*शरणानन्द जी की क्रांतिकारी विचारधारा में साधक को किसी के पदचिन्हों पर नहीं चलना है, अपितु निज विवेक के प्रकाश में रहना है अर्थात स्वाधीनता से अपनी आँखों देखना हैं, अपने पैरों चलना हैं।*
इसमें व्यर्थ-चिन्तन की समस्या आती है। जो आपके बिना किये हो रहा है, उसे होने दीजिये, आप विश्राम में रहिये। ऐसा नियम आरम्भ करने के बाद भी संकल्प पूर्ति के सुख एंव अपूर्ति के क्षोभ से आक्रान्त होते रहने के कारण व्यर्थ-चिन्तन बना रहता है। अतः इसका अतः करना होगा।
Om
Adbut vani
Hare Krishna
*शरणानन्द जी की क्रांतिकारी विचारधारा में साधक को किसी के पदचिन्हों पर नहीं चलना है, अपितु निज विवेक के प्रकाश में रहना है अर्थात स्वाधीनता से अपनी आँखों देखना हैं, अपने पैरों चलना हैं।*
jai shree Ram
इसमें व्यर्थ-चिन्तन की समस्या आती है। जो आपके बिना किये हो रहा है, उसे होने दीजिये, आप विश्राम में रहिये।
ऐसा नियम आरम्भ करने के बाद भी संकल्प पूर्ति के सुख एंव अपूर्ति के क्षोभ से आक्रान्त होते रहने के कारण व्यर्थ-चिन्तन बना रहता है। अतः इसका अतः करना होगा।
Sir aap ise aasan bhasha me smjha skte hai?