श्री
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- เผยแพร่เมื่อ 28 พ.ย. 2024
- श्री भक्तमाली सेवा संस्थान (7586926765)
परम पूज्य मामाजी महाराज, (बक्सर वाले मामा जी ) का जन्म बक्सर जिले के अंतर्गत बक्सर प्रखंड के पाण्डेयपट्टी ग्राम में एक चतुर्वेदी ब्राह्मण परिवार मे अश्विन कृष्ण षष्ठी संवत् 1990 तदनुसार दिन रविवार “10 सितम्बर 1933 ई.” को हुआ था।
इनके दादाजी का नाम मेघवर्ण चतुर्वेदी था, जो प्यार से मामाजी महाराज को मन्नाजी कह कर पुकारते थे।
इनके पिताजी का नाम मधुसुधन चतुर्वेदी था, जो बहुत बड़े कर्मकांडी एवं ज्योतिषी में पारंगत थे।
इनकी माताजी का नाम श्रीमती राम देइ था, जो बिल्कुल संत ह्रदय, ममता की मूरत, कुशल गृहिणी थी।
मामाजी महाराज के माता पिता ने इनका शुभ नाम “श्रीमन्ननारायण चतुर्वेदी” रखा था।
जो प्यार से “नारायण” जी भी कह कर पुकारा करते थे।
मामाजी महाराज की प्रारंभिक शिक्षा बक्सर से ही संपन्न हुई तथा उच्च शिक्षा आरा तथा रांची से वाणिज्य विभाग से स्नातक की शिक्षा संपन्न हुई।
बचपन से ही भगवद् गीता के प्रति झुकाव था, तथा प्रभु श्री राम में अनन्य भक्ति थी।
धीरे-धीरे समय बीतता गया और 1952 ई. में मामाजी महाराज ने किसी शासकीय सेवा में पदाधिकारी के तौर पर नियुक्ति हुई।
शासकीय पद पर तैनात रहने के दौरान आरा में पहली बार “महर्षि खाकी बाबा सरकार” के किसी कार्यक्रम में दर्शन का सौभाग्य मिला,
दर्शन के उपरान्त मामाजी महाराज, खाकी बाबा से इतने प्रभावित हुए की 1955 ई. में ही शासकीय पदाधिकारी की सेवा त्याग कर तथा पद से इस्तीफा देकर “श्री खाकी बाबा सरकार” से दीक्षा लेकर उनका शिष्य बन गए, तथा उनके साथ रहने लगे।
बाद में संत शिरोमणि स्वामी श्री रामचरण दास जी “श्री फलाहारी बाबा” के संपर्क में आए तथा उनकी खूब निष्ठा-भाव से सेवा की,
इससे “श्री फलाहारी बाबा” ने प्रसन्न होकर मामाजी महाराज को “श्री नारायण दास” की उपाधि से विभूषित किया।
युगल सरकार की नित्य लीला स्थली श्रीधाम वृन्दावन में मामाजी ने साधना करने हुए श्रीधाम वृन्दावन में निवास करने लगे।
वही साधना करते हुए सुदामा कुटी में इन्हें भक्तमाल के रसज्ञ, मर्मज्ञ, “पं. श्री जगरनाथप्रसाद भक्तमाली ” जी का सान्निध्य प्राप्त हुआ।
जिनसे इन्होंने संत शिरोमणि “नाभादास” जी द्वारा रचित भक्तमाल का अध्ययन किया।
संत सेवा तथा संतो के आशीर्वाद से भागवत कथा भी कहने लगे, तथा सरस कथा व्यास हुए।
बिना भाव के व्यक्ति कितना भी ज्ञानी हो,
उसकी अभिव्यक्ति में मधुरता नहीं आ पाती है।
युगल सरकार के प्रति भक्तिभाव तथा जगजननी माँ सीताजी जनकपुर की उपासना से भक्ति रस में आकंठ डूब गए,
तथा कथा के माध्यम से भक्ति के मधुर रस का वितरण करने लगे। बिहार के होने के नाते तथा
श्री सीता माँ का मिथिलांचल का होने के नाते श्री सीता माँ को वो
इस भक्ति भाव में कब बहन मानने लगे कुछ पता नहीं चला।
सीताजी को अपनी बहन मानने के नाते प्रभु श्री राम को अपना बहनोई मानने लगे।
इसी रिश्ते के कारण आगे चलकर “मामाजी” महाराज के नाम से विश्वविख्यात हुए।
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भाग 2 • श्री सूरदास जी 2 Surda...
भाग 3 • श्री सूरदास जी 3 Surda...
भाग 4 • श्री सूरदास जी 4 Surda...
भाग 5
• श्री सूरदास जी 5 Surda...
भाग 6 • श्री सूरदास जी 6 Surda...
भाग 7
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भाग 8 • श्री सूरदास जी 8 Surda...
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भाग 10 • श्री सूरदास जी 10 Surd...
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