RSS Shakha With Animation | संघ शाखा लगाने की पद्धति

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  • เผยแพร่เมื่อ 10 ก.ย. 2024
  • शाखा लगाने की आज्ञाएँ (कुल - 18)
    -0-0 (सूचनात्मक सीटी)
    संघ दक्ष
    आरम्
    अग्रेसर
    अग्रेसर सम्यक्
    आरम्
    संघ सम्पत्
    संघ दक्ष
    संघ सम्यक्
    अग्रेसर अर्धवृत्
    संघ आरम्
    संघ दक्ष (ध्वज लगाना)
    ध्वज प्रणाम १-२-३
    संख्या
    आरम्
    संघ दक्ष
    आरम् (संख्या देकर आना )
    संघ दक्ष
    स्वस्थान
    संघ में संगठनात्मक रूप से सबसे ऊपर सरसंघचालक का स्थान होता है जो पूरे संघ का दिशा-निर्देशन करते हैं। सरसंघचालक की नियुक्ति मनोनयन द्वारा होती है। प्रत्येक सरसंघचालक अपने उत्तराधिकारी की घोषणा करता है। वर्तमान में संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत हैं। संघ के ज्यादातर कार्यों का निष्पादन शाखा के माध्यम से ही होता है, जिसमें सार्वजनिक स्थानों पर सुबह या शाम के समय एक घंटे के लिये स्वयंसेवकों का परस्पर मिलन होता है। वर्तमान में पूरे भारत में संघ की लगभग पचपन हजार से ज्यादा शाखा लगती हैं। वस्तुत: शाखा ही तो संघ की बुनियाद है जिसके ऊपर आज यह इतना विशाल संगठन खड़ा हुआ है। शाखा की सामान्य गतिविधियों में खेल, योग, वंदना और भारत एवं विश्व के सांस्कृतिक पहलुओं पर बौद्धिक चर्चा-परिचर्चा शामिल है।
    शाखा किसी मैदान या खुली जगह पर एक घंटे की लगती है। शाखा में व्यायाम, खेल, सूर्य नमस्कार, समता (परेड), गीत और प्रार्थना होती है। सामान्यतः शाखा प्रतिदिन एक घंटे की ही लगती है। शाखाएँ निम्न प्रकार की होती हैं:
    प्रभात शाखा: सुबह लगने वाली शाखा को "प्रभात शाखा" कहते है।
    सायं शाखा: शाम को लगने वाली शाखा को "सायं शाखा" कहते है।
    रात्रि शाखा: रात्रि को लगने वाली शाखा को "रात्रि शाखा" कहते है।
    मिलन: सप्ताह में एक या दो बार लगने वाली शाखा को "मिलन" कहते है।
    संघ-मण्डली: महीने में एक या दो बार लगने वाली शाखा को "संघ-मण्डली" कहते है।
    पूरे भारत में अनुमानित रूप से ५५,००० से ज्यादा शाखा लगती हैं। विश्व के अन्य देशों में भी शाखाओं का कार्य चलता है, पर यह कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम से नहीं चलता। कहीं पर "भारतीय स्वयंसेवक संघ" तो कहीं "हिन्दू स्वयंसेवक संघ" के माध्यम से चलता है।
    शाखा में "कार्यवाह" का पद सबसे बड़ा होता है। उसके बाद शाखाओं का दैनिक कार्य सुचारू रूप से चलने के लिए "मुख्य शिक्षक" का पद होता है। शाखा में बौद्धिक व शारीरिक क्रियाओं के साथ स्वयंसेवकों का पूर्ण विकास किया जाता है।
    जो भी सदस्य शाखा में स्वयं की इच्छा से आता है, वह "स्वयंसेवक" कहलाता हैं।

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