मारवाड़ में आज भी प्रचलित कहावत है "डावा #डाभी ने जीवणा #गोहील" संवत 1250 के आसपास के खेङ राज्य पर #डाभी/#डाबी ओर #गोहल वंश का शासन था । गोहिल वंश के प्रतापसिंह एवं डाभी वंश के सावंतसिंह थे। खेड़ के ब्राह्मण व कुछ सामंत राजवंश से नाखुश थे । तब कुछ सामन्तो ने गुप्त रूप से पाली के शासक राव आसधानजी (राव सिहांजी के पुत्र ) से पाली की राजधानी गुंदोज में जाकर मिला और आसधानजी को विवाह के बहाने खेड़ लाकर प्रतापसिंह गोहील एवं #सावंतसिंहडाभी की हत्या करवादी तथा संवत 1337 मैं #खेड़ गधी पर राव #आसधानजी को बैठा दिया राव आसधानजी, राव सिहांजी के पुत्र थे जो जोधपुर के वंशज थे । उन्होंने खेङ को #मारवाड़ परगने की राजधानी बनाया । राव आसधानजी जब खेङ के शासक बन गये इस घटना से #गोहिल_राजवंश व #डाभीराजवंश के अन्य परिवार #खेडगड छोड़कर गुजरात कि ओर पलायन कर गए एवं जाते हुए जीवन भर खेड़ का पानी नही पीने की सौगंध लेके गए जो वर्तमान में आज भी कायम है, दोनो राजवंश गुजरात में जाकर बस गये । कुछ #डाभी परिवार #अंबापुर में बसे।
जब खेड़गढ़ सम्पूर्ण रूप से डाबी और गोहिल राजाओं के अधिपत्य तहत आ गया था, कई छोटे बड़े ठिकानो से लड़ते आज दोनों वंशो ने एक शक्तिशाली राज्य स्थापित करने में सफलता प्राप्त कर ली थी | यह एक चक्र्व्यू था या कोई विध्या थी हर युद्ध में डाबी सदेवः डावी और से दुश्मन का सामना करते थी और गोहिल जीवणी और से, और जितनी लड़ाई दोनों ने साथ मिलकर लड़ी उन सब लड़ाई में विजय को प्राप्त हुवे थे | और ऐसे उन्होंने खेड़गढ़ को भी अपनी इस चक्र्व्यू से अपना राज्य बना लिया | अब दोनों राजवंशो की राजधानी तो खेड़गढ़ ही रहनी थी अब इस में कौन किस प्रदेश में आपना राज्य शासन शरू करे, इस बात को लेकर विचार-विमर्श चल रहा था | गोहिल राजवंश के महाराजा श्री ने पहले डाबी राजवंश के महाराजा को अपनी पसंद के विस्तार को पसंद करने की उदारता दिखाकर कहा "आप इस राज्य में विस्तार में जहाँ चाहें, वहां जाकर राज्य करे जो आपको इस प्रदेश में पसंद हो | पर वही बात डाबी राजवंश के महाराजा ने कही | दोनों राजवंशो अपनी मित्रता और उदारता दिखाकर एक दूसरे को निर्णय दे रहे थे तो निर्णय नही हो पा रहा था | तभी राजगुरु ने कहा "महाराजा अगर आपको संदेह न होतो एक सुझाव दूँ", गोहिल महाराजा बोले, "हाँ राजगुरु जरूर", तभी राजगुरु ने कहा अगर आपने जिस प्रकार युद्ध जीता है उसी प्रकार राज्य भी अपने योजना अनुसार पसंद कर लें" और तभी राजगुरु के मुख से निकला वो शब्द कहावत के रूप में दोनों राजवंशो में बहुत समय तक अपनी वीरता का उद्धरण देता रहा, राजगुरु ने कहा था "डावां डाबी ने जीवणा गुहिल" अगर राज्य ले तो दोनों महाराजो के मान-सम्मान भी संभल जायेगा जो दोनों महाराजा अपनी उदारता दिखा कर निर्णय नहीं ले पा रहे | इस प्रकार तब से यह कहावत बन और खेड़गढ़ में प्रचलित और इतिहास में जानी गई | समय निकलता गया और अब जब राजधानी खेड़गढ़ पर गोहिल वंशीय "महेशदासजी" का शासन चल रहा था प्रजा पूर्णपर्ण सुखी और समृद्ध थी (१०४० तक यह साम्राज्य अपने पूर्ण यौवन पर था तथा यह कला-कौशल्य,व्यापार व सांस्कृतिक गतिविधयों का प्रमुख केंद्र रहा) राजा एवं प्रजा को कोई दुविधा नही थी पर कुछ सामंतो ने राज्य के मंत्री ब्राह्मणो से मिलकर गुजरात से कुछ व्यापारी को व्यापार के लिए खेड़गढ़ बुलाया (जिसमे सामंतो और ब्राह्मणो को इस व्यापार में से कुछ मुनाफा देने की बात पहले से हो गई थी) पर हुआ ये के जो चीज़ें प्रजा को पहले जिस दाम से मिल रही थी उससे अधिक दाम में मिलने लगी तो कुछ लोगों ने राजा को यह व्यापर में हो रहे अधर्म की बात बताने की ठानी, तो सामंतो और ब्राह्मणो को लगा के उनकी यह बात राजा को पता चल गई तो दण्डित होना पड़ेगा | ऐसे में वि.