Emerging Threats from Woke & Wokism - A Sanskrit Shaastriya Response, 9-9-2024

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  • เผยแพร่เมื่อ 9 พ.ย. 2024
  • Gist of The Academic Karmotsava (अकादमिक कर्मोत्सव) Held Today (9th September, 2024)
    "TH-cam link" - • Emerging Threats from ...
    A national webinar cum Open House discussion was organized on the topic - “वोक एवम् वोकवाद से उभरते खतरे - संस्कृत-शास्त्रीय प्रतिसम्वेदन” “Emerging Threats from Woke & Wokism - A Sanskrit Shaastriya Response” in which 31participants participated and shared their concerns and questions. Resource Person Sh. Neeraj Atri, Director, Center For Historical Research & Comparative Studies, Panchkula. delivered a scholarly brilliant & authentic lecture which was appreciated by all. The open house discussion concluded with a vote of thanx proposed by IASSK.
    WHY & WHAT
    वोक एवम् वोकवाद एक जटिल विषय भी है जिसके कई वोक आयामों पर विचार करने की आवश्यकता है जिसके लिए संस्कृत-शास्त्र से हमें इस दिशा में मार्गदर्शन प्राप्त करना होगा ताकि हम उभरती समस्याओं और चुनौतियों का योग्य एवम् प्रभावी समाधान प्राप्त कर सकें।
    वोकवाद (Wokism) का उदय 21वीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में हुआ, विशेष रूप से 2010 के दशक में। यह शब्द मूलतः अफ्रीकी अमेरिकी समुदाय में प्रयोग किया जाता था, जिसका अर्थ था “जागृत” या “जागरूक” होना। इसका उपयोग उन लोगों के लिए किया जाता था जो सामाजिक न्याय, नस्लीय समानता, और लैंगिक अधिकारों के मुद्दों पर जागरूक थे। वोकवाद की जड़ें कई सामाजिक आंदोलनों में हैं, जैसे कि ब्लैक लाइव्स मैटर (Black Lives Matter) आंदोलन, जिसने नस्लीय भेदभाव और पुलिस हिंसा के खिलाफ आवाज उठाई। इसके साथ ही, LGBTQ+ अधिकारों की लड़ाई और अन्य सामाजिक न्याय आंदोलनों ने भी वोकवाद को बढ़ावा दिया। वोकवाद का विस्तार तेजी से हुआ है और यह अब केवल अमेरिका तक सीमित नहीं है। यह वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों में फैल गया है, जहां लोग सामाजिक असमानताओं और भेदभाव के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। वर्तमान में, वोकवाद ने शिक्षा, मीडिया, राजनीति और संस्कृति जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है। विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रमों से लेकर सोशल मीडिया पर चर्चाओं तक, वोकवाद ने एक नई संवाद शैली को जन्म दिया है जो अक्सर विवादास्पद होती है। हालांकि वोकवाद को समर्थन प्राप्त है, लेकिन इसके आलोचक भी हैं जो इसे अतिवादी या असहिष्णु दृष्टिकोण मानते हैं। इस प्रकार, वोकवाद एक जटिल और बहु आयामी विषय बन गया है जो समाज में गहरी चर्चा का कारण बना हुआ है।
