बहुत ही मार्मिक कहानी...लजीज खाने पीने के लिए तो वो जुटा ही लेते है माधव और उसका पिता लेकिन बधिया को बचाने के लिए भी मेहनत कर सकते थे जिससे उसकी दवा और खुराक तो निकल ही आती.. मुंशी प्रेमचंद का निम्नवर्ग लोगों की दयनीय स्थिति पर ये एक कटाक्ष भी है... Nice story thanks to sharing👍👌😊
बहुत ही मार्मिक कहानी...लजीज खाने पीने के लिए तो वो जुटा ही लेते है माधव और उसका पिता लेकिन बधिया को बचाने के लिए भी मेहनत कर सकते थे जिससे उसकी दवा और खुराक तो निकल ही आती.. मुंशी प्रेमचंद का निम्नवर्ग लोगों की दयनीय स्थिति पर ये एक कटाक्ष भी है... Nice story thanks to sharing👍👌😊
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ऐसे आलू गर्म राख में भूनकर गाँव में भी खाते हैं बहुत स्वाद लगते हैं 😀😋👌👌👌
हां हमने भी खाए हैं बचपन में।
अशोक जी अगर प्रेमचन्द कृति निर्मला होगी तो वो भी जरूर upload करना ... 😊thanku
निर्मला उपन्यास है किंतु उस पर कोई धारावाहिक नहीं बना हुआ है शायद
@@TheHimalayanLight हाँ sorry😊 उपन्यास है .. धारावाहिक तो बना है आता था t.v पर. मिल गई 18 episode है😊
Good morning have a nice day 🌞
Good morning bhai.🌄
🙏🏻🌄🙏🏻