Kanakdhara Stotra in Hindi || लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए सुनें कनकधारा स्तोत्र हिंदी में

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  • เผยแพร่เมื่อ 10 ก.ย. 2024
  • @poojapathkatha presents Kanakdhara Stotra in Hindi || लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए सुनें कनकधारा स्तोत्र हिंदी में
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    कनकधारा स्तोत्र (हिन्दी अनुवाद)
    जिस प्रकार भ्रमरी अर्ध विकसित पुष्पों के अलंकृत तमाल वृक्ष का आश्रय ग्रहण करती है, उसी प्रकार भगवान् श्री विष्णु के रोमांच से शोभायमान लक्ष्मी की कटाक्ष लीला श्री अंगों पर अनवरत पड़ती रहती है और जिसमें समस्त ऐश्वर्य-धन सम्पत्ति का निवास है । वह समस्त मंगलों की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी की कटाक्ष-लीला' मेरे लिए मंगलदायिनी हो ।
    जिस प्रकार भ्रमरी कमलदल पर मँडराती है अर्थात् बार-बार आती जाती रहती है उसी प्रकार भगवान् मुरारी के मुखमल की ओर मनोहर मुग्ध दृष्टिमाला मुझे अतुल
    श्री ऐश्वर्य प्रदान करे। जो समस्त देवों के स्वामी इन्द्रपद के वैभव का विलास अर्थात् सुखोपभोग प्रदान करने में समर्थ है तथा मुर नामक दैत्य शत्रु भगवान् श्रीहरि को भी अत्यन्त आनन्द प्रदान करने वाली है एवं नीलकमल जिस लक्ष्मी का सहोदर भ्राता है ऐसी लक्ष्मी के अधखुले नेत्रों की दृष्टि किंचित क्षण के लिए मुझ पर थोड़ी अवश्य पड़े।
    जिसकी पुतली एवं भौंहें काम के वशीभूत हो अर्ध विकसित एकटक नयनों को देखने वाले आनन्दकन्द सच्चिदानन्द भगवान् मुकुन्द को अपने सन्निकट पाकर किंचित तिरछी हो जाती है। ऐसे शेषशायी भगवान् विष्णु की अर्द्धांगिनी श्री लक्ष्मी जी के नेत्र हमें प्रभूत धन- सम्पत्ति प्रदान करने वाले हों।
    जिन भगवान् मधुसूदन के कौस्तुभमणि से वशीभूत वक्षस्थल में इन्द्रीलमय हारावली के समान सुशोभित होती है तथा उन भगवान् के भी चित्त में काम अर्थात् स्नेह संचारिणी कमल कुंज निवासिनी लक्ष्मी की कटाक्ष- माला मेरा मंगल करे।
    जिस प्रकार मेघों की घनघोर घटा में बिजली चमकतीहै उसी प्रकार कैटभ दैत्य के शत्रु भी विष्णु भगवान् के काली मेघपंक्ति के समान मनोहर वक्षःस्थल पर आप विद्युत् के समान देदीप्यमान् होती हैं और जो समस्त लोकों की माता, भार्गव पुत्री भगवती श्री लक्ष्मी की पूजनीय मूर्ति मुझे कल्याण प्रदान करें। समुद्र कन्या लक्ष्मी का वह मंदालस, मंथर, अर्धोन्मीलित चंचल दृष्टि के प्रभाव से कामदेव ने मंगलमूर्ति भगवान् मधुसूदन के हृदय में प्राथमिक (मुख्य) स्थान प्राप्त किया था। वही दृष्टि यहाँ मेरे ऊपर पड़े