    जैसा कि स्पष्ट है कि वोक (Woke) और वोकवाद (Wokism) का अर्थ है एक सामाजिक जागरूकता जो नस्लीय, लैंगिक, और अन्य सामाजिक न्याय के मुद्दों पर केंद्रित है। यह शब्द मूलतः अफ्रीकी अमेरिकी संस्कृति से निकला है और इसका उपयोग उन लोगों के लिए किया जाता है जो सामाजिक असमानताओं और भेदभाव के खिलाफ जागरूक हैं। हालांकि, हाल के वर्षों में, वोकवाद को आलोचना का सामना करना पड़ा है, जिसमें इसे अतिवादी या असहिष्णु दृष्टिकोण के रूप में देखा गया है। इसलिए वोकवाद के प्रचार प्रसार से हुए उभरते हुए खतरों से परिचित होना ही चाहिए - १. संस्कृति का युद्ध: इस वोकवाद ने समाज में एक प्रकार का ‘संस्कृति युद्ध’ उत्पन्न किया हैजिससे विभिन्न विचारधाराओं के बीच टकराव ने संवाद की जगह संघर्ष को जन्म दिया है। यह स्थिति न केवल व्यक्तिगत संबंधों को प्रभावित करती है बल्कि राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता को भी चुनौति देती है। २. स्वतंत्रता की सीमाएँ:- यह वोकवाद अक्सर स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर अंकुश लगाने का आरोप लगाता है। जब लोग अपनी राय व्यक्त करने से डरते हैं क्योंकि वे ‘वोक’ मानकों का उल्लंघन कर सकते हैं, तो यह एक खतरनाक प्रवृत्ति बन जाती है। इससे विचारों की विविधता कम होती है और समाज में सहिष्णुता की कमी हो सकती है। ३. सामाजिक विभाजन:- इस वोकवाद ने समाज में विभाजन को बढ़ावा दिया है। जब लोग अपने विचारों को ‘सही‘ या ‘गलत’ के रूप में वर्गीकृत करते हैं, तो यह सामूहिक पहचान की भावना को कमजोर करता है। इससे समुदायों में आपसी समझ और सहयोग की कमी हो सकती है। ४. अति-संवेदनशीलता:- वोकवाद के समर्थक अक्सर अति-संवेदनशील होते हैं, जिससे सामान्य बातचीत भी विवादास्पद बन जाती है। यह स्थिति लोगों को एक-दूसरे से दूर कर सकती है और संवाद की संभावनाओं को समाप्त कर सकती है। ५. राजनीतिक प्रभाव:- वोकवाद ने राजनीतिक विमर्श पर गहरा प्रभाव डाला है। कई राजनीतिक दल इस आंदोलन का समर्थन या विरोध करते हैं, जिससे चुनावी राजनीति में ध्रुवीकरण बढ़ रहा है। इससे लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं प्रभावित हो सकती हैं।
    अतः इस वोकवाद का खण्डन करने के लिए संस्कृत-शास्त्रीय सम्भावित प्रतिसम्वेदन इस प्रकार से हो सकते हैं कि संस्कृत-शास्त्रीय साहित्य में सामाजिक न्याय और समानता के विषयों पर गहन चर्चा मिलती है और शास्त्रीय संस्कृति नैतिकता, धर्म, और समाज के प्रति दायित्वों की सस्कृति है जिसके अनुसार किसी भी सामाजिक आंदोलन का उद्देश्य मानवता का हित, मंगल या कल्याण होना चाहिए न कि विभाजन या संघर्ष पैदा करना। अतः शास्त्रीय संस्कृति को ठीक ठीक समझें तो हम वर्तमान चुनौतियों का प्रत्युत्तर श्रेष्ठ ज्ञान और श्रेष्ठ आचरण से कर सकते हैं।
    [विशेष - इस वोकावाद का सम्बन्ध ऋषि शुङ्ग से प्रतीत होता है जिन्होनें प्रमाण-विद्या का ही खण्डन कर अनास्था और दिग्भ्रमिता का ऐसा वातावरण उत्पन्न कर दिया कि आश्रम के सभी शिष्य गुरु को त्याग कर स्वेछाचारी हो गए और सारा आश्रम उजाड़ और वीरान हो गया।]
    Regards
    ashutosh Angiras

ความคิดเห็น • 2

  • @nishantsharma1733
    @nishantsharma1733 2 หลายเดือนก่อน +1

    Concept of aradhnarishwar can be considered as a solution.

    • @ashutoshangiras8654
      @ashutoshangiras8654  2 หลายเดือนก่อน

      @@nishantsharma1733 yes I do agree but with caution is needed so that it is not misinterpreted or hijacked.