Main ne pehli baar katha suna hua, sun ke yesa laga ki kai janam ke punnya se sunne mila(Katha) Hirday man pavitra sabdo me bayaan nahi(Mere dwaara) Ho sakta hai, katha sunane ke liye charan bandna, jai shri krishan!
(महात्मा पृथु) करनेके लिये तुम्हारा वध करूँगा । यदि मेरे कहनेसे आज संसारका कल्याण नहीं करोगी तो अपने बाणसे तुम्हारा नाश कर दूंगा और अपनेको ही पृथ्वीरूपमें प्रकट करके स्वयं ही प्रजाको धारण करूंगा ; इसलिये तुम मेरी आज्ञा मानकर समस्त प्रजाकी जीवन - रक्षा करो ; क्योंकि तुम सबके धारणमें समर्थ हो । इस समय मेरी पुत्री बन जाओ ; तभी मैं इस भयङ्कर बाणको , जो | तुम्हारे वधके लिये उद्यत है , रोदूंगा । पृथ्वी बोली - वीर ! नि : संदेह मैं यह सब कुछ करूंगी । मेरे लिये कोई बछड़ा देखो , जिसके प्रति | स्नेहयुक्त होकर मैं दूध दे सकूँ । धर्मात्माओंमें श्रेष्ठ भूपाल ! तुम मुझे सब ओर बराबर कर दो , जिससे | मेरा दूध सब ओर बह सके । तब राजा पृथुने अपने धनुषकी नोकसे लाखों पर्वतोंको उखाड़ा और उन्हें एक स्थानपर एकत्रित | किया । इससे पर्वत बढ़ गये । इससे पहलेकी सृष्टि में भूमि समतल न होनेके कारण पुरों अथवा | ग्रामोंका कोई सीमावद्ध विभाग नहीं हो सका था । | उस समय अन , गोरक्षा , खेती और व्यापार भी नहीं होते थे । यह सब तो वेन - कुमार पृथुके | समयसे ही आरम्भ हुआ है । भूमिका जो - जो भाग समतल था , वहीं - वहींपर समस्त प्रजाने निवास | करना पसंद किया । उस समयतक प्रजाका आहार | केवल फल - मूल ही था और वह भी बड़ी कठिनाईसे मिलता था । राजा पृथुने स्वायम्भुव | मनुको बछड़ा बनाकर अपने हाथमें ही पृथ्वीको दुहा । उन प्रतापी नरेशने पृथ्वीसे सब प्रकारके अनोंका दोहन किया । उसी अन्नसे आज भी सब | प्रजा जीवन धारण करती है । उस समय ऋषि , देवता , पितर , नाग , दैत्य , यक्ष , पुण्यजन , गन्धर्व , पर्वत और वृक्ष - सबने पृथ्वीको दुहा । उनके दूध , | बछड़ा , पात्र और दुहनेवाला - ये सभी पृथक्
( महात्मा पृथु ) पृथक् थे । ऋषियोंके चन्द्रमा बछड़ा बने , बृहस्पतिने दुहनेका काम किया , तपोमय ब्रह्म उनका दूध था और वेद ही उनके पात्र थे । देवताओंने सुवर्णमय पात्र लेकर पुष्टिकारक दूध दुहा । उनके लिये इन्द्र बछड़ा बने और भगवान् सूर्यने दुहनेका काम किया । पितरोंका चाँदीका पात्र था । प्रतापी यम बछड़ा बने , अन्तकने दूध दुहा । उनके दूधको ' स्वधा ' नाम दिया गया है । नागोंने तक्षकको बछड़ा बनाया । तुम्बीका पात्र रखा । ऐरावत नागसे | दुहनेका काम लिया और विषरूपी दुग्धका दोहन | किया । असुरोंमें मधु दुहनेवाला बना । उसने मायामय दूध दुहा । उस समय विरोचन बछड़ा बना था और लोहेके पात्रमें दूध दुहा गया था । यक्षोंका कच्चा पात्र था । कुबेर वछड़ा बने थे । रजतनाभ यक्ष दुहनेवाला था और अन्तर्धान होनेकी विद्या ही उनका दूध था । राक्षसेन्द्रोंमें सुमाली नामका राक्षस बछड़ा बना । रजतनाभ दुहनेवाला था । उसने कपालरूपी पात्रमें शोणितरूपी दूधका दोहन किया । गन्धोंमें चित्ररथने बछड़ेका | काम पूरा किया । कमल ही उनका पात्र था । सुरुचि दुहनेवाला था और पवित्र सुगन्ध ही उनका दूध था । पर्वतोंमें महागिरि मेरुने हिमवान्को बछड़ा बनाया और स्वयं दुहनेवाला बनकर शिलामय पात्रमें रत्नों एवं औषधियोंको दूधके रूपमें दुहा । वृक्षोंमें प्लक्ष ( पाकड़ ) बछड़ा था । खिले हुए शालके वृक्षने दुहनेका काम किया । पलाशका पात्र था और जलने तथा कटनेपर पुनः अङ्कुरित हो जाना ही उनका दूध था । इस प्रकार सबका धारण - पोषण करनेवाली यह पावन वसुन्धरा समस्त चराचर जगत्की आधारभूता तथा उत्पत्तिस्थान है । यह सब कामनाओंको देनेवाली तथा सब प्रकारके अनोंको अङ्कुरित करनेवाली है । गोरूपा पृथ्वी मेदिनीके
महात्मा पृथु महान राजा थे (उनके बारे में ब्रह्म पुराण में) महात्मा पृथु - जैसे सत्पुत्रने उत्पन्न होकर वेनको ' पुम् ' नामक नरकसे छुड़ा दिया । उनका अभिषेक करनेके लिये समुद्र और सभी नदियाँ रत्न एवं जल लेकर स्वयं ही उपस्थित हुई । आङ्गिरस देवताओंके साथ भगवान् ब्रह्माजी तथा समस्त चराचर भूतोंने वहाँ आकर राजा पृथुका राज्याभिषेक किया । उन महाराजने सभी प्रजाका मनोरञ्जन किया । उनके पिताने प्रजाको बहुत दुःखी किया था , किन्तु पृथुने उन सबको प्रसन्न कर लिया ; प्रजाका मनोरञ्जन करनेके कारण ही उनका नाम राजा हुआ । वे जब समुद्रकी यात्रा करते तब उसका जल स्थिर हो जाता था । पर्वत उन्हें जानेके लिये मार्ग दे देते थे और उनके रथकी ध्वजा कभी भङ्ग नहीं हुई । उनके राज्यमें पृथ्वी बिना जोते - बोये ही अन्न पैदा करती थी । राजाका चिन्तन करनेमात्रसे अन्न सिद्ध हो जाता था । सभी गौएँ कामधेनु बन गयी थीं और पत्तोंके दोने - दोनेमें मधु भरा रहता था । उसी समय पृथुने पैतामह ( ब्रह्माजीसे सम्बन्ध रखनेवाला ) -यज्ञ किया । उसमें सोमाभिषवके दिन सूति ( सोमरस निकालनेकी भूमि ) -से परम बुद्धिमान् सूतकी उत्पत्ति हुई । उसी महायज्ञमें विद्वान् मागधका भी प्रादुर्भाव हुआ । उन दोनोंको महर्षियोंने पृथुकी स्तुति करनेके लिये बुलाया और कहा - ' तुम लोग इन महाराजको स्तुति करो । यह कार्य तुम्हारे अनुरूप है और ये महाराज भी इसके योग्य पात् हैं । ' यह सुनकर सूत और मागधने उन महर्षियोंसे कहा - ' हम अपने कर्मोंसे देवताओं तथा ऋषियोंको प्रसन्न करते हैं । इन महाराजका नाम , कर्म , लक्षण और यश - कुछ भी हमें ज्ञात नहीं है , जिससे इन तेजस्वी नरेशकी हम स्तुति कर सकें । ' तब ऋषियोंने कहा- भविष्यमें होनेवाले गुणोंका उल्लेख करते हुए स्तुति करो । ' उन्होंने वैसा ही किया । उन्होंने जो - जो कर्म बताये , उन्हींको महाबली पृथुने पीछेसे पूर्ण किया । तभीसे लोकमें सूत , मागध और वन्दीजनोंके द्वारा आशीर्वाद दिलानेकी परिपाटी चल पड़ी । वे दोनों जब स्तुति कर चुके , तब महाराज पृथुने अत्यन्त प्रसन्न होकर अनूप देशका राज्य सूतको और मगधका मागधको दिया । पृथुको देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुई प्रजासे महर्षियोंने कहा - ' ये महाराज तुम्हें