Banke Bihari Temple, Shri Dham Vrindavan, बांके बिहारी मंदिर, krishna bal Swaroop, श्री धाम वृन्दावन
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- เผยแพร่เมื่อ 11 ต.ค. 2024
- बांके बिहारी मंदिर, उत्तर प्रदेश के मथुरा ज़िले के वृंदावनधाम में रमण रेती पर स्थित है। यह भारत के प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह मंदिर भगवान कृष्णा को समर्पित हैं। कहा जाता है कि इस मन्दिर का निर्माण स्वामी श्री हरिदास जी के वंशजों के सामूहिक प्रयास से संवत 1921 के लगभग किया गया था।
श्रीधाम वृन्दावन एक ऐसी पावन भूमि है, जिस भूमि पर आने मात्र से ही सभी पापों का नाश हो जाता है। ऐसा आख़िर कौन व्यक्ति होगा, जो इस पवित्र भूमि पर आना नहीं चाहेगा तथा श्री बाँके बिहारी जी के दर्शन कर अपने को कृतार्थ करना नहीं चाहेगा। यह मन्दिर श्री वृन्दावन धाम के एक सुन्दर इलाके में स्थित है। बांके बिहारी मंदिर वृन्दावन के ठाकुर के मुख्य सात मंदिरों में से यह एक है, दुसरे मंदिरों में मुख्य रूप से श्री गोविंद देवजी, श्री राधा वल्लभजी और चार दुसरे मंदिर शामिल है।
भगवान विष्णु के आठवें मानव रूपी अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित बांके बिहारी मंदिर की मथुरा में बेहद मान्यता है। केवल मथुरा ही क्यों, इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण का पावन आशीर्वाद पाने के लिए दूर-दूर से और यहां तक कि विदेश से भी भक्त आते हैं।
बांके बिहारीजी वास्तव में निधिवना की पूजा अर्चना करते थे। बांके का अर्थ “तीन स्थानों पर तुला हुआ” और बिहारी का अर्थ “सर्वाधिक आनंद लेने वाला” होता है। बांके बिहारी में भगवान श्री कृष्णा की मूर्ति त्रिभंगा आसन में खड़ी है। हरिदास स्वामी असल में इस धार्मिक और चमत्कारिक मूर्ति की पूजा कुंज-बिहारी के नाम से करते थे।
बांके बिहारी मंदिर को आदरणीय स्वामी हरिदास जी द्वारा स्थापित किया गया था। स्वामी हरिदास जी प्राचीन काल के मशहूर गायक तानसेन के गुरु थे। इसलिए उन्होंने स्वयं श्रीकृष्न पर निधिवन में ऐसे कई गीत गाए जो आज भी बेहद प्रसिद्ध हैं। स्वामी जी और मंदिर के भीतर स्थापित मूर्ति के बारे में कहा जाता हैं की स्वामी जी ने स्वयं निधिवन में श्रीकृष्ण का स्मरण कर इस मूर्ति को अपने सामने पाया था।
“प्रथम हूं हुती अब हूं आगे हूं रही है न तरिहहिं जैसें अंग अंग कि उजराई सुघराई चतुराई सुंदरता ऐसें श्री हरिदास के स्वामी श्यामा कुंजबिहारी सम वस् वैसें”… इस पंक्ति को स्माप्त करते हुए जैसे ही स्वामी जी ने आंखें खोली तो उनके सामने राधा-कृष्ण स्वयं प्रकट हुए। उन्हें देखकर स्वामी जी और उनके साथ उपस्थित भक्तों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। स्वामी जी के निवेदन अनुसार राधा कृष्ण की वह छाया एक हो गई और एक मूर्ति का आकार लेकर वहां प्रकट हो गई। आज यही मूर्ति बांके बिहारी मंदिर में सदियों से स्थापित है।
शुरू में, देवता की स्थापना निधिवन के भीतर प्रवेश करते ही छोटे मंदिर में की गयी थी। बिहारीजी के नए मंदिर की स्थापना 1862 ईस्वी में की गयी थी। गोस्वामी जी ने खुद मंदिर के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह मंदिर अपनेआप में ही किसी आकर्षक महल से कम नही, इस मंदिर का निर्माण राजस्थानी शैली में किया गया है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार मुगलकाल में एक हिन्दू पुजारी ने भगवान कृष्ण की इस प्रतिमा को जमीन के अंदर छुपा दिया था। कहा जाता है कि स्वामी हरिदास इधर से गुजर रहे थे और जिस जगह प्रतिमा छुपाई गई थी, उसी जगह आराम करने के लिए रुके।
सपने में उन्होंने देखा कि भगवान कृष्ण उनसे प्रतिमा निकालने के लिए कह रहे हैं। तब स्वामी हरिदास ने जमीन खोदकर वो प्रतिमा निकाली और एक मंदिर का निर्माण करवाया।
