जंगल में मोर नाचा किसने देखा , जिसने देखा , मैने देखा ,तुने देखा, उसने देखा , इसने देखा , जिसने भी देखा उसी ने जाना क्योंकि उस वक्त .समय वहां जो था वह अकेला ही होता है ,दुसरा कोई नहीं।। जय गुरूदेव।।
आत्मा को घंटे और शंख की आवाज की धुन पर सहस्त्रदल कमल से नीचे उतार कर दोनो आंखों के बीच मनुष्य शरीर मे बैठाया अब ऐसा गुरु चाहिए जो स्वयं उस स्थान तक साधना करके पहुंच गया हे , किताबी ज्ञान नहीं पहुंचा सकता या स्वयं प्रयास कर नहीं पहुंच सकते हे क्यों कि रास्ते मे नीलगिरी पर्वत जिस पर आत्मा को चढ़ने पर बार बार चींटी की तरह फिसल जाती हे फिर बंक नाल का रास्ता जो बड़ा ऊंचा नीचा तेडा बांका घुमाव दार हे अंधेरा भी मिलता हे जहा बड़े बड़े भुजंग,शेर,भालू आदि की फुफकार, दहाड़ सूनाई देती हे जो गोतम बुद्ध को सुनाईं पढी थी अगर पिछे पलट कर देख लिया तो पागल हो जायेगा, आगे अद्यामहाशकति का लोक हे जहां स्त्रिया हि स्त्रियां हे जो बेहद खूबसूरत हे बडे बड़े साधक यही रुक जाता हे उनको लै लिया साधना वही रुक जातीं हे लेकिन पूरा गुरु किया तो साथ मे रहता हे वो छोटे बच्चे की तरह खीच के लै जाता हे आगे ईश्वर का रुप दिखाई दैता हे ,,, परम प्रकाश रूप दिन राती नहीं कछु चाहिए दिया ग्रत बाती, मन्दिर मे यही चिन्ह रखा हे ऊपर घंटा नीचे शंख, सामने दीपक ,बीच मे देवता जो स्वयं ज्योति स्वरूप हे इन्हें ही ईश्वर, जगदीश, भगवान, तीर्थंकर,खूदा, गाड़, काल भगवान, त्रिलोकीनाथ मीरा ने श्याम सुंदर, गोस्वामी जी ने राम , गोविन्द, बांके बिहारी आदि नाम से सम्बोधित किया, झींगुर की आवाज़ तो बहुत नीचे की हे जब मन एकाग्र होने लगता हे सामने प्रातः काल जैसा थोड़ा थोडा उजाला जिसे झाकोडिया ग्रामीण भाषा मे बोला जाता दिखाई पड़ता है उसी समय सीटी, चिड़ियाओं की चहचहाहट, झींगुर, घुंघरु की तरह की आवाज सूनाई देती हे नींद मे आकाश मे ऊड रहे हे ऐसे स्वप्न आते हे बड़ा हल्का पन महसूस होता हे प्रश्ननता, आनन्द की अनुभूति होती हे मगर मुख्य पहुचाहुआ गुरु मिले, किताब या प्रवचनों से नहीं गुरु की दया का सहारा जरूरी हे ,, कलयुग केवल नाम आधारा,,, ये नाम वर्णनात्मक नहीं धुनातमक हे , रास्ता मंत्र, भैदी बताया ये गा। अभी हम उल्लू व चमगादड़ हे सूरज के बारे मे सून सकते हे आंख देने का काम व आंख साफ करने का काम रास्ते का भैदी गुरु करता हे,जय गुरु देव
"जिंदा मत" "ज़िंदा है मत तो ज़िंदा हैं हम, वरना मुर्दों से तो संसार भरा है !" इस बात को समझना जरूरी है कि, जिन सम्प्रदायो के भीतर से अब उनकी जान निकल चुकी है यानी उस मत में किसी भी स्तर के प्रकट गुरु मौजूद नहीं हैं, वे मत और सम्प्रदाय मरी हुई देह के समान हैं जो कि अब किसी तरह जिंदा नहीं किये जा सकते हैं। जब तक कि उन मज़हबों और मतों के चलाने वाले आचार्य और उनके बताये अंतर अभ्यास को करने वाले गुरमुख अभ्यासी मौजूद रहे, वे सभी मत, मज़हब और सम्प्रदाय जिंदा रहे। पर जब वे अभ्यासी भी न रहे, तब वे मत भी जिंदा न रह सके। सो अपने वक़्त के पहुंचे हुए, पर अब आज के वक़्त में अंतर्ध्यान हो चुके सन्त और संत मार्गीय साध, महात्माओं के मत में शामिल हो कर भी अब कुछ हासिल नहीं हो सकता है। इस तरह पोथियों में सर खपाने और लकीरें पीटने से कोई भी अंतर में नहीं जाग सकता है। क्योंकि मत की जान 'अंतर्मुख अभ्यास' की असल रीत पोथियों में नहीं लिखी गयी है और ना ही लिखी जा सकती है और ना ही पोथियों को पढ़ कर यह रीत हासिल ही की जा सकती है। सो अब के वक़्त में लगभग सभी अनजान हैं, ....