जीविका प्रदान करनेवाले होंगे । ' यह सुनकर सारी प्रजा महात्मा राजा पृथुकी ओर दौड़ी और बोली - ' आप हमारे लिये जीविकाका प्रबन्ध कर दें । ' जब प्रजाओंने उन्हें इस प्रकार घेरा , तब वे उनका हित करनेकी इच्छासे धनुष - बाण हाथमें ले पृथ्वीको ओर दौड़े । पृथ्वी उनके भयसे थर्रा उठी और गौका रूप धारण करके भागी । तब पृथुने धनुष लेकर भागती हुई पृथ्वीका पीछा किया । पृथ्वी उनके भयसे ब्रह्मलोक आदि अनेक लोकोंमें गयी , किन्तु सब जगह उसने धनुष लिये हुए पृथुको अपने आगे ही देखा । अग्निके समान प्रज्वलित तीखे बाणोंके कारण उनका तेज और भी उद्दीप्त दिखायी देता था । वे महान् योगी महात्मा देवताओंके लिये भी दुर्धर्ष प्रतीत होते थे । जय और कहीं रक्षा न हो सकी , तब तीनों लोकोंकी पूजनीया पृथ्वी हाथ जोड़कर फिर महाराज पृथुकी ही शरणमें आयी और इस प्रकार बोली - ' राजन् ! सब लोक मेरे ही ऊपर स्थित हैं । मैं ही इस जगत्को धारण करती हूँ । यदि | मेरा नाश हो जाय तो समस्त प्रजा नष्ट हो जायगी । इस बातको अच्छी तरह समझ लेना । भूपाल ! यदि तुम प्रजाका कल्याण चाहते हो तो मेरा वध न करो । मैं जो बात कहती हूँ , उसे सुनो ; ठीक उपायसे आरम्भ किये हुए सब कार्य सिद्ध होते हैं । तुम उस उपायपर ही दृष्टिपात करो , जिससे इस प्रजाको जीवित रख सकोगे । मेरी हत्या करके भी तुम प्रजाके पालन - पोषणमें समर्थ न होगे । महामते ! तुम क्रोध त्याग दो , मैं तुम्हारे अनुकूल हो जाऊँगी । तिर्यग्योनिमें भी स्त्रीको अवध्य बताया गया है । यदि यह बात सत्य है तो तुम्हें धर्मका त्याग नहीं करना चाहिये । ' । ! पृथुने कहा - भद्रे ! जो अपने या पराये किसी एकके लिये बहुत - से प्राणियोंका वध करता है , उसे अनन्त पातक लगता है । परन्तु जिस अशुभ व्यक्तिका वध करनेपर बहुत - से लोग सुखी हों , उसके मारनेसे पातक या उपपातक कुछ नहीं लगता । अतः वसुन्धरे । मैं प्रजाका कल्याण
Katha vachak mahodaya dhanyabad aapko kitni sundar katha sunai par aapne sare Nishad jati ko chor bana diya to kya maharaja prathu ke barhe bhai maharaja Nishadraj Bhagwan RAM ke sakha maharaja Nishadraj Guharaj Nishad satyawati kewat ke putra Bhagwan ved vyas Nishad sauryaveer eklavya Nishad guru garkhnath ke guru siddhrishi machhendra nath Nishad sab ke sab dhanya ho aapko kattha ka jai Ramraj jai Ramraj
Ek khas bat jo prithu mahraj ne kiya wah hai is dharati ko jo sidhi thi use thoda jhuka diya.yani unse pahale yah dharati vertical thi wah South pole par 23.5* jhuk gayee char Ritu ki six ho gayee din rat chhote bade hone lage.
Jai shri krishna , mera ek sawal hai, jab raja Ven ki bhujaon ka mardan kiya gya to ParthuMaharaj utpan hue, aur Archji utpann huyi, toh sawal hai ki jab dono Ven ki santan the toh dono ka Vivha kyu hua.. wo bhai - bhen kyu nhi samje gye. Kripya mujhe iss cheez ko samjhayen.
