच शब्दों का नाम दिया है। . गुरु नानक साहिब फ़रमाते हैं: ना मन चलै न पउण उडावै॥ जोगी सबद अनाहद वावै ॥ पंच सबद झुणकार निरालम प्रभ आपे वाए सुणाइआ ॥ (आदि ग्रन्थ, पृ. 1040) आप कहते हैं कि परमात्मारूपी योगी मन को निश्चल करनेवाली पाँच शब्दों की अद्भुत झंकार पैदा कर रहा है। . आपने पूरे गुरु की मुख्य पहचान यह बताई है कि वह जीव को शरीररूपी घर के अंदर से ही निज घर पहुँचाने में समर्थ है और इसकी निशानी यह है कि वहाँ पहुँचकर आत्मा को पाँच शब्दों की धुन सुनाई देती है: घर मह घर देखाए दे सो सतगुर पुरख सुजाण ॥ पंच सबद धुनिकार धुन तह बाजै सबद नीसाण ॥ (आदि ग्रन्थ, पृ. 1291) . गुरु अमरदास जी फ़रमाते हैं: सचा अमर सबद सुहाइआ ॥ पंच सबद मिल वाजा वाइआ ॥ सदा कारज सच नाम सुहेला बिन सबदै कारज केहा हे ॥ (आदि ग्रन्थ, पृ. 1057-58) आप कहते हैं कि परमात्मा का सच्चा हुक्म उसके शब्द द्वारा शोभित होता है। आप संकेत दे रहे हैं कि परमात्मा के हुक्म की पूर्ति का असली साधन उसका शब्द है, जो पाँच ध्वनियों के रूप में जीव के अंदर धुनकारें दे रहा है। इस शब्द से लिव जोड़े बिना, जीव कभी धुरधाम नहीं पहुँच सकता। . गुरु रामदास जी का कथन है: प्रभ मसतके धुर लीखिआ गुरमती हर लिव लाइओ॥ पंच सबद दरगह बाजिआ हर मिलिओ मंगल गाइओ ॥ (आदि ग्रन्थ, पृ. 985) . कबीर साहिब कहते हैं: पंचे सबद अनाहद बाजे संगे सारिंगपानी ॥ कबीर दास तेरी आरती कीनी निरंकार निरबानी ॥ (आदि ग्रन्थ, पृ. 1350) पांच शब्द कहि तब दल फेरा। पुरुष नाम लीन्हों तिहि बेरा ॥ छन एक बैठे पुरुष तहं भाई। सकल समाउठि आरती लाई ॥ (अनुराग सागर, खेमसरी का वृत्तांत) . बेणी जी भी इन्हें माया से निर्लेप पाँच शब्द कहते हैं, जिनका स्थूल जगत् से कोई संबंध नहीं: पंच सबद निरमाइल बाजे ॥ ढुलके चवर संख घन गाजे॥ (आदि ग्रन्थ, पृ. 974) . हुजूर स्वामी जी महाराज ने भी समझाया है कि हर जीव के अंदर रात-दिन पाँच शब्द बज रहे हैं: 'पाँच शब्द घट में बजें। यह निर्णय कर ले शब्द की ॥ (सारबचन संग्रह, 9:1:12) आप फ़रमाते हैं: घर में घर गुरु दिखलावें। धुन शब्द पाँच बतलावें ॥ वह घर है अगम अपारा। दसवें के पार निहारा ॥ (सारबचन संग्रह, 20:10:3-5) आप भी गुरु साहिब की तरह पूरा गुरु उसी को मानते हैं जो आत्मा को शरीररूपी घर के अंदर से उसके असली घर पहुँचा दे। यह घर दसवें द्वार से परे है और उसमें पाँच शब्द बज रहे हैं। . भाई गुरदास जी फ़रमाते हैं: सबद सुरति लिव साध संगि पंच सबद इक सबद मिलाए। (वारां भाई गुरदास जी, 6:10) आप कहते हैं कि तत्त्वों की रचना को पार करके पाँच शब्द प्राप्त होते हैं: 'पंजे तत उलंधिआ पंजि सबद वजी वाधाई।' (वारां भाई गुरदास जी, 29:6) गुरु का शिष्य गुरु की मति पर चलकर सुरत द्वारा अंतर में ये पाँच शब्द सुनता है। ये शब्द ही सच्चा गुरु है 'गुरमुखि सुनणा सुरति करि पंच सबदु गुरु सबदि अलापै।' (वारां भाई गुरदास जी, 6:18) आप संकेत देते हैं कि पाँच शब्द अखंड हैं। हर वस्तु का आरंभ इसी शब्द में है, परंतु यह स्वयं आदि और अंत से ऊपर है, 'पंजे सबद अभंग अनहद केलिआ। (वारां भाई गुरदास जी, 3:16) आपने यह भी संकेत दिया है कि भिन्न-भिन्न मंडलों में यह पाँच शब्द अलग-अलग सुनाई देते हैं, परंतु गुरुमत पर चलकर अंत में पाँच शब्द एक शब्द में समा जाते हैं अर्थात् पाँचों शब्दों का स्रोत एक ही शब्द यानी परमेश्वर है। उस परमेश्वर के प्रत्यक्ष होने या उससे मिलाप की पहचान यही है। कि उसमें से पाँचों शब्दों की घनघोर ध्वनि निकलती सुनाई देती है: पंचाइण परमेसरो पंच सबद घनघोर नीसाणा । (वारां भाई गुरदास जी, 7:5) . ख़्वाजा हाफ़िज़ फ़रमाते हैं: ख़ामोश होकर, आसमान से आ रही पाँच नौबतों (ध्वनियों) को सुन, उस आसमान से जो छः चक्रों और सातवें आसमान से परे है। (दीवाने शम्स तब्रेज़, पृ. 138) . शम्स तब्रेज़ फ़रमाते हैं: अगर प्रतिदिन मालिक के दर पर पाँच नौबतों की आवाज़ सुन लें, तो हमारे अंदर हौंमैं और ईर्ष्या के लिये कोई स्थान न रहे। (दीवाने शम्स तब्रेज़, पृ. 405) आपने भी ख़्वाजा हाफ़िज़ की भाँति संकेत किया है कि ये नौबतें तब सुनाई देती हैं, जब आत्मा का खेमा छः चक्रों से उखाड़कर सातवें आसमान पर ले जाया जाये। (दीवाने शम्स तब्रेज़, पृ. 966)