सं १२१२ में जब महाराजा श्री राव सिंहजी राठौड़ (जिन्हे राठौड़ वंश के मूल पुरुष कहा जाता है) द्धारकाधीश के दर्शनार्थ जा रहे थे तभी भीनमाल और खेड़गढ़ के ब्रह्मण व् साहूकार ने अपने राजाओं से दुखी है ऐसी झूठी बात बनाई और मुक्ति हेतु झूठी कहानी बता कर प्रार्थना की तब राव सिंहजी ने उनकी झूठी कठिनाईओं को वास्तविक समझ कर उन्हे मुक्ति दिलवाने का वचन दिया | क्योंकी उसी समय पाली के ब्राह्मणो की दुर्दशा और अधिक हो रही थी | आदिवासियों ने ब्राह्मणो की हालत पतली कर दी थी और आदिवासिओ ने ब्राह्मणो की बालिकाओ से आपने लड़को की शादी करवाने की बात कही ऐसी बात भी राव सिंहाजी राठौड़ को बताई (जब की गोहिलो के लिए आदिवासी सदेवः वफादार रहे | गोहिलो के कुछ ठिकानो के राज्यचिन्ह में तो आदिवासियों को स्थान भी मिला है जैसे के मेवाड़ या गुजरात में राजपीपला के राजचिन्ह) और यह बात को लेके ब्राह्मणो और साहूकारों ने आदिवासिओ को भी खेड़गढ़ से निकलने का षड़यंत्र रच दिया | और इस बीच खेड़गढ़ में गोहिल महाराजा महेशदासजी की आकस्मिक मौत हो गई | राव सिंहाजी राठौड़ के पुत्र आस्थान जी राठौड़ "तापड़ की बैठक" (बाहरवां का शौक मिलन) में सम्मिलित होने के लिए आये | (और जो बात राव सिंहाजी राठौड़ को बताई थी पर राव सिंहाजी ने खेगढ़ के शासको के यहाँ वैवाहिक संबंध स्थापित कर लिए थे तो ब्राह्मणो को लगा था कि उनकी योजना सफल नही होगी तब उन्होंने ये सब आस्थान जी राठौड़ को बताया और वे गोहिल और डाबीओ को खेड से निकालने की बात में आ गए) और अब साहूकार और ब्राह्मण खुश थे क्योंकी उनकी योजना सफल होनी थी इस बीच सभा में बायीं ओर डाबी और दाहिनी ओर गुहिल बैठे थे | तभी योजना अनुसार राठोड़ो के सैनिको ने धावा बोला दिया | दोनों राजवंश विश्वासघात से अपरिचित थे और काल के गाल में समा गए और दोनों राजवंशों का अंत हो गया |
राव अस्थान कि चाल कामयाब हो गई। राठौड़ सिरदारो ने गोयल सिरदारो को हराने के लिए डाभी सिरदारो का साथ लिया। और दोनो रावलो को खेड़ में पराजित कर दिया। इसके उपरांत डाभी और गोयल सरदार खेड़ से प्रस्थान कर गए गुजरात की ओर लेकिन अलग। आज भी गोयल सरदार हरसानी के पास गोरडिया गांव में विराजमान हैं। जो की इनका सबसे बड़ा रावला हैं। समय के साथ इनका कुनबा बढ़ता गया और कुछ परिवार गोरडिया रावला से प्रस्थान करके अन्य गांवों में अपना ठिकाना स्थापित कर दिया। गुजरात में डाभी और गोयलो ने अपने अलग अलग ठिकाने स्थापित कर दिए। जो खेड़ से भी बड़े हैं।
Right information..to gathering such facts we lost our warrior due to deceive by Rathore .main Important our kuldevi . special dabis is another topic to search & Reaserch ..Many person in difficult with there personal problems ...we meet your Goddess (kuldevi) In Khed rajasthan
जब गोहिल राजस्थान से गुजरात आये और यहाँ आपने राज्य शुरू किया महाराज सेजकसिंहजी गोहिल से ले के आजादी तक के भावनगर नरेश कृष्णकुमारसिंहजी तक की गोहिल राजाओ का राज्यकल का इतिहास देख लो कही पर भी कोई गोहिल महाराजा ऐसे नही रहे जिन्होंने अपनी प्रजा के साथ अन्याय किया हो जब के भावनगर के महाराजा श्री कृष्णकुमारसिंहजी को तो उनके राज्य की प्रजा भगवान से काम नही मानती थी यह गोहिल राजाओ के उदारता का उदहारण है तो उनके पूर्वज महेशदासजी कैसे अपनी प्रजा से अन्याय कर सकते है | वही बात डाबीओ की भी रही वो भी राजस्थान में महाराणा उदयसिंह की दी हुवी जोधपुर के पास की जागीर उनको वफादिरी के लिए मिली थी और गुजरात में चावड़ा वंश के राजा पुंजाजी द्वारा भी युद्ध में सहायता करने के रूप में महाराजा श्री वेजलसिंहजी डाबी को डांगरवा राज्य की गद्दी १४ गांव सहित (जो पुरे गुजरात में सिर्फ क्षत्रिय डाबी इस प्रदेश में ही है बाकि कही पर डाबीओ का ठिकाना नही है) मिली थी. यह प्रमाण ही सिद्ध कर देते है दोनों राजवंशो की न्याय और उचितता प्रमाण देकर) खेड़गढ़ की मुलाकत के बाद उपरोक्त महारथीओ से सुनी बातें आज भी जब हमारे पैर खेड़गढ़ की धरती पर पड़ते है तो लगता है यह कोई हमें बोला रहा है कोई बुजुर्ग आएगा और हमें आवाज देगा | जौहर में जली स्त्रीओ की आवजे आज भी सुनाई देती है जैसे इन मिटी में अपनो के लहू की महक आती है बस इससे आगे और कुछ नही लिखा जायेगा अतीत भले चल गया मगर इसकी गाथा हमें हर रोज ये समरण करवाती रहेगी की पृथ्वी के इस कोणे में आजे भी हमारी बलदानी और शौर्य की यादे जिन्दा जल रही है | जय क्षात्र धर्म | जय माँ महिषासुरी मर्दिनी | जय माँ चामुण्डा |
