शुद्ध रागनी | Vikas Pasoriya, Sumit Satrod | मेरी संस्कृति मेरी पहचान | Panchkula Competition LIVE

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  • เผยแพร่เมื่อ 13 ธ.ค. 2024

ความคิดเห็น • 91

  • @Vedpalmahla
    @Vedpalmahla 6 ปีที่แล้ว +3

    सुमित जी आपने दादा सतबीर की शाख बचाई है ।शत् शत् नमन है आपको

  • @Anita-od9bu
    @Anita-od9bu 6 ปีที่แล้ว +9

    दोनों गायक भाई लाजवाब हैं, कोई तोड़ नही आप दोनों का, पानी सा भर दिया, गज़ब का भाव दर्शाया आज के ज़माने में हरयाणवी संस्कृति में ऐसे गाने वाले महानुभाव उपलब्ध नहीं हैं । आज दादा लख्मीचंद जीवित होते तो इन् दोनों को सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद जरूर देते ।।
    जय हो दादा लख्मीचंद की
    जय हो हरियाणवी संस्कृति ।।

  • @ssdesi4463
    @ssdesi4463 6 ปีที่แล้ว +5

    सुर्यकवि पं0 लख्मीचन्द :-
    हरियाणवी भाषा के प्रसिद्ध कवि व सांग कला की अमर विभूति पंडित लख्मीचंद हरियाणा लोक संस्कृति का अभिन्न अंग है। सांग कला को अनेक महान शख्सियतों ने अपने ज्ञानए कौशल, हुनर और परिश्रम से सींचकर अत्यन्त समृद्ध एवं गौरवशाली बनाया। ऐसी महान शख्सियतों में से एक थेए सूर्यकवि पंडित लख्मीचन्द। उनका जन्म हरियाणा के सोनीपत जिले के गाँव जांटी कलां में पंडित उदमी राम के घर 15 जुलाई, 1903 को हुआ.
    लख्मीचंद बसै थे जाटी जमना के कंठारै,
    नरेले तै तीन कोस सड़के आजम के सहारै, (प.मांगेरामद-सांग नौरत्न)
    उनके दो भाई व तीन बहनें थीं। वे अपने पिता की दूसरी संतान थे। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण बालक लख्मीचंद पाठशाला न जा सके तथा आजीवन अशिक्षित रहे। सात-आठ वर्ष की बाल्यावस्था में इन्हें पशु चराने का काम सौंपा गया। गायन की ओर इनका रूझान बचपन से था। जब कभी आसपास के गांव में भजन, रागनी अथवा सांग-मंचन का कोई कार्यक्रम होता, वे वहां अवश्य जाते थे। भले ही वे गरीबी एवं शिक्षा संसाधनों के अभावों के बीच स्कूल नहीं जा सके, लेकिन ज्ञान के मामले में वे पढ़े-लिखे लोगों को भी मात देते थे। उन्होंने अपने एक सांग ‘ताराचन्द’ में अपनी अनपढ़ता का स्पष्ट उल्लेख करते हुए कहा है-
    लख्मीचंद नहीं पढ़रया सै, गुरु की दया तै दिल बढ़रया सै,
    तेरै बनड़े कैसा रंग चढ़रया सै, रूप म्हारे मन भाग्या,
    सच्चे मोतियाँ का जुड़ा हाथ कड़े तै लाग्या।
    भली करी थी पनमेशर नै, तूं राजी-ख़ुशी घर आग्या।।
    सात आठ वर्ष की उम्र मे ही उन्होंने अपनी मधुर व सुरीली आवाज से लोगो का मन मोह लिया और ग्रामीण उनसे हर रोज भजन व गीत सुनांने की पेशकश करने लगे। फिर कुछ ही समय मे लोग उनकी गायन प्रतिभा व सुरीली आवाज के कायल हो गए। अब उनकी रूचि सांग सिखने की हो गई थी। उसके बाद दस-बारह वर्ष की अल्पायु में ही बालक लख्मीचंद ने बसौदी निवासी श्री मानसिंह जो कि अंधे थे, उनके भजन कार्यक्रम से प्रभावित होकर उनको ही अपना गुरू मान लिया। सांग की कला सीखने के लिए लख्मीचन्द कुण्डल निवासी सोहन लाल के बेड़े में शामिल हो गए। अडिग लगन व मेहनत के बल पर पाँच साल में ही उन्होंने सांग की बारीकियाँ सीख लीं। उनके अभिनय एवं नाच का जादू लोगों के सिर चढक़र बोलने लगा। उनके अंग अंग का मटकना, मनोहारी अदाएं, हाथों की मुद्राएं, कमर की लचक और गजब की फूर्ती का जादू हर किसी को मदहोश कर डालता था। जब वे नारी पात्र अभिनीत करते थे तो देखने वाले बस देखते रह जाते थे। इसी बीच फिर एक दिन सोहनलाल सांगी ने लख्मीचन्द के गुरु पंडित मानसिंह सूरदास के बारे में कुछ असभ्य बात मंच पे कहदी तो लख्मीचन्द गुरु भक्ति के कारण इस कटु वचन को सह न सके और उन्होंने सोहन लाल का बेड़ा छोडऩे का ऐलान कर दिया। इससे बाद कुछ संकीर्ण मानसिकता के लोगों ने धोखे से लख्मीचन्द के खाने में पारा मिला दिया, जिससे लखमीचन्द का स्वास्थ्य खराब हो गया। उनकी आवाज को भी भारी क्षति पहुंची। लेकिनए सतत साधना के जरिए लख्मीचन्द ने कुछ समय बाद पुनः अपनी आवाज मे सुधार किया और उसके बाद उन्होंने स्वयं अपना बेड़ा तैयार करने का मन बना लिया। फिर पंडित लख्मीचंद ने अपने गुरु भाई जैलाल उर्फ़ जैली नदीपुर माजरावाले के साथ मिलकर मात्र 18-19 वर्ष की उम्र में ही अलग बेड़ा बनाया और सांग मंचित करने शुरू कर दिए। अपनी बहुमुखी प्रतिभा और बुलन्द हौंसलों के बल पर उन्होंने एक वर्ष के अन्दर ही लोगों के बीच पुनः अपनी पकड़ बना ली। फिर उनकी लोकप्रियता को देखते हुए बड़े-बड़े धुरन्धर कलाकार उनके बेड़े मे शामिल होने लगे। सांग के दौरान साज-आवाज-अंदाज आदि किसी भी मामले मे किसी भी तरह की लापरवाही लख्मीचंद को पसंद नहीं थी। उन्होंने अपने बेड़े मे एक से एक बढ़कर कलाकार रखे और सांग कला को नई ऐतिहासिक बुलन्दियों पर पहुंचाया। अब यहाँ ऐतिहासिक सांग ‘नल-दमयंती’ के अन्दर से उनकी एक बहुचर्चित सहज रचना इस प्रकार पेश है कि-
    छोड चलो हर भली करैंगे, कती ना डरणा चाहिए,
    एक साड़ी मै गात उघाड़ा, इब के करणा चाहिए ।। टेक ।।
    गात उघाड़ा कंगलेपण मै, न्यूं कित जाया जागा,
    नग्न शरीर मनुष्य की स्याहमी, नही लिखाया जागा,
    या रंगमहलां के रहणे आळी, ना दुख ठाया जागा,
    इसके रहते मेरे तै ना, खाया-कमाया जागा,
    किसे नै आच्छी-भुंडी तकदी तो, जी तैं भी मरणा चाहिए ।।
    फूक दई कलयुग नै बुद्धि, न्यूं आत्मा काली होगी,
    कदे राज करूं था आज पुष्कर के, हाथं मै ताली होगी,
    सोलह वर्ष तक मां-बापां नै, आप सम्भाली होगी,
    इब तै पतिभर्ता आपणे धर्म की, आप रूखाली होगी,
    खता मेरी पर राणी नै भी, क्यों दुख भरणा चाहिए ।