@@Kshatriya__Yaduvanshi. ishwaku Suryavanshi the unke Vansh Mein Prithu hue ..prithtu ke age Vansh Mein Ram hue hain To pritu Suryavanshi hua... Tum jakar acche se padh lo ya to mujhe koi link do Saboot do
@@devilforbadcorruptpersons5837 tumhare pass Harivansh Puran hai hai to jakar tum padho Harivansh Puran mein likha hua hai swayambhu Manu Brahma ji se utpann hue the swayambhu Manu ki teen putri do Putra the ek priyavrat dusra uttanpad uttanpad ko Rishi atri ne apna Putra banaa liya Priyavrat ko brahmano ne apna Putra banaa liya Rishi atri ne Putra banaa liya tha isliye vah chandravanshi Ho Gaya is vansh mein maharaja prithu ka janm hua tha Harivansh Puran mein detail ke sath bataya Gaya Hai
❤️🙏🏻 AC BHAKTIVEDANTA SWAMI SIRLA PRABHUPADA JI KI JAI 🙏🏻❤️ hare krishna 🙏🏻❤️
बहुत सुंदर कथा है , बहन
Main ne pehli baar katha suna hua, sun ke yesa laga ki kai janam ke punnya se sunne mila(Katha) Hirday man pavitra sabdo me bayaan nahi(Mere dwaara) Ho sakta hai, katha sunane ke liye charan bandna, jai shri krishan!
🙏 Harekrishna Good one
Hare Krishna Mataji🙏😊
Dandabat pranam
Thank you very much
Jai Shri Krishna
धन्यवाद
Nice story 🙏🙏 Jay shree krishna pranam
Hare Krishna 🙏🙏
Hare Krishna mata Jee... Bahut acchi story lagi
Next part plzz
Dantvat pranam
Hare Krishna 🙏
Hare krishna hare hare.
🙏🙏🙏⚘🌹❤💗🙏
Aap Ko Dhanyavaad
🙏🙏 জয় রাধে
Hk mataji 🙏🏻dp so nicely narrated. Really Very effective.
Hare krishna
Bhut ache
🙏🚩🌹
Very nice .
🙏🏻🙏🏻
Very nice .hare Krishna
Om Hari
राजा पृथु
Jay shree krushna, very good sister
হৰে কৃষ্ণ
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
Hare krisna Hare Ram
RADHE RADHE SHYAM SE MILA DE🙏🌷🌹🌻💐🌸
JAI RAJA PRITHU KI
इसकी सत्यता का कोई प्रमाण माता जी ,,
It's given in Srimad Bhagavatam
Hare krishna
So sweet snail ... Nice story...
बहुत बढ़िया कथा माता श्री 🙏🙏🙏
आपसे एक विनती है आप रानी मंदोदरी और रानी तारा का जन्म और विवाह की कथा सुनाये
Thank you
(महात्मा पृथु) करनेके लिये तुम्हारा वध करूँगा । यदि मेरे कहनेसे आज संसारका कल्याण नहीं करोगी तो अपने बाणसे तुम्हारा नाश कर दूंगा और अपनेको ही पृथ्वीरूपमें प्रकट करके स्वयं ही प्रजाको धारण करूंगा ; इसलिये तुम मेरी आज्ञा मानकर समस्त प्रजाकी जीवन - रक्षा करो ; क्योंकि तुम सबके धारणमें समर्थ हो । इस समय मेरी पुत्री बन जाओ ; तभी मैं इस भयङ्कर बाणको , जो | तुम्हारे वधके लिये उद्यत है , रोदूंगा । पृथ्वी बोली - वीर ! नि : संदेह मैं यह सब कुछ करूंगी । मेरे लिये कोई बछड़ा देखो , जिसके प्रति | स्नेहयुक्त होकर मैं दूध दे सकूँ । धर्मात्माओंमें श्रेष्ठ भूपाल ! तुम मुझे सब ओर बराबर कर दो , जिससे | मेरा दूध सब ओर बह सके । तब राजा पृथुने अपने धनुषकी नोकसे लाखों पर्वतोंको उखाड़ा और उन्हें एक स्थानपर एकत्रित | किया । इससे पर्वत बढ़ गये । इससे पहलेकी