श्री भक्ति प्रकाश भाग (718)*जैसी करनी वैसा फल(उपदेश मंजरी)*भाग-२*
ฝัง
- เผยแพร่เมื่อ 26 ก.ย. 2024
- Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281
परम पूज्य डॉ विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से।
((1302))
श्री भक्ति प्रकाश भाग (718)
जैसी करनी वैसा फल(उपदेश मंजरी)
“कर्म करो ऐसे भले जैसे फल की मांग,
इक्षु रस की मधुरता मिले ना बो कर भांग”
भाग-२
आइए साधक जनों कुछ एक दृष्टांतो के माध्यम से देखें,
“जैसी करनी वैसा फल,
आज नहीं तो निश्चिय कल”
कोई दो राय नहीं इसमें ।
फल तरह तरह का है । एक तो इस प्रकार का आज रात आपने कोई गंदी चीज खा ली, हो सकता है मध्यरात्रि ही आपको उठना पड़े उल्टी के लिए, vomiting के लिए, दस्त लग जाए । यह उस कर्म का तत्काल फल
है । यह तो थोड़ी देरी लग गई । ऐसा भी होता है कभी ऐसी चीज भी खाई जाती है की तत्काल Vomiting हो जाती है, कर्म का तत्काल फल । आज आप ने परीक्षा दी तीन महीने के बाद उसका परिणाम निकलेगा । वह कर्म फल तीन महीने के बाद मिलने वाला है । फल की अवधि देवियों सज्जनों परमेश्वर के अधीन ही है । कब, कहां, क्या, कितना फल देना है, सब उसके अधीन है ।
एक पौधा तीन एक महीने के बाद ही कुछ खाने को देता है ।
दूसरा एक साल के बाद देता है,
तीसरा पांच साल के बाद देता है,
सेब का पौधा है दस साल के बाद फल खाने को देता है ।
यह तो यहां की चीजें हो गई ।
कुछ ऐसी चीजें भी तो होगी जिसका फल इस जन्म में संभव नहीं । तो फिर अगला जन्म लेना पड़ेगा । और यह सत्य है, यह स्पष्ट दिखाई देता है हमें । तो यही मानना पड़ेगा कर्म सिद्धांत के अंतर्गत
“जैसी करनी वैसा फल
आज नहीं तो निश्चय कल”
कल अगला जन्म भी हो सकता है, उससे अगला जन्म भी हो सकता है ।
परमेश्वर सजा नहीं देता देवियों सज्जनों । उसके विधान में अत्याचार, अन्याय नहीं है। वह मात्र हमारे लिए व्यवस्था करता है, जो किया है उसके फल का भुगतान इसका हो जाए, ताकि इसका कर्म कटे । यह कर्म बोझ उठाकर रखेगा, तो इसका जन्म मरण का चक्र छूटेगा नहीं ।
यह सत्य है देवियों सज्जनों हम सब अपने अपने कर्म भोग भोगने के लिए, फल भोगने के लिए यहां आए हुए हैं । या यूं कहिएगा हम सब अपने कर्मों का ऋण उतारने के लिए यहां आए हुए हैं । जो हमारे सिर पर था, उसे उतारने के लिए यहां आए हैं ।
उतर गया तो यही हिसाब किताब खत्म ।
और ले लिया तो फिर अगले जन्म की तैयारी होगी । अतएव संत महात्मा समझाते हैं -
भाई जो लिया हुआ है उसे ही उतारो, समझदार बनो और ना लो । ताकि यह जन्म मरण का चक्कर, इतनी पीड़ा देने वाला चक्कर है, यह यहीं खत्म हो जाए ।
आज एक आचार्य अपने शिष्यों से कहते हैं, अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए मेरा कोई हिसाब किताब रहता है । अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए मुझे बकरे की बलि देनी है । जाओ एक बकरा ले आओ ।
शिष्य गए हैं । जाकर एक बकरा ले आए हैं। किसी छोटे-मोटे व्यक्ति की बात नहीं । आचार्य गुरु समझिएगा, सर्वोच्च पद पर आरुड़ व्यक्ति उसकी कथा है यह । शिष्य बकरा ले आया है । कहा इसे नहलाओं धुलाओ, साफ सुथरा करो, तिलक इत्यादि लगाओ । गले में फूल माला और तैयार कर के मेरे पास ले आओ इसे, मैं फिर संकल्प करूंगा । इस की बलि दी जाएगी । शिष्य बकरे को तैयार कर रहे हैं ।
एक मिनट के लिए बकरा हंसा है । हंसने के बाद रोया है । शिष्यों ने कारण पूछा ।
कहा अपने गुरु के पास ले चलो । वहीं कारण बताऊंगा । तैयार कर के बकरे को हार इत्यादि डला हुआ है, तिलक भी लगा हुआ है, मानो बलि देने के लिए तैयार है । गुरु महाराज से कहा, यह अभी हंसा था, फिर रोया है । और कहता था कि मैं कारण गुरु महाराज के सामने ही बताऊंगा ।
बताओ बकरे क्यों आप हंसे थे और क्यों रोए थे ?
