jaipur muharram 2021(panigaran) dhol mattam

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  • เผยแพร่เมื่อ 15 ส.ค. 2021
  • Jaipur panigaran tajiya matam

ความคิดเห็น • 42

  • @haseenahmedqureshi9161
    @haseenahmedqureshi9161 ปีที่แล้ว +5

    👑❤️YA HUSSAIN YA ABBAS ❤️❤️👑👑❤️YA HUSSAIN YA ABBAS ❤️👑YA QASIM YA ALI AZGHAR YA ALI AKBAR👑👑❤️YA SHAHODAY KARBALA ❤️❤️👑👑YA HASSAN 👑❤️YA HUSSAIN YA HUSSAIN YA HUSSAIN❤️❤️👑❤️❤️❤️❤️👑👑

  • @allshowmovie5798
    @allshowmovie5798 2 หลายเดือนก่อน

    استغفر الله العظيم واتوب

  • @AsadKhan-xq5wd
    @AsadKhan-xq5wd 2 ปีที่แล้ว +3

    Hamne ek entick Cheez bana rahe Hai moharram pr abki Baar

    • @jaipurvisionvlogjvv
      @jaipurvisionvlogjvv  2 ปีที่แล้ว +1

      Me aane wala hu waha video banane ke liye

    • @GkTinker-rj9hl
      @GkTinker-rj9hl 6 วันที่ผ่านมา

      ​@@jaipurvisionvlogjvvमुहर्रम, विशेष रूप से दसवें दिन जिसे अशूरा कहा जाता है, मुख्य रूप से इस्लाम में शोक का समय माना जाता है, खासकर शिया मुसलमानों के लिए। यह 680 ईस्वी में करबला की लड़ाई में पैगंबर मुहम्मद के पोते हुसैन इब्न अली की शहादत की याद दिलाता है। शिया मुसलमानों के लिए, यह दुख और हुसैन और उनके साथियों द्वारा की गई कुर्बानियों पर विचार करने का समय है।
      सुन्नी मुसलमान भी अशूरा मनाते हैं, लेकिन उनके तरीके और महत्व अलग हो सकते हैं। कुछ के लिए, यह उपवास का दिन और मूसा और इस्राएलियों की फिरौन की गुलामी से मुक्ति की याद का दिन होता है।
      कुल मिलाकर, मुहर्रम को खुशी का त्योहार नहीं, बल्कि शोक और याद का समय माना जाता है।
      क्या इसमें बेंड बजाने चाहिए
      मुहर्रम के दौरान बैंड बजाना या धूमधाम से जश्न मनाना शिया मुस्लिम परंपराओं के अनुसार उपयुक्त नहीं माना जाता। मुहर्रम, विशेषकर अशूरा का दिन, शोक और गम का समय होता है, जब लोग हुसैन इब्न अली और उनके साथियों की शहादत को याद करते हैं। इस दौरान लोग मातम मनाते हैं, जुलूस निकालते हैं, और मर्सिया और नोहा पढ़ते हैं।
      हालांकि, कुछ क्षेत्रों में और विभिन्न समुदायों में प्रथाओं में अंतर हो सकता है, लेकिन सामान्य रूप से मुहर्रम को एक शोकपूर्ण समय के रूप में ही मनाया जाता है। इसलिए, इस समय बैंड बजाना या किसी प्रकार का उत्सव मनाना सही नहीं माना जाता।
      क्या इस्लाम में मोहरम पर बेंड बजाना सही हैं
      इस्लाम में मुहर्रम, विशेष रूप से अशूरा का दिन, हज़रत हुसैन इब्न अली और उनके साथियों की शहादत की याद में शोक और मातम का समय है। इस्लामी परंपराओं, विशेषकर शिया मुस्लिम परंपराओं के अनुसार, इस समय के दौरान बैंड बजाना या किसी प्रकार का उत्सव मनाना उचित नहीं माना जाता।
      मुहर्रम के दौरान, लोग हुसैन की शहादत को याद करते हैं, मर्सिया और नोहा पढ़ते हैं, और शोक के जुलूस निकालते हैं। यह समय आत्मनिरीक्षण, प्रार्थना, और शहीदों के बलिदान को याद करने का होता है।
      सुन्नी मुसलमानों के बीच भी मुहर्रम का महत्व है, लेकिन उनके प्रथाओं और तरीकों में कुछ अंतर हो सकता है। फिर भी, मुहर्रम को आमतौर पर शोक और याद का समय माना जाता है।
      इसलिए, इस्लामी दृष्टिकोण से मुहर्रम के दौरान बैंड बजाना या किसी प्रकार का उत्सव मनाना सही नहीं माना जाता।