।। जय हो लछमण अवतारी पाबूजी राठोड़ री ।। आपणी राजस्थानी वेशभूषा और मारवाड़ी आ भाषा और मीठी वाणी मां सरस्वती आपके कठ पर सदा विराजमान रहे और पूरानी सस्कृति लुप्त होने की कंगार पर है परन्तु आप जैसे लोगों की वजह सू आपणी संस्कृति बची है -चूनाराम भादू चौधरी धनाऊ बाड़मेर
Hkm history ki book se se kuch line likhi hai jisme likha hai ki "muldev Singh ji" jo ki dabi rajput raha the unki rajkumari ka vivaah Sejal Singh ji Gohil ke sath hua tha or ye history aapko bhavnagar ki history me bhi mil jayegi ki sejak Singh ji ke wife kis rajvash se the to vaha bhi aapko DABI milega Agar koi raja hai to vo shaadi hkm rajparivar me hi karega na ki kisi Pradhan ke ghar hkm So 🙏 aap bina itihas jane TH-cam ke madhyam se galat chijo ki jankari na de hkm 🙏
193. मुलदेव ---- (जिन्होंने बाद में जोधपुर के पास लुणी नदी के पास "महुबा" नाम के राज्य की स्थापन कर वही पर अपनी प्रथम राजधानी स्थापित की जिनकी राजकुमारी "उमादेवी" का विवाह पास में गोहिल / गुहिल क्षत्रिय राजकुमार "सेजकसिंहजी" के साथ हवा था जो आगे जा के गुजरात के प्रसिद्धि राजवंश और भावनगर जैसी बड़ी रियासत के स्थापक हुवे थे ।) 194. महेराज--- ( खेड़गढ़ में हुवे परम्परागत क्षत्रियो के शत्रुओ द्वारा षडयंत्रो से हुवी प्रस्थिति के बाद वे भीलड़ीगढ़ बस गये थे ।)
साब आपने ऐङी बाता खातर घणा रंग घणा घणा राम राम कदे आप खारी भोमियाजी रो जीवन परिचय बतावो तो आप ने घणा रंग हूसी सा गांव खारीकर्मसोता जिला नागोर ओ स्थान नागोर सू 40किलोमिटर आथूणे अर ऊतरादे खूट मे है सा ईण रे कने मोटो अर फलोदी रोङ माथे गाव गुङा भगवान दास आयोङो हे सा
इतनी अद्भुत अंतर्दृष्टि के लिए बहुत बहुत धन्यवाद सर, में बालोतरा मोकलसर के पास ही रहते हैं और हमेशा सोचते हैं कि हमारा परिवार यहाँ कैसे रहता है, क्योंकि गोहिल मेवाड़ में हैं या गुजरात में
विक्रम संवत 1332 में राव आस्थान जी ने खेड़ पर अधिकार किया इस युद्ध में इनके राजपुरोहित श्री देवपाल देव जी के भाई नगराज जी सेवड़ वीरगति प्राप्त हुए साथ में 115 अन्य राजपुत वीरगति प्राप्त हुए
जय माता जी री सा दिपसा भाटी साहब मेरा गाँव चाबा शेरगढ हैं साहब आपसे मेरा निवेदन है की देवराज जी रे बङै पुत्र पुनमसिह जी चाबा का विडियो अपलोड करो 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Hukm aapne me ghano man devo , aapari waksidhi ri tarif ghana minak kare , our uname me our mhoro pariwar bhi aave , aaj aapare mukh su aa gohilo our dabiyo ri bat sun bado dukh hoyo ke aapare jeda minak bhi puri bat ro pato lagayo bino hi bat ke deve our vew re waste sada deve to bado dukh hove, aapari in bat me puro sas nahi hai iname gohil our viseskar dabiyo ro ghano halko lago khali likhyudo jiyo bas diyo aap , me to janta ha ke aap purani bahiyo su pukhta kar our milann kar pase aap kevo , insu dabiyo our gohilo re dhoke ri bhavana utpan hoi ,jabki iname styata pramanik nahi hai ,aap to asi tarah su jano ho ke itihas me kito herfer hoyudo hai, fir aa bat ...... Pan aapare mathe bhagwan re jiyu viswas karo aapare bolyude sabda mol mhore waste ghano hai in waste hukm baki aap bada ho 🙏🙏
