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  • เผยแพร่เมื่อ 7 ก.ย. 2024
  • Nibandh bodh P-322
    सभाज एवं संस्कृति किसी भी राष्ट्र की सुसभ्यता और समृद्धि के वास्तविक सूचक होते हैं। समाज यदि खुशहाल है-उसमें एकता और अखण्डता की भावना विद्यमान है तथा संस्कृति यदि सुसभ्य है-उसमें शांति तथा अहिंसा की प्रधानता के साथ सदाचरण और वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना विद्यमान है, तो ऐसा माना जाता है कि यह राष्ट्र विकसित है और सुसभ्य है। भारत में सभ्यता एवं संस्कृति प्राचीनकाल से ही समृद्ध रही है। हमारी सभ्यता एवं संस्कृति की नींव इतनी मजबूत थी कि प्राचीन/काल से लेकर आधुनिक काल तक अनेकों विदेशी सभ्यता, एवं संस्कृति के सम्पर्क में आने तथा उनके बलप्रयोग के बावजूद हमारा महल ढह नहीं सका। हां, लगातार आक्रमणों तथा जबरदस्त शोषण और अशिक्षा के कारण इस महल में कुछ दरारें अवश्य पड़ गईं। प्राचीनकाल में शक, हूण, यवन आदि आए, मध्यकाल में तुर्क और मुगल आए तथा आधुनिक काल में फ्रांसीसी, डेन, पुर्तगाली और अंग्रेज आए-हम भारतीयों ने 'वसुधैव कुटुम्बकम्' और अतिथि देवो भव' की मान्यता के आधार पर सबों को अपने यहां स्थान दिया और उनके साथ घुल-मिल गए। मध्यकाल तक आने वाले सभी विदेशी भारत में आने के बाद यहीं के होकर रह गए (कुछेक अपवादों को छोड़कर), किंतु आधुनिक काल में पुर्तगालियों को छोड़कर शेष सभी विदेशी जातियों ने भारत को लूटने की ही कोशिश अधिक की। अंग्रेजों ने तो अपने लगभग दो सदियों के शासनकाल में भारतीय समाज को 'फूट डालो और राज करो' का नीति के आधार पर तोड़-फोड़कर ही रख दिया। अपनी संस्कृति की सर्वाधिक प्रमुख विशेषता / शांति एवं अहिंसा को आधार बनाकर ही हमने स्वतंत्रता भी प्राप्त की।
    भारतीय संस्कृति को रूढ़िवादी कहना अज्ञानता का ही सूचक है, क्योंकि हमने संपूर्ण विश्व के साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान को हमेशा बढ़ावा दिया है। हां, हमारे समाज में रूढ़िवादिता और भ्रष्टाचार का बोलबाला है, इस तथ्य से इनकार भी नहीं किया जा सकता है। प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक के भारतीय समाज पर यदि गहरी दृष्टि डाली जाए, तो यह स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है कि कुछेक अपवादों को छोड़कर हमेशा समाज पर पुरुषों का दबदबा रहा है और महिलाओं को हीन दृष्टि से देखा जाता रहा है। यद्यपि वर्तमान में भारत में महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के समकक्ष स्थापित होने की कोशिश कर रही हैं, तथापि ऐसा केवल शहरी क्षेत्रों में ही है, ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं। हमारे समाज में जातीयता, धार्मिकता आदि समस्याएं तो हैं ही, दहेज, बलात्कार, हिंसा आदि जैसी समस्याएं भी विकराल रूप में उपस्थित होती जा रही हैं। रूढ़िवादिता और भ्रष्टाचार हमारे समाज के लिए पूर्ण सूर्यग्रहण की भांति हैं और इसकी समाप्ति के बिना प्रकाश अपनी चमक से भारत को पूर्णता के साथ प्रकाशित नहीं कर सकता।

ความคิดเห็น • 1

  • @allinone7232
    @allinone7232 2 หลายเดือนก่อน +2

    English ke videos daliye sir