  • @SufiyanKhan-ow1pj
    @SufiyanKhan-ow1pj 2 ปีที่แล้ว +1

    Ok

  • @mohdattari1768
    @mohdattari1768 2 ปีที่แล้ว +1

    Bhai jaipur me Ghat gate ke Ariya me Moharam nikal raha hai kya

    • @jaipurvisionvlogjvv
      @jaipurvisionvlogjvv  2 ปีที่แล้ว

      Nahi bhai

    • @sameekhan9067
      @sameekhan9067 2 ปีที่แล้ว

      Nhi

    • @GkTinker-rj9hl
      @GkTinker-rj9hl 6 วันที่ผ่านมา

      ​@@jaipurvisionvlogjvvमुहर्रम, विशेष रूप से दसवें दिन जिसे अशूरा कहा जाता है, मुख्य रूप से इस्लाम में शोक का समय माना जाता है, खासकर शिया मुसलमानों के लिए। यह 680 ईस्वी में करबला की लड़ाई में पैगंबर मुहम्मद के पोते हुसैन इब्न अली की शहादत की याद दिलाता है। शिया मुसलमानों के लिए, यह दुख और हुसैन और उनके साथियों द्वारा की गई कुर्बानियों पर विचार करने का समय है।
      सुन्नी मुसलमान भी अशूरा मनाते हैं, लेकिन उनके तरीके और महत्व अलग हो सकते हैं। कुछ के लिए, यह उपवास का दिन और मूसा और इस्राएलियों की फिरौन की गुलामी से मुक्ति की याद का दिन होता है।
      कुल मिलाकर, मुहर्रम को खुशी का त्योहार नहीं, बल्कि शोक और याद का समय माना जाता है।
      क्या इसमें बेंड बजाने चाहिए
      मुहर्रम के दौरान बैंड बजाना या धूमधाम से जश्न मनाना शिया मुस्लिम परंपराओं के अनुसार उपयुक्त नहीं माना जाता। मुहर्रम, विशेषकर अशूरा का दिन, शोक और गम का समय होता है, जब लोग हुसैन इब्न अली और उनके साथियों की शहादत को याद करते हैं। इस दौरान लोग मातम मनाते हैं, जुलूस निकालते हैं, और मर्सिया और नोहा पढ़ते हैं।
      हालांकि, कुछ क्षेत्रों में और विभिन्न समुदायों में प्रथाओं में अंतर हो सकता है, लेकिन सामान्य रूप से मुहर्रम को एक शोकपूर्ण समय के रूप में ही मनाया जाता है। इसलिए, इस समय बैंड बजाना या किसी प्रकार का उत्सव मनाना सही नहीं माना जाता।
      क्या इस्लाम में मोहरम पर बेंड बजाना सही हैं
      इस्लाम में मुहर्रम, विशेष रूप से अशूरा का दिन, हज़रत हुसैन इब्न अली और उनके साथियों की शहादत की याद में शोक और मातम का समय है। इस्लामी परंपराओं, विशेषकर शिया मुस्लिम परंपराओं के अनुसार, इस समय के दौरान बैंड बजाना या किसी प्रकार का उत्सव मनाना उचित नहीं माना जाता।
      मुहर्रम के दौरान, लोग हुसैन की शहादत को याद करते हैं, मर्सिया और नोहा पढ़ते हैं, और शोक के जुलूस निकालते हैं। यह समय आत्मनिरीक्षण, प्रार्थना, और शहीदों के बलिदान को याद करने का होता है।
      सुन्नी मुसलमानों के बीच भी मुहर्रम का महत्व है, लेकिन उनके प्रथाओं और तरीकों में कुछ अंतर हो सकता है। फिर भी, मुहर्रम को आमतौर पर शोक और याद का समय माना जाता है।
      इसलिए, इस्लामी दृष्टिकोण से मुहर्रम के दौरान बैंड बजाना या किसी प्रकार का उत्सव मनाना सही नहीं माना जाता।

