सूचना- हमारे गावं कोडरा (सरेनी) निकट लालगंज मे फाग का अति विशिष्ट मंजर आज सम्पन्न हुआ। वाह🦋
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- เผยแพร่เมื่อ 9 ก.พ. 2025
- सूचना- हमारे गावं कोडरा (सरेनी) निकट लालगंज मे फाग का अति विशिष्ट मंजर आज सम्पन्न हुआ। वाह
हर वर्ष फागुन का महीना आते ही सारा वातावरण जैसे रंगीन हो जाता है और हो भी क्यों न, रंगों के त्योहार 'होली' की बारी जो रहती है।
पीली चूनर ओढ़े प्रकृति और जाति भेद, ऊँचनीच, अमीरी-गरीबी से ऊपर उठकर मित्रता और भाईचारे का त्योहार होली, मानो इन सब में फागुनी बहारें रंग भर रही हों।
'फाग' के सौन्दर्य को कवियों और शायरों ने बखूबी कलमबंद किया है।
अच्छा अब जाने दो मुझको घर में कितना काम है!...
घाट की सीढ़ी तोड़-तोड़ कर बन-तुलसा उग आयीं
झुरमुट से छन जल पर पड़ती सूरज की परछाईं
तोतापंखी किरनों में हिलती बाँसों की टहनी
यहीं बैठ कहती थी तुमसे सब कहनी-अनकहनी
आज खा गया बछड़ा माँ की रामायन की पोथी!
अच्छा अब जाने दो मुझको घर में कितना काम है!
इस सीढ़ी पर, यहीं जहाँ पर लगी हुई है काई
फिसल पड़ी थी मैं, फिर बाँहों में कितना शरमायी!
यहीं न तुमने उस दिन तोड़ दिया था मेरा कंगन!
यहाँ न आऊँगी अब, जाने क्या करने लगता मन!
मेरे सँग-सँग अकसर चौंक-चौंक उठता सन्नाटा...
लेकिन तब तो कभी न हममें तुममें पल-भर बनती!
तुम कहते थे जिसे छाँह है, मैं कहती थी घाम है!
अब तो नींद निगोड़ी सपनों-सपनों भटकी डोले
कभी-कभी तो बड़े सकारे कोयल ऐसे बोले
ज्यों सोते में किसी विषैली नागिन ने हो काटा
मेरे सँग-सँग अकसर चौंक-चौंक उठता सन्नाटा
पर फिर भी कुछ कभी न जाहिर करती हूँ इस डर से
कहीं न कोई कह दे कुछ, ये ऋतु इतनी बदनाम है!
ये फागुन की शाम है!
मन के फागुन-सरोज सिंह
अबकी बसंत जइसे ही
सुगबुगाइल बा
उठे लागल बा हियरा में
फगुनई बयार
गाछ से झरत पतई
करे लागल बा
समहत के तईयारी
टेसू नऊनिया नियर
कुल्ल्हड़ में...
घोर रहल बिया आलता
आमवा के माथ पs
बन्हा चुकल बा मऊर
गेना दुआर पs
सजा देले बा बनरवार
बेला-चमेली
इतरदान से
छिरिक देले बिया सुगंधी
जे अबके फागुन गाई...
कोयल,पपीहवा मगन
गा रहल बा सत्कार में फाग
बंसवारी में बयार मुग्ध मगन
छेड़ चूकल बा बांसुरी के तान
फाग के ई राग़ में
मनवा के ढोल-मजीरा
जोह रहल बा ऊ जोगी के
जे अबके फागुन गाई
"अहो जोगिनिया...अईनी हम छोड़ के
सहरिया के नवकरिया तोहरे कारन"
जोगीरा सा रा रा रा रा!