History of Santhals | केवल अंग्रेजों के खिलाफ नहीं था संथाल हूल | Santhal Hool | सिदो मुर्मू

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  • เผยแพร่เมื่อ 29 มิ.ย. 2024
  • History of Santhals
    केवल अंग्रेजों के खिलाफ नहीं था संथाल हूल
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    देश-दुनिया के इतिहास में 30 जून की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। अंग्रेजों के खिलाफ हुए सशस्त्र विद्रोह के इतिहास में इस तारीख का खास महत्व है। 30 जून, 1855 को दो संथाल विद्रोही नेताओं सिदो मुर्मू और कान्हू मुर्मू (सगे भाई) ने लगभग 60,000 सशस्त्र संथालों के साथ विद्रोह का आगाज किया। संथालों का विद्रोह केवल अंग्रेजों के खिलाफ नहीं था। बल्कि उन्का विद्रोह संताल में दबदबा बनाए बैठे रसूखदार अमलों, सूदखोरों और जमीनदारों के खिलाफ था। 1855 का वो हूल राजस्व प्रणाली, सूदखोरी प्रथा और जमींदारी व्यवस्था को समाप्त करने की प्रतिक्रिया के रूप में शुरू हुआ। यह ओपनिवेशिक शासन के उत्पीड़न के खिलाफ बड़ी शुरुआत थी।
    किस्सा इस तरह हे-1832 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने वर्तमान झारखंड में दामिन-ए-कोह क्षेत्र का सीमांकन किया और संथालों को इस क्षेत्र में बसने के लिए आमंत्रित किया। भूमि और आर्थिक सुविधाओं के वादे के कारण धालभूम, मानभूम, हजारीबाग, मिदनापुर आदि से बड़ी संख्या में संथाल आकर बस गए।

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