  • @AsadKhan-xq5wd
    @AsadKhan-xq5wd 2 ปีที่แล้ว +2

    Assalam alekum bhai

    • @jaipurvisionvlogjvv
      @jaipurvisionvlogjvv  2 ปีที่แล้ว +1

      Walaikum assalam

    • @GkTinker-rj9hl
      @GkTinker-rj9hl 6 วันที่ผ่านมา

      ​@@jaipurvisionvlogjvvमुहर्रम, विशेष रूप से दसवें दिन जिसे अशूरा कहा जाता है, मुख्य रूप से इस्लाम में शोक का समय माना जाता है, खासकर शिया मुसलमानों के लिए। यह 680 ईस्वी में करबला की लड़ाई में पैगंबर मुहम्मद के पोते हुसैन इब्न अली की शहादत की याद दिलाता है। शिया मुसलमानों के लिए, यह दुख और हुसैन और उनके साथियों द्वारा की गई कुर्बानियों पर विचार करने का समय है।
      सुन्नी मुसलमान भी अशूरा मनाते हैं, लेकिन उनके तरीके और महत्व अलग हो सकते हैं। कुछ के लिए, यह उपवास का दिन और मूसा और इस्राएलियों की फिरौन की गुलामी से मुक्ति की याद का दिन होता है।
      कुल मिलाकर, मुहर्रम को खुशी का त्योहार नहीं, बल्कि शोक और याद का समय माना जाता है।
      क्या इसमें बेंड बजाने चाहिए
      मुहर्रम के दौरान बैंड बजाना या धूमधाम से जश्न मनाना शिया मुस्लिम परंपराओं के अनुसार उपयुक्त नहीं माना जाता। मुहर्रम, विशेषकर अशूरा का दिन, शोक और गम का समय होता है, जब लोग हुसैन इब्न अली और उनके साथियों की शहादत को याद करते हैं। इस दौरान लोग मातम मनाते हैं, जुलूस निकालते हैं, और मर्सिया और नोहा पढ़ते हैं।
      हालांकि, कुछ क्षेत्रों में और विभिन्न समुदायों में प्रथाओं में अंतर हो सकता है, लेकिन सामान्य रूप से मुहर्रम को एक शोकपूर्ण समय के रूप में ही मनाया जाता है। इसलिए, इस समय बैंड बजाना या किसी प्रकार का उत्सव मनाना सही नहीं माना जाता।
      क्या इस्लाम में मोहरम पर बेंड बजाना सही हैं
      इस्लाम में मुहर्रम, विशेष रूप से अशूरा का दिन, हज़रत हुसैन इब्न अली और उनके साथियों की शहादत की याद में शोक और मातम का समय है। इस्लामी परंपराओं, विशेषकर शिया मुस्लिम परंपराओं के अनुसार, इस समय के दौरान बैंड बजाना या किसी प्रकार का उत्सव मनाना उचित नहीं माना जाता।
      मुहर्रम के दौरान, लोग हुसैन की शहादत को याद करते हैं, मर्सिया और नोहा पढ़ते हैं, और शोक के जुलूस निकालते हैं। यह समय आत्मनिरीक्षण, प्रार्थना, और शहीदों के बलिदान को याद करने का होता है।
      सुन्नी मुसलमानों के बीच भी मुहर्रम का महत्व है, लेकिन उनके प्रथाओं और तरीकों में कुछ अंतर हो सकता है। फिर भी, मुहर्रम को आमतौर पर शोक और याद का समय माना जाता है।
      इसलिए, इस्लामी दृष्टिकोण से मुहर्रम के दौरान बैंड बजाना या किसी प्रकार का उत्सव मनाना सही नहीं माना जाता।

  • @faizukhan8291
    @faizukhan8291 2 ปีที่แล้ว +2

    Bhai muhrram niklege kya

    • @jaipurvisionvlogjvv
      @jaipurvisionvlogjvv  2 ปีที่แล้ว +1

      Nahi bhai

    • @haseenahmedqureshi9161
      @haseenahmedqureshi9161 ปีที่แล้ว

      HA NIKLEGE IN SHA ALLAH IS BAR

    • @GkTinker-rj9hl
      @GkTinker-rj9hl 6 วันที่ผ่านมา

      मुहर्रम, विशेष रूप से दसवें दिन जिसे अशूरा कहा जाता है, मुख्य रूप से इस्लाम में शोक का समय माना जाता है, खासकर शिया मुसलमानों के लिए। यह 680 ईस्वी में करबला की लड़ाई में पैगंबर मुहम्मद के पोते हुसैन इब्न अली की शहादत की याद दिलाता है। शिया मुसलमानों के लिए, यह दुख और हुसैन और उनके साथियों द्वारा की गई कुर्बानियों पर विचार करने का समय है।
      सुन्नी मुसलमान भी अशूरा मनाते हैं, लेकिन उनके तरीके और महत्व अलग हो सकते हैं। कुछ के लिए, यह उपवास का दिन और मूसा और इस्राएलियों की फिरौन की गुलामी से मुक्ति की याद का दिन होता है।
      कुल मिलाकर, मुहर्रम को खुशी का त्योहार नहीं, बल्कि शोक और याद का समय माना जाता है।
      क्या इसमें बेंड बजाने चाहिए
      मुहर्रम के दौरान बैंड बजाना या धूमधाम से जश्न मनाना शिया मुस्लिम परंपराओं के अनुसार उपयुक्त नहीं माना जाता। मुहर्रम, विशेषकर अशूरा का दिन, शोक और गम का समय होता है, जब लोग हुसैन इब्न अली और उनके साथियों की शहादत को याद करते हैं। इस दौरान लोग मातम मनाते हैं, जुलूस निकालते हैं, और मर्सिया और नोहा पढ़ते हैं।
      हालांकि, कुछ क्षेत्रों में और विभिन्न समुदायों में प्रथाओं में अंतर हो सकता है, लेकिन सामान्य रूप से मुहर्रम को एक शोकपूर्ण समय के रूप में ही मनाया जाता है। इसलिए, इस समय बैंड बजाना या किसी प्रकार का उत्सव मनाना सही नहीं माना जाता।
      क्या इस्लाम में मोहरम पर बेंड बजाना सही हैं
      इस्लाम में मुहर्रम, विशेष रूप से अशूरा का दिन, हज़रत हुसैन इब्न अली और उनके साथियों की शहादत की याद में शोक और मातम का समय है। इस्लामी परंपराओं, विशेषकर शिया मुस्लिम परंपराओं के अनुसार, इस समय के दौरान बैंड बजाना या किसी प्रकार का उत्सव मनाना उचित नहीं माना जाता।
      मुहर्रम के दौरान, लोग हुसैन की शहादत को याद करते हैं, मर्सिया और नोहा पढ़ते हैं, और शोक के जुलूस निकालते हैं। यह समय आत्मनिरीक्षण, प्रार्थना, और शहीदों के बलिदान को याद करने का होता है।
      सुन्नी मुसलमानों के बीच भी मुहर्रम का महत्व है, लेकिन उनके प्रथाओं और तरीकों में कुछ अंतर हो सकता है। फिर भी, मुहर्रम को आमतौर पर शोक और याद का समय माना जाता है।
      इसलिए, इस्लामी दृष्टिकोण से मुहर्रम के दौरान बैंड बजाना या किसी प्रकार का उत्सव मनाना सही नहीं माना जाता।

  • @rkhan3121
    @rkhan3121 2 ปีที่แล้ว +1

    Nari Ka Naka Madina Masjid jaipur.

