महाकुंभ विशेष | समुद्र मंथन | Tilak
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- เผยแพร่เมื่อ 8 ก.พ. 2025
- भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद। दर्शन दो भगवान!
Watch the video song of ''Darshan Do Bhagwaan'' here - • दर्शन दो भगवान | Darsh...
हर बारह वर्ष में भारत में होने वाले विश्व के सबसे बड़े समागम ‘महाकुम्भ मेला’ की विशालता, भव्यता और दिव्यता को कुछ शब्दों में व्यक्त करना असंभव है। पौष पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर महाशिवरात्रि तक लगभग पैंतालीस दिन तक चलने वाले महाकुम्भ में विश्व के कोने-कोने से आए हुए श्रद्धालु पुराणों में व्यक्त की गई पवित्र नदियों शिप्रा (उज्जैन), गंगा (हरिद्वार), गोदावरी (नासिक) और प्रयागराज स्थित संगम में स्नान करके मोक्ष प्राप्ति की कामना करते है। आपका प्रिय चैनल ‘तिलक‘ इस मेले के जुड़े कुछ पौराणिक प्रसंगों को रामानंद सागर द्वारा निर्देशित किए ‘जय महालक्ष्मी‘ धारावाहिक के कुछ अंशों के माध्यम से आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा है। एक समय महर्षि मार्कण्डेय विश्व के कल्याण के लिए अपने शिष्यों और दसों दिशाओं से अपने आश्रम में पधारे ऋषि-मुनियों को आदिशक्ति माता महालक्ष्मी की कथा सुनाना प्रारम्भ करते है। आदिकाल में जब भगवान आदिनारायण ने सृष्टि के निर्माण के लिए अपने वाम भाग से आदिशक्ति महालक्ष्मी को प्रकट करके उन्हें सृष्टि की रचना और संचालन का कार्यभार सौंपते है, तब इस कार्य को सम्पन्न कराने के लिए महालक्ष्मी के अनुरोध पर आदिनारायण ने तीन विभूतियों ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी को भी प्रकट किया तथा महालक्ष्मी ने ब्रह्मा जी के सहयोग के लिए देवी सरस्वती एवं शिव जी के लिए देवी पार्वती को अपने हृदय से प्रकट किया। तो विष्णु जी ने स्वयं के अकेले होने पर प्रश्न किया। तब महालक्ष्मी उनसे कहती है कि जब भविष्य में देवता और असुर मिलकर समुद्र मंथन करेंगे, तब उस मंथन से मैं सागर कन्या लक्ष्मी के रूप में अवतार लेकर आपकी सेवा करूंगी। कालांतर में भविष्यवाणी के अनुसार देवता और असुर के मध्य संग्राम होने लगते है, जिससे देवी महालक्ष्मी व्यथित हो जाती है। वह इस समस्या के निवारण एवं संसार के कल्याण के लिए देवता के गुरु बृहस्पति को देवताओं और असुरों की संधि करवाने और उनको समुद्र मंथन कराने के लिए प्रेरित करती है। देवी महालक्ष्मी की प्रेरणा पर गुरु बृहस्पति देवराज इंद्र को अपने साथ असुरलोक ले जाकर असुरराज बलि के सामने संधि प्रस्ताव रखते है, तब असुरराज बलि अपने से दुर्बल देवताओं से संधि करने से मना कर देते है। यह देख देवी महालक्ष्मी देवी सरस्वती से असुर के गुरु शुक्राचार्य के हृदय में वास करने का अनुरोध करती है। हृदय में देवी सरस्वती के वास होने के कारण शुक्राचार्य महाराज बलि को देवताओं से संधि प्रस्ताव स्वीकार करने की आज्ञा देते है। समुद्र मंथन से निकलने वाली संपदाओं के बंटवारे का निर्णय हो जाने के पश्चात देवता-असुर शिव जी के पास समुद्र मथने के उपाय पूछने के लिए जाते है, तो शिव जी उन्हें हिमालय में स्थित मंदार पर्वत को मथनी और पाताल लोक में वास करने वाले नागराज वासुकी को रस्सी बनाने का सुझाव देते है। शिव जी के सुझाव का पालन करते हुए देवता और असुर मंदार पर्वत को मथनी और नागराज वासुकी को रस्सी बना कर समुद्र मंथन करना प्रारम्भ कर देते है। लेकिन अधिक भार के कारण मंदराचल पर्वत समुद्र में डूबने लगता है, तब देवी महालक्ष्मी की विनती पर भगवान विष्णु कश्यप अवतार लेकर मंदार पर्वत को अपनी पीठ धारण कर लेते है। समुद्र मंथन पुनः प्रारम्भ हो जाता है और उससे सबसे पहले तीव्र हलाहल (कालकूट विष) निकलता है। उससे पूरी सृष्टि में संकट छा जाता है, उस संकट से भयभीत देवता और असुरों के अनुरोध पर शिव जी हलाहल को पी जाते है। हलाहल पीने के कारण शिव जी का कंठ नीला पड़ जाता है, जिसके कारण उनको नीलकंठ के नाम से भी पूजा जाता है। विष के पश्चात समुद्र मंथन से एक-एक करके उच्चैःश्रवा (अश्व का सरताज), ऐरावत (हाथी), कौस्तुभ मणि, कामधेनु (गाय), कल्पवृक्ष, चिंता मणि प्रकट होते है। इसके पश्चात भगवान विष्णु और आदिशक्ति महालक्ष्मी के आदेश पर देवी लक्ष्मी समुद्र मंथन से प्रकट होती है और वह देवताओं व असुरों को अपने अन्य रूपों के बारे में विस्तार से बताती है। देवी लक्ष्मी की विशेषता से प्रभावित असुरराज बलि बलपूर्वक उन्हें असुरलोक ले जाने का प्रयास करता है। असुर सेना देवी लक्ष्मी को बंदी बनाने के लिए उन पर हमला करती है, लेकिन देवी लक्ष्मी उन सभी को अपने हाथ में समाहित कर लेती है और बलि से कहती है कि जिस शक्ति का उसे घमण्ड है, वह उन्हीं की दी हुई है। गुरु शुक्राचार्य भी बलि का समझाते है कि लक्ष्मी जगत जननी है, उसे उनकी शरण में जाना चाहिए। बलि के क्षमा माँगने पर देवी लक्ष्मी उसकी सेना को मुक्त कर देती है और देवताओं व असुरों से कहती है कि वह उसी की शरण में जाएंगी जो त्रिगुणातीत होगा।
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ॐ नारायणाय नमः
Jay Ganga Maiya 🙏
Jai Sri Ram
Hr hr mahadev 🎉🎉