राधा स्वामी जी स्वामी जी आप रूहानी मंडलों के बारे में लोगों को मूर्ख नहीं बनाए स्वामी जी महाराज ने बताया है कि आप अपने आपको अपने में संभालो अर्थात शब्द को शब्द में मिला दो स्वामी जी ने भी कहा है कि वह सब तो अनामी है लेकिन आप अनानेंको पर पकड़ो को कैसे आधार क्या होगा उसका आप लोगों को भ्रमित ना करें आप सत्संग सुना वे लोगों को काल और कर्म से बचाने की कोशिश करें उनके कर्म जबर ना करें यह करनी भरनी का देश है जैसी करनी वैसी भरनी काल काल और कर्म दोनों लुभाने हैं यह जीव को प्रसारित किए हैं जीवन से निकलना चाहता है लेकिन फिर भी आप जैसे निकलने नहीं देते क्योंकि एक दूसरे की बुराई आप में भरी है संत और माताओं ने यह कभी नहीं कहा एक दूसरे की बुराई करें जहां तक मुमकिन हो जीव को 84 से निकालने का प्रयास करें अर्थात अपना जो निजी स्वरूप है अर्थात जो अपने सांसो की धारणा है उसको कैसे आप जो दसवें द्वार की बात कर रहे हो उसमें चढ़ावे अर्थात अपना जो प्रकाश में क्षेत्र है उसको कैसे खोलें आप सही साधना बताएंगे तो भी आपकी कामयाब नहीं होगी वह ध्यान कोई अलग चीज है ध्यान लगाने से नहीं आता है ध्यान दें करने से आता है ना ध्यान सोचने से आता है ध्यान आप कोई भी कार्य करते हो ध्यान लग सकता है कृपया हमारी आपसे यही विनती है कि एक दूसरे महात्माओं की बुराई ना करें संत और महात्मा इस जीव को काल और माय से बचाने के लिए आए हैं और योग कैसे बचाते रहे और बचत रहेंगे राधा स्वामी जी आप सब की बात शब्द सही करें यह बोले जीव है यह शब्द के बारे में नहीं समझते इतने और जो आप बताते हो उसमें ताले देखकर हंसते हैं राधा स्वामी जी
मूर्ख वह पांच नाम KAAL के यह है . सत्त पुरुष सत नाम कहाई। वह अनाम गति संतन पाई॥ सत्त नाम से निर्गुन आया। यह सब भेद संत बतलाया ॥ पाँच नाम निरगुन के जाना। निरगुन निराकार निरबाना ॥ और निरंजन है धर्मराई। ऐसे पाँच नाम गति गाई ॥ सोई ब्रह्म परचंड कहाई। ता को जपै जगत मन लाई ॥ दस औतार ब्रह्म कर होई। ता को कहिये निरगुन सोई॥ तिन पुनि रचा पिंड ब्रह्मंडा। सात दीप पृथ्वी नौ खंडा ॥ सब जग ब्रह्म ब्रह्म करि गाई। आदि अन्त की राह न पाई ॥ . 1 .निरगुन 2. निराकार 3. निरबाना 4. निरंजन 5. धर्मराई . सतनाम या सतपुरुष में से जोत निरंजन यानी निर्गुण उत्पन्न हुआ, जिसे काल, निराकार, धर्मराज या ब्रह्म भी कहा जाता है। पिंड, ब्रह्मांड, सातदीप, नौ खंड, तीन देवता तथा दस अवतार ये सब उसकी रचना हैं। दुनिया के सभी लोग उनकी पूजा- भक्ति में लगे हुए हैं। सतलोक के स्वामी सतपुरुष या सतनाम की भक्ति की ओर किसी का ध्यान ही नहीं है। उसका भेद केवल पूर्ण संतों ने ही खोला है। तुलसी साहिब की वाणी में सतलोक से नीचे की रचना को तीन भागों में विभाजित किया गया है: पिंड, अंड और ब्रह्मांड। पिंड के छः चक्र हैं- गुदाचक्र, इंद्रियचक्र, नाभिचक्र, हृदयचक्र, कंठचक्र और आँखों से ऊपर आज्ञाचक्र यानी तीसरा तिल आँखों से ऊपर सहस्रदल कमल तक की रचना को अंड कहा गया है। इससे ऊपर त्रिकुटी और पारब्रह्म या सुन्न तक की रचना को ब्रह्मांड कहा गया है। पारब्रह्म में शब्द प्रधान है और माया का प्रभाव न के बराबर है, परंतु यह लोक भी नाशवान है। ब्रह्मांड तक की रचना कृत्रिम है। सतलोक अकृत्रिम है, स्वयं सृजित है। ब्रह्मांड तक की रचना जन्म-मरण के चक्र में है। ओअं सब्द काल को जानो। सुन्न में सब्द पुरुष पहिचानो ॥ - त्रिकुटी या ब्रह्म मंडल तक का शब्द ओंकार कहलाता है और यह काल की सीमा में है। सतलोक या चौथा पद अमर-अविनाशी है। तुलसी साहिब समझाते हैं: सुन्न नाश होकर महासुन में समाता है। महासुन्न नाश होकर सतलोक में, जहाँ सत साहिब रहता है। यहाँ प्रलय और महाप्रलय की गम्यता नहीं।" सतलोक परमपुरुष का निज धाम है। नीचे की रचना का हिस्सा बनने से पहले सब जीव सतलोक के निवासी थे, इसलिये उनका निज धाम भी सतलोक ही है। .