  • @ssdesi4463
    @ssdesi4463 6 ปีที่แล้ว +4

    पं0 लख्मीचन्द ने हरियाणवी सांग को नया मोड़ दिया। उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर श्री रामनारायण अग्रवाल ने ‘सांगीतः एक लोक-नाट्य परम्परा’ नामक ग्रंथ में स्पष्ट किया है- ‘‘इन सब सांगियों में लख्मीचंद सर्वाधिक प्रतिभावान थे। रागनी के वर्तमान रूप के जन्मदाता वास्तव में लख्मीचंद है। कबीर की भांति लोक भाषा में वेदान्त तथा यौवन और प्रेम के मार्मिक चित्रण में लख्मीचंद बेजोड थे। इन जैसा लोक जीवन का चितेरा सांगी हरियाणे में दूसरा नहीं हुआ। पं0 लख्मीचंद के बारे में उनके शिष्य पं0 मांगेराम ने ‘खाण्डेराव परी’ नामक सांग में इस प्रकार कहा-
    लख्मीचंद केसा दुनियां म्हं, कोई गावणियां ना था।
    बीस साल तक सांग करया, वो मुंह बावणियां ना था।
    वो सत का सांग करया करता, शर्मावणिया ना था।
    साची बात कहणे तै, कदै घबरावणियां ना था।
    इस प्रकार हरियाणवी सांग को तपाकर कुन्दन बनाने वाले सूर्यकवि पंडित लख्मीचन्द एक लंबी बीमारी के उपरान्त 17 जुलाई, 1945(17 अक्तूबर, 1945) की सुबह इस नश्वर संसार को छोडक़र परमपिता परमात्मा के चरणों में जा विराजे और वे अपनी अथाह एवं अनमोल विरासत छोडक़र चले गए। महान् सांगीतकार पं0 लख्मीचंद को सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक पक्षों का व्यावहारिक ज्ञान था। उनके सांगीतों में सामाजिक रिश्तों का चित्रण सांस्कृतिक मूल्यों व आदर्शाें के अनुरूप ही हुआ है। ‘सत्यवान सावित्री’ नामक सांगीत में माता-पिता अपनी पुत्री सावित्री के जवान होने पर उसके विवाह की चिन्ता करते है। राजा अश्वपति जवान पुत्री को अविवाहित देखकर चिन्तित है-
    अपनी जवान पुत्री नै देख, सोचण लाग्या जतन अनेक,
    मिटते कोन्या लेख करम के, न्यूं ऊँच नीच का ध्यान किया,
    सावित्री की माता भी चिन्ताग्रस्त होकर क्या कहती है-
    सावित्री का भी कुछ ध्यान सै, सुण साजन मेरे होरी ब्याहवण जोग।
    बात कहूं सूं बणके टेढी, मनै तै एक जणी थी बेटी,
    जिनकै बेटी घरां जवान सै, न्यू कहते बड़े बड़ेरे, उनकै माणस मरे जितना सोग।
    पंडित लख्मीचंद की इस विरासत को सहेजने व आगे बढ़ाने के लिए उनके सुपुत्र पंडित तुलेराम कौशिक ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई। इसके बाद तीसरी पीढ़ी में उनके पौत्र पंडित विष्णुदत्त कौशिक भी अपने दादा की परंपरा का हरियाणा, राजस्थान व उत्तर प्रदेश के दूर-दराज के गाँवों तक प्रचार प्रसार कर रहें हैं तथा अपनी विरासत के संरक्षण एवं संवर्धन में अति प्रशंसनीय भूमिका अदा कर रहे हैं। वे अपने दादा द्वारा बनाए गए ‘ताराचंद’ के तीन भाग, शाही लकड़हारा के दो भाग, पूर्णमल, सरदार चापसिंह, नौटंकी, मीराबाई, राजा नल, सत्यवान-सावित्री, महाभारत का किस्सा, कीचक वध, द्रोपदी चीरहरण, पद्मावत, आदि दर्जन भर साँगों का सैंकड़ो बार मंचन कर चुके हैं और आज भी लोगों की भारी भीड़ उन्हें सुनने के लिए दौड़ी चली आती है। हरियाणवी लोक संस्कृति की महान शख्सियत सूर्यकवि पंडित लख्मीचन्द को कोटि-कोटि नमन है।
    पंडित लखमीचन्द के शिष्यों की बहुत लंबी सूची है, जिन्होंने सांग कला को समर्पित भाव से आगे बढ़ाया। उनके शिष्य पंडित मांगेराम (पाणछी) ने अपनी बहुमुखी प्रतिभा के बल पर सांग को एक नया आयाम दिया और अपने गुरु पंडित लख्मीचन्द के बाद दूसरे स्थान पर सांग कला में अपना नाम दर्ज करवाया। उनके शिष्यों ने अपने गुरु पंडित लख्मीचंद का नाम खूब रोशन किया जिनकी सूची इस प्रकार है, जो रागनी, भजन गाने या बनाने में निपुण थे।
    क्र. शिष्य के नाम निवास स्थान
    1 पंडित रामचन्द्र खटकड़
    2 पंडित रतीराम हीरापुर (श्री लख्मीचंद के मामा के लड़के)
    3 पंडित माईचन्द बबैल
    4 पंडित सुल्तान रोहद
    5 पंडित चंदनलाल बजाणा
    6 पंडित मांगेराम पाँणछी
    7 फौजी मेहरसिंह बरोणा
    8 पंडित रामस्वरूप स्टावली
    9 पंडित ब्रह्मा शाहपुर बड़ौली
    10 श्री धारासिंह बड़ौत
    11 श्री धर्मे जोगी डीकाणा
    12 श्री जहूरमीर बाकनेर
    13 श्री सरूप बहादुरगढ़
    14 श्री तुंगल बहदुगढ़
    15 श्री हरबंश पथरपुर-उ.प.
    16 श्री लखी धनौरा-उ.प.
    17 श्री मित्रसेन लुहारी-उ.प.
    18 श्री चन्दगीराम अटेरणा
    19 श्री मुंशीराम मिरासी खेवड़ा (बाद मे पाकिस्तान स्थानांतरित)
    20 श्री गुलाब रसूल पिपली खेड़ा (बाद मे पाकिस्तान स्थानांतरित)
    21 श्री हैदर नया बांस (बाद मे पाकिस्तान स्थानांतरित)

