Bhukhi Mata Temple Ujjain | यहां माताजी को रहती थी नरबलि की ‘भूख’, सम्राट विक्रम ने बदली परंपरा 🙏

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  • เผยแพร่เมื่อ 26 พ.ค. 2024
  • Bhukhi Mata Temple Ujjain | यहां माताजी को रहती थी नरबलि की ‘भूख’, सम्राट विक्रम ने बदली परंपरा 🙏
    in This Video We will be delighted and talk about a Temple which is as old as Raja Vikramaditya dinesty ( Avantika now called Ujjain ). This is the story of Bhukhi Mata where Mata eats Human and take Bali of them along with alcohol.
    उज्जैन:-
    क्षिप्रा नदी के दूसरे किनारे पर भूखी माता मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। भूखी माता का नाम सुनकर ही उनके बारे में जानने की जिज्ञासा बढ़ जाती है। दरअसल, भूखी माता मंदिर की कहानी उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य की किवदंती जुड़ी हुई है। ऐसा कहा जाता है कि भूखी माता को प्रतिदिन एक युवक की बलि दी जाती थी। तब जवान लड़के को उज्जैन का राजा घोषित किया जाता था, उसके बाद भूखी माता उसे खा जाती थी। एक दु:खी मां ने इसके लिए विक्रमादित्य को अपनी फरियाद सुनाई। सम्राट विक्रमादित्य ने उसकी बात सुनकर कहा कि वे देवी से प्रार्थना करेंगे कि वे नरबलि ना लें, अगर देवी नहीं मानेंगी तो वे खुद उनका भोजन बनकर वहां जाएंगे।
    विक्रमादित्य को खाने से पहले ही शांत हो गई भूख:-
    नरबलि वाली रात को विक्रमादित्य ने पूरे नगर को सुगंधित पकवानों और स्वादिष्ट मिठाइयों से सजाने का आदेश दिया। जगह-जगह छप्पन भोग सजा दिए गए। इन छप्पन भोगों के चलते भूखी माता की भूख विक्रमादित्य को खाने से पहले ही शांत हो गई। कई तरह के पकवान और मिष्ठान बनाकर विक्रमादित्य ने एक भोजनशाला में सजाकर रखवा दिए। तब एक तखत पर एक मिठाइयों से बना मानव का पुतला वहां लेटा दिया और खुद तखत के नीचे छिप गए। रात्रि में सभी देवियां भोजन के लिए आईं और उनके उस भोजन से खुश और तृप्त होकर जाने लगीं तब एक देवी को जिज्ञासा हुई कि तखत पर कौन-सी चीज है, जिसे छिपाकर रखा गया है। देवी ने तखत पर रखे उस पुतले को तोड़कर खा लिया। खुश होकर देवी ने सोचा किसने यहां स्वादिष्ट मानव का पुतला रखा। तब विक्रमादित्य तखत के नीचे से निकलकर सामने आ गए और उन्होंने कहा कि मैंने रखा है। देवी ने खुश होकर वरदान मांगने के लिए कहा, तब विक्रमादित्य ने कहा कि मैं चाहता हूं कि आप किसी भी इंसान की बलि न लें और कृपा करके नदी के उस पार ही विराजमान रहें, कभी नगर में प्रवेश न करें। राजा की बुद्धिमानी से देवी प्रसन्न हो गई और उन्हें वरदान दिया। विक्रमादित्य ने उनके लिए नदी के उस पार मंदिर बनवाया। इसके बाद देवी ने कभी नरबलि नहीं ली और उज्जैन के लोगों को परेशान नहीं किया।
    अब इंसान की नहीं, पशुओं की दी जाती है:-
    मंदिर में अब इंसान की बलि नहीं, बल्कि पशुओं की बलि दी जाती है। ग्रामीण क्षेत्र के लोग अपनी मन्नत पूरी होने पर यहां आकर बलि प्रथा का निर्वाहन करते हैं। कई लोग पशु क्रूरता अधिनियम के तहत बलि नहीं देते हुए, पशुओं का अंग-भंग कर उन्हें मंदिर में ही छोड़ देते हैं।
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ความคิดเห็น • 1

  • @jaisinghchouhan3086

    जय मां भूखी माता जी प्रणाम मां