    • @sameekhan9067
      @sameekhan9067 2 ปีที่แล้ว +1

      Mohalla pannigarn

    • @GkTinker-rj9hl
      @GkTinker-rj9hl 6 วันที่ผ่านมา

      ​@@sameekhan9067मुहर्रम, विशेष रूप से दसवें दिन जिसे अशूरा कहा जाता है, मुख्य रूप से इस्लाम में शोक का समय माना जाता है, खासकर शिया मुसलमानों के लिए। यह 680 ईस्वी में करबला की लड़ाई में पैगंबर मुहम्मद के पोते हुसैन इब्न अली की शहादत की याद दिलाता है। शिया मुसलमानों के लिए, यह दुख और हुसैन और उनके साथियों द्वारा की गई कुर्बानियों पर विचार करने का समय है।
      सुन्नी मुसलमान भी अशूरा मनाते हैं, लेकिन उनके तरीके और महत्व अलग हो सकते हैं। कुछ के लिए, यह उपवास का दिन और मूसा और इस्राएलियों की फिरौन की गुलामी से मुक्ति की याद का दिन होता है।
      कुल मिलाकर, मुहर्रम को खुशी का त्योहार नहीं, बल्कि शोक और याद का समय माना जाता है।
      क्या इसमें बेंड बजाने चाहिए
      मुहर्रम के दौरान बैंड बजाना या धूमधाम से जश्न मनाना शिया मुस्लिम परंपराओं के अनुसार उपयुक्त नहीं माना जाता। मुहर्रम, विशेषकर अशूरा का दिन, शोक और गम का समय होता है, जब लोग हुसैन इब्न अली और उनके साथियों की शहादत को याद करते हैं। इस दौरान लोग मातम मनाते हैं, जुलूस निकालते हैं, और मर्सिया और नोहा पढ़ते हैं।
      हालांकि, कुछ क्षेत्रों में और विभिन्न समुदायों में प्रथाओं में अंतर हो सकता है, लेकिन सामान्य रूप से मुहर्रम को एक शोकपूर्ण समय के रूप में ही मनाया जाता है। इसलिए, इस समय बैंड बजाना या किसी प्रकार का उत्सव मनाना सही नहीं माना जाता।
      क्या इस्लाम में मोहरम पर बेंड बजाना सही हैं
      इस्लाम में मुहर्रम, विशेष रूप से अशूरा का दिन, हज़रत हुसैन इब्न अली और उनके साथियों की शहादत की याद में शोक और मातम का समय है। इस्लामी परंपराओं, विशेषकर शिया मुस्लिम परंपराओं के अनुसार, इस समय के दौरान बैंड बजाना या किसी प्रकार का उत्सव मनाना उचित नहीं माना जाता।
      मुहर्रम के दौरान, लोग हुसैन की शहादत को याद करते हैं, मर्सिया और नोहा पढ़ते हैं, और शोक के जुलूस निकालते हैं। यह समय आत्मनिरीक्षण, प्रार्थना, और शहीदों के बलिदान को याद करने का होता है।
      सुन्नी मुसलमानों के बीच भी मुहर्रम का महत्व है, लेकिन उनके प्रथाओं और तरीकों में कुछ अंतर हो सकता है। फिर भी, मुहर्रम को आमतौर पर शोक और याद का समय माना जाता है।
      इसलिए, इस्लामी दृष्टिकोण से मुहर्रम के दौरान बैंड बजाना या किसी प्रकार का उत्सव मनाना सही नहीं माना जाता।