कुछ ही सचेत और कोई विरला ही सुजान है। भेष धारी या वाचक ज्ञानी गुरुओं से अंतर का भेद हासिल नहीं हो सकता है। अब जो जिंदा मत हो यानी जहां जीते जागते 'धुर के ज्ञाता और धुन के भेदी' गुरु प्रकट कार्यवाही करते हों, तो वहीं वह मत जिंदा है और उसी मत से जुड़ कर ही जीव का काज पूरा और सुफल हो सकता है। देखा कि भक्ति तो सभी कर रहे हैं, पर किसकी.... ? यह तो वे खुद भी नहीं जानते। इस तरह की गफलत भरी भक्ति से, जो कि जीव को हो चुके पिछले गुरुओं की स्वार्थ पूर्ण टेक के सिवा और कुछ नहीं दे सकती। झूठे अहंकार के निर्बुद्ध अंधकार में धकेल देती है। कोई एक पिछले गुरू को मान रहा है, तो कोई दूसरे गुरु को। इस तरह देखा गया है कि वक़्त गुरु के अंतर्ध्यान होने पर मत में फाड़ पड़ जाती है और टुकड़े होते रहे हैं। इस तरह की स्वार्थ पूर्ण कार्यवाहियों से मत कमज़ोर होता जाता है। मत का फैलाव ओर विस्तार तो खूब नजर आता है, पर सब झूठा और खोखला ही है। विचारों के इस विस्तार में जीव तो कहीं खो जाता है, पर सच्चा कुल मालिक कभी नहीं मिल पाता। सच्चे मालिक से मिलने की सच्ची चाह और लगन ही जीव को अपने वक़्त के वर्तमान सतगुरु पूरे की खोज के लिए प्रेरित कर सकती है, और करती है। इसके अलावा अगर कोई और मतलब, स्वार्थ या चाह भक्ति के पीछे प्रेरक है, तो काज हरगिज ना बनेगा, यह भक्ति सच्ची नहीं है। "भक्ति सच्ची चाहिए चाहे कच्ची होए" कुल मालिक दयाल हर्ष, प्रेम और आनंद रस का सोत-पोत है, और सुरत उसकी निज अंश और जात है। सुरत के उसी सच्चे प्रेम, आनंद और निज को प्राप्त करने के सच्चे जतन और सच्ची कार्यवाही का नाम ही परमारथी करनी और 'सच्चा परमार्थ' है। 'सतगुरु स्वामी सदा सहाय' 'सप्रेम राधास्वामी' -------------------------------------------------- राधास्वामी हेरिटेज. www.radhasoamiheritage.org (परमपुरुष पूरणधनी समद हुज़ूर स्वामीजी महाराज के निज दैहिक अंशों व सन्तमत विश्वविद्यालय की स्थापना के प्रति प्रयासरत व समर्पित).
"जिंदा मत" "ज़िंदा है मत तो ज़िंदा हैं हम, वरना मुर्दों से तो संसार भरा है !" इस बात को समझना जरूरी है कि, जिन सम्प्रदायो के भीतर से अब उनकी जान निकल चुकी है यानी उस मत में किसी भी स्तर के प्रकट गुरु मौजूद नहीं हैं, वे मत और सम्प्रदाय मरी हुई देह के समान हैं जो कि अब किसी तरह जिंदा नहीं किये जा सकते हैं। जब तक कि उन मज़हबों और मतों के चलाने वाले आचार्य और उनके बताये अंतर अभ्यास को करने वाले गुरमुख अभ्यासी मौजूद रहे, वे सभी मत, मज़हब और सम्प्रदाय जिंदा रहे। पर जब वे अभ्यासी भी न रहे, तब वे मत भी जिंदा न रह सके। सो अपने वक़्त के पहुंचे हुए, पर अब आज के वक़्त में अंतर्ध्यान हो चुके सन्त और संत मार्गीय साध, महात्माओं के मत में शामिल हो कर भी अब कुछ हासिल नहीं हो सकता है। इस तरह पोथियों में सर खपाने और लकीरें पीटने से कोई भी अंतर में नहीं जाग सकता है। क्योंकि मत की जान 'अंतर्मुख अभ्यास' की असल रीत पोथियों में नहीं लिखी गयी है और ना ही लिखी जा सकती है और ना ही पोथियों को पढ़ कर यह रीत हासिल ही की जा सकती है। सो अब के वक़्त में लगभग सभी अनजान हैं, ....कुछ ही सचेत और कोई विरला ही सुजान है। भेष धारी या वाचक ज्ञानी गुरुओं से अंतर का भेद हासिल नहीं हो सकता है। अब जो जिंदा मत हो यानी जहां जीते जागते 'धुर के ज्ञाता और धुन के भेदी' गुरु प्रकट कार्यवाही करते हों, तो वहीं वह मत जिंदा है और उसी मत से जुड़ कर ही जीव का काज पूरा और सुफल हो सकता है। देखा कि भक्ति तो सभी कर रहे हैं, पर किसकी.... ? यह तो वे खुद भी नहीं जानते। इस तरह की गफलत भरी भक्ति से, जो कि जीव को हो चुके पिछले गुरुओं की स्वार्थ पूर्ण टेक के सिवा और