कहा महाराज मैं भी पिछले जन्म में आप ही की तरह आचार्य ही था । मुझे भी इसी प्रकार बकरे की बलि देनी थी । बकरा इसी प्रकार तैयार किया हुआ था, बलि दे दी । पांच सौ बार मुझे अपनी गर्दन कटवानी है, उस कर्म के फल के अंतर्गत । एक बार मैंने उस बकरे की बलि दी थी, पांच सौ बार बकरा बन के मुझे अपनी बलि देनी थी । 499 बार हो चुकी है । यह पांच सौ बारी है, इसलिए प्रसन्न हूं ।
मेरे बकरे की योनि खत्म होने वाली है ।
रोया इसलिए आपका हाल भी यही
होने वाला है ।
गुरु महाराज ने यह बात सुनी । सुनकर मन ही मन चिंतन मनन किया । कहा -
बकरे हम तेरी बलि नहीं देंगे । तुम्हें मारेंगे नहीं । गुरु महाराज कोई बात नहीं । मुझे तो मरना है । आप नहीं मारोगे कोई और मार देगा । पर मुझे आज मरना है, निश्चित है । यह आज मेरी अंतिम बारी है, अंतिम दिन है, मेरे बकरे की योनि का । उसके बाद मेरी योनि बदल जाएगी । उस एक कर्म का फल मुझे पांच सौ बार भुगतना पड़ा । तब उसका फल पूरा होगा ।
गुरु महाराज अपने शिष्यों को कहते हैं-
इसके पीछे पीछे जाओ ।छोड़ दो इसे ।
पीछे पीछे जाओ । रक्षा करना इसकी । ध्यान रखना कोई इसे मारे ना । शिष्य चले गए पीछे पीछे । बकरे को भूख लगी हुई थी। एक पहाड़ी पर चढ़ा है वहां पर तरह-तरह के छोटे छोटे पौधे, झाड़ियां लगी हुई थी । बकरा अपने स्वभाव के अनुसार झाड़ियों से पत्ते खाने लग गया । तोड़ रहा है मुख से, खाता जाता है ।
इसी बीच जिस पहाड़ी पर वह खड़ा होकर तो पत्ते खा रहा है, उसी पहाड़ी के ऊपर से एक पत्थर लुढ़का, उसकी गर्दन पर पड़ा और गर्दन कट गई । बिल्कुल वैसे ही कटी जैसे छुरी से काटी जाती है ।
Jai shree Ram ❤❤ Ram Ram ji Jai shree Ram ji Jai shree Ram ♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️
Ram Ram ji
Jai Shree Ram 🙏 Jai Guruji Maharaj 🙏
Ram Ram ji
राम राम राम राम राम राम राम
Ram Ram ji
Ram Ram ji 🙏🏻
Ram Ram ji
Ram Ram ji 🙏 sbko Ram Ram 🙏
Ram Ram ji
Ram Ram ji 🙏
Ram Ram ji