  • @haseenahmedqureshi9161
    @haseenahmedqureshi9161 ปีที่แล้ว

    👑❤️❤️👑👑👑YA ALI YA FATIMA SARKAR YA HASSAN YA HUSSAIN YA ABBAS YA QASIM YA ALI AKBAR YA ALI ASGHAR👑👑👑👑👑👑👑👑👑YA SHAHEED E KARBALA👑👑👑👑👑AAKA IMAM MEHDI👑👑👑👑IMAM ZAFAR IMAM BAAKAR👑👑KAMAR E BANI HASHIM ABUL FAZAL ABBASS👑👑👑IMAM NAQI IMAM TAQI 👑👑IMAM E ZAMAAN👑👑IMAM ASKARI 👑👑IMAAM ZAINULABEDEEN 👑👑👑👑👑IMAM MUZA E KAZIM👑👑👑YA HUSSAIN YA ABBAS👑👑👑👑👑👑👑👑👑👑👑👑👑👑✨✨✨✨✨✨✨👑👑👑👑👑👑👑👑👑👑👑👑👑👑👑✨✨👑👑👑👑👑👑👑👑👑👑👑👑👑✨✨✨👑👑👑👑👑👑👑👑👑👑✨👑👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨✨👑✨👑✨✨👑YA HUSSAIN YA ABBAS👑👑👑👑👑✨✨✨👑✨✨✨✨👑👑👑👑👑👑👑👑👑👑👑✨👑✨✨✨✨✨✨✨👑👑👑👑👑👑👑👑👑👑👑✨✨✨✨✨✨✨👑👑✨👑👑👑✨👑✨👑✨👑👑✨✨👑👑YA ZAINEB YA SAKEENA SARKAR👑✨✨👑👑✨✨✨👑✨👑👑👑✨👑👑👑✨👑👑✨✨👑👑👑👑👑👑👑✨✨✨✨👑👑👑👑👑✨👑✨👑👑👑👑✨✨👑👑👑YA BIIBI RABAAB YA BIBI SARKAR SHER BANU👑✨✨👑👑👑👑👑YA MA AYESHA 👑✨✨👑👑YA MA MARIYAM👑👑✨✨👑✨✨👑YA MA ASHIYA 👑✨✨👑👑👑👑👑👑✨🌟⭐💫💫⭐⭐🌟🌟👑👑👑👑👑👑❤️❤️❤️✨✨👑👑👑✨✨👑🌟✨YA HUSSAIN✨✨🌟👑👑❤️❤️❤️❤️❤️❤️👑👑⭐⭐⭐🌟👑👑👑👑YA ABBAS👑👑🌟👑👑❤️❤️👑❤️👑❤️👑❤️👑👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨✨👑✨👑✨✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨✨👑👑✨✨👑👑✨✨👑✨👑✨✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑YA HUSSAIN YA ABBAS YA HUSSAIN YA ABBAS YA HUSSAIN YA ABBAS👑✨✨👑👑👑💫👑💫👑👑👑👑👑👑👑👑👑👑👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑👑🌟🌟👑🌟👑🌟👑⭐✨⭐👑💫👑💫👑💫💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑⭐👑⭐👑⭐👑💫👑💫👑💫👑⭐👑⭐👑💫👑💫👑⭐👑⭐💫👑👑⭐⭐👑💫👑💫👑⭐👑⭐👑💫👑💫👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑💫👑💫⭐👑⭐👑⭐👑💫👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐⭐👑👑⭐💫👑💫👑⭐👑⭐👑💫👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐⭐👑⭐👑⭐👑⭐⭐✨💫✨⭐✨⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑👑⭐⭐👑👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐⭐👑👑⭐👑⭐👑⭐⭐👑⭐👑👑⭐⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑YA HUSSAIN YA ABBAS👑⭐⭐⭐👑💫💫👑💫👑✨👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑YA GAUS YA GREEB NAWAZ SARKAR YA FAKHAR SARKAR YA HUSSAMUDDIN SAHAB YA DAATA AMAANISHAH SAHAB YA MAULANA ZIAUDDIN SAHAN YA AADAM SHAH BABA👑💫💫💫💫💫❤️👑❤️❤️👑👑❤️👑🌟👑🌟👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑⭐👑✨👑✨👑⭐⭐👑⭐⭐👑YA HAJI ALI SARKAR YA BABA BAHAUDIN SAHAB YA ABDUL REHMAN BABA YA HAJI MALANG SAHAB YA MAKHDOOM SAHAB AKAA👑⭐⭐⭐👑👑🌟👑🌟🌟👑✨✨👑👑🌟👑🌟👑🌟👑🌟👑🌟👑🌟👑🌟👑🌟👑YA HUSSAIN YA ABBAS YA NIZAMUDDIN SAHAB🌟🌟👑👑👑⭐✨✨👑👑👑👑YA MASTAN YA JALAL SHAH YA LEHAR ALI SHAH 👑✨✨✨👑👑👑👑👑👑👑👑✨✨✨❤️❤️🌟🌟🌟🌟🌟✨👑👑👑👑👑YA HUSSAN YA ABBAS ✨👑👑👑👑💫💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫💫💫💫💫💫💫👑💫👑💫👑💫💫👑💫👑💫👑💫👑YA BOO ALI SHAH QALANDAR YA WARISH PIYAA 👑💫💫💫🌟✨👑👑👑👑YA HUSSAIN YA ABBAS👑👑✨✨👑👑👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫💫👑💫💫👑💫💫👑👑💫👑💫💫👑💫👑💫👑💫👑👑❤️👑❤️❤️👑💫👑💫👑💫👑❤️👑❤️👑⭐👑⭐👑❤️👑❤️👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫💫👑💫👑💫💫👑💫👑💫👑💫💫👑💫👑💫👑💫💫👑💫👑💫👑💫👑💫💫👑💫💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑💫👑YA HUSSAIN YA ABBAS YA QASIM YA ALI ASGHAR YA ALI AKBAR👑💫💫✨👑✨✨👑✨👑🌟👑👑✨👑✨👑🌟👑👑🌟👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨✨👑✨✨👑🌟👑🌟👑🌟👑👑🌟👑✨👑✨👑✨👑✨👑🌟👑🌟👑🌟👑👑🌟👑🌟👑✨✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨👑✨✨👑

  • @dr.shivanshchandrasharma1730
    @dr.shivanshchandrasharma1730 2 ปีที่แล้ว +1

    Alam ka juloos h kya ??