नितिन भाई जोती निरंजन का मतलब होता माया पांच तत्व तीन गुण काम क्रोध लोभ मोह अहंकार माता दुर्गा और निरंजन को मिलाकर बनता है शिव शक्ति ज्ञान तो कुछ है नहीं लोगों को मूर्खबनाते हो
11:00😂😂..gyani..g..aankhe band, kaan band...shuruat ke liye hai...taa jo ke jugo jugo se dhyan faila hai, ikatha ho sake or dhun pakdne ki koshish kar sake.. Abhyaas pakne ke baad iski bhi jaroorat nhi rehti ... Baate aapki saari sahi hai ..par aap santmat ko 10 saal usmei reh ke bhi samajh nhi paaye
तो भाई पांच शब्द कौन से लिखने पढ़ने में आ जाते हैं उदाहरण के लिए मैं यहां लिखता हूं सूरज तो क्या कमेंट में सूरज आ गया सूरज की रोशनी कमेंट में आ गई सूरज खुद कुछ और है और सूरज का नाम कुछ और है
शब्द शब्द पौड़ी रच डाला, चड चड पहुंचो अगम ठिकान।। गुरु नानक साहिब की इन लाइनों का फिर क्या अर्थ है अगर शब्द अलग अलग नहीं है तो। लोगों को बेवकूफ बनाना बंद करो। निंदा करने से आप कोई महापुरुष नहीं बन गए।
नितिन भाई तुम्हें बात करना तो सही ढंग से नहीं आता और कहते हो कि रामपाल जी ने मेरे से ज्ञान लिया तुम्हें तो शास्त्र की एबीसीडी याद नहीं है पूरे विश्व में संत रामपाल जी महाराज ऐसे हैं जो शास्त्रों को सबके सामने खोल कर दिखाते है उनका मुकाबला कोई नहीं कर सकता भाई यूट्यूब पर वीडियो बनाकर पैसे कमा लो इसमेंभलाई है
😂 मूर्ख गुरु नानक साहब का सच्चा साहिब क्या काल भगवान था अंतरि जोति निरंतर बाणी साचे साहिब सिउ लिव लाई । जो तुम कह रही हो उसको संत महात्मा खंडित कर रहे हैं
क्यूं कबीर जी की बातों का मजाक बना कर रखा है कोई तो ठिकाना हो इन गुरुओं का ,सब गुरुओं ने पढ़ी कबीर जी की ही वाणी है ,पर अर्थ अलग अलग निकाले है ,देखो भाई जिस भी इंसान को जन्म मरण से कबीर जी को छुड़वाना होगा वो खुद आकर उस व्यक्ति से मिलेंगे ओर भक्ति बताएंगे ओर मिलेंगे भी उसे ही जो सही लायक होगा ,मिलने के ,इस लिए कोई गुरु असली नही है ओर ना ही इंसान की ताकत है असली नकली का भेद कर सके,इस लिए कोई भी नाम मिले जपो अगर कबीर जी को लगेगा की इसे छुड़ाना है तो वो स्वयं ही मिल लेंगे ओर असली विधि बता देंगे ,इन गुरुओ के पल्ले मुझे तो सायद नही लगता कुछ है जैसी ये बातें करते है
माफ क्रियेगा पर सायद आपकी वजह से नही संत रामपाल जी महाराज की वजह से सबने अपनी बोली बदल ली है।आप तो 2018 से सत्संग कर रहे हो संत रामपाल जी महाराज तो 1997 से कर रहे हैं तो कृपया ये तो ना ही बोले की आपकी वजह से किया
साहेब बंदगी सतनाम 🌹🌹🙏
Saheb bandgi 🌹 satnam 🌹🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
साहेब 🌹🌹बंदगी🌷🌷.सतनाम🌹🌹 सत.गुरु🌷🌷.नितिनदास 🌹🌹साहेब🌷 की.जय.🌹🌹जय.हो.🌷🌷🦶🦶🌹🌹🙏🌹🌷🙏🌹🌷🙏🌹🌷🙏🌹🌷🙏🌹🌷
Jay gùru dev
साहब बन्दगि सतनाम
Sahib bandagi satnaam🌹🌹🌹🌹🙏🙏
સાહેબ બંદગી.સતનામ સતગુરુ.નિતિનદાસજી.સાહેબ કી.જય જય હો🙏🙏🙏🙏🙏🙏🦶🦶
🌹🌹 Sahib Bandagi Satnam 🌹🌹
🙏🙏Saheb bandgi satnaamji guruji ❤️🙏🙏💯✔️💯✔️💯✔️
हे सत गुरु नितिन साहेब जी आप की ज्ञान गंगा में स्नान कर के ये जीव खुशी से पागल हुआ सतनाम साहेब बंदगी सतनाम जी
साहिब बंदगी सतनाम
🙏🙏 Bandgi Saheb 💐
Nitin.sahib.ji...aap.hi.sat.margi.ho.sahib.bandgi.sahib.ji...h
Saheb bandagi Satnam guruji 🙏🙏🌷🏵️🌹
धन्यवाद जी
guru bandi chore ke shiri charno me parnaam 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
जय हो गुरुदेव बार-बार नमन गुरुदेव
Saheb bandgi satnaam ji
Satsahibji
साहेब बंदगी सतनाम गुरुजी 🌹🌹🤲🤲🙏🙏🌹🌹
दिन दयाल भरोसे तेरे साहेब बंदगी जी
satnam sahib bndgi satnam 🌹 👏🌹
जय गुरुदेव
🎉🎉🎉जयगुरूदेव नाम प्रभु का है,
मुसीबत में मददगार है।🎉🎉🎉🎉
🎉🎉Jaigurudev 🎉🎉
🎉🎉बाबा जयगुरूदेव के जनसीन वक्त के गुरु बाबा उमाकांत जी के चरणों में नमन🎉🎉