  • @Anita-od9bu
    @Anita-od9bu 6 ปีที่แล้ว +8

    हरियाणा के सूर्यकवि एवं हरियाणवी भाषा के शेक्सपीयर के रूप में विख्यात पं॰ श्री लखमीचन्द का जन्म सन 1901-03 में तत्कालीन रोहतक जिले के सोनीपत तहसील मे यमुना नदी के किनारे बसे जांटी नामक गाँव के साधरण गौड़ ब्राह्मण परिवार मे हुआ ।
    पंडित लखमीचंद के पिता पं॰ उमदीराम एक साधारण से किसान थे ,जो अपनी थोड़ी सी जमीन पर कृषि करके समस्त परिवार का पालन - पोषण करते थे । जब लखमीचन्द कुछ बड़े हुए तो उन्हें विद्यालय न भेजकर गोचारण का काम दिया गया । गीत संगीत की लगन उन्हें बचपन से ही थी , अतः अन्य साथी ग्वालों के साथ घूमते -फिरते उनके मुख से सुने हुए टूटे -फूटे गीतों और रागनियों को गुनगुनाकर समय यापन करते थे । आयु बढने के साथ -साथ गीत-संगीत के प्रति उनकी आसक्ति इस कदर बढ़ गई की तात्कालीन लोककला साँग देखने के लिए कई-कई दिन बिना बताए घर से गायब रहते थे । एक बार उस समय के प्रसिद्ध साँगी पं॰ दीपचन्द का साँग देखने के लिए ,तथा दूसरी बार श्री निहाल सिंह का साँग देखने के लिए वे कई दिनों के लिए घर से गायब हो गए । तब बड़ी मुश्किल से उनके घरवाले उन्हें ढूंढकर घर लाए ।
    इन्हीं दिनों पं॰ लखमीचन्द के जीवन मे एक नए अध्याय का सूत्रपात हुआ सौभाग्य से तात्कालीन सुप्रसिद्ध लोककवि मानसिंह उनके गाँव में एक विवाहोत्सव पर भजन गाने के लिए आमंत्रित होकर पधारे । कवि मानसिंह की मधुर कंठ-माधुरी ने किशोरायु लखमीचन्द का कुछ ऐसा मन मोहित किया कि प्रथम भेंट मे ही उन्होने श्री मानसिंह को अपना सतगुरु बना लिया और अपनी संगीत-पिपासा को शांत करने के लिए गुरु के साथ चल दिए । लगभग एक साल तक पूरी निष्ठा एवं लगन के गुरु सेवा करके घर लौटे तो वे गायन एवं वादन कि कला के साथ-साथ एक लोक -कवि भी बन चुके थे । कहते हैं कि वैसे तो मानसिंह अपने जमाने के एक साधारण कवि गायक ही थे परंतु शिष्य का लगाव और श्रद्धा इतनी गहरी थी कि गुरु प्रभाव उसी प्रकार फलदायक हुआ जिस प्रकार सीधे-साधे सकुरात का अपने शिष्य प्लूटो पर या श्री रामानन्द का कबीर पर । पं॰ लखमीचन्द का संपूर्ण जीवन गुरुमय रहा । गायन कला के पश्चात अभिनय कला में महारत अर्जित करने हेतु ये कुछ दिनों मेहंदीपुर निवासी श्रीचंद साँगी की साँग मंडली ने भी रहे तथा बाद में विख्यात साँगी सोहन कुंडलवाला के बेड़े मे भी रहे परंतु अपना गुरु श्री मानसिंह को ही स्वीकार किया । कुछ दिनों के बाद लघभग बीस साल कि आयु में पं॰ लखमीचन्द ने अपने गुरूभाई जयलाल उर्फ जैली के साथ मिलकर स्वतंत्र साँग मंडली बना ली और सारे हरियाणा में घूम--घूम कर अपने स्वयं रचित सांगो का प्रचार करने लगे तो कुछ ही दिनों में सफलता और लोकप्रियता के सोपान चढ़ गए तथा सर्वाधिक लोकप्रिय साँगी , सूर्यकवि का दर्जा हासिल कर गए । प्रारम्भ में इनके साँग श्रंगार रस से परिपूरित थे जो बाद में सामजिकता, नैतिक मूल्यों एवं अध्यात्म का चरम एहसास लिए हुए हैं । इस प्रकार इन्होने समाज के हर वर्ग मे अपनी पैठ बनाई जिस कारण आज भी इनकी कई काव्य पंक्तियाँ हरियाणवी समाज में कहावतों कोई भांति प्रयोग कि जाती हैं ।
    श्री लखमीचन्द बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । वे केवल एक लोककवि या लोक कलाकार ही नहीं अपितु एक उदारचेता , दानी ,एवं लोक-कल्याण कि भावना से ओतप्रोत समाज-सुधारक थे । इनकी बुद्धिमत्ता एवं गायन कौशल को देखकर प्रसिद स्वतन्त्रता सेनानी एवं संस्कृत के विद्वान पं॰ टीकाराम(रोहतक निवासी ) ने इनको बहुत दिनों अपने पास ठहराया तथा संस्कृत भाषा एवं वेदों का अध्ययन कराया । श्री लखमीचन्द द्वारा रचित सांगों की संख्या बीस से अधिक है जिनमे प्रमुख हैं - नौटंकी , हूर मेनका ,भक्त पूर्णमल, मीराबाई , सेठ ताराचंद , सत्यवान-सावित्री , शाही लकड़हारा , चीर पर्व (महाभारत ) कृष्ण-जन्म ,राजा भोज - शरणदेय ,नल-दमयंती , राजपूत चापसिंह ,पद्मावत ,भूप पुरंजय आदि । सांगो के अतिरिक्त इन्होने कुछ मुक्तक पदों एवं रागनियों की रचना भी की है जिनमे भक्ति भावना , साधु सेवा ,गऊ सेवा , सामाजिकता , नैतिकता , देशप्रेम , मानवता, दानशीलता आदि भावों की सर्वोतम अभिव्यक्ति है । पं॰ जी की रचनाओं में संगीत एवं कला पक्ष सर्वाधिक रूप से मजबूत होता है । विभिन्न काव्य शिल्प रूप जैसे - अलंकार सौन्दर्य एवं विविधता , छंद -विधान की भिन्नता , भाषा में तुकबंदी एवं नाद सौन्दर्य , मुहावरों एवं लोकोक्तियों का कुशलता पूर्वक प्रयोग ,छंदो की नयी चाल आदि शिल्प एवं भाव गुण इन्हे कविश्रेष्ठ , सूर्यकवि , कविशिरोमणि जैसी उपाधियाँ देने को सार्थक सिद्ध करते हैं ।
    हरियाणवी संस्कृति के पुरोधा और लोकनायक पं॰ लखमीचन्द का देहांत सन 1945 में मात्र 42- 44 वर्ष की आयु मे ही हो गया