    • @jaipurvisionvlogjvv
      @jaipurvisionvlogjvv  2 ปีที่แล้ว

      Nahi Yeh to Sirf imam bado me matam kar rahe hai

    • @dr.shivanshchandrasharma1730
      @dr.shivanshchandrasharma1730 2 ปีที่แล้ว +1

      No Alam
      No taziya
      No katl ki raat k din badi chaupad kuch ni hoga
      Teesra saal h yeh abhki baar

    • @dr.shivanshchandrasharma1730
      @dr.shivanshchandrasharma1730 2 ปีที่แล้ว

      Aap videos bhejna matam ki
      Bagru valo ka rasta n all sabh ki
      Tavyafo ka mohalla sabh ki

    • @jaipurvisionvlogjvv
      @jaipurvisionvlogjvv  2 ปีที่แล้ว

      Koi baat nahi Yaar is Waqt halat hi esey hai to koi kya kar sakta hai

    • @dr.shivanshchandrasharma1730
      @dr.shivanshchandrasharma1730 2 ปีที่แล้ว

      @@jaipurvisionvlogjvv yeh tho h aap kaha rhte ho jaipur m

  • @mr.mahid_khan3links..800
    @mr.mahid_khan3links..800 2 ปีที่แล้ว +1

    अपना मोहल्ला🙌

    • @jaipurvisionvlogjvv
      @jaipurvisionvlogjvv  2 ปีที่แล้ว +1

      Ha bhai

    • @GkTinker-rj9hl
      @GkTinker-rj9hl 6 วันที่ผ่านมา

      ​@@jaipurvisionvlogjvvमुहर्रम, विशेष रूप से दसवें दिन जिसे अशूरा कहा जाता है, मुख्य रूप से इस्लाम में शोक का समय माना जाता है, खासकर शिया मुसलमानों के लिए। यह 680 ईस्वी में करबला की लड़ाई में पैगंबर मुहम्मद के पोते हुसैन इब्न अली की शहादत की याद दिलाता है। शिया मुसलमानों के लिए, यह दुख और हुसैन और उनके साथियों द्वारा की गई कुर्बानियों पर विचार करने का समय है।
      सुन्नी मुसलमान भी अशूरा मनाते हैं, लेकिन उनके तरीके और महत्व अलग हो सकते हैं। कुछ के लिए, यह उपवास का दिन और मूसा और इस्राएलियों की फिरौन की गुलामी से मुक्ति की याद का दिन होता है।
      कुल मिलाकर, मुहर्रम को खुशी का त्योहार नहीं, बल्कि शोक और याद का समय माना जाता है।
      क्या इसमें बेंड बजाने चाहिए
      मुहर्रम के दौरान बैंड बजाना या धूमधाम से जश्न मनाना शिया मुस्लिम परंपराओं के अनुसार उपयुक्त नहीं माना जाता। मुहर्रम, विशेषकर अशूरा का दिन, शोक और गम का समय होता है, जब लोग हुसैन इब्न अली और उनके साथियों की शहादत को याद करते हैं। इस दौरान लोग मातम मनाते हैं, जुलूस निकालते हैं, और मर्सिया और नोहा पढ़ते हैं।
      हालांकि, कुछ क्षेत्रों में और विभिन्न समुदायों में प्रथाओं में अंतर हो सकता है, लेकिन सामान्य रूप से मुहर्रम को एक शोकपूर्ण समय के रूप में ही मनाया जाता है। इसलिए, इस समय बैंड बजाना या किसी प्रकार का उत्सव मनाना सही नहीं माना जाता।
      क्या इस्लाम में मोहरम पर बेंड बजाना सही हैं
      इस्लाम में मुहर्रम, विशेष रूप से अशूरा का दिन, हज़रत हुसैन इब्न अली और उनके साथियों की शहादत की याद में शोक और मातम का समय है। इस्लामी परंपराओं, विशेषकर शिया मुस्लिम परंपराओं के अनुसार, इस समय के दौरान बैंड बजाना या किसी प्रकार का उत्सव मनाना उचित नहीं माना जाता।
      मुहर्रम के दौरान, लोग हुसैन की शहादत को याद करते हैं, मर्सिया और नोहा पढ़ते हैं, और शोक के जुलूस निकालते हैं। यह समय आत्मनिरीक्षण, प्रार्थना, और शहीदों के बलिदान को याद करने का होता है।
      सुन्नी मुसलमानों के बीच भी मुहर्रम का महत्व है, लेकिन उनके प्रथाओं और तरीकों में कुछ अंतर हो सकता है। फिर भी, मुहर्रम को आमतौर पर शोक और याद का समय माना जाता है।
      इसलिए, इस्लामी दृष्टिकोण से मुहर्रम के दौरान बैंड बजाना या किसी प्रकार का उत्सव मनाना सही नहीं माना जाता।