    भगवान् नारायण की प्रेमिका लक्ष्मी का नेत्ररूपी मेघ, दया रूपी अनुकूल वायु से प्रेरित होकर दुष्कर्म रूपी धाम को दीर्घकाल के लिए परे हटाकर विषादग्रस्त मुझ दीन-दुःखी सदृश्य चातक पर जलधारा की वर्षा करें। विलक्षण मतिमान् मनुष्य जिनके प्रीतिपात्र होकर उनकी कृपा दृष्टि के प्रभाव से स्वर्ग पद को अनायास ही प्राप्त कर लेते हैं, उन्हीं कमलासना कमला लक्ष्मी की वह विकसित कमल गर्भ के सदृश्य कान्तिमती दृष्टि मुझे मनोऽभिलाषित पुष्टि-सन्तत्यादि वृद्धि प्रदान करे। जो भगवती लक्ष्मी वृष्टि-क्रीड़ा के अवसर परवाग्देवता अर्थात् ब्रह्म शक्ति के स्वरूप में विराजमान होती हैं और पालन-क्रीड़ा के समय पर भगवान् गरुड़ध्वज अथवा विष्णु भगवान् सुन्दरी पत्नी लक्ष्मी (वैष्णवी | शक्ति) के स्वरूप में स्थित होती है तथा प्रलय लीला के समय शाकम्भरी (भगवती दुर्गा) अथवा भगवान् शंकर की प्रिय पत्नी पार्वती (रुद्रशक्ति) के रूप में विद्यमान होती है उन त्रिलोक के एकमात्र गुरु भगवान विष्णु की नित्य यौवन प्रेमिका भगवती लक्ष्मी को मेरा नमस्कार है।
    हे लक्ष्मी! शुभ कर्म फलदायक ! श्रुति स्वरूप में आपको प्रणाम है। रमणीय गुणों के समुद्र स्वरूपा रति के रूप में स्थित आपको नमस्कार है । शतपत्र कमल-कुंज में निवास करने वाली शक्ति स्वरूपा रमा को नमस्कार है। कमल के समान मुखवाली लक्ष्मी को नमस्कार है। क्षीर समुद्र में उत्पन्न होने वाली रमा को प्रणाम है । चन्द्रमा और अमृत की सहोदर बहन को नमस्कार है। भगवान नारायण की प्रेयसी लक्ष्मी को नमस्कार है ।
    हे कमलाक्षि! आपके चरणों में की हुई स्तुति
    ऐश्वर्यदायिनी और समस्त इन्द्रियों को आनन्दकारिणी है
    तथा साम्राज्य अर्थात् पूर्णाधिकार देने में सर्वथा समर्थ एवंसम्पूर्ण पापों को नष्ट करने में उद्यत है। माता मुझे आपके चरण कमलों की वन्दना करने का सदा शुभ अवसर प्राप्त होता रहे। जिनके कृपा-कटाक्ष (तिरछी चितवन) के लिए की गई उपासना (आराधना), सेवक (उपासक) के लिए समस्त मनोरथ और सम्पत्ति का विस्तार करती है, उस भगवान् मुरारी की हृदयेश्वरी लक्ष्मी का मैं मन, वचन और काया से भजन करता हूँ ।
    हे भगवती भगवान् हरि की प्रिय पत्नी ! आप कमल- कुंज में निवास करने वाली हैं, आपके चरण में नीला कमल शोभायमान है । आप श्वेत वस्त्र तथा गन्ध माला आदि से सुशोभित हैं । आपकी सुन्दरता अद्वितीय है।
    हे त्रिभुवन की वैभव प्रदायिनी ! आप मेरे ऊपर प्रसन्न होइये। दिग्गजों के द्वारा कनक कुम्भ (सुवर्ण कलश) के मुख से पतित आकाशगंगा के स्वच्छ, मनोहर जल से जिस (भगवान्) के श्री अंग का अभिषेक (स्नान) होता है उस समस्त लोकों के अधीश्वर भगवान् विष्णु पत्नी, क्षीर सागर की पुत्री, जगन्माता भगवान् लक्ष्मी को मैं प्रातःकाल नमस्कार करता हूँ ।
    हे कमलनयन भगवान् विष्णु प्रिया लक्ष्मी ! मैं दीनहीन मनुष्यों में अग्रगण्य हूँ इसलिए आपकी कृपा का स्वभावसिद्ध पात्र हूँ । आप उमड़ती हुई करुणा के बाद की तरल तरंगों के सदृश्य कटाक्षों द्वारा मेरी दिशा में अवलोकन कीजिए।
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