नरावतों का राज फलोदी व पोकरण में था फिर जब्त हौ गया ओर पोकरण की जागीर चांपावतों को जोधपुर महाराजा द्वारा मिली। नरावत अहमदाबाद के युद्घ में जोधपुर महाराजा के साथ गये नहीं थे। इसलिए नरावतों की सारी जागीरी जब्त हौ गयी थी। एक झलारीया गांव है। वहां के ठाकुर नरावत है।
हुकम, खेड़ के गोहिल राजपूत सूर्यवंशी है या चंद्रवंशी? राव जी के बही अनुसार अर्जुनायन चंद्रवंशी बताया गया है और इतिहासकारों के द्वारा सूर्यवंशी बताया गया है।
Solanki Rajputo ka Raj patan me 942 se suru hua tha ....or 1244 ke time Tak Raha ....uske bad patan par Vaghela Rajputo ka Raj Raha tha. . Mahipal Ratnoo
मारवाड़ में आज भी प्रचलित कहावत है "डावा #डाभी ने जीवणा #गोहील" संवत 1250 के आसपास के खेङ राज्य पर #डाभी/#डाबी ओर #गोहल वंश का शासन था । गोहिल वंश के प्रतापसिंह एवं डाभी वंश के सावंतसिंह थे। खेड़ के ब्राह्मण व कुछ सामंत राजवंश से नाखुश थे । तब कुछ सामन्तो ने गुप्त रूप से पाली के शासक राव आसधानजी (राव सिहांजी के पुत्र ) से पाली की राजधानी गुंदोज में जाकर मिला और आसधानजी को विवाह के बहाने खेड़ लाकर प्रतापसिंह गोहील एवं #सावंतसिंहडाभी की हत्या करवादी तथा संवत 1337 मैं #खेड़ गधी पर राव #आसधानजी को बैठा दिया राव आसधानजी, राव सिहांजी के पुत्र थे जो जोधपुर के वंशज थे । उन्होंने खेङ को #मारवाड़ परगने की राजधानी बनाया । राव आसधानजी जब खेङ के शासक बन गये इस घटना से #गोहिल_राजवंश व #डाभीराजवंश के अन्य परिवार #खेडगड छोड़कर गुजरात कि ओर पलायन कर गए एवं जाते हुए जीवन भर खेड़ का पानी नही पीने की सौगंध लेके गए जो वर्तमान में आज भी कायम है, दोनो राजवंश गुजरात में जाकर बस गये
आप जैसे सिद्धांतवादी पुरुषो के कारण ही हमारी संस्कृति आज भी जीवित है धनबाद हो हुकम!
मारवाड़ में आज भी प्रचलित कहावत है "डावा #डाभी ने जीवणा #गोहील"
संवत 1250 के आसपास के खेङ राज्य पर #डाभी/#डाबी ओर #गोहल वंश का शासन था । गोहिल वंश के प्रतापसिंह एवं डाभी वंश के सावंतसिंह थे। खेड़ के ब्राह्मण व कुछ सामंत राजवंश से नाखुश थे । तब कुछ सामन्तो ने गुप्त रूप से पाली के शासक राव आसधानजी (राव सिहांजी के पुत्र ) से पाली की राजधानी गुंदोज में जाकर मिला और आसधानजी को विवाह के बहाने खेड़ लाकर प्रतापसिंह गोहील एवं #सावंतसिंहडाभी की हत्या करवादी तथा संवत 1337 मैं #खेड़ गधी पर राव #आसधानजी को बैठा दिया राव आसधानजी, राव सिहांजी के पुत्र थे जो जोधपुर के वंशज थे । उन्होंने खेङ को #मारवाड़ परगने की राजधानी बनाया । राव आसधानजी जब खेङ के शासक बन गये इस घटना से #गोहिल_राजवंश व #डाभीराजवंश के अन्य परिवार #खेडगड छोड़कर गुजरात कि ओर पलायन कर गए एवं जाते हुए जीवन भर खेड़ का पानी नही पीने की सौगंध लेके गए जो वर्तमान में आज भी कायम है, दोनो राजवंश गुजरात में जाकर बस गये । कुछ #डाभी परिवार #अंबापुर में बसे।
जब खेड़गढ़ सम्पूर्ण रूप से डाबी और गोहिल राजाओं के अधिपत्य तहत आ गया था, कई छोटे बड़े ठिकानो से लड़ते आज दोनों वंशो ने एक शक्तिशाली राज्य स्थापित करने में सफलता प्राप्त कर ली थी | यह एक चक्र्व्यू था या कोई विध्या थी हर युद्ध में डाबी सदेवः डावी और से दुश्मन का सामना करते थी और गोहिल जीवणी और से, और जितनी लड़ाई दोनों ने साथ मिलकर लड़ी उन सब लड़ाई में विजय को प्राप्त हुवे थे | और ऐसे उन्होंने खेड़गढ़ को भी अपनी इस चक्र्व्यू से अपना राज्य बना लिया | अब दोनों राजवंशो की राजधानी तो खेड़गढ़ ही रहनी थी अब इस में कौन किस प्रदेश में आपना राज्य शासन शरू करे, इस बात को लेकर विचार-विमर्श चल रहा था | गोहिल राजवंश के महाराजा श्री ने पहले डाबी राजवंश के महाराजा को अपनी पसंद के विस्तार को पसंद करने की उदारता दिखाकर कहा "आप इस राज्य में विस्तार में जहाँ चाहें, वहां जाकर राज्य करे जो आपको इस प्रदेश में पसंद हो | पर वही बात डाबी राजवंश के महाराजा ने कही | दोनों राजवंशो अपनी मित्रता और उदारता दिखाकर एक दूसरे को निर्णय दे रहे थे तो निर्णय नही हो पा रहा था | तभी राजगुरु ने कहा "महाराजा अगर आपको संदेह न होतो एक सुझाव दूँ", गोहिल महाराजा बोले, "हाँ राजगुरु जरूर", तभी राजगुरु ने कहा अगर आपने जिस प्रकार युद्ध जीता है उसी प्रकार राज्य भी अपने योजना अनुसार पसंद कर लें" और तभी राजगुरु के मुख से निकला वो शब्द कहावत के रूप में दोनों राजवंशो में बहुत समय तक अपनी वीरता का उद्धरण देता रहा, राजगुरु ने कहा था "डावां डाबी ने जीवणा गुहिल" अगर राज्य ले तो दोनों महाराजो के मान-सम्मान भी संभल जायेगा जो दोनों महाराजा अपनी उदारता दिखा कर निर्णय नहीं ले पा रहे | इस प्रकार तब से यह कहावत बन और खेड़गढ़ में प्रचलित और इतिहास में जानी गई |
समय निकलता गया और अब जब राजधानी खेड़गढ़ पर गोहिल वंशीय "महेशदासजी" का शासन चल रहा था प्रजा पूर्णपर्ण सुखी और समृद्ध थी (१०४० तक यह साम्राज्य अपने पूर्ण यौवन पर था तथा यह कला-कौशल्य,व्यापार व सांस्कृतिक गतिविधयों का प्रमुख केंद्र रहा) राजा एवं प्रजा को कोई दुविधा नही थी पर कुछ सामंतो ने राज्य के मंत्री ब्राह्मणो से मिलकर गुजरात से कुछ व्यापारी को व्यापार के लिए खेड़गढ़ बुलाया (जिसमे सामंतो और ब्राह्मणो को इस व्यापार में से कुछ मुनाफा देने की बात पहले से हो गई थी) पर हुआ ये के जो चीज़ें प्रजा को पहले जिस दाम से मिल रही थी उससे अधिक दाम में मिलने लगी तो कुछ लोगों ने राजा को यह व्यापर में हो रहे अधर्म की बात बताने की ठानी, तो सामंतो और ब्राह्मणो को लगा के उनकी यह बात राजा को पता चल गई तो दण्डित होना पड़ेगा |
ऐसे में वि.सं १२१२ में जब महाराजा श्री राव सिंहजी राठौड़ (जिन्हे राठौड़ वंश के मूल पुरुष कहा जाता है) द्धारकाधीश के दर्शनार्थ जा रहे थे तभी भीनमाल और खेड़गढ़ के ब्रह्मण व् साहूकार ने अपने राजाओं से दुखी है ऐसी झूठी बात बनाई और मुक्ति हेतु झूठी कहानी बता कर प्रार्थना की तब राव सिंहजी ने उनकी झूठी कठिनाईओं को वास्तविक समझ कर उन्हे मुक्ति दिलवाने का वचन दिया | क्योंकी उसी समय पाली के ब्राह्मणो की दुर्दशा और अधिक हो रही थी | आदिवासियों ने ब्राह्मणो की हालत पतली कर दी थी और आदिवासिओ ने ब्राह्मणो की बालिकाओ से आपने लड़को की शादी करवाने की बात कही ऐसी बात भी राव सिंहाजी राठौड़ को बताई (जब की गोहिलो के लिए आदिवासी सदेवः वफादार रहे | गोहिलो के कुछ ठिकानो के राज्यचिन्ह में तो आदिवासियों को स्थान भी मिला है जैसे के मेवाड़ या गुजरात में राजपीपला के राजचिन्ह) और यह बात को लेके ब्राह्मणो और साहूकारों ने आदिवासिओ को भी खेड़गढ़ से निकलने का षड़यंत्र रच दिया | और इस बीच खेड़गढ़ में गोहिल महाराजा महेशदासजी की आकस्मिक मौत हो गई | राव सिंहाजी राठौड़ के पुत्र आस्थान जी राठौड़ "तापड़ की बैठक" (बाहरवां का शौक मिलन) में सम्मिलित होने के लिए आये | (और जो बात राव सिंहाजी राठौड़ को बताई थी पर राव सिंहाजी ने खेगढ़ के शासको के यहाँ वैवाहिक संबंध स्थापित कर लिए थे तो ब्राह्मणो को लगा था कि उनकी योजना सफल नही होगी तब उन्होंने ये सब आस्थान जी राठौड़ को बताया और वे गोहिल और डाबीओ को खेड से निकालने की बात में आ गए) और अब साहूकार और ब्राह्मण खुश थे क्योंकी उनकी योजना सफल होनी थी इस बीच सभा में बायीं ओर डाबी और दाहिनी ओर गुहिल बैठे थे | तभी योजना अनुसार राठोड़ो के सैनिको ने धावा बोला दिया | दोनों राजवंश विश्वासघात से अपरिचित थे और काल के गाल में समा गए और दोनों राजवंशों का अंत हो गया |
Sahi bat hai
राव अस्थान कि चाल कामयाब हो गई। राठौड़ सिरदारो ने गोयल सिरदारो को हराने के लिए डाभी सिरदारो का साथ लिया। और दोनो रावलो को खेड़ में पराजित कर दिया।
इसके उपरांत डाभी और गोयल सरदार खेड़ से प्रस्थान कर गए गुजरात की ओर लेकिन अलग।
आज भी गोयल सरदार हरसानी के पास गोरडिया गांव में विराजमान हैं। जो की इनका सबसे बड़ा रावला हैं।