सृष्टि में भूमि समतल न होनेके कारण पुरों अथवा | ग्रामोंका कोई सीमावद्ध विभाग नहीं हो सका था । | उस समय अन , गोरक्षा , खेती और व्यापार भी नहीं होते थे । यह सब तो वेन - कुमार पृथुके | समयसे ही आरम्भ हुआ है । भूमिका जो - जो भाग समतल था , वहीं - वहींपर समस्त प्रजाने निवास | करना पसंद किया । उस समयतक प्रजाका आहार | केवल फल - मूल ही था और वह भी बड़ी कठिनाईसे मिलता था । राजा पृथुने स्वायम्भुव | मनुको बछड़ा बनाकर अपने हाथमें ही पृथ्वीको दुहा । उन प्रतापी नरेशने पृथ्वीसे सब प्रकारके अनोंका दोहन किया । उसी अन्नसे आज भी सब | प्रजा जीवन धारण करती है । उस समय ऋषि , देवता , पितर , नाग , दैत्य , यक्ष , पुण्यजन , गन्धर्व , पर्वत और वृक्ष - सबने पृथ्वीको दुहा । उनके दूध , | बछड़ा , पात्र और दुहनेवाला - ये सभी पृथक्
Gendalal ven garbara dham
( महात्मा पृथु ) पृथक् थे । ऋषियोंके चन्द्रमा बछड़ा बने , बृहस्पतिने दुहनेका काम किया , तपोमय ब्रह्म उनका दूध था और वेद ही उनके पात्र थे । देवताओंने सुवर्णमय पात्र लेकर पुष्टिकारक दूध दुहा । उनके लिये इन्द्र बछड़ा बने और भगवान् सूर्यने दुहनेका काम किया । पितरोंका चाँदीका पात्र था । प्रतापी यम बछड़ा बने , अन्तकने दूध दुहा । उनके दूधको ' स्वधा ' नाम दिया गया है । नागोंने तक्षकको बछड़ा बनाया । तुम्बीका पात्र रखा । ऐरावत नागसे | दुहनेका काम लिया और विषरूपी दुग्धका दोहन | किया । असुरोंमें मधु दुहनेवाला बना । उसने मायामय दूध दुहा । उस समय विरोचन बछड़ा बना था और लोहेके पात्रमें दूध दुहा गया था । यक्षोंका कच्चा पात्र था । कुबेर वछड़ा बने थे । रजतनाभ यक्ष दुहनेवाला था और अन्तर्धान होनेकी विद्या ही उनका दूध था । राक्षसेन्द्रोंमें सुमाली नामका राक्षस बछड़ा बना । रजतनाभ दुहनेवाला था । उसने कपालरूपी पात्रमें शोणितरूपी दूधका दोहन किया । गन्धोंमें चित्ररथने बछड़ेका | काम पूरा किया । कमल ही उनका पात्र था । सुरुचि दुहनेवाला था और पवित्र सुगन्ध ही उनका दूध था । पर्वतोंमें महागिरि मेरुने हिमवान्को बछड़ा बनाया और स्वयं दुहनेवाला बनकर शिलामय पात्रमें रत्नों एवं औषधियोंको दूधके रूपमें दुहा । वृक्षोंमें प्लक्ष ( पाकड़ ) बछड़ा था । खिले हुए शालके वृक्षने दुहनेका काम किया । पलाशका पात्र था और जलने तथा कटनेपर पुनः अङ्कुरित हो जाना ही उनका दूध था । इस प्रकार सबका धारण - पोषण करनेवाली यह पावन वसुन्धरा समस्त चराचर जगत्की आधारभूता तथा उत्पत्तिस्थान है । यह सब कामनाओंको देनेवाली तथा सब प्रकारके अनोंको अङ्कुरित करनेवाली है । गोरूपा पृथ्वी मेदिनीके
महात्मा पृथु महान राजा थे (उनके बारे में ब्रह्म पुराण में)
महात्मा पृथु - जैसे सत्पुत्रने उत्पन्न होकर वेनको ' पुम् ' नामक नरकसे छुड़ा दिया । उनका अभिषेक करनेके लिये समुद्र और सभी नदियाँ रत्न एवं जल लेकर स्वयं ही उपस्थित हुई । आङ्गिरस देवताओंके साथ भगवान् ब्रह्माजी तथा समस्त चराचर भूतोंने वहाँ आकर राजा पृथुका राज्याभिषेक किया । उन महाराजने सभी प्रजाका मनोरञ्जन किया । उनके पिताने प्रजाको बहुत दुःखी किया था , किन्तु पृथुने उन सबको प्रसन्न कर लिया ; प्रजाका