कुछ नहीं दे सकती। झूठे अहंकार के निर्बुद्ध अंधकार में धकेल देती है। कोई एक पिछले गुरू को मान रहा है, तो कोई दूसरे गुरु को। इस तरह देखा गया है कि वक़्त गुरु के अंतर्ध्यान होने पर मत में फाड़ पड़ जाती है और टुकड़े होते रहे हैं। इस तरह की स्वार्थ पूर्ण कार्यवाहियों से मत कमज़ोर होता जाता है। मत का फैलाव ओर विस्तार तो खूब नजर आता है, पर सब झूठा और खोखला ही है। विचारों के इस विस्तार में जीव तो कहीं खो जाता है, पर सच्चा कुल मालिक कभी नहीं मिल पाता। सच्चे मालिक से मिलने की सच्ची चाह और लगन ही जीव को अपने वक़्त के वर्तमान सतगुरु पूरे की खोज के लिए प्रेरित कर सकती है, और करती है। इसके अलावा अगर कोई और मतलब, स्वार्थ या चाह भक्ति के पीछे प्रेरक है, तो काज हरगिज ना बनेगा, यह भक्ति सच्ची नहीं है। "भक्ति सच्ची चाहिए चाहे कच्ची होए" कुल मालिक दयाल हर्ष, प्रेम और आनंद रस का सोत-पोत है, और सुरत उसकी निज अंश और जात है। सुरत के उसी सच्चे प्रेम, आनंद और निज को प्राप्त करने के सच्चे जतन और सच्ची कार्यवाही का नाम ही परमारथी करनी और 'सच्चा परमार्थ' है। 'सतगुरु स्वामी सदा सहाय' 'सप्रेम राधास्वामी' -------------------------------------------------- राधास्वामी हेरिटेज. www.radhasoamiheritage.org (परमपुरुष पूरणधनी समद हुज़ूर स्वामीजी महाराज के निज दैहिक अंशों व सन्तमत विश्वविद्यालय की स्थापना के प्रति प्रयासरत व समर्पित).
🚫🚫🚫🚫🚫🚫🚫🚫🚫🚫🚫ये जो रामायण आपने लिखी है। ये सब आपका अनुभव नही है। सच्चा गुरु हमारे ही भीतर है, जैसी हमारी सोच है, जैसी हमारी कामना है, भीतर का गुरु आपको वैसा ही रास्ता दिखाता है। ये मेरा निजी अनुभव है।
Sach khoj academy bhi deep meaning karti ha nad kay bhahkunth kay vo hindu Muslim sikh ko ack he manntay ha kabir ji ko deeply samja ha sach khoj academy nay sikhnay bhahut milta ha dhram singh shatri sant ha veer ras may boltay ha dar koe nahi Hindu Muslim sikh ko veer ras nu samjatay ha narmi say bat nahi kartay atma gyan par he nishana rakhtay ha sariri ko nahi daykhtay atma par he talwar jasa war kartay ha sariri atma different dikhnay lagti ha kamal ha ağır koe oun ko sunn sakay kirpa mago vivaki shatri ha bharat kay
नाद को सुनना कोई साधना नहीं है, कोई जीवन भर सुनता रहे l इससे कोई गति नहीं होती है l परम सत्य नाद का भी साक्षी है l आजकल नाद और प्रकाश के नाम पर बहुत लोगों को भरमाया जा रहा है l स्वामी परमानंद गिरी जी वेदांत के प्रमुख जानकार और अनुभूति संपन्न व्यक्ति हैं l
Swami Ji is talking all valid things, high respect to him. To know more about his teaching, you can also read the meaning of Guru Nanak Dev Ji's Shabad "मन तू ज्योति स्वरूप है अपना मूल पहचान"
आपका कोटि कोटि शुकराना करती हूं आपने अनहद के बाद क्या करना है सब अच्छी तरह से समझा दिया है मिल के एक हो जाना है साक्षी भाव को भी छोड़ देना है बहुत अच्छी तरह से समझा दिया आपने सफर पूरा कर दिया आपका कोटि कोटि आभार
@@JassiSingh-ct9pv ऐसी आवाज जो, कहीं भी, किसी भी जगह सुनायी देती है, continuous, लगातार चलती है, ear ringing jaisa. झींगुर या अलग अलग आवाज जैसी होती है पर लगातार वो चलती रहती है. किसी गुरु से जुडे और साधना करे.. 👍👍
प्रणाम स्वामीजी 🙏🙏ओशो जी के जिस प्रवचन कि चर्चा आपने अंत में कि है कृपया उससे सम्बंधित वीडियो डालने कि कृपा कीजिए. ऐसे लग रहा है जैसे कि कहीं कुछ जानने कि उत्सुकता है और वह बाधित हो गई इसलिए कृपा करें.