समय के साथ इनका कुनबा बढ़ता गया और कुछ परिवार गोरडिया रावला से प्रस्थान करके अन्य गांवों में अपना ठिकाना स्थापित कर दिया।
गुजरात में डाभी और गोयलो ने अपने अलग अलग ठिकाने स्थापित कर दिए। जो खेड़ से भी बड़े हैं।
बहुत उत्तम
💯💯
Right information..to gathering such facts we lost our warrior due to deceive by Rathore .main Important our kuldevi . special dabis is another topic to search & Reaserch ..Many person in difficult with there personal problems ...we meet your Goddess (kuldevi) In Khed rajasthan
दीपसिंह जी आपने बहुत ही ऐतिहासिक बात सुनाई आपको बहुत बहुत धन्यवाद साहब
डाभी राजपूत और गोयल राजपूत स्वतन्त्र शासक थे। और दोनों के साथ विस्वास् घात हुआ था।
जय माँ इच्छा करणी बहू सुंदर प्रस्तुति है आपकी 🤗🚩🚩
जब गोहिल राजस्थान से गुजरात आये और यहाँ आपने राज्य शुरू किया महाराज सेजकसिंहजी गोहिल से ले के आजादी तक के भावनगर नरेश कृष्णकुमारसिंहजी तक की गोहिल राजाओ का राज्यकल का इतिहास देख लो कही पर भी कोई गोहिल महाराजा ऐसे नही रहे जिन्होंने अपनी प्रजा के साथ अन्याय किया हो जब के भावनगर के महाराजा श्री कृष्णकुमारसिंहजी को तो उनके राज्य की प्रजा भगवान से काम नही मानती थी यह गोहिल राजाओ के उदारता का उदहारण है तो उनके पूर्वज महेशदासजी कैसे अपनी प्रजा से अन्याय कर सकते है |
वही बात डाबीओ की भी रही वो भी राजस्थान में महाराणा उदयसिंह की दी हुवी जोधपुर के पास की जागीर उनको वफादिरी के लिए मिली थी और गुजरात में चावड़ा वंश के राजा पुंजाजी द्वारा भी युद्ध में सहायता करने के रूप में महाराजा श्री वेजलसिंहजी डाबी को डांगरवा राज्य की गद्दी १४ गांव सहित (जो पुरे गुजरात में सिर्फ क्षत्रिय डाबी इस प्रदेश में ही है बाकि कही पर डाबीओ का ठिकाना नही है) मिली थी. यह प्रमाण ही सिद्ध कर देते है दोनों राजवंशो की न्याय और उचितता प्रमाण देकर)
खेड़गढ़ की मुलाकत के बाद उपरोक्त महारथीओ से सुनी बातें आज भी जब हमारे पैर खेड़गढ़ की धरती पर पड़ते है तो लगता है यह कोई हमें बोला रहा है कोई बुजुर्ग आएगा और हमें आवाज देगा | जौहर में जली स्त्रीओ की आवजे आज भी सुनाई देती है जैसे इन मिटी में अपनो के लहू की महक आती है बस इससे आगे और कुछ नही लिखा जायेगा अतीत भले चल गया मगर इसकी गाथा हमें हर रोज ये समरण करवाती रहेगी की पृथ्वी के इस कोणे में आजे भी हमारी बलदानी और शौर्य की यादे जिन्दा जल रही है |
जय क्षात्र धर्म |
जय माँ महिषासुरी मर्दिनी |
जय माँ चामुण्डा |
गोहिल (भावनगर पालिताना राजपीपाला )चंद्रवंशी है या सूर्यवंशी
खेडगढ़ आज कोन से जिल्ले और तहसील में हे कृपया बताए।
Yeh rajasthan ke barmer district mai yeh
Gujrat me dangarva me hi nahi Rohgadh me bhi hai or dangarva vale bhi bhildi se gaye hai
।। जय हो लछमण अवतारी पाबूजी राठोड़ री ।।
आपणी राजस्थानी वेशभूषा और मारवाड़ी आ भाषा और मीठी वाणी मां सरस्वती आपके कठ पर सदा विराजमान रहे
और पूरानी सस्कृति लुप्त होने की कंगार पर है परन्तु आप जैसे लोगों की वजह सू आपणी संस्कृति बची है
-चूनाराम भादू चौधरी धनाऊ बाड़मेर
पाबूजी राठोड़ रा भतिजा झरङा जी राठौड़ रा विडियों लाओ बहुत ही शानदार ज्ञानवर्धक शिक्षा दायीं विडियों बणसी
Hkm history ki book se se kuch line likhi hai jisme likha hai ki "muldev Singh ji" jo ki dabi rajput raha the unki rajkumari ka vivaah Sejal Singh ji Gohil ke sath hua tha or ye history aapko bhavnagar ki history me bhi mil jayegi ki sejak Singh ji ke wife kis rajvash se the to vaha bhi aapko DABI milega
Agar koi raja hai to vo shaadi hkm rajparivar me hi karega na ki kisi Pradhan ke ghar hkm
So 🙏 aap bina itihas jane TH-cam ke madhyam se galat chijo ki jankari na de hkm 🙏
Konsi history me h?