  • @AsadKhan-xq5wd
    @AsadKhan-xq5wd 2 ปีที่แล้ว +1

    Ab Ki Baar to taziye niklengena Apne Jaipur me

    • @jaipurvisionvlogjvv
      @jaipurvisionvlogjvv  2 ปีที่แล้ว

      Ha yaar ab ki baar ache se video banana hai

    • @GkTinker-rj9hl
      @GkTinker-rj9hl 6 วันที่ผ่านมา

      मुहर्रम, विशेष रूप से दसवें दिन जिसे अशूरा कहा जाता है, मुख्य रूप से इस्लाम में शोक का समय माना जाता है, खासकर शिया मुसलमानों के लिए। यह 680 ईस्वी में करबला की लड़ाई में पैगंबर मुहम्मद के पोते हुसैन इब्न अली की शहादत की याद दिलाता है। शिया मुसलमानों के लिए, यह दुख और हुसैन और उनके साथियों द्वारा की गई कुर्बानियों पर विचार करने का समय है।
      सुन्नी मुसलमान भी अशूरा मनाते हैं, लेकिन उनके तरीके और महत्व अलग हो सकते हैं। कुछ के लिए, यह उपवास का दिन और मूसा और इस्राएलियों की फिरौन की गुलामी से मुक्ति की याद का दिन होता है।
      कुल मिलाकर, मुहर्रम को खुशी का त्योहार नहीं, बल्कि शोक और याद का समय माना जाता है।
      क्या इसमें बेंड बजाने चाहिए
      मुहर्रम के दौरान बैंड बजाना या धूमधाम से जश्न मनाना शिया मुस्लिम परंपराओं के अनुसार उपयुक्त नहीं माना जाता। मुहर्रम, विशेषकर अशूरा का दिन, शोक और गम का समय होता है, जब लोग हुसैन इब्न अली और उनके साथियों की शहादत को याद करते हैं। इस दौरान लोग मातम मनाते हैं, जुलूस निकालते हैं, और मर्सिया और नोहा पढ़ते हैं।
      हालांकि, कुछ क्षेत्रों में और विभिन्न समुदायों में प्रथाओं में अंतर हो सकता है, लेकिन सामान्य रूप से मुहर्रम को एक शोकपूर्ण समय के रूप में ही मनाया जाता है। इसलिए, इस समय बैंड बजाना या किसी प्रकार का उत्सव मनाना सही नहीं माना जाता।
      क्या इस्लाम में मोहरम पर बेंड बजाना सही हैं
      इस्लाम में मुहर्रम, विशेष रूप से अशूरा का दिन, हज़रत हुसैन इब्न अली और उनके साथियों की शहादत की याद में शोक और मातम का समय है। इस्लामी परंपराओं, विशेषकर शिया मुस्लिम परंपराओं के अनुसार, इस समय के दौरान बैंड बजाना या किसी प्रकार का उत्सव मनाना उचित नहीं माना जाता।
      मुहर्रम के दौरान, लोग हुसैन की शहादत को याद करते हैं, मर्सिया और नोहा पढ़ते हैं, और शोक के जुलूस निकालते हैं। यह समय आत्मनिरीक्षण, प्रार्थना, और शहीदों के बलिदान को याद करने का होता है।
      सुन्नी मुसलमानों के बीच भी मुहर्रम का महत्व है, लेकिन उनके प्रथाओं और तरीकों में कुछ अंतर हो सकता है। फिर भी, मुहर्रम को आमतौर पर शोक और याद का समय माना जाता है।
      इसलिए, इस्लामी दृष्टिकोण से मुहर्रम के दौरान बैंड बजाना या किसी प्रकार का उत्सव मनाना सही नहीं माना जाता।

  • @syedambar.4887
    @syedambar.4887 2 ปีที่แล้ว +2

    Ramganj ka matam bhi dalo

    • @jaipurvisionvlogjvv
      @jaipurvisionvlogjvv  2 ปีที่แล้ว +2

      Ramganj me khi par bhi taziye nahi nikal rahe hai

    • @syedambar.4887
      @syedambar.4887 2 ปีที่แล้ว +1

      @@jaipurvisionvlogjvv Matam to ho raha h

    • @GkTinker-rj9hl
      @GkTinker-rj9hl 6 วันที่ผ่านมา

      ​@@jaipurvisionvlogjvvमुहर्रम, विशेष रूप से दसवें दिन जिसे अशूरा कहा जाता है, मुख्य रूप से इस्लाम में शोक का समय माना जाता है, खासकर शिया मुसलमानों के लिए। यह 680 ईस्वी में करबला की लड़ाई में पैगंबर मुहम्मद के पोते हुसैन इब्न अली की शहादत की याद दिलाता है। शिया मुसलमानों के लिए, यह दुख और हुसैन और उनके साथियों द्वारा की गई कुर्बानियों पर विचार करने का समय है।
      सुन्नी मुसलमान भी अशूरा मनाते हैं, लेकिन उनके तरीके और महत्व अलग हो सकते हैं। कुछ के लिए, यह उपवास का दिन और मूसा और इस्राएलियों की फिरौन की गुलामी से मुक्ति की याद का दिन होता है।
      कुल मिलाकर, मुहर्रम को खुशी का त्योहार नहीं, बल्कि शोक और याद का समय माना जाता है।
      क्या इसमें बेंड बजाने चाहिए
      मुहर्रम के दौरान बैंड बजाना या धूमधाम से जश्न मनाना शिया मुस्लिम परंपराओं के अनुसार उपयुक्त नहीं माना जाता। मुहर्रम, विशेषकर अशूरा का दिन, शोक और गम का समय होता है, जब लोग हुसैन इब्न अली और उनके साथियों की शहादत को याद करते हैं। इस दौरान लोग मातम मनाते हैं, जुलूस निकालते हैं, और मर्सिया और नोहा पढ़ते हैं।
      हालांकि, कुछ क्षेत्रों में और विभिन्न समुदायों में प्रथाओं में अंतर हो सकता है, लेकिन सामान्य रूप से मुहर्रम को एक शोकपूर्ण समय के रूप में ही मनाया जाता है। इसलिए, इस समय बैंड बजाना या किसी प्रकार का उत्सव मनाना सही नहीं माना जाता।
      क्या इस्लाम में मोहरम पर बेंड बजाना सही हैं
      इस्लाम में मुहर्रम, विशेष रूप से अशूरा का दिन, हज़रत हुसैन इब्न अली और उनके साथियों की शहादत की याद में शोक और मातम का समय है। इस्लामी परंपराओं, विशेषकर शिया मुस्लिम परंपराओं के अनुसार, इस समय के दौरान बैंड बजाना या किसी प्रकार का उत्सव मनाना उचित नहीं माना जाता।
      मुहर्रम के दौरान, लोग हुसैन की शहादत को याद करते हैं, मर्सिया और नोहा पढ़ते हैं, और शोक के जुलूस निकालते हैं। यह समय आत्मनिरीक्षण, प्रार्थना, और शहीदों के बलिदान को याद करने का होता है।
      सुन्नी मुसलमानों के बीच भी मुहर्रम का महत्व है, लेकिन उनके प्रथाओं और तरीकों में कुछ अंतर हो सकता है। फिर भी, मुहर्रम को आमतौर पर शोक और याद का समय माना जाता है।
      इसलिए, इस्लामी दृष्टिकोण से मुहर्रम के दौरान बैंड बजाना या किसी प्रकार का उत्सव मनाना सही नहीं माना जाता।