Dhanywad, Swamiji Thanks, Jay Jay Oshojl and Parisar.
जैसे लग रहा है अपने भगवान ओशो की कमी पूर्ण कर दिया।
बहुत ही सुन्दर आभार ❤❤
Koti Koti Naman !
Very nice Jai guru ji
Gurudev Ki Jai Ho Beli Ram Tanwar
नमन् ❤
He parbhu aap hi satya hain
बहुत सुंदर विष्लेषण। आपको कोटि कोटि प्रणाम।
Naman guru dev
जंगल में मोर नाचा किसने देखा , जिसने देखा , मैने देखा ,तुने देखा, उसने देखा , इसने देखा , जिसने भी देखा उसी ने जाना क्योंकि उस वक्त .समय वहां जो था वह अकेला ही होता है ,दुसरा कोई नहीं।। जय गुरूदेव।।
Sach khoj academy say samjo deeply
हृदय से आभार , बहुत बढ़िया जानकारी दी आपने🙏🙏
बहुत सुंदर और स्पष्ट प्रवचन जी। प्रणाम।
समर्थ सतगुरु हरि की जय 🙏🌹🙏🌹🙏
आत्मा को घंटे और शंख की आवाज की धुन पर सहस्त्रदल कमल से नीचे उतार कर दोनो आंखों के बीच मनुष्य शरीर मे बैठाया अब ऐसा गुरु चाहिए जो स्वयं उस स्थान तक साधना करके पहुंच गया हे , किताबी ज्ञान नहीं पहुंचा सकता या स्वयं प्रयास कर नहीं पहुंच सकते हे क्यों कि रास्ते मे नीलगिरी पर्वत जिस पर आत्मा को चढ़ने पर बार बार चींटी की तरह फिसल जाती हे फिर बंक नाल का रास्ता जो बड़ा ऊंचा नीचा तेडा बांका घुमाव दार हे अंधेरा भी मिलता हे जहा बड़े बड़े भुजंग,शेर,भालू आदि की फुफकार, दहाड़ सूनाई देती हे जो गोतम बुद्ध को सुनाईं पढी थी अगर पिछे पलट कर देख लिया तो पागल हो जायेगा, आगे अद्यामहाशकति का लोक हे जहां स्त्रिया हि स्त्रियां हे जो बेहद खूबसूरत हे बडे बड़े साधक यही रुक जाता हे उनको लै लिया साधना वही रुक जातीं हे लेकिन पूरा गुरु किया तो साथ मे रहता हे वो छोटे बच्चे की तरह खीच के लै जाता हे आगे ईश्वर का रुप दिखाई दैता हे ,,, परम प्रकाश रूप दिन राती नहीं कछु चाहिए दिया ग्रत बाती, मन्दिर मे यही चिन्ह रखा हे ऊपर घंटा नीचे शंख, सामने दीपक ,बीच मे देवता जो स्वयं ज्योति स्वरूप हे इन्हें ही ईश्वर, जगदीश, भगवान, तीर्थंकर,खूदा, गाड़, काल भगवान, त्रिलोकीनाथ मीरा ने श्याम सुंदर, गोस्वामी जी ने राम , गोविन्द, बांके बिहारी आदि नाम से सम्बोधित किया, झींगुर की आवाज़ तो बहुत नीचे की हे जब मन एकाग्र होने लगता हे सामने प्रातः काल जैसा थोड़ा थोडा उजाला जिसे झाकोडिया ग्रामीण भाषा मे बोला जाता दिखाई पड़ता है उसी समय सीटी, चिड़ियाओं की चहचहाहट, झींगुर, घुंघरु की तरह की आवाज सूनाई देती हे नींद मे आकाश मे ऊड रहे हे ऐसे स्वप्न आते हे बड़ा हल्का पन महसूस होता हे प्रश्ननता, आनन्द की अनुभूति होती हे मगर मुख्य पहुचाहुआ गुरु मिले, किताब या प्रवचनों से नहीं गुरु की दया का सहारा जरूरी हे ,, कलयुग केवल नाम आधारा,,, ये नाम वर्णनात्मक नहीं धुनातमक हे , रास्ता मंत्र, भैदी बताया ये गा। अभी हम उल्लू व चमगादड़ हे सूरज के बारे मे सून सकते हे आंख देने का काम व आंख साफ करने का काम रास्ते का भैदी गुरु करता हे,जय गुरु देव
❤ जय गुरुदेव ❤️🌹🙏🙏
"जिंदा मत"
"ज़िंदा है मत तो ज़िंदा हैं हम, वरना मुर्दों से तो संसार भरा है !"