Kya aap send kar sakte h ?
193. मुलदेव ---- (जिन्होंने बाद में जोधपुर के पास लुणी नदी के पास "महुबा" नाम के
राज्य की स्थापन कर वही पर अपनी प्रथम राजधानी स्थापित की जिनकी राजकुमारी "उमादेवी" का विवाह पास में गोहिल / गुहिल क्षत्रिय राजकुमार "सेजकसिंहजी" के साथ हवा था जो आगे जा के गुजरात के प्रसिद्धि राजवंश और भावनगर जैसी बड़ी रियासत के स्थापक हुवे थे ।)
194. महेराज--- ( खेड़गढ़ में हुवे परम्परागत क्षत्रियो के शत्रुओ द्वारा षडयंत्रो से हुवी प्रस्थिति के बाद वे भीलड़ीगढ़ बस गये थे ।)
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@@balwantsinghdabi2192 193 और 194 क्या हैं
दीप जी बहुत जोरदार सा
जै वात इतिहास में ने लखियोड़ी है उन बातो ने आप खोज युवा पीढ़ी ने सिख लेवण ने सुणाओ
घणा घणा रंग है आप ने दीपसिंहजी भाटीसा
बहुत हीं शानदार बात पोस भाटी साहब
यहा पर तो राठौङो ने गुहिलो के साथ छळ किया ,
निहत्थो को मारा ,
राम राम सा आपने बहुत अच्छा है सा
साब आपने ऐङी बाता खातर घणा रंग घणा घणा राम राम कदे आप खारी भोमियाजी रो जीवन परिचय बतावो तो आप ने घणा रंग हूसी सा गांव खारीकर्मसोता जिला नागोर ओ स्थान नागोर सू 40किलोमिटर आथूणे अर ऊतरादे खूट मे है सा ईण रे कने मोटो अर फलोदी रोङ माथे गाव गुङा भगवान दास आयोङो हे सा
मा भादरियाराय कि असीम किरपा बनी रहे जय आईजी रीसा
इतनी अद्भुत अंतर्दृष्टि के लिए बहुत बहुत धन्यवाद सर, में बालोतरा मोकलसर के पास ही रहते हैं और हमेशा सोचते हैं कि हमारा परिवार यहाँ कैसे रहता है, क्योंकि गोहिल मेवाड़ में हैं या गुजरात में
सादर आभार हुकुम
🙏जय मां भवानी 🚩
वीर भोग्य वसुंधरा
राव धांधल जी का सम्पूर्ण इतिहास बताओ। दीप सिंह जी।
बहुत ही शानदार हुक्म
विक्रम संवत 1332 में राव आस्थान जी ने खेड़ पर अधिकार किया इस युद्ध में इनके राजपुरोहित श्री देवपाल देव जी के भाई नगराज जी सेवड़ वीरगति प्राप्त हुए साथ में 115 अन्य राजपुत वीरगति प्राप्त हुए
वाह सा वाह जोरदार सा!
बहुत खूब सा
बहुत सुंदर बात
शानदार ऐतिहासिक बातपोश के लिए बहुत आभार 🙏🏻🎊👍
जय माताजी की हुकुम
धन्यवाद
जय माता जी री सा दिपसा भाटी साहब मेरा गाँव चाबा शेरगढ हैं साहब आपसे मेरा निवेदन है की देवराज जी रे बङै पुत्र पुनमसिह जी चाबा का विडियो अपलोड करो 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
दया राठौड़ का इतिहास
Very nice video 👌
दिपसिहजी के नंबर मिलेगें
Hukm aapne me ghano man devo , aapari waksidhi ri tarif ghana minak kare , our uname me our mhoro pariwar bhi aave , aaj aapare mukh su aa gohilo our dabiyo ri bat sun bado dukh hoyo ke aapare jeda minak bhi puri bat ro pato lagayo bino hi bat ke deve our vew re waste sada deve to bado dukh hove, aapari in bat me puro sas nahi hai iname gohil our viseskar dabiyo ro ghano halko lago khali likhyudo jiyo bas diyo aap ,
me to janta ha ke aap purani bahiyo su pukhta kar our milann kar pase aap kevo , insu dabiyo our gohilo re dhoke ri bhavana utpan hoi ,jabki iname styata pramanik nahi hai ,aap to asi tarah su jano ho ke itihas me kito herfer hoyudo hai,
fir aa bat ......
