प्राचीन पुरा महादेव मंदिर- यहाँ है रंग बदलने वाला रहस्यमयी तथा चमत्कारी शिवलिंग | 4K | दर्शन 🙏
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- เผยแพร่เมื่อ 7 ส.ค. 2024
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संगीत एवम रिकॉर्डिंग - सूर्य राजकमल
लेखक - रमन द्विवेदी
भक्तों नमस्कार! प्रणाम और हार्दिक अभिनन्दन! भक्तों हम आपको अपने कार्यक्रम दर्शन के माध्यम से देश के प्रतिष्ठित सुप्रसिद्ध व चमत्कारिक मंदिरों और धामों की निरंतर यात्रा करवाते आए हैं इसी क्रम में हम आपको जिस पवित्र और पौराणिक धाम और मंदिर की यात्रा करवाने जा रहे हैं उसकी स्थापना भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान् परशुराम जी ने की थी। भक्तों वह मंदिर है पुरा महादेव मंदिर अर्थात परशुरामेश्वर महादेव मंदिर!
मंदिर के बारे में:
भक्तों पुरामहादेव मंदिर को परशुरामेश्वर के नाम से भी जाना जाता हैं। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक अत्यंत प्राचीन मंदिर के साथ साथ एक प्राचीन सिध्दपीठ है। लाखों शिवभक्तों की गहरी आस्था का केंद्र बना यह मंदिर पश्चिमी उत्तरप्रदेश के बागपत जिलान्तर्गत बालौनी कस्बे के पास पुरा गाँव में स्थित है। ये बलोनी से लगभग साढ़े चार किलोमीटर की दूरी पर है।
मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं:
भक्तों मान्यता है कि श्रावण और फाल्गुन मास में गंगाजल से अभिषेक करने पर भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न हो जाते है। और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण कर देते हैं।इसीलिए श्रावण और फाल्गुन मास में लाखों शिवभक्त हरिद्वार से नंगे पांव पैदल ही कांवड़ में गंगाजल लाकर परशुरामेश्वर महादेव का अभिषेक करते हैं।
पौराणिक कथा:
भक्तों परशुरामेश्वर महादेव मंदिर अर्थात पुरा महादेव मंदिर से जुडी एक पौराणिक कथा के अनुसार- त्रेता युग में इस क्षेत्र का नाम कजली वन था। इसी वन में महर्षि जमदग्नि अपनी पत्नी रेणुका के साथ रहा करते थे। रेणुका प्रतिदिन कच्चा घड़ा बनाकर (हिरण्यदा नदी) हिंडन नदी से जल भरकर भगवान शिव को अर्पण किया करती थी। एक बार राजा सहस्त्रबाहु शिकार खेलते हुए जमदग्नि आश्रम पहुंच गए। महर्षि जमदग्नि की अनुपस्थिति में रेणुका से उनका साक्षात्कार हुआ। रेणुका ने सहस्त्रबाहु राजा की बड़ी आव-भगत और सेवा-सत्कार की। राजा सहस्त्रबाहु रेणुका की आव-भगत और सेवा-सत्कार देखकर आश्चर्यचकित हो गया कि एक जंगल में इतनी व्यवस्थाएं कैसे हो सकती हैं? राजा के मन में ये जानने की जिज्ञासा हुई।
अपनी जिज्ञासा शांत करने के उद्देश्य से राजा सहस्त्रबाहु ने रेणुका से पूछा- “देवि इस घनघोर वन में हमारे लिए राजसी स्वागत कैसे संभव हुआ? तब रेणुका ने राजा की जिज्ञासा शांत करते हुए कहा - राजन ये सब कामधेनु गाय की कृपा से संभव हुआ? तब राजा ने सोचा कि ऐसी अद्भुत गाय ऋषि आश्रम में नहीं राजभवन में होनी चाहिए। इसलिए वो कामधेनु बलपूर्वक वहां से ले जाने लगा तो रेणुका ने इसका विरोध किया। रेणुका के विरोध से राजा क्रुद्ध हो गया और रेणुका का बलपूर्वक अपहरण कर हस्तिनापुर ले जाकर अपने महल में बंद कर दिया। किन्तु दूसरे दिन उसने रेणुका को आजाद कर दिया। रेणुका वापस आश्रम पहुँचीं और सारा वृतांत अपने पति महर्षि जमदग्नि को बताई।
लेकिन महर्षि ने एक रात्रि परपुरुष के महल में रहने के कारण रेणुका को ही आश्रम छोड़ने का आदेश दे दिया। किन्तु रेणुका आश्रम छोड़कर नहीं गईं। रेणुका द्वारा अपने आदेश की अवहेलना देख महर्षि जमदग्नि अत्यंत क्रोधित हो गए। उन्होंने अपने तीन पुत्रों को अपनी माता रेणुका का सिर धड़ से अलग करने का आदेश दिया। लेकिन तीनो पुत्रों ने ऐसा करने से मना कर दिया। किन्तु चौथे पुत्र परशुराम जी ने पिता की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए अपनी माता रेणुका का सिर धड़ से अलग कर दिया। बाद में उनको पश्चाताप