कपों की कहानी ॥ अशोक भाटिया ॥ दलित विमर्श की लघुकथा, Kapon Ki Kahani, Ashok Bhaita, Dalit Vimarsh
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- เผยแพร่เมื่อ 9 ก.พ. 2025
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ये लघुकथा जब सुनी या पढ़ी, हमेशा ऐसा लगा सर, जैसे इतनी गहराई से मानसिकता का अवलोकन कम ही रचनाओं में हुआ है। सच में कपों के क्रैक के ज़रिए आपने एक ऐसी मानसिकता का दृश्य सामने रखा है, जिस का वजूद आज भी समाज में कायम है, भले ही कहीं कम और कहीं अधिक। 💐
🙏प्रणाम sir 🙏
सर्वोत्तम लघुकथा
बहुत अच्छी लघुकथा आ.
एक अच्छी लघुकथा।
🙏🙏🙏
बहुत उम्दा।
उत्तम कथा, उत्तम वाचन
सराहनीय लघुकथा - आपके नाम के अनुकूल ! बधाई !
❤
बहुत बढ़िया लघुकथा और पढ़ने का अंदाज भी।
हार्दिक बधाई।👏
प्रणाम सर ...आपकी बेहतरीन लघुकथाओं में से एक है यह लघुकथा..🙏🙏
बहुत सुंदर लघुकथा आदरणीय सर।
सर आपकी रचनाएँ स्मरणीय हैं 👏👏🙏🙏
बेहतरीन ❤
बहुत बढ़िया.
Very good g 👍
बहुत बढ़िया
बहुत बढ़िया सर
बेहतरीन लघुकथा
मानसिकता के क्रैक दिखाने की अद्भुत क्षमता है इस लघु कथा में 🎉
आप सदैव बढ़िया लिखते हैं। आपका शिष्य होने पर सौभाग्य प्राप्त हुआ
Excellent 👌 Exposes deep rooted prejudices though they are not discernible
बहुत सुंदर कथा, हम आदर्शवाद की कितने ही किस्से गढ लें मगर जब अपने पर आती है तो बिल्कुल ऐसा ही व्यवहार करते हैं😮
सटीक!!
हम कितना भी समानता का दम भर लें ,डंका पीटें , हमारे मन में ऊँच - नीच का कीड़ा जीवित ही रहेगा ,बरसों पाला है हमारे लोगों ने , फिर हमने । बहुत उम्दा । बधाई ।
मानसिक अन्तर्द्वन्दों को उकेरता, उभारती बहुत अच्छी लघुकथा।
गुरु देव! बहुत खूब। भारतीय जातिगत संस्कारों का यही यथार्थ है। विवेक और इन संस्कारों (?) की दरार यहां की विद्यालयी शिक्षा नहीं भर सकी। कुसंस्कार के दोष निवारण की कोई शल्यचिकित्सा भी इजाद नहीं हो पायी। इस पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है। 'कप के क्रैक्स' एक सटीक प्रतीक है। बधाइयां। अलमस्ति विस्तरेण।
उफ़! कितनी कटु सच्चाई बिना लाग-लपेट के..
हमारे अंदर जाति भेदभाव की जड़े इस कदर गहरी हो चुकी है जिन से चाहते हुए भी बाहर निकलना मुश्किल है यह लघु कथा इसी ओर संकेत करती है
बढ़िया लघु कथाओं में एक लघु कथा है
हृदयस्पर्शी कहानी।अंतिम पंक्ति में कहानी के नायक का चरित्र उजागर हुआ और कहानी की पूरी तस्वीर बदल गई।
❤❤❤❤❤
बेहतरीन ❤