मनोरञ्जन करनेके कारण ही उनका नाम राजा हुआ । वे जब समुद्रकी यात्रा करते तब उसका जल स्थिर हो जाता था । पर्वत उन्हें जानेके लिये मार्ग दे देते थे और उनके रथकी ध्वजा कभी भङ्ग नहीं हुई । उनके राज्यमें पृथ्वी बिना जोते - बोये ही अन्न पैदा करती थी । राजाका चिन्तन करनेमात्रसे अन्न सिद्ध हो जाता था । सभी गौएँ कामधेनु बन गयी थीं और पत्तोंके दोने - दोनेमें मधु भरा रहता था । उसी समय पृथुने पैतामह ( ब्रह्माजीसे सम्बन्ध रखनेवाला ) -यज्ञ किया । उसमें सोमाभिषवके दिन सूति ( सोमरस निकालनेकी भूमि ) -से परम बुद्धिमान् सूतकी उत्पत्ति हुई । उसी महायज्ञमें विद्वान् मागधका भी प्रादुर्भाव हुआ । उन दोनोंको महर्षियोंने पृथुकी स्तुति करनेके लिये बुलाया और कहा - ' तुम लोग इन महाराजको स्तुति करो । यह कार्य तुम्हारे अनुरूप है और ये महाराज भी इसके योग्य पात् हैं । ' यह सुनकर सूत और मागधने उन महर्षियोंसे कहा - ' हम अपने कर्मोंसे देवताओं तथा ऋषियोंको प्रसन्न करते हैं । इन महाराजका नाम , कर्म , लक्षण और यश - कुछ भी हमें ज्ञात नहीं है , जिससे इन तेजस्वी नरेशकी हम स्तुति कर सकें । ' तब ऋषियोंने कहा- भविष्यमें होनेवाले गुणोंका उल्लेख करते हुए स्तुति करो । ' उन्होंने वैसा ही किया । उन्होंने जो - जो कर्म बताये , उन्हींको महाबली पृथुने पीछेसे पूर्ण किया । तभीसे लोकमें सूत , मागध और वन्दीजनोंके द्वारा आशीर्वाद दिलानेकी परिपाटी चल पड़ी । वे दोनों जब स्तुति कर चुके , तब महाराज पृथुने अत्यन्त प्रसन्न होकर अनूप देशका राज्य सूतको और मगधका मागधको दिया । पृथुको देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुई प्रजासे महर्षियोंने कहा - ' ये महाराज तुम्हें जीविका प्रदान करनेवाले होंगे । ' यह सुनकर सारी प्रजा महात्मा राजा पृथुकी ओर दौड़ी और बोली - ' आप हमारे लिये जीविकाका प्रबन्ध कर दें । ' जब प्रजाओंने उन्हें इस प्रकार घेरा , तब वे उनका हित करनेकी इच्छासे धनुष - बाण हाथमें ले पृथ्वीको ओर दौड़े । पृथ्वी उनके भयसे थर्रा उठी और गौका रूप धारण करके भागी । तब पृथुने धनुष लेकर भागती हुई पृथ्वीका पीछा किया । पृथ्वी उनके भयसे ब्रह्मलोक आदि अनेक लोकोंमें गयी , किन्तु सब जगह उसने धनुष लिये हुए पृथुको अपने आगे ही देखा । अग्निके समान प्रज्वलित तीखे बाणोंके कारण उनका तेज और भी उद्दीप्त दिखायी देता था । वे महान् योगी महात्मा देवताओंके लिये भी दुर्धर्ष प्रतीत होते थे । जय और कहीं रक्षा न हो सकी , तब तीनों लोकोंकी पूजनीया पृथ्वी हाथ जोड़कर फिर महाराज पृथुकी ही शरणमें आयी और इस प्रकार बोली - ' राजन् ! सब लोक मेरे ही ऊपर स्थित हैं । मैं ही इस जगत्को धारण करती हूँ । यदि | मेरा नाश हो जाय तो समस्त प्रजा नष्ट हो जायगी । इस बातको अच्छी तरह समझ लेना । भूपाल ! यदि तुम प्रजाका कल्याण चाहते हो तो मेरा वध न करो । मैं जो बात कहती हूँ , उसे सुनो ; ठीक उपायसे आरम्भ किये हुए सब कार्य सिद्ध होते हैं । तुम उस उपायपर ही दृष्टिपात करो , जिससे इस प्रजाको जीवित रख सकोगे । मेरी हत्या करके भी तुम प्रजाके पालन - पोषणमें समर्थ न होगे । महामते ! तुम क्रोध त्याग दो , मैं