Sheen Kaaf Nizam Guftgu With Dr. Nisar Rahi & Ishraqul Mahir (Jodhpur-13 07 2024)
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- เผยแพร่เมื่อ 11 ต.ค. 2024
- नफ़रत करने का तो कोई सबब होता है, मोहब्बत का कोई सबब नहीं होता - निज़ाम
श्रोताओं से खचाखच भरे और कैमरों की चकाचौंध के बीच डॉ मदन सावित्री डागा साहित्य भवन में शनिवार की शाम शायर शीन काफ़ निज़ाम सूर्यनगरी की साहित्यिक-बिरादरी से रूबरू हुए । सृजना द्वारा इंटरव्यू की शैली में आयोजित "यात्रा अनवरत- 2" कार्यक्रम जोधपुर की साहित्यिक दुनिया के लिए भी एक नया अनुभव था ।
निज़ाम ने भी इस नए कलेवर में बेतकल्लुफ़ी से अपनी बातें करते हुए कहा कि संवेदना के बिना शायरी कहना सम्भव नहीं होता और जो बात शायरी कहती है, वह फ़लसफ़ा नहीं कहता । पूरा साहित्य दरअसल छुपाने का आर्ट है । जिस साहित्य को छुपाने का आर्ट नहीं आता, उसे बताने का आर्ट भी नहीं आता ।
उन्होंने कहा कि दुनिया के तमाम पदार्थों की अपनी सृजनशक्ति होती है । ईश्वर इस सृजन में "कैटेलिस्ट" का कार्य करता है । यह समस्त एकांत का सृजन है । अतः यह एकांत भी अकेला नहीं है । साहित्य हमें अकेले होने का हुनर सिखाता है ।
निज़ाम ने बताया कि एक शायर अपने समय, कलेवर और दर्शन को रचता है । यह कलेवर उसे माइथोलॉजी से मिलता है । मसलन भारत में पेड़ नहीं काटने का कारण है कि पेड़ में भी जीव होता है । इसलिए पेड़ काटना जीव हत्या है । जबकि विदेशों में पेड़ नहीं काटना इकोलॉजी के कारण है । इसलिए हकीकत यह है कि माइथोलॉजी के बिना साहित्य का कोई वज़ूद ही नहीं है । ऐसी शायरी करना खुद को पहचानना है और ग़ज़ल खुद को गुनगुनाना है । उन्होंने उदाहरण देते हुए सीमाब अकबराबादी का शेर पेश किया -
कहानी मेरी रूदाद-ए-जहां मालूम होती है
जो सुनता है उसीकी दास्तां मालूम होती है ।
प्रोग्राम को डॉ निसार राही और इश्राकुल इस्लाम माहिर ने अपने सवालों से परवान चढ़ाया ।
डॉ निसार - आप किस रचनाकार से प्रभावित हो कर साहित्य के इस मुकाम पर पहुँचे ?
निज़ाम - देखिए दूसरों के बारे में बात करने में जो लुत्फ़ है, वह खुद पर बात करने में नहीं । बहरहाल मीर तकी मीर ऐसे शायर है जिन्हें पढ़ कर मैं लगातार सीखता हूँ ।
माहिर - क्या साहित्य की कोई मंज़िल होती है ?
निज़ाम - साहित्य तो खुद ही एक मंज़िल है । अगर और कोई मंज़िल है तो फिर वह लिखा जाने वाला साहित्य नहीं है । साहित्य में अनवरत होना महत्त्वपूर्ण है । लगातार रियाज़ के बिना बड़े गुलाम अली खां नहीं बना जा सकता । साहित्य भी बहुत सब्र मांगता है । बेहतर सुने और बेहतर पढ़े बिना लोगों द्वारा जो खो दिया जाता है उसका उन्हें इल्म तक नहीं होता । यह आपको तय करना है कि आपको साहित्य को जीवन बनाना है या जीवन को ही साहित्य बनाना है ।
डॉ निसार - आप साहित्य की कई विधाओं में लिखते हैं । इतनी विधाओं को बखूबी निभाने का क्या रहस्य है ?