  • @dr.shivanshchandrasharma1730
    @dr.shivanshchandrasharma1730 2 ปีที่แล้ว

    Ohh taze niklnge kya

    • @jaipurvisionvlogjvv
      @jaipurvisionvlogjvv  2 ปีที่แล้ว

      Nahi

    • @GkTinker-rj9hl
      @GkTinker-rj9hl 6 วันที่ผ่านมา

      ​@@jaipurvisionvlogjvvमुहर्रम, विशेष रूप से दसवें दिन जिसे अशूरा कहा जाता है, मुख्य रूप से इस्लाम में शोक का समय माना जाता है, खासकर शिया मुसलमानों के लिए। यह 680 ईस्वी में करबला की लड़ाई में पैगंबर मुहम्मद के पोते हुसैन इब्न अली की शहादत की याद दिलाता है। शिया मुसलमानों के लिए, यह दुख और हुसैन और उनके साथियों द्वारा की गई कुर्बानियों पर विचार करने का समय है।
      सुन्नी मुसलमान भी अशूरा मनाते हैं, लेकिन उनके तरीके और महत्व अलग हो सकते हैं। कुछ के लिए, यह उपवास का दिन और मूसा और इस्राएलियों की फिरौन की गुलामी से मुक्ति की याद का दिन होता है।
      कुल मिलाकर, मुहर्रम को खुशी का त्योहार नहीं, बल्कि शोक और याद का समय माना जाता है।
      क्या इसमें बेंड बजाने चाहिए
      मुहर्रम के दौरान बैंड बजाना या धूमधाम से जश्न मनाना शिया मुस्लिम परंपराओं के अनुसार उपयुक्त नहीं माना जाता। मुहर्रम, विशेषकर अशूरा का दिन, शोक और गम का समय होता है, जब लोग हुसैन इब्न अली और उनके साथियों की शहादत को याद करते हैं। इस दौरान लोग मातम मनाते हैं, जुलूस निकालते हैं, और मर्सिया और नोहा पढ़ते हैं।
      हालांकि, कुछ क्षेत्रों में और विभिन्न समुदायों में प्रथाओं में अंतर हो सकता है, लेकिन सामान्य रूप से मुहर्रम को एक शोकपूर्ण समय के रूप में ही मनाया जाता है। इसलिए, इस समय बैंड बजाना या किसी प्रकार का उत्सव मनाना सही नहीं माना जाता।
      क्या इस्लाम में मोहरम पर बेंड बजाना सही हैं
      इस्लाम में मुहर्रम, विशेष रूप से अशूरा का दिन, हज़रत हुसैन इब्न अली और उनके साथियों की शहादत की याद में शोक और मातम का समय है। इस्लामी परंपराओं, विशेषकर शिया मुस्लिम परंपराओं के अनुसार, इस समय के दौरान बैंड बजाना या किसी प्रकार का उत्सव मनाना उचित नहीं माना जाता।
      मुहर्रम के दौरान, लोग हुसैन की शहादत को याद करते हैं, मर्सिया और नोहा पढ़ते हैं, और शोक के जुलूस निकालते हैं। यह समय आत्मनिरीक्षण, प्रार्थना, और शहीदों के बलिदान को याद करने का होता है।
      सुन्नी मुसलमानों के बीच भी मुहर्रम का महत्व है, लेकिन उनके प्रथाओं और तरीकों में कुछ अंतर हो सकता है। फिर भी, मुहर्रम को आमतौर पर शोक और याद का समय माना जाता है।
      इसलिए, इस्लामी दृष्टिकोण से मुहर्रम के दौरान बैंड बजाना या किसी प्रकार का उत्सव मनाना सही नहीं माना जाता।