5:18 par aapne kaha ek baar mile to sahi
😊Milne ke baad aapka saara dhundlapan hat jayega ..
Or agar milna hai to question ,answer prograame hote hai baba g ke ..
Jayiye poochiye swaal...kya pta apke jaise kayion ke bharam door ho jaaye
साहिब बंदगी सत नाम
🙇🤲🌹👣🏳️🙏
Radha soami tuhnu ki khndg niay
Saheb bandgi सतनाम
Andar ka rasta bhut जटिल है,5 jo shabad ke hukam mei shrishti chla rhe hai, unse वाखफियत bnane ke liye japa jaate hai..par vo sache naam nhi... Ye bhi bataya jaata hai...RADHA SWAMI G🙏
साहेब बंदगी सत्यनाम जी
जय हो गुरु बंदी छोड़ की सदा ही जय हो 🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹
भेदी सतगुरू नितिनदासजी साहीबजी प्रणामजी सत् कबीरजी साहीबजी बंदीछोडजी मालिकजी का सदा सदा जयजयकारहो साहीबजी बंदगी सतनाम
राधास्वामी मेरे सिंध गंभिर ।
कोई थाह न पावत बीर ।।
बैठक स्वामी अद्भुति , राधा निरख निहार ।
और न कोई लख सके , शोभा अगम अपार ।।
गुप्त रूप जहँ धारिया , राधास्वामी नाम ।
बिना मेहर नही पावई , जहाँ कोई विश्राम ।।
राधास्वामी गाय कर , जन्म सुफल कर ले ।
यही नाम निज नाम है , मन अपने धर ले ।।
राधास्वामी नाम , जो गावे सोई तरे ।
कल क्लेश सब नाश , सुख पावे सब दुख हरे ।।
ऐसा नाम अपार , कोई भेद न जानई ।
जो जाने सो पार , बहुरि न जग में जन्मई ।।
राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी
Aapji rssb se jude henji
Apke ta vapis juniyo me aana pakka hai
Shahib bandagi shatnam
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Jai sat kabir ji jammu kashmir se 🥰❤️
हमने तो सुना है आपने अपने ही गुरु को कुत्ता कहा है वाह क्या बात है
Guru ji 20 baar hindu college guma Diya 360 angle m aur ander shabd parkat ho gya
Saheb bandagi sat name prabhu ji geeta adhyay me om tat sat kya hai
Hmare baba ji abhi bhi kisi ki nidiya chugli nahi Karte
हा तो सही हे उन्हें क्या कोई कही भी जाए
हमें भी नामदान देने की कृपा करें ज़ी
Guruji m Radha swami 5 naam aur ravidass ka main manter Kabir ji atma k 16 naam japta tha
राधास्वामी जी बक्स दो जी
यह बानी भी पढ़ ले ली थी कबीर साहब की अनहद नाद नाम की पूजा नाथ नाम की पूजा
😂अहंकार किसी को nhi छोड़ता। The way he is telling😂
Jeh bi pada kar laluram😂
बड़े-बड़े संत महात्मा पांच शब्द की महिमा ना करते
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शब्द की अनेक ध्वनियों में से संत-महात्माओं ने पाँच प्रमुख रूहानी मंडलों में सुनाई देनेवाली पाँच ध्वनियों का अधिक वर्णन किया है और इन्हें पाँच शब्दों का नाम दिया है।
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गुरु नानक साहिब फ़रमाते हैं:
ना मन चलै न पउण उडावै॥ जोगी सबद अनाहद वावै ॥ पंच सबद झुणकार निरालम प्रभ आपे वाए सुणाइआ ॥
(आदि ग्रन्थ, पृ. 1040)
आप कहते हैं कि परमात्मारूपी योगी मन को निश्चल करनेवाली पाँच शब्दों की अद्भुत झंकार पैदा कर रहा है।
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आपने पूरे गुरु की मुख्य पहचान यह बताई है कि वह जीव को शरीररूपी घर के अंदर से ही निज घर पहुँचाने में समर्थ है और इसकी निशानी यह है कि वहाँ पहुँचकर आत्मा को पाँच शब्दों की धुन सुनाई देती है:
घर मह घर देखाए दे सो सतगुर पुरख सुजाण ॥
पंच सबद धुनिकार धुन तह बाजै सबद नीसाण ॥
(आदि ग्रन्थ, पृ. 1291)
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गुरु अमरदास जी फ़रमाते हैं:
सचा अमर सबद सुहाइआ ॥ पंच सबद मिल वाजा वाइआ ॥
सदा कारज सच नाम सुहेला बिन सबदै कारज केहा हे ॥
(आदि ग्रन्थ, पृ. 1057-58)
