यह सही माने में बहुत गहरी बात है।आज जिन धर्म का मान सम्मान पीछे रह गया है, व्यक्तिगत नाम और मान सम्मान तीर्थंकरों के नाम से भी ज्यादा मुखर करने की परंपरा चल रही है। आज जो भी बड़ी योजनाएं और निर्माण कार्य अगर हमारे तीर्थंकर भगवंतो या प्राचीन आचार्यों के नाम पर रखने की जो प्राचीन जैन परंपरा रही है, उस पर चलते रहेंगे तो समाज के बिखराव और टूट की गति धीमी रहेगी, नहीं तो पूरा समाज इस गुरु और उस गुरु के नाम पर तेजी से विखंडन की और बढ़ता चला जायेगी।
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100% right
यह सही माने में बहुत गहरी बात है।आज जिन धर्म का मान सम्मान पीछे रह गया है, व्यक्तिगत नाम और मान सम्मान तीर्थंकरों के नाम से भी ज्यादा मुखर करने की परंपरा चल रही है। आज जो भी बड़ी योजनाएं और निर्माण कार्य अगर हमारे तीर्थंकर भगवंतो या प्राचीन आचार्यों के नाम पर रखने की जो प्राचीन जैन परंपरा रही है, उस पर चलते रहेंगे तो समाज के बिखराव और टूट की गति धीमी रहेगी, नहीं तो पूरा समाज इस गुरु और उस गुरु के नाम पर तेजी से विखंडन की और बढ़ता चला जायेगी।