  • @Anita-od9bu
    @Anita-od9bu 6 ปีที่แล้ว +9

    लखमीचंद का डंका चारों और बजने लग गया था. लेकिन ज्ञान अर्जित करने की उनकी पिपासा अभी शांत नहीं हुई थी. वह विद्वानों की संगत करते उनसे तमाम किस्म की चर्चा करते. वेद-शाश्त्र हों या रामायण -महाभारत , गीता हो या रामायण - लखमीचंद चंद ने इन सब ग्रथों को साधुजनो और विद्वानों की संगती में ही जाना समझा. इतना ही प्रयाप्त नहीं था इस महँ कलाकार के लिए. उन्होंने इन महान ग्रंथों के किस्सों को आम लोगों को समझी जाने वाली जबान में फिर से छन्दबद्ध करना शुरू किया और उन्हें सांगो की शक्ल में रूपांतरित करना शुरू किया. एक अनपढ़ गंवार लड़का ये सब कर पाया यह कल्पना के परे की बात लगती है.
    आज जब रागनियों के नाम पर अधिकांश अश्लीलता परोसी जा रही है तो लखमीचंद जैसे गायक और कलाकार की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है.उनके प्रमुख सांगो मे हैं: राजा भोज, चंदेर्किरण , हीर-राँझा , चापसिंह, नल-दमयंती, सत्यवान-सावित्री, मीराबाई, पद्मावत. उनके एक प्रसिद्ध सांग हूर मेनका का अंग्रेज़ी अनुवाद हाल ही में लेखक एवं पुलिस अधिकारी राजबीर देसवाल ने किया है. जिसके लिए उन्हें हरियाणा सरकार द्वारा प्रुस्कृत भी किया गया है. आज बहुत आवश्यकता है ऐसे बहुत से प्रयासों की, जिनके माध्यम से हम अपनी नयी पीढ़ी को अपनी विरासत से परिचित करा पायें.
    (उपरोक्त लेख डा. पूरणचंद के शोध पर आधारित है.)
    ले कै दे दे, कर कै खा ले, उस तै कौण जबर हो स।
    नूगरा माणस, नजर फेर ज्या, समझणिए की मर हो स।
    मतलब- किसी से लिया वापस दे देना, अपनी मेहनत करके खाना, उस व्यक्ति से अच्छा और कोई नहीं है।
    चालाक आदमी समय आने पर दोस्ती व रिश्तेदारी भूल नजरें बदल जाता हैं, समाज में बस अच्छे बुरे की समझने वाले को ही परेशानी झेलनी पड़ती है।
    हरियाणा के शेक्सपियर कहे जाने वाले 1901 में सोनीपत के जाटी कलां में जन्में पं. लख्मीचंद कभी स्कूल नहीं गए लेकिन सूर्य कवि की उपाधि प्राप्त प्रदेश की इस महान शख्सियत के सांग और रागनियां पिछले 100 साल से उत्तर भारतियों के मनाेरंज के साथ प्रेरणा बनी हैं। 100 साल बाद भी भविष्य के हालात पर लिखे बोल समय के साथ सच साबित भी हो रहे हैं। 1945 में इस दुनिया से विदा हुए पं. लख्मीचंद ने 44 की उम्र तक 19 से अधिक सांग और हजारों रचनाएं दी।
    राजाराम शास्त्री ने सन् 1958 में प्रकाशित अपनी पुस्तक 'हरियाणा लोक मंच की कहानियां' में लिखा है कि लगभग सवा दो सौ वर्ष पूर्व जिस ज्योति को किशन लाल भाट ने प्रज्वलित किया, एक सौ सत्तर वर्ष बाद उसी में पं. दीपचंद ने स्वरूप परिवर्तन किया। आरंभ में स्वांग का स्वरूप मुजरे सरीखा था। नायक- नायिका आदि मंच पर खड़े होकर किस्से से जुड़ा अपना अभिनय करते और गाते थे।
    बताया गया है कि किशनलाल भाट के बाद 1800 ई. में बंसलीलाल ने सांग को संजीवनी पिलाई। कैप्टन आरसी टेम्पल ने 1883 ई. में अपनी पुस्तक दि लिजेंड्स ऑफ दि पंजाब में इनके सांगाें का संपादन किया। पं. लख्मीचंद ग्रंथावली में डा. पूर्णचंद शर्मा लिखते हैं कि 1854 से 1899 ई. के बीच अलीबख्श के सांगों की धूम हरियाणा, मेरठ और मेवाड़ में खूब मची। हरियाणा के उत्तर पूर्वी भाग में अलीबख्श के समकालीन सांगी थे योगेश्वर बालक राम, कृष्णस्वामी, गोवर्धन, पं. शंकरलाल और अहमदबख्श। बालक राम ने पूर्ण भक्त, राजा गोपीचंद, शीलांदे आदि सांगों की रचना की। 19वीं शती के अंतिम चरण में स्वामी शंकरदास के शिष्य पं. नेतराम ने पहला सांग शीला सेठाणी गाया। सोनीपत के रामलाल खटिक उनके समकालीन थे। पं. दीपचंद लोककवि छज्जूराम से गुरु मंत्र लेकर 19वीं शती के अंतिम दौर में सांग कला क्षेत्र में उतरे। उनके प्रसिद्ध सांग सोरठ, सरणदे राजा भोज, नल दमयंती, गोपीचंद महाराज, हरिश्चंद्र, उत्तानपाद तथा ज्यानी चोर, थे। इनके समकालीन सांगी पं. सरूपचंद दिसौर खेड़ी, मानसिंह जोगी सहदपुर, हरदेवा स्वामी गोरड़, बाजे नाई ससाणा, भरतू भैंसरू, निहाल नंगल, सूरजभान वर्मा भिवानी, हुक्मचंद किसमिनाना, धनसिंह जाट पूठी, अमरसिंह नाई और चतरू लोहार, थे। पं मांगेराम ने हरदेवा और बाजे नाई के कला कौशल को अपनी रागणी तक में पिरौया।
    पं. लख्मी ने दिया सांग को नया यौवन
    पं. लख्मीचंद से पहले सांग कला क्षेत्र में बाजे भगत की तूती बोलती थी। बाद में पं. लख्मीचंद ऐसे छा गए कि बाजे के सांगों का यौवन ढलता चला गया और लख्मीचंद के सांग किशोर से यौवन में आ गए। बताया गया है कि पं. लख्मी चंद ऐसे कवि थे जिन्होंने अपनी किसी भी रागनी को दोबारा उसी रूप में नहीं गाया बल्कि हर बार नया रंग दिया। उनकी इसी कला ने युवाओं से लेकर बुजुर्गां तक के दिलों में उनकी छाप छोड़ी।

    • @VikramSingh-xt2hw
      @VikramSingh-xt2hw 4 ปีที่แล้ว

      Jankari Dene ke liye bhaut bhaut thanks 👍

  • @Dablukhas
    @Dablukhas 6 ปีที่แล้ว

    Ragniyo ke gyata he Vikas ji isse-tariyan laage rho Mahasay ji , Bhai kati Rang sa Bhar diya sai Gayak kalakar ne !!!!
    Hamne to Dada Lakhmi Chand ko nahi Dekha hai, kewal unke bare mein suna hai lekin itna jarur kah sakte hain ki Iss kalakar mein Dada Lakhmi Chand ki vidha ka kaafi kuchh ansh mojud hai.
    Dada ki Huniyaar hai Iss kalakar mein.
    Jai Ho Dada Lakhmi Chand ki,
    Jai Ho Haryanvi Sanskriti ki !!!!

