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  • เผยแพร่เมื่อ 1 เม.ย. 2023
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    श्रीभगवान् के विषय में गलत धारणाएँ
    हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
    जय जय श्री राधे कृष्ण
    जैसाकि हमने पहले ही बताया कि आजकल अनेक लोग श्रीभगवान् के अस्तित्त्व को नकार देते हैं। श्रीभगवान् को मानने वाले लोगों में भी अनेक भ्रम हैं।
    श्रीभगवान् के विषय में कुछ भ्रामक विचार निम्नलिखित हैं:
    श्रीभगवान् प्रकाश हैं, श्रीभगवान् शक्ति हैं, श्रीभगवान् शून्य हैं,सब श्रीभगवान् हैं,अनेक श्रीभगवान् हैं
    श्रीभगवान् मृत हैं।
    तो आइए देखें कि वास्तव में श्री भगवान क्या है
    श्रीभगवान् की परिभाषा
    अनेक प्रकार से 'श्रीभगवान्' को परिभाषित किया जा सकता है:
    प्रत्येक वस्तु के स्त्रोत
    प्रत्येक वस्तु का कोई न कोई स्रोत होता है। परन्तु श्रीभगवान् वे हैं, जो प्रत्येक वस्तु के स्रोत हैं। प्रत्येक कारण के कारण हैं और उनका कोई कारण नहीं है। श्रीभगवान् न केवल प्रत्येक वस्तु के स्रोत हैं, अपितु वे उनके पालनकर्ता एवं
    संहारकर्ता भी हैं।
    श्रीभगवान् पूर्ण हैं और उनसे प्रत्येक वस्तु जन्म लेने के बाद भी वे पूर्ववत् पूर्ण बने रहते हैं। वे घटते नहीं हैं।
    श्रीईशोपनिषद् में कहा गया है :
    ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते ।
    पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥ (श्रीईशोपनिषद् मंगलाचरण)
    अनुवाद : श्रीभगवान् पूर्ण हैं और पूर्ण होने के कारण उनसे उत्पन्न होने वाली प्रत्येक वस्तु भी पूर्ण है। पूर्ण से जो कुछ उद्भूत होता है, वह भी पूर्ण होता है। चूँकि श्रीभगवान् पूर्ण हैं, इसलिए इतनी पूर्ण वस्तुएँ उत्पन्न करने के बाद भी वे पूर्ण बने रहते हैं।
    सर्वोच्च नियंत्रक
    श्रीभगवान् प्रत्येक वस्तु को सर्वत्र सर्वदा पूर्ण नियंत्रित करते हैं। वे सर्व ज्ञाता हैं, सर्व शक्तिशाली हैं तथा सर्व व्यापी हैं।
    हम केवल छोटे नियंत्रक हैं।
    सर्वोच्च स्वामी
    प्रत्येक वस्तु श्रीभगवान् से आती है, इसलिए उनकी सम्पत्ति है और पूरी तरह उनके द्वारा नियंत्रित है। हम झूठे स्वामी हैं। वस्तुतः इस संसार में हमारा कुछ भी नहीं है।
    सर्वोच्च भोक्ता
    हम केवल उन वस्तुओं को थोड़ा भोग सकते हैं, जो हमारी हैं। चूँकि प्रत्येक वस्तु श्रीभगवान् की है, इसलिए वे सर्वोच्च भोक्ता हैं।
    'भग' शब्द का अर्थ है ऐश्वर्य और 'वान्' शब्द का अर्थ है धारण करने वाला। विष्णु पुराण में पराशरमुनि श्रीभगवान् शब्द की परिभाषा देते हुए कहते हैं :
    ऐश्वर्यस्य समग्रस्य वीर्यस्य यशसः श्रियः । ज्ञान वैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतिङ्गन ॥
    (विष्णु पुराण ६.५.४७ )
    अनुवाद : 1 सम्पूर्ण धन, 2 बेल, 3 ख्याति, 4 सौन्दर्य,5 ज्ञान और 6 वैराग्य - ये श्रीभगवान् 1 के छह ऐश्वर्य हैं। मनुष्य में भी ये ऐश्वर्य पाये जाते हैं, परन्तु अत्यन्त तुच्छ मात्रा में। श्रीभगवान् ही एकमात्र व्यक्ति हैं, जो इन छहों ऐश्वर्यों को असीमित मात्रा में धारण करते हैं।
    उपरोक्त परिभाषाएँ श्रीभगवान् के दिव्य गुणों एवं लक्षणों का वर्णन करती हैं। इस प्रकार की अनेक परिभाषाएँ की जा सकती हैं।
    इन कसौटियों पर खरे उतरे बिना कोई भी श्रीभगवान् नहीं हो सकता।
    आपके दास का नमस्कार
    हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
    राधे राधे श्याम मिला दे

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