बहुत सुंदर प्रस्तुति की परंतु वेद व्यास रचित महाभारत में कर्ण ने अपनी पहली धनुर्विद्या द्रोणाचार्य से ही सीखी थी। कर्ण के पिता अधिरथ धृतराष्ट्र्र के मित्र थे। सूत शूद्र नहीं होता , सूत क्षत्रिय उपजाति थे और अधिकतर रथ चलते थे परंतु कई सूत राजा या सेनापति भी रहे हैं। कीचक भी एक सूत था।
संभव है, महाभारत हो या रामायण की कथाएं, लेखकों के अपने अपने विचार रहे हैं और उन्ही विचारों को उन्होंने अपनी किताबों में दर्शाया है। रामधारी सिंह दिनकर जी ने इस काव्य रचना में कर्ण को हम सब के सामने बिल्कुल उसी तरह दिखाया है जिस कर्ण को हम बचपन से महाभारत में देखते और सुनते आए हैं। हम हिंदी महाकाव्यों या इन पुराणिक कहानियों की सीख अपने जीवन में उतार पाएं, यही जरूरी है, अब वो चाहे श्री वेद व्यास जी की महाभारत पढ़ कर करें, या दिनकर जी की रश्मिरथी। समझ और खुद पर किया किया गया काम जरूरी है। 😊
Bahut bahut dhanyawad bhaiya ❤❤❤
बहुत सुंदर प्रस्तुति की परंतु वेद व्यास रचित महाभारत में कर्ण ने अपनी पहली धनुर्विद्या द्रोणाचार्य से ही सीखी थी। कर्ण के पिता अधिरथ धृतराष्ट्र्र के मित्र थे। सूत शूद्र नहीं होता , सूत क्षत्रिय उपजाति थे और अधिकतर रथ चलते थे परंतु कई सूत राजा या सेनापति भी रहे हैं। कीचक भी एक सूत था।
संभव है, महाभारत हो या रामायण की कथाएं, लेखकों के अपने अपने विचार रहे हैं और उन्ही विचारों को उन्होंने अपनी किताबों में दर्शाया है। रामधारी सिंह दिनकर जी ने इस काव्य रचना में कर्ण को हम सब के सामने बिल्कुल उसी तरह दिखाया है जिस कर्ण को हम बचपन से महाभारत में देखते और सुनते आए हैं। हम हिंदी महाकाव्यों या इन पुराणिक कहानियों की सीख अपने जीवन में उतार पाएं, यही जरूरी है, अब वो चाहे श्री वेद व्यास जी की महाभारत पढ़ कर करें, या दिनकर जी की रश्मिरथी। समझ और खुद पर किया किया गया काम जरूरी है। 😊
Nice❤
Thanks 👍