Famous Powerful Gayatri Mantra 108 Times | Om Bhur Bhuva Swaha | गायत्री मंत्र | ओम भूर भुवा स्वाहा

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  • เผยแพร่เมื่อ 14 พ.ย. 2024
  • #ombhurbhuvaswaha #MorningBhajan #Mantra
    फेमस पावरफुल गायत्री मंत्र १०८ टाइम्स | गायत्री मंत्र | ओम भूर भुवा स्वाहा
    'गायत्री' एक छन्द भी है जो ऋग्वेद के सात प्रसिद्ध छंदों में एक है। इन सात छंदों के नाम हैं- गायत्री, उष्णिक्, अनुष्टुप्, बृहती, विराट, त्रिष्टुप् और जगती। गायत्री छन्द में आठ-आठ अक्षरों के तीन चरण होते हैं। ऋग्वेद के मंत्रों में त्रिष्टुप् को छोड़कर सबसे अधिक संख्या गायत्री छंदों की है। गायत्री के तीन पद होते हैं (त्रिपदा वै गायत्री)। अतएव जब छंद या वाक के रूप में सृष्टि के प्रतीक की कल्पना की जाने लगी तब इस विश्व को त्रिपदा गायत्री का स्वरूप माना गया। जब गायत्री के रूप में जीवन की प्रतीकात्मक व्याख्या होने लगी तब गायत्री छंद की बढ़ती हुई महिता के अनुरूप विशेष मंत्र की रचना हुई, जो इस प्रकार है:
    ॐ भूर् भुवः सुवः ।
    तत्सवितुर्वरेण्यं
    भर्गो॑ देवस्यधीमहि ।
    धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
    मंत्र के प्रत्येक शब्द की व्याख्या
    गायत्री मंत्र के पहले नौ शब्द प्रभु के गुणों की व्याख्या करते हैं...
    ॐ = प्रणव
    भूर = मनुष्य को प्राण प्रदाण करने वाला
    भुवः = दुख़ों का नाश करने वाला
    स्वः = सुख़ प्रदाण करने वाला
    तत = वह, सवितुर = सूर्य की भांति उज्जवल
    वरेण्यं = सबसे उत्तम
    भर्गो = कर्मों का उद्धार करने वाला
    देवस्य = प्रभु
    धीमहि = आत्म चिंतन के योग्य (ध्यान)
    धियो = बुद्धि, यो = जो, नः = हमारी,
    प्रचोदयात् = हमें शक्ति दें (प्रार्थना)
    हिन्दी में भावार्थ
    उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।
    मंत्र जप के लाभ
    गायत्री मंत्र का नियमित रुप से सात बार जप करने से व्यक्ति के आसपास नकारात्मक शक्तियाँ बिलकुल नहीं आती।
    जप से कई प्रकार के लाभ होते हैं, व्यक्ति का तेज बढ़ता है और मानसिक चिंताओं से मुक्ति मिलती है।[1] बौद्धिक क्षमता और मेधाशक्ति यानी स्मरणशक्ति बढ़ती है।
    गायत्री मंत्र में चौबीस अक्षर होते हैं, यह 24 अक्षर चौबीस शक्तियों-सिद्धियों के प्रतीक हैं।
    इसी कारण ऋषियों ने गायत्री मंत्र को सभी प्रकार की मनोकामना को पूर्ण करने वाला बताया है।
    यह मंत्र सर्वप्रथम ऋग्वेद में उद्धृत हुआ है। इसके ऋषि विश्वामित्र हैं और देवता सविता हैं। वैसे तो यह मंत्र विश्वामित्र के इस सूक्त के १८ मंत्रों में केवल एक है, किंतु अर्थ की दृष्टि से इसकी महिमा का अनुभव आरंभ में ही ऋषियों ने कर लिया था और संपूर्ण ऋग्वेद के १० सहस्र मंत्रों में इस मंत्र के अर्थ की गंभीर व्यंजना सबसे अधिक की गई। इस मंत्र में २४ अक्षर हैं। उनमें आठ आठ अक्षरों के तीन चरण हैं। किंतु ब्राह्मण ग्रंथों में और कालांतर के समस्त साहित्य में इन अक्षरों से पहले तीन व्याहृतियाँ और उनसे पूर्व प्रणव या ओंकार को जोड़कर मंत्र का पूरा स्वरूप इस प्रकार स्थिर हुआ:
    (१) ॐ
    (२) भूर्भव: स्व:
    (३) तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
    मंत्र के इस रूप को मनु ने सप्रणवा, सव्याहृतिका गायत्री कहा है और जप में इसी का विधान किया है।
    Om Bhur Bhuvaḥ Swaḥ
    Tat-savitur Vareñyaṃ
    Bhargo Devasya Dhīmahi
    Dhiyo Yonaḥ Prachodayāt
    Word for Word Meaning of the Gayatri Mantra
    The Gayatri Mantra is unique in that it embodies the three concepts of stotra (singing the praise and glory of God), dhyaana (meditation) and praarthana (prayer).
    Aum = Brahma ;
    bhoor = embodiment of vital spiritual energy(pran) ;
    bhuwah = destroyer of sufferings ;
    swaha = embodiment of happiness ;
    tat = that ;
    savitur = bright like sun ;
    varenyam = best choicest ;
    bhargo = destroyer of sins ;
    devasya = divine ;
    these first nine words (stotra describe the glory of God
    dheemahi = may
    imbibe ; pertains to meditation
    dhiyo = intellect ;
    yo = who ;
    naha = our ;
    prachodayat = may inspire!
    “dhiyo yo na prachodayat” is a prayer to God
    The spiritual nature of music cannot be defined by religion, culture or genre
    Music and spiritual life go together; one complements the other
    Music is the mediator between the spiritual and the sensual life.
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