Rul Kul by Karnail Rana | रूल कुल - करनैल राणा | Himachali Folk Song

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  • เผยแพร่เมื่อ 10 ก.ย. 2024
  • Rulla diya kulla - Karnail Rana
    रुल्ला दिया कुल्ला - करनैल राणा | Karnail Rana Himachali songs
    कहानी: दरअसल ये कहानी उस वक्त की है जब हिमाचल में छोटे-छोटे रजवाड़ों का राज हुआ करता था। एक बार औहर इलाके में पानी की कमी हो गई, हर तरफ सूखा ही सूखा पड़ गया। पशु, जानवर और फिर धीरे-धीरे इंसान प्यास से मरने लग गए। राजा को यह देखकर चिंता होने लगी। फिर एक रात राजा के सपने में उनकी कुल देवी ने दर्शन दिए और समस्या का समाधान बताते हुए कहा कि ‘अगर तुम अपने बड़े बेटे की बलि देते हो तो पानी की समस्या दूर हो जाएगी’ इतना कहकर देवी मां सपने से चली गई।
    राजा ने बेटे नहीं बहू की दी थी बलि
    देवी मां के सपने में आने के बाद राजा चिंता में रहने लगा। उस वक्त राजा की बहू रुक्मणी अपने दुधमुहे बेटे के साथ माइके (तरेड़ गांव) में गई हुई थी। उधर पानी की किल्लत बढ़ती जा रही थी। नदियां-नालें सूख रहे थे और इधर बेटे के बलि के बारे में सोचकर राजा की चिंता सातवें आसमान पर थी। राजा को जब कोई उपाय नहीं सूझा तो उसने अपने पंडित के साथ सलाह की। कहा जाता है कि पंडित ने पहले राजा को बिल्ली की बलि देने को कहा लेकिन राजा ने ये कहकर मना कर दिया कि वो अगले सात जन्मों के लिए पाप का भागी हो जाएगा गया। लेकिन इसके बाद पंडित ने बहु की बलि देने कहा तो राजा मान गया। राजा ने जरा सी भी देर न करते हुए रुक्मणी को मायके से बुलावा भेजा। रुक्मणी जैसे ही ससुराल पहुंची तो राजा ने सारी बात उसके सामने साफ कर दी। रुक्मणी आदर्श बहु थी वह ना तो अपने ससुर का कहा मोड़ना चाहती थी और ना ही पति की बलि होते देख सकती थी। लिहाजा उसने अपना बलिदान देने का फैसला ले लिया।
    दिन निश्चित हुआ और रुक्मणी को ज़िंदा चिनवा दिया गया
    रुकमणी ने अपने ससुर की बात मान ली। इसके बाद दिन और जगह निश्चित हुई और राजा ने मिस्त्रियों को बुलाकर बरसंड में बहु की बलि दे दी। कहा जाता है जब रुक्मणी की चिनाई हो रही थी तो उसने मिस्त्रियों से कहा कि ‘कृपया मेरी छाती (स्तनों) को चिनाई से बाहर रखें, क्योंकि मेरा बच्चा छोटा है वह दूध पीने आया करेगा, और अगर वो ऐसा नहीं करेंगे तो उसके जिगर का टुकड़ा मर जाएगा’। राजा ने बहु की बात मान ली और उसकी छाती (स्तनों) को चिनाई से बाहर रख दिया गया।
    रुक्मणी के स्तनों की जगह से पहले निकला था दूध और आज निकलता है पानी
    बताया जाता है कि जैसे ही रुक्मणी की चिनाई पूरी की गई तो उसकी छाती (स्तनों) से दूध की धारा बहने लगी। लेकिन बाद में यहां से पानी निकलने लगा। धीरे-धीरे रुक्मणी की छाती से निकलने वाले पानी की जगह पर एक कुंड बन गया जिसे आज रुक्मणी कुंड कहा जाता है। आज भी उस स्थान पर वो पत्थर साफ देखे जा सकते हैं। जिनमें रुक्मणी की चिनाई की गई थी।
    रुकमणी की बलि के बाद बेटा बन गया था सांप
    इसके बाद सवाल ये उठता है कि आखिर रुक्मणी के बेटे का क्या हुआ होगा? दरअसल इसके पीछे भी एक मान्यता है कि रुक्मणी का बेटा हर रोज उसके पास दूध पीने जाता था। लेकिन मां को देखने के वियोग में वो भी मर गया। कहा जाता है कि मौत के बाद रुक्मणी का बेटा सांप बन गया जो आज भी कुंड में घूमता है और किसी भाग्यशाली को ही नजर आता है।
    कुंड के पास बना हुआ है रुक्मणी का मंदिर, कुंड की गहराई के बारे में कोई नहीं जानता
    रुक्मणी को याद रखने के लिए आज रुक्मणी कुंड के पास उनका मंदिर बना हुआ है। रुक्मणी कुंड में आने वाला हर शख्स रुक्मणी का आशीर्वाद लेता है और कुंड के पवित्र जल में आस्था की डुबकी लगाता है। महिलाओं और पुरुषों के नहाने के लिए स्नानागार बने हुए हैं। कई लोग इस कुंड में तैराकी का भी आनंद लेते हैं। कहा जाता है यहां नहाने से चर्म रोगों में लाभ मिलता है। बता दें कि इस कुंड की गहराई कितनी है ये आज तक कोई नहीं माप पाया है। इस कुंड में कई तैराक भी नहाते हैं लेकिन कुंड की गहराई तक पहुंचने में वो भी नाकाम रहे।
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