इस बात को समझना जरूरी है कि, जिन सम्प्रदायो के भीतर से अब उनकी जान निकल चुकी है यानी उस मत में किसी भी स्तर के प्रकट गुरु मौजूद नहीं हैं, वे मत और सम्प्रदाय मरी हुई देह के समान हैं जो कि अब किसी तरह जिंदा नहीं किये जा सकते हैं।
जब तक कि उन मज़हबों और मतों के चलाने वाले आचार्य और उनके बताये अंतर अभ्यास को करने वाले गुरमुख अभ्यासी मौजूद रहे, वे सभी मत, मज़हब और सम्प्रदाय जिंदा रहे। पर जब वे अभ्यासी भी न रहे, तब वे मत भी जिंदा न रह सके।
सो अपने वक़्त के पहुंचे हुए, पर अब आज के वक़्त में अंतर्ध्यान हो चुके सन्त और संत मार्गीय साध, महात्माओं के मत में शामिल हो कर भी अब कुछ हासिल नहीं हो सकता है। इस तरह पोथियों में सर खपाने और लकीरें पीटने से कोई भी अंतर में नहीं जाग सकता है। क्योंकि मत की जान 'अंतर्मुख अभ्यास' की असल रीत पोथियों में नहीं लिखी गयी है और ना ही लिखी जा सकती है और ना ही पोथियों को पढ़ कर यह रीत हासिल ही की जा सकती है। सो अब के वक़्त में लगभग सभी अनजान हैं, ....कुछ ही सचेत और कोई विरला ही सुजान है।
भेष धारी या वाचक ज्ञानी गुरुओं से अंतर का भेद हासिल नहीं हो सकता है। अब जो जिंदा मत हो यानी जहां जीते जागते 'धुर के ज्ञाता और धुन के भेदी' गुरु प्रकट कार्यवाही करते हों, तो वहीं वह मत जिंदा है और उसी मत से जुड़ कर ही जीव का काज पूरा और सुफल हो सकता है।
देखा कि भक्ति तो सभी कर रहे हैं,
पर किसकी.... ?
यह तो वे खुद भी नहीं जानते।
इस तरह की गफलत भरी भक्ति से, जो कि जीव को हो चुके पिछले गुरुओं की स्वार्थ पूर्ण टेक के सिवा और कुछ नहीं दे सकती। झूठे अहंकार के निर्बुद्ध अंधकार में धकेल देती है। कोई एक पिछले गुरू को मान रहा है, तो कोई दूसरे गुरु को। इस तरह देखा गया है कि वक़्त गुरु के अंतर्ध्यान होने पर मत में फाड़ पड़ जाती है और टुकड़े होते रहे हैं। इस तरह की स्वार्थ पूर्ण कार्यवाहियों से मत कमज़ोर होता जाता है। मत का फैलाव ओर विस्तार तो खूब नजर आता है, पर सब झूठा और खोखला ही है। विचारों के इस विस्तार में जीव तो कहीं खो जाता है, पर सच्चा कुल मालिक कभी नहीं मिल पाता।
सच्चे मालिक से मिलने की सच्ची चाह और लगन ही जीव को अपने वक़्त के वर्तमान सतगुरु पूरे की खोज के लिए प्रेरित कर सकती है, और करती है। इसके अलावा अगर कोई और मतलब, स्वार्थ या चाह भक्ति के पीछे प्रेरक है, तो काज हरगिज ना बनेगा, यह भक्ति सच्ची नहीं है।
"भक्ति सच्ची चाहिए चाहे कच्ची होए"
कुल मालिक दयाल हर्ष, प्रेम और आनंद रस का सोत-पोत है, और सुरत उसकी निज अंश और जात है। सुरत के उसी सच्चे प्रेम, आनंद और निज को प्राप्त करने के सच्चे जतन और सच्ची कार्यवाही का नाम ही परमारथी करनी और 'सच्चा परमार्थ' है।
'सतगुरु स्वामी सदा सहाय'
'सप्रेम राधास्वामी'
--------------------------------------------------
राधास्वामी हेरिटेज.
www.radhasoamiheritage.org
(परमपुरुष पूरणधनी समद हुज़ूर स्वामीजी महाराज के निज दैहिक अंशों व सन्तमत विश्वविद्यालय की स्थापना के प्रति प्रयासरत व समर्पित).