आप कहते हैं कि परमात्मा का सच्चा हुक्म उसके शब्द द्वारा शोभित होता है। आप संकेत दे रहे हैं कि परमात्मा के हुक्म की पूर्ति का असली साधन उसका शब्द है, जो पाँच ध्वनियों के रूप में जीव के अंदर धुनकारें दे रहा है। इस शब्द से लिव जोड़े बिना, जीव कभी धुरधाम नहीं पहुँच सकता।
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गुरु रामदास जी का कथन है:
प्रभ मसतके धुर लीखिआ गुरमती हर लिव लाइओ॥ पंच सबद दरगह बाजिआ हर मिलिओ मंगल गाइओ ॥
(आदि ग्रन्थ, पृ. 985)
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कबीर साहिब कहते हैं:
पंचे सबद अनाहद बाजे संगे सारिंगपानी ॥
कबीर दास तेरी आरती कीनी निरंकार निरबानी ॥
(आदि ग्रन्थ, पृ. 1350)
पांच शब्द कहि तब दल फेरा। पुरुष नाम लीन्हों तिहि बेरा ॥ छन एक बैठे पुरुष तहं भाई। सकल समाउठि आरती लाई ॥
(अनुराग सागर, खेमसरी का वृत्तांत)
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बेणी जी भी इन्हें माया से निर्लेप पाँच शब्द कहते हैं, जिनका स्थूल जगत् से कोई संबंध नहीं:
पंच सबद निरमाइल बाजे ॥ ढुलके चवर संख घन गाजे॥
(आदि ग्रन्थ, पृ. 974)
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हुजूर स्वामी जी महाराज ने भी समझाया है कि हर जीव के अंदर रात-दिन पाँच शब्द बज रहे हैं:
'पाँच शब्द घट में बजें। यह निर्णय कर ले शब्द की ॥
(सारबचन संग्रह, 9:1:12)
आप फ़रमाते हैं:
घर में घर गुरु दिखलावें। धुन शब्द पाँच बतलावें ॥
वह घर है अगम अपारा। दसवें के पार निहारा ॥
(सारबचन संग्रह, 20:10:3-5)
आप भी गुरु साहिब की तरह पूरा गुरु उसी को मानते हैं जो आत्मा को शरीररूपी घर के अंदर से उसके असली घर पहुँचा दे। यह घर दसवें द्वार से परे है और उसमें पाँच शब्द बज रहे हैं।
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भाई गुरदास जी फ़रमाते हैं:
सबद सुरति लिव साध संगि पंच सबद इक सबद मिलाए।
(वारां भाई गुरदास जी, 6:10)
आप कहते हैं कि तत्त्वों की रचना को पार करके पाँच शब्द प्राप्त होते हैं:
'पंजे तत उलंधिआ पंजि सबद वजी वाधाई।'
(वारां भाई गुरदास जी, 29:6)
गुरु का शिष्य गुरु की मति पर चलकर सुरत द्वारा अंतर में ये पाँच शब्द सुनता है।
ये शब्द ही सच्चा गुरु है
'गुरमुखि सुनणा सुरति करि पंच सबदु गुरु सबदि अलापै।'
(वारां भाई गुरदास जी, 6:18)
आप संकेत देते हैं कि पाँच शब्द अखंड हैं।
हर वस्तु का आरंभ इसी शब्द में है, परंतु यह स्वयं आदि और अंत से ऊपर है,
'पंजे सबद अभंग अनहद केलिआ।
(वारां भाई गुरदास जी, 3:16)
आपने यह भी संकेत दिया है कि भिन्न-भिन्न मंडलों में यह पाँच शब्द अलग-अलग सुनाई देते हैं, परंतु गुरुमत पर चलकर अंत में पाँच शब्द एक शब्द में समा जाते हैं अर्थात् पाँचों शब्दों का स्रोत एक ही शब्द यानी परमेश्वर है।
उस परमेश्वर के प्रत्यक्ष होने या उससे मिलाप की पहचान यही है। कि उसमें से पाँचों शब्दों की घनघोर ध्वनि निकलती सुनाई देती है:
पंचाइण परमेसरो पंच सबद घनघोर नीसाणा ।
(वारां भाई गुरदास जी, 7:5)
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ख़्वाजा हाफ़िज़ फ़रमाते हैं:
ख़ामोश होकर, आसमान से आ रही पाँच नौबतों (ध्वनियों) को सुन, उस आसमान से जो छः चक्रों और सातवें आसमान से परे है।
(दीवाने शम्स तब्रेज़, पृ. 138)
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शम्स तब्रेज़ फ़रमाते हैं:
अगर प्रतिदिन मालिक के दर पर पाँच नौबतों की आवाज़ सुन लें, तो हमारे अंदर हौंमैं और ईर्ष्या के लिये कोई स्थान न रहे।
(दीवाने शम्स तब्रेज़, पृ. 405)
आपने भी ख़्वाजा हाफ़िज़ की भाँति संकेत किया है कि ये नौबतें तब सुनाई देती हैं, जब आत्मा का खेमा छः चक्रों से उखाड़कर सातवें आसमान पर ले जाया जाये।
(दीवाने शम्स तब्रेज़, पृ. 966)
बंदगीसाहिबसतनाम? परमात्मासबमेप्रियरूपसेहै?