  • @Dablukhas
    @Dablukhas 6 ปีที่แล้ว

    Dada toh Dada e tha, kisse te unka koi Muqabla nhi. Dada ka saarvbhomik Gyaan anmol hai. Haryana ki aam janta Dada dwara diye gaye Gyaan ki sada Rini rahegi. Sumit Satrod aur Vikas Pasoriya ji, aise hi aap mehnat karke Dada Lakhmichand ke anmol aur Ramnik-ratn rupi Gyan ka prachar karte raho kyonki aapke mastak (sir) par bhi Dada Lakhmi ki tarah Maa Bhawani ka haath saaph-saaph drishtigochar hota hai.
    Jai Ho Haryanvi Sanskriti ki,
    Jai Ho Dada Lakhmi Chand ki !!!!

  • @Dablukhas
    @Dablukhas 6 ปีที่แล้ว +1

    Bejod aur Damdaar Gaayki, Dada ki Huniyaar hai Inn dono kalakaro mein.
    Ragniyo ke gyata he dono isse-tariyan laage rho Mahasay ji , Bhai Lath Gaad rakhya sai donu Gayak kalakaro ne !!!!

  • @ANILSINGH-pl1cx
    @ANILSINGH-pl1cx 6 ปีที่แล้ว

    Oho Waah bhaiyo kati Din sa kaadh diya aadhi raat ne bhi !!!!
    Bejod aur Damdaar Gaayki, Hamne Dada Lakhmi ko toh nahi Dekha, prantu itna viswas se jarur kah sakte hain ki agar Aaj Dada hote toh Sumit Satrod-Vikas Pasoriya dono Bhaiyon ki gaayki sunkar inhe Bahut Bahut Aashirwad jarur dete. Lage raho yuhi mehnat aur abhyas karke itne hi josh aur Bhaav se Gaate raho Sumit aur Vikas ji, Dada Lakhmi Chand ki tarah aapke sir par Maa Bhawani ka aashirwaad dikhlai de raha hai .
    Jai Ho Haryanvi Sanskriti ki, Jai Ho Dada Lakhmi Chand ki !!!!

  • @ssdesi4463
    @ssdesi4463 6 ปีที่แล้ว +3

    आम तौर पर एक धारणा बनी हुई है की हरियाणा में कल्चर के नाम पर सिर्फ एग्रीकल्चर है, लेकिन जो लोग ऐसा सोचते हैं दरअसल वे हरियाणा की समृद्ध सांस्कृतिक, सामाजिक विरासत से परिचित ही नहीं हैं. विभिन्न कालखंडो में हरिया णा एवं हरयाणवी लोगों नें ऐसे ऐसे सांस्कृतिक आयाम स्थापित कियें हैं जिसका कोई सानी नहीं है. जब हम हरियाणा की सांस्कृतिक विरासत की बात करेंगे तो पंडित लखमीचंद का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखने योग्य है. आज जब संगीत और कला के नाम पर री मिक्स का शोर शराबा सुनाई देता है और रागनियों के नाम पर हिंदी फ़िल्मी गानों की फूहड़ नक़ल तो लखमीचंद बहुत याद आते हैं. आईए हरयाणा के इस शेक्सपियर के बारे में थोड़ा जाने.
    पंडित लख्मीचंद का जन्म सोनीपत जिले के गांव जाटी कलां के एक किसान परिवार में हुआ था. क्योंकि परिवार का गुज़ारा ही मुश्किल से होता था इसलिए बालक लखमी को स्कूल भेजने की बजाए घर के पशु चराने का काम सौंप दिया गया. गायें, भैसें चराता ये बालक कुछ न कुछ गाता रहता. साथी ग्वालों से कुछ लोक गीत सुन सुन कर इस बच्चे को भी उनकी कुछ पंक्तियाँ याद हो गई. फिर क्या था - इधर मवेशी चरते और उधर लखमी अपनी तान छेड़ देता. लक्मी की गायन प्रतिभा से प्रभावित हो कर उस ज़माने के भजनी और सांगी उसे अपने साथ ले जाने लगे. घर वाले भी उनके इस शौक से कुछ चिंतित रहने लगे. पर मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की. एक बार मशहूर संगी पंडित दीपचंद का सांग देखने के लिए दस साल कि उम्र में ही वो कई दिन घर से बाहर रहे. इसी तरह शेरी खांडा के निहाल सांगी का सांग देखने गए तो कई दिन बाद घर लौटे. कहने का अभिप्राय ये है कि पूत के पांव पालने में ही नज़र आने लगे थे.