तुम्हारे अनुकूल हो जाऊँगी । तिर्यग्योनिमें भी स्त्रीको अवध्य बताया गया है । यदि यह बात सत्य है तो तुम्हें धर्मका त्याग नहीं करना चाहिये । ' । ! पृथुने कहा - भद्रे ! जो अपने या पराये किसी एकके लिये बहुत - से प्राणियोंका वध करता है , उसे अनन्त पातक लगता है । परन्तु जिस अशुभ व्यक्तिका वध करनेपर बहुत - से लोग सुखी हों , उसके मारनेसे पातक या उपपातक कुछ नहीं लगता । अतः वसुन्धरे । मैं प्रजाका कल्याण
Katha vachak mahodaya dhanyabad aapko kitni sundar katha sunai par aapne sare Nishad jati ko chor bana diya to kya maharaja prathu ke barhe bhai maharaja Nishadraj Bhagwan RAM ke sakha maharaja Nishadraj Guharaj Nishad satyawati kewat ke putra Bhagwan ved vyas Nishad sauryaveer eklavya Nishad guru garkhnath ke guru siddhrishi machhendra nath Nishad sab ke sab dhanya ho aapko kattha ka jai Ramraj jai Ramraj
Ek khas bat jo prithu mahraj ne kiya wah hai is dharati ko jo sidhi thi use thoda jhuka diya.yani unse pahale yah dharati vertical thi wah South pole par 23.5* jhuk gayee char Ritu ki six ho gayee din rat chhote bade hone lage.
Jai shri krishna , mera ek sawal hai, jab raja Ven ki bhujaon ka mardan kiya gya to ParthuMaharaj utpan hue, aur Archji utpann huyi, toh sawal hai ki jab dono Ven ki santan the toh dono ka Vivha kyu hua.. wo bhai - bhen kyu nhi samje gye. Kripya mujhe iss cheez ko samjhayen.
Nishadon Ne bahut Kranti Hoti Hai Bharat Ki Azadi ke liye FIR to Nishad Suryavanshi Ho Gaya Jis Tarah Prithu Suryavanshi hai
महाराजा पृथु चंद्रवंशी है पहले अच्छे से पढ़ लो
@@Kshatriya__Yaduvanshi. ishwaku Suryavanshi the unke Vansh Mein Prithu hue ..prithtu ke age Vansh Mein Ram hue hain To pritu Suryavanshi hua... Tum jakar acche se padh lo ya to mujhe koi link do Saboot do
@@devilforbadcorruptpersons5837 😂😂
@@Kshatriya__Yaduvanshi. humko bhi ISI Tarah Tumhare per bahut Hansi a rahi hai ki tum Yadav log Har Kisi Ko Chandravanshi banaa dete Ho 😄 🤣 😂 😆 😄
@@devilforbadcorruptpersons5837 tumhare pass Harivansh Puran hai
hai to jakar tum padho Harivansh Puran mein likha hua hai swayambhu Manu Brahma ji se utpann hue the swayambhu Manu ki teen putri do Putra the ek priyavrat dusra uttanpad uttanpad ko Rishi atri ne apna Putra banaa liya Priyavrat ko brahmano ne apna Putra banaa liya Rishi atri ne Putra banaa liya tha isliye vah chandravanshi Ho Gaya is vansh mein maharaja prithu ka janm hua tha Harivansh Puran mein detail ke sath bataya Gaya Hai
Jab Prithvi ko Suryavanshi bataya Gaya to nishadon Ko nicha Bata Kar kyon pichhada jaati bataya Gaya Chori dakaiti to Thakur Pandit bhi karta hai
Hare Krishna 🙏 Mata ji 🙏
जय श्री राधे कृष्णा
Radhey Radhey ji 🙏
🙏🙏🙏🙏🙏 জয় রাধে
Hare krishna
Hare Krishna
Hare krishna