तोढ़ड़नेकाकारणक्याहै?
परनीत्मासबमेपिर्यरूपसेहैफिरबिस्वनाथातबपरमीत्माकहाथा?
आंख कान मुख बंद कराओ अनहद झिंगा सब्द सुनाओ ।
दोनों तिल इकतार मिलाओ, तब देखो गुलजारा है
ये भी देख लो कबीर साहेब ने ही बताया है ये भी
🙏🥺🥺🥺🥺🥺
Guruji ji 🙏 aapke charnon mein aana chahta hoon
Aapka satsang kis sthaan oar hota hai?😊
फ्रेडी बाबे दा पर्दाफाश बहुत आच्छ कीय
Jesa aapne kha aap 2018 se satsang kr rhe ho or aapne kha sabhi aapko copy krte h to apki knowledge k liye btaa du aapko radha swami satsang 1861 se h
Radha swami ke pitched kyun pada h
Aapko kisne diya updesh
Guru granth sahib ka 1291 ang dekho fir pata Lage ga guru sahib ne panch shabad ka jikar Kiya he
वाह रे बाबा जी का डायलॉग बोल दिया बेटे ने 😂😂😂
बाबाजी अक्सर सत्संग में कहते हैं ना यह दाढ़ी काली थी सफेद होगी ना
शरीर गुरु नहीं है गुरु शब्द है
सत्य कबीर साहेब कीजय 🙏🌹🙏
Jy tanu gain huda an a bolda na guru kisay di ndia nhi kardy una liy sab ek hy
राधा स्वामी जी स्वामी जी आप रूहानी मंडलों के बारे में लोगों को मूर्ख नहीं बनाए स्वामी जी महाराज ने बताया है कि आप अपने आपको अपने में संभालो अर्थात शब्द को शब्द में मिला दो स्वामी जी ने भी कहा है कि वह सब तो अनामी है लेकिन आप अनानेंको पर पकड़ो को कैसे आधार क्या होगा उसका आप लोगों को भ्रमित ना करें आप सत्संग सुना वे लोगों को काल और कर्म से बचाने की कोशिश करें उनके कर्म जबर ना करें यह करनी भरनी का देश है जैसी करनी वैसी भरनी काल काल और कर्म दोनों लुभाने हैं यह जीव को प्रसारित किए हैं जीवन से निकलना चाहता है लेकिन फिर भी आप जैसे निकलने नहीं देते क्योंकि एक दूसरे की बुराई आप में भरी है संत और माताओं ने यह कभी नहीं कहा एक दूसरे की बुराई करें जहां तक मुमकिन हो जीव को 84 से निकालने का प्रयास करें अर्थात अपना जो निजी स्वरूप है अर्थात जो अपने सांसो की धारणा है उसको कैसे आप जो दसवें द्वार की बात कर रहे हो उसमें चढ़ावे अर्थात अपना जो प्रकाश में क्षेत्र है उसको कैसे खोलें आप सही साधना बताएंगे तो भी आपकी कामयाब नहीं होगी वह ध्यान कोई अलग चीज है ध्यान लगाने से नहीं आता है ध्यान दें करने से आता है ना ध्यान सोचने से आता है ध्यान आप कोई भी कार्य करते हो ध्यान लग सकता है कृपया हमारी आपसे यही विनती है कि एक दूसरे महात्माओं की बुराई ना करें संत और महात्मा इस जीव को काल और माय से बचाने के लिए आए हैं और योग कैसे बचाते रहे और बचत रहेंगे राधा स्वामी जी आप सब की बात शब्द सही करें यह बोले जीव है यह शब्द के बारे में नहीं समझते इतने और जो आप बताते हो उसमें ताले देखकर हंसते हैं राधा स्वामी जी
radhasoami ji❤ kya kre satya guru andar se janna jaruri hai jisko parmatma daya kare.radhasoami ji.
