कुमारिया खेड़ा की गवरी 2024!! देवथडी लाईव!!लालूलवारिया का खेल भाग =001

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  • เผยแพร่เมื่อ 19 ก.ย. 2024
  • #देवथड़ी लाइव
    #कुमारिया खेड़ा की गवरी
    छोटा मीणा
    #तिलक वाली गवरी
    #गवरी दोवड री
    #सुपरहिट गवरी 2024
    #तिलक वाली गवरी
    मेवाड़ का प्रसिद्द गवरी मेवाड़
    #दोवड़ री गवरी
    मोर चना री गवरी
    #किशन पनोतीया
    #kishan panotiya
    ‘गवरी नृत्य’ का मंचन किया जाता है. बताया जाता है कि इस जाति के प्रत्येक पुरुष को जीवन में एक बार गवरी में भाग लेना जरूरी होता है. इसमें शिव और पार्वती से जुड़ी कथाओं के बारे में बताया जाता है. दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी बाहुल्य मेवाड़ अंचल की रंग रंगीली संस्कृति सदैव से आकर्षण का केंद्र रही है. यहां की लोक कलाओं और सजीलें लोकनृत्य देश के अलावा सात समंदर पार से आने वाले सैलानियों को भी सम्मोहित करती हैं. लोक संस्कृति के इन्हीं नायाब अंदाजों में से एक है, आदिवासी भील समाज द्वारा किया जाने वाला गवरी नृत्य. जिसकी धूम इन दिनों मेवाड़ के लोगों को अपना दीवाना बना रही है.
    मेवाड़ में कब से शुरू हुआ गवरी डांस
    रक्षाबंधन के दूसरे दिन सें शुरु होने वाले आदिवासी समाज के लोकनृत्य गवरी इन दिनों पूरे शबाब पर दिखाई देता है. भगवान शिव और पार्वती के खेल के रूप में पूरे सवा महीने किए जाने वाले गवरी नृत्य में आदिवासी लोक कलाओं और लोकानुरंजन की सौंधी महक बरबस ही लोगों के आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है. दरअसल आदिवासी भील समाज में पार्वती को बहन-बेटी की तरह मानते हैं और समाज में मान्यता हैं कि भादो महीने में भगवान शिव के साथ माता पार्वती धरती पर भ्रमण के लिए आती हैं. ऐसे में गवरी नृत्य के विविध नाट्यों के द्वारा आदिवासी भील समाज के लोग उन्हें खुश करने के लिए इस नृत्य को करते है.
    आपके शहर से (उदयपुर)
    राजस्थान
    उदयपुर
    ‘गवरी नृत्य’ के आयोजन के पीछे वजह
    गवरी का आयोजन उन इलाकों में होता है, जहां गवरी कलाकारों की बहन- बेटीयां ब्याही जाती हैं. पूरे सवा महीने तक चलने वाले गवरी के इस आयोजन में कलाकार कड़े नियम और व्रतों का पालन करतें है. जिसके तहत ये सभी कलाकार पूरे सवा महीने तक ना तो अपने घर जाते हैं और ना ही हरी सब्जियों का सेवन करते हैं. यही नहीं इस दौरान शराब सेवन और अन्य नशीली वस्तुओं का उपयोग पूरी तरह निषेध रहता है
    #गवरी​
    #तिलक​
    #मेवाड़​ का प्रसिद्द गवरी नत्य
    ‘गवरी नृत्य’
    #तिलक #
    #maraj ka comedi khe
    ‘गवरी नृत्य’ का मंचन किया जाता है. बताया जाता है कि इस जाति के प्रत्येक पुरुष को जीवन में एक बार गवरी में भाग लेना जरूरी होता है. इसमें शिव और पार्वती से जुड़ी कथाओं के बारे में बताया जाता है. दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी बाहुल्य मेवाड़ अंचल की रंग रंगीली संस्कृति सदैव से आकर्षण का केंद्र रही है. यहां की लोक कलाओं और सजीलें लोकनृत्य देश के अलावा सात समंदर पार से आने वाले सैलानियों को भी सम्मोहित करती हैं. लोक संस्कृति के इन्हीं नायाब अंदाजों में से एक है, आदिवासी भील समाज द्वारा किया जाने वाला गवरी नृत्य. जिसकी धूम इन दिनों मेवाड़ के लोगों को अपना दीवाना बना रही है.
    मेवाड़ में कब से शुरू हुआ गवरी डांस
    रक्षाबंधन के दूसरे दिन सें शुरु होने वाले आदिवासी समाज के लोकनृत्य गवरी इन दिनों पूरे शबाब पर दिखाई देता है. भगवान शिव और पार्वती के खेल के रूप में पूरे सवा महीने किए जाने वाले गवरी नृत्य में आदिवासी लोक कलाओं और लोकानुरंजन की सौंधी महक बरबस ही लोगों के आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है. दरअसल आदिवासी भील समाज में पार्वती को बहन-बेटी की तरह मानते हैं और समाज में मान्यता हैं कि भादो महीने में भगवान शिव के साथ माता पार्वती धरती पर भ्रमण के लिए आती हैं. ऐसे में गवरी नृत्य के विविध नाट्यों के द्वारा आदिवासी भील समाज के लोग उन्हें खुश करने के लिए इस नृत्य को करते है.
    आपके शहर से (उदयपुर)
    राजस्थान
    उदयपुर
    ‘गवरी नृत्य’ के आयोजन के पीछे वजह
    गवरी का आयोजन उन इलाकों में होता है, जहां गवरी कलाकारों की बहन- बेटीयां ब्याही जाती हैं. पूरे सवा महीने तक चलने वाले गवरी के इस आयोजन में कलाकार कड़े नियम और व्रतों का पालन करतें है. जिसके तहत ये सभी कलाकार पूरे सवा महीने तक ना तो अपने घर जाते हैं और ना ही हरी सब्जियों का सेवन करते हैं. यही नहीं इस दौरान शराब सेवन और अन्य नशीली वस्तुओं का उपयोग पूरी तरह निषेध
    रहता है
    #गवरी​
    #तिलक​
    #मेवाड़​ का प्रसिद्द गवरी नत्य
    ‘गवरी नृत्य’
    #तिलक #
    #maraj ka comedi khe

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