एक सैनिक की पत्नी | कविता | डॉ छोटे लाल गुप्ता
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- เผยแพร่เมื่อ 15 ต.ค. 2024
- एक सैनिक की पत्नी
(कविता)
सुनो मेरे फौजी! मेरे प्रियतम, मेरे साथी, मेरे हमसफ़र!
तुम्हारे बिन
अब जिंदगी जी नहीं जाती
तुम्हारी बहुत याद आती है
तुम्हारी याद बहुत सताती है
तुम्हारे बिन ये दिन
अब काटे नहीं कटती।
सुनो मेरे फौजी! मेरे प्रियतम, मेरे साथी, मेरे हमसफर !
तुम तो वीर हो
योद्धा हो
लड़ाके हो
दुश्मनों के बड़े-बड़े टोलियों से
लड़ जाते हो
पर ये तो बताओ
मैं अकेली
अपनी तन्हाई से
कैसे लडूं
तुम्हारे बिन
अकेले मैं कैसे रहूं।
घर के हर कोने में
केवल तुम
और केवल तुम ही नजर आते हो
यादों की उन परछाइयों से कैसे लड़ू?
सुनो मेरे फौजी! मेरे प्रियतम, मेरे साथी, मेरे हमसफर !
कल एल्बम देखा था
फिर से वो पुरानी बातें
ताजा हो गई
खंडाला व लोनावाला का बारिश का वो मौसम
और उस बारिश की रिमझिम फुहारों में
खूबसूरत पहाड़ियों के बीच
पत्थर के सिल्वटों पर
घंटों साथ-साथ बैठना व भींगना
मन को खूब भाता है।
सुनो मेरे फौजी! मेरे प्रियतम, मेरे साथी, मेरे हमसफर!
और,हाँ एक बात
पहली बार जब हम और तुम
शिमला की खूबसूरत वादियों में
उन सर्द रातों में
एक-दूसरे का हाथ थामे
वो मधुर मधुर संगीत
गुनगुनाते यों चले जा रहे थे
एक-दूजे में खोए जा रहे थे
और मेरा ठंड से ठिठुरना
और तुम्हारा मुझे गले से लगाना
बहुत याद आती है।
सुनो मेरे फौजी! मेरे प्रियतम, मेरे साथी, मेरे हमसफर!
इस बार होली भी ऐसे ही बीत गई
सब ने एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाया
पर मेरा रंग
फीका ही रह गया
क्योंकि तुम जो घर नहीं आए।
पर ये तो बता जाओ
कि हम एक दूसरे को रंग कब लगाएंगे?
एल्बम की सारी तस्वीरें भी
अब पुरानी हो चुकी है
नयी कब खिंचवाएंगे?
सुनो मेरे फौजी! मेरे प्रियतम, मेरे साथी, मेरे हमसफर!
डॉ छोटे लाल गुप्ता
असिस्टेंट प्रोफेसर
विभागाध्यक्ष,हिन्दी विभाग
जमुनी लाल महाविद्यालय
हाजीपुर, वैशाली।
Very nice