too nank ji ka istemal kio karta hai too guru hai apni takat dikha faltoo bakwas band kar
मूर्ख वह पांच नाम KAAL के यह है
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सत्त पुरुष सत नाम कहाई। वह अनाम गति संतन पाई॥
सत्त नाम से निर्गुन आया। यह सब भेद संत बतलाया ॥
पाँच नाम निरगुन के जाना। निरगुन निराकार निरबाना ॥
और निरंजन है धर्मराई। ऐसे पाँच नाम गति गाई ॥
सोई ब्रह्म परचंड कहाई। ता को जपै जगत मन लाई ॥
दस औतार ब्रह्म कर होई। ता को कहिये निरगुन सोई॥
तिन पुनि रचा पिंड ब्रह्मंडा। सात दीप पृथ्वी नौ खंडा ॥
सब जग ब्रह्म ब्रह्म करि गाई। आदि अन्त की राह न पाई ॥
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1 .निरगुन
2. निराकार
3. निरबाना
4. निरंजन
5. धर्मराई
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सतनाम या सतपुरुष में से जोत निरंजन यानी निर्गुण उत्पन्न हुआ, जिसे काल, निराकार, धर्मराज या ब्रह्म भी कहा जाता है। पिंड, ब्रह्मांड,
सातदीप, नौ खंड, तीन देवता तथा दस अवतार ये सब उसकी रचना हैं। दुनिया के सभी लोग उनकी पूजा- भक्ति में लगे हुए हैं। सतलोक के स्वामी सतपुरुष या सतनाम की भक्ति की ओर किसी का ध्यान ही नहीं है। उसका भेद केवल पूर्ण संतों ने ही खोला है।
तुलसी साहिब की वाणी में सतलोक से नीचे की रचना को तीन भागों में विभाजित किया गया है: पिंड, अंड और ब्रह्मांड। पिंड के छः चक्र हैं- गुदाचक्र, इंद्रियचक्र, नाभिचक्र, हृदयचक्र, कंठचक्र और आँखों से ऊपर आज्ञाचक्र यानी तीसरा तिल आँखों से ऊपर सहस्रदल कमल तक की रचना को अंड कहा गया है। इससे ऊपर त्रिकुटी और पारब्रह्म या सुन्न तक की रचना को ब्रह्मांड कहा गया है। पारब्रह्म में शब्द प्रधान है और माया का प्रभाव न के बराबर है, परंतु यह लोक भी नाशवान है।
ब्रह्मांड तक की रचना कृत्रिम है। सतलोक अकृत्रिम है, स्वयं सृजित है। ब्रह्मांड तक की रचना जन्म-मरण के चक्र में है।
ओअं सब्द काल को जानो। सुन्न में सब्द पुरुष पहिचानो ॥ -
त्रिकुटी या ब्रह्म मंडल तक का शब्द ओंकार कहलाता है और यह काल की सीमा में है। सतलोक या चौथा पद अमर-अविनाशी है।
तुलसी साहिब समझाते हैं: सुन्न नाश होकर महासुन में समाता है।
महासुन्न नाश होकर सतलोक में, जहाँ सत साहिब रहता है।
यहाँ प्रलय और महाप्रलय की गम्यता नहीं।"
सतलोक परमपुरुष का निज धाम है। नीचे की रचना का हिस्सा बनने से पहले सब जीव सतलोक के निवासी थे, इसलिये उनका निज धाम भी सतलोक ही है।
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Eh bani kisiki hai soami ji ki or tulsi sahib ji ki please bata dijiye and main esko kaha par padh sakta i mean source(Book name)?
Kubh nidiya karo ji aapka bala ho jra bhagvan ok abhi tak kisi ne nahi dekha h aap bhi to suni sunayi baton par hi lager ho
भाई गुरु ग्रंथ साहब पढ़ा कर उसने लिखा है बिना गुरु के दर्शन किए कोई ध्यान नहीं कर सकता
हमारे राधा स्वामी बाबा जी के ही डायलॉग कॉपी कर रहा है
नितिन भाई जोती निरंजन का मतलब होता माया पांच तत्व तीन गुण काम क्रोध लोभ मोह अहंकार
माता दुर्गा और निरंजन को मिलाकर बनता है शिव शक्ति
ज्ञान तो कुछ है नहीं लोगों को मूर्खबनाते हो
Kya kabir sahib bacchey se baddey nahi huye or buddey nahi huye
11:00😂😂..gyani..g..aankhe band, kaan band...shuruat ke liye hai...taa jo ke jugo jugo se dhyan faila hai, ikatha ho sake or dhun pakdne ki koshish kar sake..
Abhyaas pakne ke baad iski bhi jaroorat nhi rehti ...