    प्रतिभा हो तो कुदरत भी साथ देती है. ऐसा ही कुछ बालक लखमी के साथ हुआ. गांव में कोई शादी थी और उस जमाने के प्रसिद्ध कवि और गायक मान सिंह का उनके गांव में आना हुआ.
    रातभर मान सिंह के भजन चलते रहे और बालक लखमी पर जादू सा का असर करते रहे. एकलव्य की इस बालक ने भी मन ही मन गुरु धारण कर लिया. लेकिन मान सिंह द्रोणाचार्य नहीं थे. उन्होंने इस बच्चे की प्रतिभा को पहचान लिया था और संगीत की औपचारिक शिक्षा देने के लिए उन्होंने उसे शिष्य बनाकर गायन कला के पाठ पदाने आरम्भ कर दिए. थोड़े ही समय में बालक लखमी गायन कला में निपुण हो गया.
    लखमी गायक तो हो गया लेकिन उसकी प्रतिभा और रचनाशीलता अभी संतुष्ट नहीं हुई थी. उसमे तो कुछ और ही ललक थी. उसे अभिनय भी सीखना था. आज भी अगर कोई बच्चा कहे कि मुझे एक्टिंग सीखनी हैं तो आप जानते हैं कि माँ बाप और समाज की प्रतिक्रिया क्या रहेगी? लेकिन लखमी पर तो धुन सवार थी. उस दौर में भी अभिनय और सांग आदि विधाओं को कोई अच्छी चीज़ नहीं माना जाता था. खैर, अब लखमी हो लिए मेहंदीपुर के श्रीचंद सांगी की सांग मण्डली में. फिर अपनी प्रतिभा को और निखारने के लिए पहुँच गए सोहन कुंडलवाला के पास.
    अपनी कला को मांजने के लिए लख्मीचंद बेशक कहीं जाते रहे हों लेकिन वह सच्चे दिल से मान सिंह को ही अपना गुरु मानते रहे क्योंकि इस कला की प्रथमतः बारीकियां उन्होंने उनसे ही सीखी थी. एक बार बरेली के किसी कार्यक्रम में सोहन कुंडल वाला नें मान सिंह के अपमान में कुछ शब्द कह दिए तो स्वाभिमानी लखमीचंद उन्हें नमस्ते कह कर चल दिए. बड़ी मुश्किल से आयोजकों ने उन्हें रोका. महम के सूबेदार शंकर सिंह के काफी आग्रह पर लख्मीचंद कार्यक्रम तो पूरा करने के लिए मान गए लेकिन उनकी गुरु के प्रति श्रद्धा अभेद्य बनी रही . इस बात से बिलबिला कर कुंडल वाला के कुछ चेलों ने लख्मीचंद को धोखे से ज़हर पिला दिया. इलाज़ करने पर उनकी जान तो बच गई पर आवाज बेसुरी हो गई. सरस्वती के साधक को ये कैसे मंजूर होना था. अपने सुर वापस पाने के लिए लखमी चंद रोज गांव के एक सूखे कुवें में उतर जाते और घंटों अभ्यास करते. महीनों तक अभ्यास चलता रहा और लखमी चंद अपनी आवाज को फिर साधने में कामयाब हो गए.
    कुंडलवाला का गरूर अभी तक टूटा नहीं था. उसे यकीन ही नहीं था कि लखमी चंद अब गा सकता है. लखमीचंद के गावं मै ही कुंडल वाला ने उन्हें चुनौती दी कि वह उनके बराबर गा कर दिखाए. फिर क्या था - एक सांग में कुंडलवाला ने राजा भोज की भूमिका की और लखमी ने नायिका के रूप में स्त्री पात्र किया. उनके अभिनय एवं संवाद शैली को देख कर दर्शक तो गद्
    गद् हुए पर राजा भोज की स्थिति गंगू तेली जैसी हो गई

