Mahavidya Prayog // महाविद्या प्रयोग // प्रेत बाधा मुक्ति // सर्व बाधा मुक्ति

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  • เผยแพร่เมื่อ 10 ก.ย. 2024
  • ॥ अथ महाविद्यास्तोत्रम् ॥ ॥ श्री गणेशाय नमः ॥
    महाविद्यां प्रवक्ष्यामि महादेवेन निर्मिताम् । उत्तमां सर्वविद्यानां सर्वभूताघशङ्करीम् ॥
    भगवान् शङ्कर द्वारा निर्मित उस महाविद्या को मैं कहता हूं, जो सब विद्याओं में श्रेष्ठ तथा सब जीवों को वश में करनेवाली हैं । साधक दाहिने हाथ में पुष्प, अक्षत, जल लेकर पाठ का सङ्कल्प करे । सङ्कल्पः - ॐ तत्सदद्याऽमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरे अमुकगोत्रः - अमुकशर्माऽहं मम (अथवाऽमुकयजमानस्य) गृहे उत्पन्न भूत-प्रेत-पिशाचादि-सकलदोषशमनार्थं झटित्यारोग्यताप्राप्त्यर्थं च महाविद्यास्तोत्रस्य पाठं करिष्ये । जल छोड़ दें । साधक पुन:दाहिने हाथ में पुष्प, अक्षत, जल लें विनियोगः - ॐ अस्य श्रीमहाविद्यास्तोत्र मन्त्रस्याऽर्यमा ऋषिः, कालिका देवता, गायत्री छन्दः, श्रीसदाशिवदेवताप्रीत्यर्थे
    मनोवाञ्छित सिद्ध्यर्थे च जपे (पाठे) विनियोगः । जल छोड़ दें । साधक हाथ में पुष्प लें : ध्यानम् - उद्यच्छीतांशु-रश्मि-द्युतिचय-सदृशीं फुल्लपद्मोपविष्टां वीणा-नागेन्द्र-शङ्खायुध-परशुधरां दोर्भिरीड्यैश्चतुर्भिः । मुक्ताहारांशु-नानामणियुतहृदयां सीधुपात्रं वहन्तीं वन्देऽभीज्यां भवानीं प्रहसितवदनां साधकेष्टप्रदात्रीम् ॥ पुष्प देवी प्रतिमा / चित्र पर चढ़ा दें । ॐ कुलकरीं .................................................................................................क्रमश: |
    परिणामे महाविद्या महादेवस्य सन्निधौ । एकविंशतिवारं च पठित्वा सिद्धिमाप्नुयात् ॥ १॥
    स्त्रियो वा पुरुषो वापि पापं भस्म समाचरेत् । दुष्टानां मारणं चैव सर्वग्रहनिवारणम् ।
    सर्वकार्येषु सिद्धिः स्यात् प्रेतशान्तिर्विशेषतः ॥२॥ महादेव के समीप में इस महाविद्यास्तोत्र के इक्कीस बार पाठ करने से सिद्धि प्राप्त होती है , चाहे वह स्त्री हो या पुरुष उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं । दुष्टों का मारण तथा सब ग्रहों की शान्ति भी होती है । और सभी कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है । विशेष करके प्रेतबाधा की शान्ति निश्चित रूप से होती है । इति श्रीभैरवीतन्त्रे शिवप्रोक्ता महाविद्या समाप्ता । अथाऽस्य स्तोत्रस्योत्कीलनमन्त्रः - (इस स्तोत्र का उत्कीलन मन्त्र है -) ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम् । नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम् ॥ अष्टोत्तरशतमभिमन्त्र्य जलं पाययेत् अथवा कुशैर्मार्जयेत् । इस मन्त्र से एकसौ आठ बार जल को अभिमन्त्रित कर पिलाना चाहिये अथवा कुश से मार्जन करे ।

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