हुआ। उन्होंने भगवान शिव की तपस्या आरंभ कर दी। परशुराम की तपस्या से भगवन शिव प्रसन्न होकर प्रकट हुए और उन्होंने परशुराम जी से वरदान मांगने को कहा। परशुराम ने भगवान् शिव से दो वरदान मांगा। पहला वरदान में अपनी माता रेणुका को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की तथा दूसरे वरदान में वहीं निवास करते हुए जगत का कल्याण करने का अनुरोध किया। भगवान् शिव ने परशुराम जी की दोनों प्रार्थना स्वीकार कर ली। उन्होंने परशुराम जी की माता रेणुका को जीवित कर दिया और स्वयं शिवलिंग में परिवर्तित होकर वहीं विराजमान हो गए।
भक्तों परशुराम ने स्थापित शिवलिंग के पास एक मंदिर बना दिया। किन्तु कालांतर वह मंदिर खंडहर होकर मिट्टी के ढेर में परिवर्तित हो गया।
लोककथा:
भक्तों पुरा महादेव मंदिर से सम्बद्ध एक लोक कथानुसार- एक बार लणडोरा की रानी हाथी पर सवार होकर भ्रमण के लिए निकली थी। उस टीले के पास पहुँचते ही उनका हाथी रुक गया। लाख कोशिशों के बाद भी हाथी ने उस टीले पर पैर नहीं रखा। इस पर रानी को आश्चर्य हुआ और उन्होंने टीले की खुदाई आरंभ कर दी। खुदाई में वहां पर शिवलिंग प्रकट हुआ। इसके बाद रानी ने वहां पर एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया। यही मंदिर आज पुरामहादेव गांव स्थित परशुरामेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है।
गाँव व् मंदिर का नामकरण:
स्थानीय किंवदंती के अनुसार, ऋषि परशुराम ने यहां एक शिव मंदिर बनवाया और इसका नाम शिवपुरी रखा, जिसे बाद में शिवपुरा में बदल दिया गया और अंत में पुरा को छोटा कर दिया गया।
रहस्यमयी शिवलिंग का रंग
भक्तों पुरामहादेव मंदिर में विराजमान शिवलिंग को बड़ा रहस्यमयी माना जाता है। शिवलिंग को रहस्यमयी मानने कई कारण हैं। पहला कारण यह है कि मंदिर में विराजमान शिवलिंग का रंग दिन में तीन बार बदलता है। अर्थात प्रातः शिवलिंग रंग अलग, दोपहर को अलग और रात्री को अलग होता है। दूसरा कारण शनैः शनैः शिवलिंग का बढ़ता आकार तथा तीसरा कारण शिवलिंग की गहराई कितनी है और शिवलिंग धातु का है या पत्थर का। लाख कोशिशों के बाद भी यह कोई नहीं जान पाया।
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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Har har Mahadev
Har Har mahadev 🙏🏻🙏🏻❤️❤️
Har Har Mahadev ❤❤
जय जय श्री सीताराम जय जय श्री राधे श्याम जय गौ माता जय गोपाल जय जय श्री भोलेनाथ
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हर हर महादेव ❤
हर हर महादेव जय परशु राम महराज
हर हर महादेव🙏
जय पार्वती माता🙏
जय कार्तिकेय भगवान🙏
श्री गणेशाय नमः 🙏
Har har Mahadev ❤
Har har mahadev
Har Har Mahadev
जय हो भगवान परशुराम जी की🙏
Har har mahadev ki jai jai prasuram
Om namah shivay 🌺🌺🙏
Archana ji Om namah shivaya 🔱🕉️🙏 appreciate my hard work ji and pray for me because 🧑🦽👌💯🧠🚩💔🌹🔱🕉️🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
OM NAMAH SHIVAY
ॐ नमः शिवाय 🔱🚩🙏🏼
Har har mahadev
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He mahadev muze bhi apne Darshan ke liye bulaye ❤❤❤❤❤
Om Namah Shivay🙏❤️
Jai Shree Bholenath Bhagwan Ji
Om namah shivaya 🌹🙏
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ye mandir hamare ghr ke paas hi hai Jai Bholenath 🙏❤🚩🕉🕉🔱🔱
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merr ghar k itna kareeb ye mandir maine aajtak nahi dekha 😮😮😮 Jai Shiv Shambhu Jai Bholenath 🥰🙏🔱🙇♂️
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Har har mahadev
Jai sabhi hindu 🕉️buddha☸️ jain 💜devi devta💖💝🔱👑😍❤🥰🙏🚩🧡
Har Har Mhadev
Ye Mandir Baleni me hai (Baghpat ) me hai agar koi baghpat se hai to vo jarur jante honge
Har har Mahadev
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