ऐसी राई राजस्थानी मेवाड़ी गवरी खेल सुप्रसिद्ध उदयपुर 1999 की Gavari आपने शायद ही देखी होगी

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  • เผยแพร่เมื่อ 21 ก.ย. 2024
  • ऐसी #Gavari राजस्थान मेवाड़ की राई सुप्रसिद्ध उदयपुर 1999 की गवरी आपने शायद ही देखी होगी
    मेवाड़ी गवरी का खेल आदिवासी भील लोक नृत्य
    राजस्थानी लोक कलाकार श्यामलाल भील कारोई
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    मेवाड़ क्षेत्र में किया जाने वाला यह नृत्य भील जनजाति का प्रसिद्ध नृत्य है। इस नृत्य को सावन-भादो माह में किया जाता है। इस में मांदल और थाली के प्रयोग के कारण इसे ' राई नृत्य' के नाम से जाना जाता है। इसे केवल पुरुषों के दुवारा किया जाता है। वादन संवाद, प्रस्तुतिकरण और लोक-संस्कृति के प्रतीकों में मेवाड़ की गवरी निराली है। गवरी का उदभव शिव-भस्मासुर की कथा से माना जाता है। इसका आयोजन रक्षाबंधन के दुसरे दिन से शुरू होता है। गवरी सवा महीने तक खेली जाती है। इसमें भील संस्कृति की प्रमुखता रहती है। यह पर्व आदिवासी जाती पर पौराणिक तथा सामाजिक प्रभाव की अभिव्यक्ति है। गवरी में मात्र पुरुष पात्र होते हैं। इसके खेलों में गणपति काना-गुजरी, जोगी, लाखा बणजारा इत्यादि के खेल होते हैैं। इसमें शिव को "पुरिया" कहा जाता है।
    पात्र
    गबरी में चार तरह के पात्र होते हैं- देवता, मनुष्य, राक्षस और पशु।
    मनुष्य पात्र
    भूडिया
    राई
    कुटकड़िया
    कंजर-कंजरी
    मीणा
    बणजारा-बणजारी
    दाणी
    नट
    खेतूडी
    शंकरिया
    कालबेलिया
    कान-गूजरी
    भोपा
    फत्ता-फत्ती
    दानव पात्र
    गबरी के दानव पात्र क्रूर तथा दूसरों को कष्ट देने वाले होते हैं। इनके सिर पर सींग तथा चेहरा भयानक होता है। इनमें प्रमुख पात्र है:
    पशु पात्र
    गबरी में कई पसु पात्र भी होते हैं। जैसे शेर, भालू, सियार आदि। ये हिंसक नहीं होते हैं।

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