"जिंदा मत"
"ज़िंदा है मत तो ज़िंदा हैं हम, वरना मुर्दों से तो संसार भरा है !"
इस बात को समझना जरूरी है कि, जिन सम्प्रदायो के भीतर से अब उनकी जान निकल चुकी है यानी उस मत में किसी भी स्तर के प्रकट गुरु मौजूद नहीं हैं, वे मत और सम्प्रदाय मरी हुई देह के समान हैं जो कि अब किसी तरह जिंदा नहीं किये जा सकते हैं।
जब तक कि उन मज़हबों और मतों के चलाने वाले आचार्य और उनके बताये अंतर अभ्यास को करने वाले गुरमुख अभ्यासी मौजूद रहे, वे सभी मत, मज़हब और सम्प्रदाय जिंदा रहे। पर जब वे अभ्यासी भी न रहे, तब वे मत भी जिंदा न रह सके।
सो अपने वक़्त के पहुंचे हुए, पर अब आज के वक़्त में अंतर्ध्यान हो चुके सन्त और संत मार्गीय साध, महात्माओं के मत में शामिल हो कर भी अब कुछ हासिल नहीं हो सकता है। इस तरह पोथियों में सर खपाने और लकीरें पीटने से कोई भी अंतर में नहीं जाग सकता है। क्योंकि मत की जान 'अंतर्मुख अभ्यास' की असल रीत पोथियों में नहीं लिखी गयी है और ना ही लिखी जा सकती है और ना ही पोथियों को पढ़ कर यह रीत हासिल ही की जा सकती है। सो अब के वक़्त में लगभग सभी अनजान हैं, ....कुछ ही सचेत और कोई विरला ही सुजान है।
भेष धारी या वाचक ज्ञानी गुरुओं से अंतर का भेद हासिल नहीं हो सकता है। अब जो जिंदा मत हो यानी जहां जीते जागते 'धुर के ज्ञाता और धुन के भेदी' गुरु प्रकट कार्यवाही करते हों, तो वहीं वह मत जिंदा है और उसी मत से जुड़ कर ही जीव का काज पूरा और सुफल हो सकता है।
देखा कि भक्ति तो सभी कर रहे हैं,
पर किसकी.... ?
यह तो वे खुद भी नहीं जानते।
इस तरह की गफलत भरी भक्ति से, जो कि जीव को हो चुके पिछले गुरुओं की स्वार्थ पूर्ण टेक के सिवा और कुछ नहीं दे सकती। झूठे अहंकार के निर्बुद्ध अंधकार में धकेल देती है। कोई एक पिछले गुरू को मान रहा है, तो कोई दूसरे गुरु को। इस तरह देखा गया है कि वक़्त गुरु के अंतर्ध्यान होने पर मत में फाड़ पड़ जाती है और टुकड़े होते रहे हैं। इस तरह की स्वार्थ पूर्ण कार्यवाहियों से मत कमज़ोर होता जाता है। मत का फैलाव ओर विस्तार तो खूब नजर आता है, पर सब झूठा और खोखला ही है। विचारों के इस विस्तार में जीव तो कहीं खो जाता है, पर सच्चा कुल मालिक कभी नहीं मिल पाता।
सच्चे मालिक से मिलने की सच्ची चाह और लगन ही जीव को अपने वक़्त के वर्तमान सतगुरु पूरे की खोज के लिए प्रेरित कर सकती है, और करती है। इसके अलावा अगर कोई और मतलब, स्वार्थ या चाह भक्ति के पीछे प्रेरक है, तो काज हरगिज ना बनेगा, यह भक्ति सच्ची नहीं है।
"भक्ति सच्ची चाहिए चाहे कच्ची होए"
कुल मालिक दयाल हर्ष, प्रेम और आनंद रस का सोत-पोत है, और सुरत उसकी निज अंश और जात है। सुरत के उसी सच्चे प्रेम, आनंद और निज को प्राप्त करने के सच्चे जतन और सच्ची कार्यवाही का नाम ही परमारथी करनी और 'सच्चा परमार्थ' है।
'सतगुरु स्वामी सदा सहाय'
'सप्रेम राधास्वामी'
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राधास्वामी हेरिटेज.
www.radhasoamiheritage.org
(परमपुरुष पूरणधनी समद हुज़ूर स्वामीजी महाराज के निज दैहिक अंशों व सन्तमत विश्वविद्यालय की स्थापना के प्रति प्रयासरत व समर्पित).