  • @Vedpalmahla
    @Vedpalmahla 6 ปีที่แล้ว

    गर्व है मुझे अपनी हरियाणवी संस्कृति पर ।

  • @rparya9948
    @rparya9948 6 ปีที่แล้ว +6

    बहुत ही आनंददायक कार्यक्रम भाई विकास पसोरिया व सुमित जी को साधुवाद ।

  • @Anita-od9bu
    @Anita-od9bu 6 ปีที่แล้ว +2

    Bhai Lath Gaad rakhya sai donu Gayak kalakaro ne !!!!
    Hamne to Dada Lakhmi Chand ko nahi Dekha hai, kewal unke bare mein suna hai lekin itna jarur kah sakte hain ki Inn Dono kalakaro mein Dada Lakhmi Chand ki vidha ka kaafi kuchh ansh mojud hai.
    Dada ki Huniyaar hai Inn dono kalakaro mein.
    Jai Ho Dada Lakhmi Chand ki,
    Jai Ho Haryanvi Sanskriti ki !!!!

  • @rparya9948
    @rparya9948 6 ปีที่แล้ว +3

    संस्कृति को जिन्दा रखने के लिए अच्छा प्रयास ।भगवान आपको लंबी आयु दे।

  • @rajbirverma8145
    @rajbirverma8145 6 ปีที่แล้ว +2

    Bhai ji is prog. Ki baki ragni bhi dalo pls.

  • @ssdesi4463
    @ssdesi4463 6 ปีที่แล้ว +5

    दादा आज होते तो दोनों उम्दा कलाकारों के गाने के भाव को देखकर इन दोनों को आशीर्वाद जरूर देते

  • @vikasansh9234
    @vikasansh9234 6 ปีที่แล้ว +2

    ragniyo ke gaaata he dono satr lage rhhoo masye ji

  • @Singh-dw3dx
    @Singh-dw3dx 6 ปีที่แล้ว +2

    Tx studio star. .

  • @anilrohilla8608
    @anilrohilla8608 6 ปีที่แล้ว +1

    Esse aage ka program bhi jaldi hi Load karo

  • @RAHULSHARMA-fg6nc
    @RAHULSHARMA-fg6nc 6 ปีที่แล้ว +1

    Jma mst बड़े भाईयो

  • @AnilSharma-td6fw
    @AnilSharma-td6fw 6 ปีที่แล้ว +2

    Thanks to Star Studio

  • @shishankkumar9050
    @shishankkumar9050 6 ปีที่แล้ว +1

    Bhai vikas 28 ko dadri aa rhe h

  • @mahenderbhardwaj9495
    @mahenderbhardwaj9495 2 ปีที่แล้ว

    Bhai, ye Rupye collection and announcement should be after completion of Ragni.
    In between announcement completely spoils the continuety of Ragni.
    Therefore it is again requested not to collect money in between the Ragni and starts announcement, which spoils the Ragni
    Jai Hind

  • @anilrohilla8608
    @anilrohilla8608 6 ปีที่แล้ว +1

    Thanks studio star bad me hd video dal Dena es program ki

  • @keshawprasadtripathi6129
    @keshawprasadtripathi6129 6 ปีที่แล้ว +3

    bhut bdiya program

  • @SanjayKumar-xp7mr
    @SanjayKumar-xp7mr 6 ปีที่แล้ว

    bhut badhiya bhaiyo

  • @Singh-dw3dx
    @Singh-dw3dx 6 ปีที่แล้ว +1

    Bhai sumit jaimal or akbar ki ldayi ki ragni dalo isme jaimal ne akbar ko buri trah haraya tha..

