पाखण्डी साध्वी के कारनामों से ग्रामीण परेशान | मुद्दा जरूरी है |AryaSandeshTV
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- เผยแพร่เมื่อ 12 พ.ค. 2022
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देश और समाज को प्रभावित करने वाले समसामयिक मुद्दों पर विशेषज्ञों के साथ गहरी चर्चा
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Arya ek aisi vyavastha h jo sabke liye jruri h
FIR honi chahiye es lady per
_विद्वानों द्वारा सेवित धर्म का वर्णन-प्रारम्भ―_
*विद्वद्भिः सेवितः सद्भिर्नित्यमद्वेषरागिभिः।*
*हृदयेनाभ्यनुज्ञातो यो धर्मस्तं निबोधत॥१२०॥ [२.१] (५८)*
अद्वेषरागिभिः सद्भिः विद्वद्भिः नित्यं सेवितः = राग-द्वेष से रहित सदाचारवान् विद्वानों के द्वारा सदा आचरण में लाया जानेवाला
यः हृदयेन+अभ्यनुज्ञातः = जिसको हृदय अर्थात् आत्मा में धारण करने योग्य माना है अर्थात् जो आत्मानुकूल है [१.१२५, १३१]
तं धर्मं निबोधत = उस धर्म को तुम सुनो और मानो॥१२०॥
*राग-द्वेष से रहित सदाचारवान् विद्वानों के द्वारा सदा आचरण में लाया जानेवाला जिसको हृदय अर्थात् आत्मा में धारण करने योग्य माना है अर्थात् जो आत्मानुकूल है उस धर्म को तुम सुनो और मानो॥१२०॥*
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_आचारहीन को वैदिक कर्मों की फलप्राप्ति नहीं―_
*आचाराद्विच्युतो विप्रो न वेदफलमश्नुते।*
*आचारेण तु संयुक्तः सम्पूर्णफलभाग्भवेत्॥१०९॥ (५६)*
विप्रः = जो कोई द्विज
आचारात्-विच्युतः = सदाचार से रहित है वह
वेदफलं न अश्नुते = वेदादि शास्त्रों के अध्ययन से प्राप्त पुण्य-फल को प्राप्त नहीं कर पाता,
तु = और
आचारेण संयुक्तः = सदाचार से जो युक्त है अर्थात् सदाचारी है वह
सम्पूर्णफल-भाक्-भवेत् = सम्पूर्ण पुण्य फल को प्राप्त करता है [४.१५६-१५९]॥१०९॥
*जो कोई द्विज सदाचार से रहित है वह वेदादि शास्त्रों के अध्ययन से प्राप्त पुण्य-फल को प्राप्त नहीं कर पाता, और सदाचार से जो युक्त है अर्थात् सदाचारी है वह सम्पूर्ण पुण्य फल को प्राप्त करता है॥१०९॥*
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