अब गुरु को ही ज्ञान देंगे
🚫🚫🚫🚫🚫🚫🚫🚫🚫🚫🚫ये जो रामायण आपने लिखी है। ये सब आपका अनुभव नही है। सच्चा गुरु हमारे ही भीतर है, जैसी हमारी सोच है, जैसी हमारी कामना है, भीतर का गुरु आपको वैसा ही रास्ता दिखाता है। ये मेरा निजी अनुभव है।
Sach khoj academy bhi deep meaning karti ha nad kay bhahkunth kay vo hindu Muslim sikh ko ack he manntay ha kabir ji ko deeply samja ha sach khoj academy nay sikhnay bhahut milta ha dhram singh shatri sant ha veer ras may boltay ha dar koe nahi Hindu Muslim sikh ko veer ras nu samjatay ha narmi say bat nahi kartay atma gyan par he nishana rakhtay ha sariri ko nahi daykhtay atma par he talwar jasa war kartay ha sariri atma different dikhnay lagti ha kamal ha ağır koe oun ko sunn sakay kirpa mago vivaki shatri ha bharat kay
शत् शत् नमन स्वामी जी 🙏🙏🙏🙏🙏
चरणों में नमन
Naman❤❤❤
❤ pal pal Namastute pyare Satgurudev ! ❤
Satnam sakhi
Osho naman❤joy satsang joy hind
नाद को सुनना कोई साधना नहीं है, कोई जीवन भर सुनता रहे l इससे कोई गति नहीं होती है l परम सत्य नाद का भी साक्षी है l आजकल नाद और प्रकाश के नाम पर बहुत लोगों को भरमाया जा रहा है l स्वामी परमानंद गिरी जी वेदांत के प्रमुख जानकार और अनुभूति संपन्न व्यक्ति हैं l
सत गुरु देव ओशो के पावन चरणों में सत सत नमन प्रणाम करती हूं सत गुरु देव मां जी के पावन चरणों में सत सत नमन प्रणाम करती हूं जय ओशो ❤❤❤
Sat sat namn svami ji esi dhun ko suti rahti hun lekin ek andhera hai thanks rasta thekhane ke liy thanks namsty
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सादर वंदन
अहोभाव के साथ ओशो नमन
Are you very great, Saheb Bandagi 🙏🙏🙏
🙏 Har ❤️ har 🙏 Mahadev 🙏❤️
Swami Ji is talking all valid things, high respect to him. To know more about his teaching, you can also read the meaning of Guru Nanak Dev Ji's Shabad "मन तू ज्योति स्वरूप है
अपना मूल पहचान"
Samarth gurdeo charno me koti koti Naman 👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
Vandan prabhu 🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼
आपका कोटि कोटि शुकराना करती हूं आपने अनहद के बाद क्या करना है सब अच्छी तरह से समझा दिया है मिल के एक हो जाना है साक्षी भाव को भी छोड़ देना है बहुत अच्छी तरह से समझा दिया आपने सफर पूरा कर दिया आपका कोटि कोटि आभार
यह सब कैसे करें हमे बैठकर पहले किआ करना है पूरा डिटेल से बताए भाई।
आपने सुन लिया क्या 😂😂😂
आप का बहुत बहुत धन्यवाद जी।
धन्यवाद स्वामी जी 🌹🙏
नमन और अनंत अहोभाव स्वामीजी ,जय गुरुदेव
Osho naman
Jai Osho 🎉
Parnam Swami ji 🙏
Dhanyvad prabhu 🌹🙏
Jai Gurudev 🌺🙏🐚
Hari om
बहुत बहुत आभार जी
Om osho naman chhote babake chharnome koti koti danvant pranam namskar ahobhav dhanyavad mere prabhu
OSHO PARMAR 💓💓💓
🙏🏻 Jay Maharaj 🕉️ Jay Osho 🕉️🇮🇳
अद्भुत प्रवचन स्वामी जी का बिल्कुल ओशो के करीब
यह डुप्लीकेट OSHO है 😂😂😂😂😂😂
OSHO के जरा भी करीब नही है ।
OSHO तो OSHO ही है
ਅਸਲੀ ਹੈ ਤਾ ਸਾਹਮਣੇ ਪਰਗਟ ਹੋਵੋ ਜੀ ਕਿਉ ਖੁਜਲੀ ਹੋ ਰਹੀ ਹੈ ਗੰਦੇ ਹਿਰਦੇ ਵਾਲੇ ਜੀ
उनके तो भाई ही हैं
@@modimodi3660तुमको कैसे पता दिमाग की बत्ती जलाऊं क्या
@@AdarshTripathi-p1f पहले OSHO को ध्यान से सुन लो समज लो ..... दिमाग की बत्ती अपने आप जल जाएगी .....