Baate aapki saari sahi hai ..par aap santmat ko 10 saal usmei reh ke bhi samajh nhi paaye
अरे भाई सन्त का कोई पन्थ नही होता वो कही भी प्रकट हो सकते है
कबीर साहेब तो सच कहते कहते लेकिन अनहद खतम कहा होता वो स्थान तो बताओ
Too bhi ram pal ki trah jail jayga nitin ji likh kar keh dya
तो भाई पांच शब्द कौन से लिखने पढ़ने में आ जाते हैं
उदाहरण के लिए
मैं यहां लिखता हूं सूरज तो क्या कमेंट में सूरज आ गया सूरज की रोशनी कमेंट में आ गई
सूरज खुद कुछ और है और सूरज का नाम कुछ और है
साहेब बंदगी सतनाम जी, सतगुरु साहेब नितिन साहेब जी को कोटि कोटि प्रणाम
Docter bano dawai dedo dusare docters ka dos nahi de sakte
Aap ke pas yigo ke siva lhuchh nahi h aap bhi to aanami dham ho kar nihi aaye
Kal parson ki lomdi gawe al patal kal ka jiv h
Or nahiyogo h
Aap m or rampal m koi farak nhi ,jo usne keya ab vahi aap kr rhe ho..
शब्द शब्द पौड़ी रच डाला,
चड चड पहुंचो अगम ठिकान।।
गुरु नानक साहिब की इन लाइनों का फिर क्या अर्थ है अगर शब्द अलग अलग नहीं है तो।
लोगों को बेवकूफ बनाना बंद करो।
निंदा करने से आप कोई महापुरुष नहीं बन गए।
यूट्यूब पर पैसे कमाने हैं इनकम कहां होरही है
मज़ाक ही कर नादान दशवा द्वार खुब पता है हमें
aap ka sachcha name kya dete hai aur kya proof hai?bas kitab padh padh ke kabb tak nakli gyan dete bataiyea😂😂😂
नितिन भाई तुम्हें बात करना तो सही ढंग से नहीं आता और कहते हो कि रामपाल जी ने मेरे से ज्ञान लिया तुम्हें तो शास्त्र की एबीसीडी याद नहीं है पूरे विश्व में संत रामपाल जी महाराज ऐसे हैं जो शास्त्रों को सबके सामने खोल कर दिखाते है उनका मुकाबला कोई नहीं कर सकता
भाई यूट्यूब पर वीडियो बनाकर पैसे कमा लो इसमेंभलाई है
महाराज जी मेरा एक प्रश्न है क्या आपके हिसाब से कबीर साहेब प्रमात्मा है या बस एक कवि?
गुरु नानक साहब की बानी है
एक महल 2 बारियां शिव शक्ति सुल्तान
Wah kya murakh ho tum
i dont believe 100000 percent chahe kuch bhi bolo.sachcha giru rssb hi hai.aap sansarik giri hai.
10 वां द्वर तो काल के लोक में ही रह। जाता है। 12 वां द्वार बताया हैं कबीर सब ने।
SATNAM SATPURSH Kahaye
तुलसी साहिब जी कहते है
तुम जैसे लल्लू कौन होते हो सतनाम के बारे में अनाप-शनाप कहने वाले
जयगुरुदेव
ज्यादा संका है परीछा ले लो संतमत क्या है ।
Jese tum aye ho thagne
😂 मूर्ख गुरु नानक साहब का सच्चा साहिब क्या काल भगवान था
अंतरि जोति निरंतर बाणी साचे साहिब सिउ लिव लाई ।
जो तुम कह रही हो उसको संत महात्मा खंडित कर रहे हैं
क्यूं कबीर जी की बातों का मजाक बना कर रखा है कोई तो ठिकाना हो इन गुरुओं का ,सब गुरुओं ने पढ़ी कबीर जी की ही वाणी है ,पर अर्थ अलग अलग निकाले है ,देखो भाई जिस भी इंसान को जन्म मरण से कबीर जी को छुड़वाना होगा वो खुद आकर उस व्यक्ति से मिलेंगे ओर भक्ति बताएंगे ओर मिलेंगे भी उसे ही जो सही लायक होगा ,मिलने के ,इस लिए कोई गुरु असली नही है ओर ना ही इंसान की ताकत है असली नकली का भेद कर सके,इस लिए कोई भी नाम मिले जपो अगर कबीर जी को लगेगा की इसे छुड़ाना है तो वो स्वयं ही मिल लेंगे ओर असली विधि बता देंगे ,इन गुरुओ के पल्ले मुझे तो सायद नही लगता कुछ है जैसी ये बातें करते है
😂😂😂 तु भी जपवा रहा जय गुरु जय बंदी छोड़ जय सतनाम 😂😂😂
Koi Pagal hi hoga jo iss aadmi ki baat ko such na mane.
माफ क्रियेगा पर सायद आपकी वजह से नही संत रामपाल जी महाराज की वजह से सबने अपनी बोली बदल ली है।आप तो 2018 से सत्संग कर रहे हो संत रामपाल जी महाराज तो 1997 से कर रहे हैं तो कृपया ये तो ना ही बोले की आपकी वजह से किया
Saheb bandagi satnam guru ji
अनाड़ी है क्याकरें बिचारा जो मन में आया बोल दिया सतगुरु रामपाल जी महाराज सबको माफ करते हैं
आप तो 😂 पहनावे से ही ढोंगी लग रहे हो।
अभिमान तो देखो 😅😅😅😅
मन मर्जी से बानी बना के क्यों बोल रहे हो प्रभु
साहेब बंदगी सतनाम 🙏🙏🙏🙏🙏
@@GorakhdasMahant satnam
Sahib bandagi sat nam ji🌷🌷🙏🌷🌷