स्वामी हरिदास का जन्म श्री आशुधिर और उनकी पत्नी श्रीमती गंगादेवी की संतान के रूप में राधा अष्ठमी के दिन हुआ था। राधा अष्ठमी विक्रम संवत 1535 में भाद्रपद के महीने में दुसरे पखवाड़े के आठवे दिन आती है। उनका जन्म उत्तर प्रदेश में अलीगढ के पास हरिदासपुर नामक गाँव में हुआ था।
उनके परिवार की वंशावली की शुरुवात श्री गर्गाचार्य से होती है। श्री गर्गाचार्य यदावस के कुलगुरु थे और श्री वासुदेव के बुलावे पर बाल कृष्णा और बलराम के नामकरण संस्कार में वे चुपके से बृज गये थे।
इसके बाद उनके परिवार के कुछ लोग मुल्तान (वर्तमान पाकिस्तान) स्थानांतरित हो गये लेकिन उनमे से कुछ लोग काफी लम्बे समय तक वापिस नही आए। श्री आशुधिर भी उन्ही लोगो में से एक थे जो मुल्तान चले गये और काफी लम्बे समय बाद मुल्तान से लौटकर वापिस आए और इसके बाद अलीगढ के पास बृज में रहने लगे।
स्वामी हरिदास ही ललिता ‘सखी’ का पुनर्जन्म है, जिनका भगवान कृष्णा के साथ आंतरिक संबंध था। कहा जाता है की स्वामी हरिदास को बचपन से ही ध्यान और शास्त्र में रूचि थी, जबकि उनकी उम्र के दुसरे बच्चो को खेलने में रूचि थी।
स्वामी जी का विवाह हरिमति नामक एक स्त्री से हुआ, जो कि स्वयं भी ध्यान एवं साधना की ओर आकर्षित थीं। कहते हैं कि जब हरिमति जी को यह ज्ञात हुआ कि उनके पति कोई आम इंसान नहीं वरन् कृष्ण के काल से संबंध रखने वाले ज्ञानी हैं तो उन्होंने स्वयं भी तपस्या का मार्ग चुन लिया।
उनकी तपस्या में इतनी अग्नि थी कि वे अपने शरीर का परित्याग कर अग्नि की ज्योति बनकर दिये में समा गईं। इस वाक्या के बाद हरिदास जी ने भी गांव छोड़ दिया और वृंदावन की ओर निकल पड़े। उस वृंदावन वैसा नहीं था जैसा कि आज हम देखते हैं। चारों ओर घना जंगल, इंसान के नाम पर कोई नामो-निशान नहीं… ऐसे घने जंगल में प्रवेश लेने के बाद स्वामी जी ने अपने लिए एक स्थान चुना और वहीं समाधि लगाकर बैठ गए। स्वामी जी जहां बैठे थे वह निधिवन था…. निधिवन का श्रीकृष्ण से गहरा रिश्ता है।
कहते हैं आज भी कान्हा यहां आकर रोज़ाना रात्रि में गोपियों संग रासलीला करते हैं। लेकिन जो कोई भी उनकी इस रासलीला को देखने की कोशिश करता है वह कभी वापस नहीं लौटता।
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वाह । बोलो बांकेबिहारी लाल की जय
जय श्री कृष्णा
❤️❤️❤️❤️🙏🙏🙏🙏
राधे राधे ऐसे ही पूरा भारत का दर्शन कराते जाइये हमलोग को घर बैठे बैठे
Congratulations Jordan .. Love from clg hehehehehe....
Jai shree Krishna....🙏🙏🙏🙏🙏
Radhe Radhe
outstanding amazing super
Radhe radhe..... Shyam mila de.... ❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️
Bankey bihari lal Ki jai ho ♥️
Radhe radhe🙏🙏🙏🙏
It's awesom bhai,,aplogo ki vjh se baithe baithe hame Sri Krishna ke darshan aur puri duniya ghumne ko mil jati hai,,,radhe radhe
Radhe radhe ,,,,,, 🙏🤗
Radhe Radhe,❤️❤️
Beautiful explanation of bake bihari mandir 🙏
Radhe Radhe ❤️🙏
Jai ho laddoo gopal ki
beautiful video.keep on making beautiful vlogs.radhe radhe shyam milade.
Bhut bdia bhai ❤️👍🏻
Wow
Radhe radhe♥️
Bohut khoob radhey radhey
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👏👏👏
Harii bol❣️❣️
Very nice 👍👍👍
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Beautiful place of spirituality
So beautiful ❤️
Radhey Radhey
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🙌Shree Radhe Radhe shayam mila de
Jai ho 🙏
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Radhey Radhey 🙏
राधे राधे
राधे राधे👏👏
Good bro
Nice
Radhe Krishna ❤🙏
राधे राधे🙏❤️❤️
राधे-राधे ❤️🙏🏻
राधे राधे 🙏❤️🎉
Radhe radhe bhaii
Bdhe chlo bdhe chlo
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