निज़ाम - दरअसल साहित्य लिख कर हम किसी पर अहसान नहीं करते । और फिर किसी भी विधा में अच्छा साहित्य लिखते हैं तो उस अच्छे का ईनाम भी तो पाते हैं ।
माहिर - हमारे शास्त्रीय साहित्य के समय आलोचना नहीं थी । आज साहित्य का आलोचना के साथ क्या संबंध है ?
निज़ाम - रचना रहस्य बुनती है । आलोचना रहस्य को खोलती है । भाषा वस्तुतः छुपाने का काम करती है । यह छुपाना ही हकीकत में बताना है । 1857 से 1947 के बीच उर्दू में मर्सिये ज़्यादा लिखे गए । यह सांकेतिक है । उससे पहले तुलसीदास ने भी ऐसे ही सांकेतिक विरोध में 'रामचरित मानस' लिखा था ।
डॉ निसार - तनक़ीद (आलोचना) तख़लीक़ (सृजन) को कैसे प्रभावित करती है ?
निज़ाम - माफ़ करें किसी आलोचना ने हमें साहित्य से प्यार करना नहीं सिखाया है । आलोचना ऐसी होनी चाहिए जो हममें साहित्य पढ़ने की ललक जगाए । तनक़ीद ने हमें मुश्किल चीजों को समझने का हुनर तो दिया पर आसान को समझने का हुनर नहीं दिया । वैसे हर व्याख्या पौराणिक व्याख्या में कुछ और जोड़ती है ।
माहिर - अलग-अलग भाषाओं के आपके छः वरिष्ठों ने अपनी किताबें आपको समर्पित की हैं । विभिन्न भाषाओं के बीच यह कैसा सम्बन्ध है ?
निज़ाम - यह उन वरिष्ठों की मुहब्बत और उनका बड़प्पन है । वैसे हिंदी से उर्दू का सम्बंध किसी से छुपा नहीं है । पर यह जानना भी बहुत ज़रूरी है कि राजस्थानी का उर्दू से बहुत गहरा संबंध है ।
डॉ निसार - ए आई तकनीक का साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
निज़ाम - यह एक नए दौर की तकनीक है जो बेशक एक चुनौती है । सृजन के सामने ऐसी चुनौतियाँ तो रहेगी ही ।
निज़ाम ने नई पीढ़ी को सीख देते हुए कहा कि नया लेखक पहले निरन्तर पढ़ना सीखे और यह अच्छी तरह जान ले कि सृजन अनवरत संघर्ष है ।
कार्यक्रम में राजेश कल्ला, राजेन्द्र माथुर, हरीदास व्यास आदि ने सवाल भी पेश किए । सृजना अध्यक्ष सुषमा चौहान ने सभी का आभार अभिव्यक्त किया ।
प्रमोद शर्मा
ऑडिओ मेकर जोधपुर
बहुत बधाई आयोजकों को
धन्यवाद जी
Vah vah Nizam saheb Aapne to Kamaal kar Diya, Aap to jodhpur ke Kohinoor hi Hain.
Aisa shandar video to Keval Pramod Ji hee bana sakte hain, kya kamal ki Photography aur ekadam clear audio. Unko bhi bahut bahut dhanyawad 🎉🎉🎉🎉🎉
धन्यवाद जी
Kher-khwab hi jal gaye,
bewajan si - ek nazm se,
apne aapko aag lagakar nikla wo bazm se...
Naap rahe ho jiski beher,
wo keher kaat k aaya hai,
apne hisse ki kushiyan,
wo sheher baat k aaya hai...
nice program
Thanks ji
अच्छी पेशकश। मुबारक बाद
धन्यवाद जी
ऑडियो मेकर की एक अद्भुत प्रस्तुति ।
प्रमोद भाई, बहुत बधाई ।
💐💐
धन्यवाद जी
bahut umda peshkash.
superb video editing
Thanks a lot.
अनुपम प्रस्तुति,अतिउत्तम संवाद ।अशेष मंगल-भाव ।
धन्यवाद जी
एक अर्से से निज़ाम साहब को इत्मीनान से सुनने का अवसर मिला, मन प्रफुल्लित हुआ !
सभी जिज्ञासाओं को निज़ाम साहब ने शांत किया !
कार्यक्रम एतिहासिक था, याद रहेगा !
सुशील एम व्यास
धन्यवाद जी