  • @guruchodri1925
    @guruchodri1925 6 ปีที่แล้ว

    Dono star he ajj k

  • @sandeepkaushik3846
    @sandeepkaushik3846 6 ปีที่แล้ว

    dhan dhan hai dono kalakaro ko ye haryane ki shan hai

  • @SanjaySharma-wv8mo
    @SanjaySharma-wv8mo 6 ปีที่แล้ว +1

    Gajab hai donor klakar

  • @mohanlalqureshi6299
    @mohanlalqureshi6299 6 ปีที่แล้ว +2

    Original singing !!

  • @GulabSingh-wp6yl
    @GulabSingh-wp6yl 4 หลายเดือนก่อน

    ❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤

  • @SonuTomar-ok6ly
    @SonuTomar-ok6ly ปีที่แล้ว

    ❤❤❤❤

  • @DeepakChauhan-fq8ti
    @DeepakChauhan-fq8ti 6 ปีที่แล้ว +1

    bhot bdiya

  • @anilsharmaji3848
    @anilsharmaji3848 6 ปีที่แล้ว +2

    jabardast dono bhai

  • @vikasvikas2817
    @vikasvikas2817 4 หลายเดือนก่อน

    Sumit bhai or Vikash bhai RAM RAM ye corress me gayniye k gave s ya bhi sunya kro o maa shero wali mamta ka mewa chkha du tujhe? etne bade ho gye k jo maa ko mamta ka mewa chakha denge gaan bahut achha h aapka lekin arth ka anrth bhi mat kiya kro wo aese h maa mamta ka mewa chkha de mujhe

  • @keshawprasadtripathi6129
    @keshawprasadtripathi6129 6 ปีที่แล้ว

    aan ban haryana ki saan

  • @virenderkharb9396
    @virenderkharb9396 2 ปีที่แล้ว

    Dono bhi g great

  • @Technical-G.
    @Technical-G. 6 ปีที่แล้ว +2

    Nice

  • @keshawprasadtripathi6129
    @keshawprasadtripathi6129 6 ปีที่แล้ว

    sandar jabardart zindabad

  • @sandeepkaushik3846
    @sandeepkaushik3846 6 ปีที่แล้ว

    jai ho sury kavi dada lakhmichand ki

  • @karansinghmkdolia7331
    @karansinghmkdolia7331 6 ปีที่แล้ว

    👍👍👍👍👍👍👍👍👍👍👍👍

  • @krishgrewal2433
    @krishgrewal2433 6 ปีที่แล้ว +2

    Superb both singer...

    • @abheysinghyadav6011
      @abheysinghyadav6011 2 ปีที่แล้ว

      Ybobbbobioobboobib ooaohbhbhbhbbhbhbbbobiubhbb9ybhb ob8y9ibbi óo óíaí8iíobiîiybbbub

    • @abheysinghyadav6011
      @abheysinghyadav6011 2 ปีที่แล้ว

      Ob hi 8ybobb8oybbboobbybobobybbbybbbybuaohbohbybbibiioib8bybbbîóbaiybybbybb9hybhiibihbioboboybbhbboóboobob9bbhh ybibubuobiboubibhbi ybbibbobbbibbihiaii uboa8oboiîiaobi8bybhbihoa8obbbobubb ibobiybbbbobbio

    • @abheysinghyadav6011
      @abheysinghyadav6011 2 ปีที่แล้ว

      Bobby bbhoua8b9o9ibboybbo boobb ibii ó8iibbbbi bohbbyoboii

    • @abheysinghyadav6011
      @abheysinghyadav6011 2 ปีที่แล้ว

      Biboih biaib8biboybbbbi oybboibbbi biybybbbbiób

    • @abheysinghyadav6011
      @abheysinghyadav6011 2 ปีที่แล้ว

      Aibybbbh ihbibybiybhbhbhbhbcbbiubibbibóbbbboiyboccobioibubihbohbybyiybybbohbibbybib ooybabobibóbbiybiioibbhboybbybaiiybbb

  • @kalugorakhpur3209
    @kalugorakhpur3209 6 ปีที่แล้ว +1

    Kti Tod bitha Diya bhai

  • @csfilms5833
    @csfilms5833 6 ปีที่แล้ว

    Dada aaj hotel to bahut dukhi hotel kyo ki aaj ke kalakaro Ka behsura gana wo bardashat Nahi karte

  • @AjayAjay-iy9it
    @AjayAjay-iy9it 6 ปีที่แล้ว +2

    Very nice Bhai Vikash&Sumit Bhai

  • @sushilbaba4389
    @sushilbaba4389 5 ปีที่แล้ว

    Very good👍

  • @ManjeetSingh-bj1hs
    @ManjeetSingh-bj1hs 6 ปีที่แล้ว

    Great

  • @surajmal1780
    @surajmal1780 3 ปีที่แล้ว

    B
    Nx

  • @sandhusandhu9156
    @sandhusandhu9156 6 ปีที่แล้ว +1

    Badiya bhaio

  • @rupakchaudhary2079
    @rupakchaudhary2079 6 ปีที่แล้ว +2

    very nice

  • @GulabSingh-wp6yl
    @GulabSingh-wp6yl 4 หลายเดือนก่อน

    Marga ke p g

  • @ramsingh7538
    @ramsingh7538 2 ปีที่แล้ว

    U

  • @OmParkash-mv4eg
    @OmParkash-mv4eg 3 ปีที่แล้ว

    0

  • @youtubeking6236
    @youtubeking6236 2 ปีที่แล้ว

    🙏🏻🙏🏻🙏🏻👏👏👏👏👏👏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️

  • @DaljitSingh-op7tq
    @DaljitSingh-op7tq 6 ปีที่แล้ว +2

    very good

  • @trilokchandsharma5776
    @trilokchandsharma5776 6 ปีที่แล้ว +2

    Very good