Pan aapare mathe bhagwan re jiyu viswas karo aapare bolyude sabda mol mhore waste ghano hai in waste hukm
baki aap bada ho 🙏🙏
शानदार
ये कहानी कुछ अधूरी है और इसमें आधी आधी सच्चाई है
Jai mataji sa dabhi rajput ka itehas batake ajmer peesangen budhwara
बलजी भुरजी पर भी वीडियो बनाइये बाबोजी
very nice
धन्य है हुकम सही समय पर आपने इतिहास के महत्वपूर्ण विषय से सभी को अवगत करवाया
🙏🙏🙏🙏🙏🙏👍
गुजराती में बनाओ
🙏🙏
Dabhi jati ki kuldevi kon h
Dabhi vansh ki kuldevi mahishasur mardini mataji hai
Dabhi rajput kisme aate h
🙏🙏🙏❤️❤️❤️🙏🙏🙏
दीप सिंह जी भाटी साहब नरावत राठौड़ का इतिहास क्या है और नरावत राठोड़ ने कहां कहां राज किया
नरावतों का राज फलोदी व पोकरण में था फिर जब्त हौ गया ओर पोकरण की जागीर चांपावतों को जोधपुर महाराजा द्वारा मिली। नरावत अहमदाबाद के युद्घ में जोधपुर महाराजा के साथ गये नहीं थे। इसलिए नरावतों की सारी जागीरी जब्त हौ गयी थी। एक झलारीया गांव है। वहां के ठाकुर नरावत है।
हुकम, खेड़ के गोहिल राजपूत सूर्यवंशी है या चंद्रवंशी? राव जी के बही अनुसार अर्जुनायन चंद्रवंशी बताया गया है और इतिहासकारों के द्वारा सूर्यवंशी बताया गया है।
Ha Mera bhi yahi sawal hai
इतिहास ने सजावण में आपरी एक एक बातपोश घणै जुग तांई काम आवैला । जय माँ रोहिणी
यह झूठ हैं सचाई नही
ये क्षेत्रीय के लिए मरण समान है ।इस मे राठौड़ो रो हल्को लागेहे निहत्थों पर वार करना क्षेत्रीय को शोभा नही देवे सा
बिल्कुल सा
ये अच्छा काम नहीं किया आपस की लड़ाई नुकसानदायक होती है
जोधपुर राज्य के इतिहास की पुस्तक मे 106 नंबर पेज पर भी यही लिखा हुआ है आप हुकम जो भी लिखते वो बिल्कुल संदर्भ सहित लिखते हो
Aap hkm galat itihas ki jankari de rahe ho hkm
इन्होंने अपने इतिहास में सन्दर्भ देके बात बोली हैं आपके पास कोई सन्दर्भ हो तो पेश करे इन्हें जिद करने से नही होता कुछ भी
Fack information.
Solanki Rajputo ka Raj patan me 942 se suru hua tha ....or 1244 ke time Tak Raha ....uske bad patan par Vaghela Rajputo ka Raj Raha tha. .
Mahipal Ratnoo
मारवाड़ में आज भी प्रचलित कहावत है "डावा #डाभी ने जीवणा #गोहील"
संवत 1250 के आसपास के खेङ राज्य पर #डाभी/#डाबी ओर #गोहल वंश का शासन था । गोहिल वंश के प्रतापसिंह एवं डाभी वंश के सावंतसिंह थे। खेड़ के ब्राह्मण व कुछ सामंत राजवंश से नाखुश थे । तब कुछ सामन्तो ने गुप्त रूप से पाली के शासक राव आसधानजी (राव सिहांजी के पुत्र ) से पाली की राजधानी गुंदोज में जाकर मिला और आसधानजी को विवाह के बहाने खेड़ लाकर प्रतापसिंह गोहील एवं #सावंतसिंहडाभी की हत्या करवादी तथा संवत 1337 मैं #खेड़ गधी पर राव #आसधानजी को बैठा दिया राव आसधानजी, राव सिहांजी के पुत्र थे जो जोधपुर के वंशज थे । उन्होंने खेङ को #मारवाड़ परगने की राजधानी बनाया । राव आसधानजी जब खेङ के शासक बन गये इस घटना से #गोहिल_राजवंश व #डाभीराजवंश के अन्य परिवार #खेडगड छोड़कर गुजरात कि ओर पलायन कर गए एवं जाते हुए जीवन भर खेड़ का पानी नही पीने की सौगंध लेके गए जो वर्तमान में आज भी कायम है, दोनो राजवंश गुजरात में जाकर बस गये
Gujrat meh abhi kaha peh heh
@@kishanrabari6295 गोहिल Bhavnagar palitana or me base है ओर इस प्रदेश को गोहिलवाड़ कहा जाता है में यही से हु