Very good like me guruji Om namo narayana
Great thinking Great personality Great words 👏 👍 👌 🙌 😀 🙏 👏
Pranam swami ji
PRANAM BABA
Jai ho sadguru ko naman deeply gratitude thankyou love you thankyou 🙏🙏🏼🙏🏿🙏🏼🌃🙏🌞🪄⭐💐
बहुत सुंदर व्याख्या, कोटि कोटि नमन मास्टर ओशो
यह डुप्लीकेट OSHO है
Great swami ji sat sat pranam
Ahobhaw Swami jee
Dhanyvad
SHUKRANA SHUKRANA SHUKRANA AAPJI SADGURU JI KA.....🙏🙏🙏🙏🧚♂️🧚♂️🧚♂️🧚♂️🧚♂️🧚♂️🧚♂️
Ek Ou-An-Kaar Satgur Prasaad 🙏🙏🙏🌹!!
Bahut achhi baat hai. 3 saal se mujhe continue Jhingur ki aawaz aati rahti hai...sspp
Test krwae sabhi dr kya kehte ap meditation krte thee
Koti koti Dhanyawaad Guruji 🌿🙏🌻
Parnam Gurudav ji🙏🙏🙏
धन्यवाद! आपने हे शिव सही मार्गदर्शन किया 🙏
आपको कैसे पता
कोटी कोटी ऋणी हू.... आगे का अंतिम रास्ता आपने बता दिया
बहुत सुन्दर, नई बात पता चली, अनहद नाद सुन रहा था, अब आगे का रास्ता मिला, अब साक्षी को भी छोड़ना है। बहुत बहुत आभार ❤
Kida di awaz ha anhad di veer ji❤❤
@@JassiSingh-ct9pv ऐसी आवाज जो, कहीं भी, किसी भी जगह सुनायी देती है, continuous, लगातार चलती है, ear ringing jaisa.
झींगुर या अलग अलग आवाज जैसी होती है पर लगातार वो चलती रहती है.
किसी गुरु से जुडे और साधना करे.. 👍👍
@@Neo07070 muja sunyi diti ha bahi par eska fyada kya ha reply
आप ओशो का "जिन खोजा तिन पाइयाँ" का सोलहवां प्रवचन सुनेंगे तो आपको समझ मे आयेगा की अनहद नाद मे लिन नही होना है बल्कि उसके प्रति साक्षीभाव रखना है।
@@Neo070700
Koti koti pranam Acharya ji
Only true guru can give the divine naam
अनहद नाद:-🔔 मन की मौत ...
Naman Gurudev ❤
Wow🙏🙏🥰baba ji
आप के बताने का तरीका बड़ा सुंदर लग रहा है।
Nice description. Thanks a lot.
Parnaam gurudev 🙏🙏🙏
Your speech is very fruit full.
Jai sadguru ji 🙏🙏🙏🙏
Osho Naman.
🙏🙏🙏🌸🌸🌸
Bahut achchhi bat batai aapne
Samarth Gudeo Charno me koti koti Naman 👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
अहोभाव 🥰🙏🥰❤️🌹🙏
प्रणाम सदगुरु 🎉
Namo Budhhay.
🙏🏻🌼Shree Sadgurudev Bhagwan ki Jai🌼🙏🏻🙂
Vaheguru ji ❤❤
बाबा मुझे तो यह सुनते सुनते नींद आ जाती है!
आपको नींद नहीं आती
मन को नींद आ जाती है।।।
❤❤❤ u prabhu
Right❤
नमन है आपको
❤i like it❤❤❤❤
🙏🙏🙏🙏🎉🎉
Very nice,thnx
Thank you
Love 💕💕💕💕💕💕💕
Pranaam Swami ji 🙏🙏💐
खुश रहो बालक
Excellent
🙏🙏💐❤️❤️
🌼🙌🙌🙌🌼
❤❤
Thank you so much 🙏🙏
🙏🙏🙏
🌹❤🕉OSHO 🕉❤🌹🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
प्रणाम स्वामीजी 🙏🙏ओशो जी के जिस प्रवचन कि चर्चा आपने अंत में कि है कृपया उससे सम्बंधित वीडियो डालने कि कृपा कीजिए. ऐसे लग रहा है जैसे कि कहीं कुछ जानने कि उत्सुकता है और वह बाधित हो गई इसलिए कृपा करें.
जीसस ने कहा है कि आंख हो तो देख लो और कान हो तो सुन लो
Thank you ❤ 🎉